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गांजा पीने वालों को पता भी नहीं चलता और उनके दिमाग के साथ ये खेल हो जाता है, पूरा साइंस समझिए

'Guest In The Newsroom' का वीडियो आने के बाद ये चर्चा फिर शुरु हुई कि Bipolar Disorder और Cannabies का या गांजे का क्या रिश्ता है?

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इस पौधे के फूलों को सुखाकर गांजा बनाया जाता है (Photo-Rebecca Rivas/Missouri Independent))

दी लल्लनटॉप के यूट्यूब चैनल पर एक सितंबर को रिलीज़ हुए ‘गेस्ट इन दी न्यूज़ रूम’ के लेटेस्ट एपिसोड का एक चंक खूब वायरल हुआ. इसमें सिंगर और रैपर हनी सिंह गांजे से होने वाले नशे और उसके नुकसान पर चर्चा कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने गांजे से होने वाले एक नुकसान बाईपोलर डिसऑर्डर का जिक्र किया. ‘गेस्ट इन दी न्यूज़ रूम’ का वीडियो आने के बाद ये चर्चा फिर शुरु हुई कि बाईपोलर डिसऑर्डर और कैनेबिस का या गांजे का क्या रिश्ता है? बाईपोलर डिसऑर्डर यानी एक ऐसी मानसिक स्थिति जिसमें व्यक्ति के व्यवहार और सोच में समय-समय पर बड़ा बदलाव आता रहता है. कभी उत्साह की आंधी चलती है और कभी उदासी की लहर. और ये जिज्ञासा कुछ बुनियादी सवालों के रथ पर सवार है. जैसे-

-गांजे में कौन से केमिकल्स होते हैं?

-वो शरीर में कैसे असर करते हैं?

-कैसे उनकी वजह से बाईपोलर डिसऑर्डर हो सकता है?  

Cannabis
गांजे का पौधा (Photo-Britannica)
गांजा क्या है?

कैनेबिस को हिंदी में भांग का पौधा कहते हैं. इस पौधे से तीन ड्रग तैयार होते हैं. ड्रग यानी एक ऐसा केमिकल जिसके सेवन से किसी भी लिविंग ऑर्गनिज्म का कामकाज प्रभावित होता है. पहला ड्रग है चरस ये कैनेबिस के पौधे से निकले रेज़िन से बनता है. रेज़िन यानी पेड़-पौधों से जो चिपचिपा मैटेरियल निकलता है. चरस को ही हशीश या हैश भी कहते हैं. दूसरा है भांग, ये कैनेबिस की पत्तियों और बीजों को पीसकर बनाया जाता है. फिर लोग इसे सुविधानुसार खाते या पीते हैं. इसके बाद आता है गांजा. ये कैनेबिस के फूलों से तैयार किया जाता है. आमतौर इसे जलाकर इसके धुएं को अंदर लिया जाता है. लेकिन जुनूनी लोगों ने इसे खाने और घोलकर पीने के तरीक़े भी खोज लिए हैं. इसे ही बॉब मारले की भाषा में गांजा कहा जाता है.

गांजा भांग और चरस तीनों ही साइकोएक्टिव ड्रग (Psychoactive Drug) हैं. जहां भी आप साइको शब्द सुनें तो समझ लीजिए कि उस शब्द या कॉन्सेप्ट का दिमाग़ से कनेक्शन है, जैसे साइकोलॉजी, साईकेट्रिस्ट, साइको किलर, साइको सोमैटिक सिमटम्स. ऐसे ही साइकोएक्टिव मतलब जो दिमाग़ को एक्टिव कर दे. और ख़ुदा का ख़ौफ करें, एक्टिव को यहां पॉजिटिव कॉनोटेशन के साथ क़तई ना लें. यहां मतलब एब्नॉर्मल ऐक्टिविटी से है. जिसे विद्वानों की भाषा में “हाई” होना भी कहते हैं. अब सवाल ये कि जब कोई हाई होता है, तो उसके शरीर में होता क्या है?

गांजे की केमिस्ट्री

कैनेबिस में कई केमिकल होते हैं. इन्हें कैनेबिनॉइड्स (Cannabinoids) कहते हैं. कुल 150 प्रकार के कैनेबिनॉइड्स होते हैं. लेकिन इनमें सबसे महत्वपूर्ण है- THC. यही कैनेबिस का सबसे मेन साइकोएक्टिव हिस्सा है. गांजे में जिनता ज़्यादा THC, उतना ज़्यादा नशा. केमस्ट्री का दिमाग पर क्या असर होता है, ये समझने के लिए चलते हैं बायोलॉजी वाले पीरियड में.

गांजे की बायोलॉजी

दिमाग में भाईसाब होते हैं हज़ारों ख़याल और हज़ारों करोड़ों न्यूरॉन्स. साथ ही होता है उनका नेटवर्क जो देखने में मकड़ी के जाल जैसा लगता है. ये न्यूरॉन्स ही दिमाग को पूरे शरीर से जोड़ते हैं और इनके नेटवर्क से ही दिमाग़ में सिग्नल का ट्रांसमिशन और रिसेप्शन होता है. ट्रांसमिशन और रिसेप्शन का मतलब, कभी सिग्नल दिमाग से शरीर में जाता है, जैसे पेट में कूदते हुए चूहे, और कभी सिग्नल शरीर से दिमाग की तरफ जाता है, जैसे तवे से हाथ हटा लो , जल जाएगा. 

पहले वाला ट्रांसमिशन है, दूसरा रिसेप्शन. महक और स्वाद भी इसी नेटवर्क की मदद से दिमाग तक पहुंचते हैं और फिर दिमाग सारे एहसास डिकोड करता है. दिमाग को आप कंट्रोल रूम की तरह समझ सकते हैं. इस कंट्रोल रूम में कई कमरे हैं. एक कमरे से शरीर की एनर्जी, नींद, याददाश्त और मूड को मैनेज किया जाता है. इसे कहते हैं इंडो कैनेबिनॉइड सिस्टम. इस सिस्टम में दो टाइप के रिसेप्टर होते हैं- CB1 और CB2.

अब THC जो है, वो है मिर्ज़ापुर का गुड्डू, जिसे चाहिए फुल कंट्रोल. तो वो हैकर की तरह इन रिसेप्टर्स CB1 और CB2 पर कब्ज़ा कर लेता है. और फिर पूरे पूर्वांचल पर, यानी पूरे कमरे से मैनेज होने वाली नींद, यादाश्त और मूड पर अपना कंट्रोल स्थापित कर लेता है. सिस्टम हिल जाता है तो शरीर में बहने वाले कुछ हॉर्मोन्स भी अम्मा-अम्मा बोलने लगते हैं.

हॉर्मोन शरीर में बनने वाले केमिकल्स हैं. इनके कई सारे काम हैं जैसे इंसुलिन का काम है शरीर में शुगर लेवल को ठीक रखना. ऐसे ही एक हॉर्मोन है डोपामीन. जो एकदम रिलैक्स कर देता, एकदम खुशी की बारिश हो जाती है. गांजे से भी यही डोपामीन रिलीज़ होता है. जिससे शॉर्ट टर्म, ध्यान रखिएगा, कुछ क्षणों के लिए ख़ुशी महसूस होती है. THC कुछ और ट्रांसमिटर्स के साथ भी खुरपेंच करता है जिससे मूड और पर्सपेक्टिव का ग्रामर हिल जाता है. अब कोई केमिकल दिमाग के एक कमरे को हैक कर रहा है तो निश्चित ही इससे कई साइकाइट्रिक डिसऑर्डर्स होने का जोखिम होगा.

गांजे से होने वाली समस्याएं

दिमाग में होने वाले केमिकल रिएक्शन की वजह से लोगों को कैनबिस यूज़ डिसऑर्डर यानी CUD की समस्या हो जाती है. कैनबिस यूज़ डिसऑर्डर यानी गांजे के सेवन से होनी वाले साइकाइट्रिक डिसऑर्डर्स. CUD इस शब्द को याद रखिए, इसका ज़िक्र आगे भी आता रहेगा. इसमें THC नई यादें बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है और इससे शॉर्ट टर्म मेमरी की हालत पाकिस्तान की जीडीपी जैसी हो जाती है. THC से डिसीज़न मेकिंग का रायता हो जाता है. फोकस तो भूल ही जाओ. बार-बार गांजे के उपयोग से दिमाग THC के लिए कम रिएक्टिव हो सकता है. जो रोज़ या अक्सर गांजे का सेवन करते  हैं, उन्हें पहले जितना नशा पाने के लिए गांजे की क्वांटिटी बढ़ानी पड़ती है. इससे THC बढ़ता जाता है और CUD भी.

लेकिन इसका इलाज संभव है.  Behavioral Therapy, Counseling और कभी-कभी दवाओं के साथ. जिसके लिए आपको जना पड़ेगा डॉक्टर या ट्रेन्ड मेडिकल प्रफेशनल्स के पास. यहां एक और बात समझनी जरूरी है. जैसा पहले बताया कि THC एक खतरनाक हैकर है और सिस्टम के अंदर बैठकर सभी चीज़ों को कंट्रोल कर रहा है. ऐसे में कभी-कभी समस्या CUD से भी आगे बढ़ सकती है और इन्ही में से एक है बाईपोलर डिसऑर्डर. 

बाईपोलर डिसऑर्डर की समस्या

गांजे के सेवन की वजह से किसी नॉर्मल व्यक्ति को डायरेक्ट बाइपोलर डिसऑर्डर हो जाए, इसको साबित करती कोई व्यापक रिसर्च मेडिकल फील्ड में उपलब्ध नहीं है. लेकिन एक चीज़ स्टडी से ज़रूर कन्फर्म हो चुकी है कि जिन लोगों को CUD है, गांजे से होने वाला डिसऑर्डर है, उन्हें बाईपोलर डिसऑर्डर या यूनिपोलर डिप्रेशन की समस्या होने का रिस्क बढ़ सकता है. अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन JAMA Psychiatry नाम की एक मंथली जर्नल पब्लिश करता है. इसमें एक रिसर्च छपी. इस रिसर्च के लिए डेनमार्क के मेडिकल रजिस्टर डेटा का इस्तेमाल किया गया था. जिसमें 66 लाख से ज्यादा लोग शामिल थे. इस रिसर्च पेपर की फाइंडिंग के अनुसार, CUD के मरीजों को यूनिपोलर डिप्रेशन और बाईपोलर डिसऑर्डर होने का ज़्यादा जोखिम था.

रिसर्च के मुताबिक जिन पुरुषों को CUD था उनमें बाईपोलर डिसऑर्डर का रिस्क बाकियों की तुलना में 3 गुना से ज़्यादा था. CUD से जूझ रही महिलाओं में बाईपोलर डिसऑर्डर का रिस्क बाकी महिलाओं के मुकाबले 2.5 गुना से ज़्यादा था. इसके आलावा, CUD वाले लोगों में यूनिपोलर डिप्रेशन होने की संभावना लगभग 1.8 गुना अधिक थी. तो बात को चाहे घुमाकर कह लीजिए, कैनेबिस का कोई भी स्वरूप आपकी मानसिक सेहत के लिए ख़तरनाक है. हर फिक्र को धुएं में उड़ाने की चाहत, कई बड़ी फिक्रों को आमंत्रण है.

वीडियो: आसान भाषा में: गांजा दिमाग के लिए कितना खतरनाक है?