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काम के बोझ से हो गई दिमाग की ऐसी-तैसी, ऐसे बढ़ाएं अपनी ब्रेन प्रोडक्टिविटी

काम के बोझ तले अक्सर दिमाग अपनी ताकत खोने लगता है. ऐसे में आप चाहकर भी अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाते.

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ओवर वर्क से दिमाग पर बुरा असर पड़ता है.

सिर पर डेडलाइन का प्रेशर. क्लाइंट की कभी न खत्म होने वाली डिमांड्स. बॉस जो आपकी ना सुनने को तैयार नहीं. एक काम खत्म होता नहीं, कि दूसरा पकड़ा दिया जाता है. अगर आपकी ज़िंदगी की तस्वीर भी कुछ ऐसी है तो ये स्टोरी खास आपके लिए ही है.

ऑफिस जाने वाले कॉर्पोरेट मज़दूरों, मल्टी-टास्किंग करने पर भले ही ऑफिस में शाबाशी मिलती हो, लेकिन आपको अंदाज़ा भी नहीं है कि इसका आपके दिमाग पर क्या असर पड़ता है. दरअसल, काम के बोझ तले, दिमाग अक्सर अपनी ताकत खोने लगता है. ऐसे में आप चाहकर भी अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाते. ऐसा लगता है जैसा दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है. फोकस करना मुश्किल हो जाता है. अच्छे आइडिया नहीं आते. चीज़ें याद नहीं रहतीं.

अब इन समस्याओं से कैसे निपटें, आज डॉक्टर साहब से जानेंगे. समझेंगे कि काम के बोझ से दिमाग पर क्या असर पड़ता है. ऑफिस में काम करने वाले ब्रेन प्रोडक्टिविटी कैसे बढ़ाएं. और, अगर चीज़ें भूलने की आदत हो गई है तो इससे कैसे निपटें.

काम के बोझ से दिमाग पर क्या असर पड़ता है?

ये हमें बताया डॉक्टर विनीत बंगा ने. 

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डॉ. विनीत बंगा, डायरेक्टर, न्यूरोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, फरीदाबाद

बहुत ज़्यादा वर्क लोड और स्ट्रेस से दिमाग पर दो तरह का असर पड़ सकता है. एक, दिमाग की बनावट पर और दूसरा, मेंटल हेल्थ पर. अगर बहुत ज़्यादा वर्क लोड है तो आप फोकस नहीं कर पाएंगे. मल्टी-टास्किंग करने पर आपका फोकस सही नहीं होगा. इससे आपकी प्रोडक्टिविटी निखर कर नहीं आ पाएगी. ऐसे में आप काम तो खूब करेंगे लेकिन प्रोडक्टिविटी बेहतर नहीं होगी. 

दूसरा, जब भी ज़्यादा वर्क लोड होता है तो व्यक्ति स्ट्रेस में आ जाता है, इससे शरीर में स्ट्रेस हॉर्मोन रिलीज़ होता है जो पूरे शरीर पर असर डालता है. इसकी वजह से हाई ब्लड प्रेशर (High Blood Pressure) की दिक्कत हो सकती है. इंसुलिन रेज़िस्टेंस (Insulin Resistance) हो सकता है, जिससे आगे चलकर डायबिटीज़ (Diabetes) हो सकती है. 

डिसलिपिडेमिया (Dyslipidemia) हो सकता है यानी खून में कोलेस्ट्रॉल का असामान्य रूप से ज़्यादा होना. जब ये दिक्कतें होती हैं तो सिर्फ दिमाग ही नहीं बल्कि पूरे शरीर पर असर पड़ता है. इससे हार्ट अटैक या ब्रेन में स्ट्रोक आने का खतरा भी रहता है. 

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बहुत ज़्यादा वर्क लोड से एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन हो सकता है (सांकेतिक तस्वीर)

स्ट्रेस से जुड़ी दिक्कतें हो सकती हैं, जैसे एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन. जब भी वर्क लोड ज़्यादा होता है तो पर्सनल लाइफ के लिए समय नहीं बचता. इसकी वजह से डिप्रेशन या एंग्ज़ायटी होना बहुत आम है. नींद न आने यानी इनसोम्निया (Insomnia) की दिक्कत हो सकती है. कई बार नींद तो आती है लेकिन उसकी क्वालिटी खराब होती है. ज़्यादा वर्क लोड की वजह से चीज़ों पर फोकस नहीं हो पाता. आप बातें भूलने लगते हैं, कुछ याद नहीं रहता है.  

इसके अलावा, दिमाग में न्यूरोकेमिकल्स या न्यूरोट्रांसमिटर्स रिलीज़ होते हैं. जिनकी वजह से हाई ब्लड प्रेशर और शुगर की दिक्कत हो सकती है. ब्रेन स्ट्रोक पड़ सकता है. दिमाग की उम्र बढ़ने लगती है जिससे कई दिमागी बीमारियों का खतरा रहता है. 

ऑफिस में काम करने वाले ब्रेन प्रोडक्टिविटी कैसे बढ़ाएं?

प्रोडक्टिविटी बढ़ाने का सबसे ज़रूरी तरीका फोकस करना है. चीज़ों पर फोकस करना सीखें. मल्टी-टास्किंग न करें. जब भी हम मल्टी-टास्किंग करते हैं तो पूरा फोकस नहीं कर पाते. इस वजह से कोई भी काम पूरा नहीं हो पाता. जब काम पूरा नहीं होता तो संतुष्टि नहीं मिलती. फिर हमें और ज़्यादा स्ट्रेस होने लगता है. इसलिए, अगर प्रोडक्टिविटी बढ़ानी है तो फोकस करें. मल्टी-टास्किंग न करें. एक बार में एक ही काम करें. पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों को महत्व दें. सिर्फ प्रोफेशनल लाइफ में न उलझे रहें. एक्सरसाइज़ करें. हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं. अच्छी नींद लें. इन सबसे प्रोडक्टिविटी बेहतर होती है क्योंकि आपकी याद्दाश्त और फोकस करने की क्षमता सुधरती है.

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सुडोकु खेलें, दिमाग एक्टिव रहेगा

भूलने की आदत से कैसे निपटें?

अगर चीज़ें भूलने की आदत हो गई है तो ब्रेन से जुड़ी एक्सरसाइज़ करें. गेम्स, सुडोकु और ताश खेलें. डम शराड्स खेलें. ब्रेन गेम्स, जैसे शतरंज और लूडो खेलें. इन सबसे आपका दिमाग एक्टिव रहेगा. 

साथ ही, फोकस करने की कोशिश करें. योग, प्राणायाम और एक्सरसाइज़ करें. हेल्दी डाइट लें. खाने में हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, प्रोटीन और ओमेगा थ्री फैटी एसिड्स शामिल करें. ये सारी चीज़ें ब्रेन बूस्टर की तरह काम करती हैं. सबसे ज़रूरी, अपनी पर्सनल लाइफ को समय दें. इससे स्ट्रेस दूर होगा.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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