पेट फूलना. भूख न लगना. वज़न घटना. बार-बार उल्टी आना.
डायबिटीज़ कंट्रोल में रखें वरना पेट की ये बड़ी बीमारी हो जाएगी!
जब डायबिटीज़ कंट्रोल में नहीं होती, तो गैस्ट्रोपेरेसिस नाम की बीमारी हो सकती है. इसमें पेट की गति कम हो जाती है.

ये वो दिक्कतें हैं, जिनसे हम कभी-न-कभी दो-चार होते ही हैं. आमतौर पर, जब पाचन तंत्र में कोई गड़बड़ी होती है. तो इनमें से कोई दिक्कत शुरू हो जाती है. माने कभी ब्लोटिंग होने लगती है. तो कभी खाना खाने का मन नहीं करता. कभी उबकाई महसूस होती है. तो कई बार उल्टी आ जाती है.
अब अगर इनमें से कोई परेशानी हो, तो हम क्या करते हैं? हम डॉक्टर के पास जाते हैं. दवाई खाते हैं. इसके बाद दिक्कत दूर हो जाती है. लेकिन, एक बीमारी ऐसी है. जिसमें ये सारी दिक्कतें एक साथ होने लगती हैं. और, आसानी से ठीक भी नहीं होतीं.
इस बीमारी का नाम है, गैस्ट्रोपेरेसिस (Gastroparesis). इसे ‘स्टमक पैरालिसिस’ भी कहा जाता है. यानी पेट में लकवा मार जाना. मगर ऐसा होता क्यों है? कैसे हमारे पेट में लकवा मार जाता है, यानी गैस्ट्रोपेरेसिस हो जाता है? यही सब जानेंगे आज सेहत के इस एपिसोड में.
गैस्ट्रोपेरेसिस क्या है?
ये हमें बताया डॉक्टर प्रसाद भाटे ने.

गैस्ट्रोपेरेसिस एक आम बीमारी है. इसमें पेट की मोटिलिटी (गति) कम हो जाती है. पेट हमारे पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण अंग है. इसमें गैस्ट्रिक जूस (पाचक रस) खाने के साथ मिलते हैं. पेट की गति कम होने से ये प्रक्रिया धीमी हो जाती है.
गैस्ट्रोपेरेसिस क्यों होता है?
गैस्ट्रोपेरेसिस का सबसे आम कारण अनियंत्रित डायबिटीज़ है. अनियंत्रित डायबिटीज़ की वजह से पेट की नसों और मांसपेशियों पर बुरा असर पड़ता है. जिससे पेट की खाने को आगे बढ़ाने की क्षमता कम हो जाती है. इस वजह से खाया गया खाना और दवाइयां सही से काम नहीं करतीं, जिससे शुगर और अनियंत्रित हो जाती है.
इसके अलावा, कुछ इंफेक्शन भी गैस्ट्रोपेरेसिस का कारण बन सकते हैं. पेट की सर्जरी के बाद भी ये दिक्कत हो सकती है. कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों में भी पेट की गति धीमी हो जाती है, जिससे गैस्ट्रोपेरेसिस हो सकता है.
गैस्ट्रोपेरेसिस के लक्षण
- पेट फूलना
- भूख न लगना
- बार-बार उल्टी आना या उल्टी जैसा महसूस होना
- वज़न कम होना

गैस्ट्रोपेरेसिस होने से शरीर पर क्या असर पड़ता है?
गैस्ट्रोपेरेसिस की वजह से खाना ठीक से नहीं पचता. बार-बार उल्टी होने से वज़न घट सकता है. अपच की समस्या हो सकती है. भूख कम लगती है. पोषक तत्वों की कमी से दूसरी दिक्कतें भी हो सकती हैं.
गैस्ट्रोपेरेसिस से बचाव व इलाज
गैस्ट्रोपेरेसिस से बचने के लिए ब्लड शुगर कंट्रोल में रखें. शुगर कंट्रोल में रहने से गैस्ट्रोपेरेसिस की संभावना कम हो जाती है. लंबे समय तक अनियंत्रित शुगर पेट की नसों और मांसपेशियों को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे गैस्ट्रोपेरेसिस हो सकता है. यानी अपनी शुगर कंट्रोल करना बहुत ज़रूरी है. साफ-सुथरा और सेहतमंद खाना भी इससे बचने में मदद करता है.
गैस्ट्रोपेरेसिस की जांच एंडोस्कोपी, इलेक्ट्रोगैस्ट्रोग्राफी और गैस्ट्रिक एंप्टिंग स्टडीज़ से की जाती है. इसके इलाज के लिए प्रोकायनेटिक दवाएं दी जाती हैं. ये दवाएं पेट की गति सुधारती हैं और लक्षणों को कम करती हैं. कुछ गंभीर मामलों में सर्जरी की ज़रूरत पड़ सकती है, जिसमें गैस्ट्रिक बाईपास किया जाता है.
जैसा डॉक्टर साहब ने कहा, गैस्ट्रोपेरेसिस से बचना है, तो अपनी शुगर कंट्रोल में रखें. अगर शुगर कंट्रोल में नहीं होगी, तो ये बीमारी होने के चांस बढ़ जाएंगे. इसलिए, पूरी सावधानी बरतें. अगर फिर भी कोई लक्षण महसूस हो, तो बिना देर किए डॉक्टर से मिलें.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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