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कोई गर्भवती महिला ऐसे प्रदूषण में रहे तो उसके बच्चे का क्या हाल होगा?

प्रेग्नेंट औरतों के लिए भी प्रदूषण बहुत ख़तरनाक है. इससे महिला और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे, दोनों को ही नुकसान पहुंचता है. कैसे? ये हमें बताया डॉक्टर ने.

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प्रदूषण प्रेग्नेंट औरतों के लिए बहुत ख़तरनाक है

अगर आपसे पूछा जाए प्रदूषण से सेहत को क्या नुकसान पहुंचता है तो आप कहेंगे एलर्जी हो जाती है. सांस लेने में परेशानी होती है. फेफड़े ख़राब होने लगते हैं. आंखें जलती हैं. स्किन पर असर पड़ता है. एकदम सही बात. पर प्रदूषण से होने वाले नुकसान यहां नहीं रुकते. प्रेग्नेंट औरतों के लिए भी प्रदूषण बहुत ख़तरनाक है. इससे महिला और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे, दोनों को ही नुकसान पहुंचता है. कैसे? ये हमें बताया डॉक्टर अर्चना धवन बजाज ने.

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डॉ. अर्चना धवन बजाज, गायनेकोलॉजिस्ट, नर्चर आईवीएफ क्लीनिक, नई दिल्ली

डॉक्टर अर्चना बताती हैं कि प्रदूषण से गर्भवती महिला और उसके बच्चे पर बुरा असर पड़ता है. हालांकि ये असर कितना गहरा होगा, ये कई चीज़ों पर निर्भर करता है. जैसे गर्भवती महिला कितने वक्त तक प्रदूषण के बीच रही है. प्रदूषण का लेवल क्या था और प्रदूषण फैलाने वाले तत्व कौन से थे.

प्रदूषण फैलाने वाले छोटे-छोटे कण, खासकर PM 2.5 और PM10, प्लेसेंटा को पार कर सकते हैं. अब ये प्लेसेंटा क्या होता है? प्लेसेंटा प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं में बनने वाला एक अस्थाई अंग है. ये गर्भाशय यानी यूटेरस की दीवार से जुड़ा होता है और गर्भनाल के ज़रिए बच्चे को ऑक्सीजन और दूसरे ज़रूरी पोषक तत्व पहुंचाता है.

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बच्चे के पैर के पास प्लेसेंटा की तस्वीर

मगर जब प्रदूषण के छोटे-छोटे कण प्लेसेंटा में पहुंच जाते हैं. तब प्लेसेंटा के कामों पर असर पड़ता है. इससे भ्रूण का विकास सही से नहीं हो पाता. जिससे कई तरह की दिक्कतें होती हैं. जैसे प्रीक्लेम्पसिया (preeclampsia), जो प्रेग्नेंसी से जुड़ा एक डिसऑर्डर है. इसमें मां का ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. जिससे भ्रूण को खून की पर्याप्त सप्लाई नहीं मिल पाती. यानी बच्चे को ज़रूरत भर ऑक्सीज़न और पोषक तत्व नहीं मिलते. प्रीक्लेम्पसिया होने पर प्लेसेंटा अचानक गर्भाशय से अलग भी हो सकता है. जिससे बच्चे की गर्भ में ही मौत हो सकती है.

इसके अलावा, प्रदूषण की वजह से बच्चे का जन्म समय से पहले हो सकता है. ये भी अपने आप में बड़ी दिक्कत है. ऐसे में फेफड़ों का सही तरह विकास नहीं हो पाता. दूसरी दिक्कत है low birth weight होना. यानी जन्म के समय बच्चे का वज़न तय मानकों से कम होना. आमतौर पर, नवजात बच्चे का वज़न ढाई से साढ़े 4 किलोग्राम तक होना चाहिए. लेकिन, ज़्यादा प्रदूषण में रहने से ये वज़न डेढ़ से 2 किलोग्राम तक पहुंच सकता है. जो बच्चे के लिए सही नहीं है. कम वज़न वाले बच्चों का विकास धीमा होता है. जन्म के बाद उनकी मौत भी हो सकती है.

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ज़्यादा प्रदूषण से मिसकैरिज का रिस्क भी रहता है

डॉक्टर अर्चना आगे बताती हैं कि ज़्यादा प्रदूषण में रहने से गर्भवती महिला का Miscarriage यानी गर्भपात हो सकता है. खासकर उन महिलाओं में जो अपनी पहली तिमाही यानी फर्स्ट ट्राईमेस्टर में बहुत ज़्यादा प्रदूषण के बीच रही हों. यही नहीं, प्रदूषण से महिलाओं में इनफर्टिलिटी (Infertility) का रिस्क भी बढ़ता है.

लिहाज़ा, ज़रूरी है कि प्रेग्नेंट महिलाएं अपना खास ध्यान रखें. बहुत ज़्यादा प्रदूषण हो तो घर से बाहर न निकलें. निकलना ही पड़े तो पहले AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स चेक करें. ये हवा की क्वालिटी जांचने का एक पैमाना है. साथ ही, घर में एयर प्योरिफायर (Air Purifier)  लगवाएं. किचन में धुएं से बचने के लिए चिमनी का इस्तेमाल करें. इसके अलावा, अगर कोई भी दिक्कत महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से मिलें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप' आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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