इसमें कोई दोराय नहीं है कि नाग अश्विन ने एक यूनिक फिल्म बनाने की कोशिश की है. जैसा भारतीय सिनेमा में कभी कुछ नहीं बना. उन्होंने विज़ुअल्स के मामले में अपने विज़न से कोई समझौता नहीं किया है. वो चीज़ स्क्रीन पर नज़र आती है. मगर फिल्म की राइटिंग, उसकी विज़ुअल स्टोरीटेलिंग वाली ब्रिलियंस को मैच नहीं कर पाती. इसलिए इतनी महत्वकांक्षी फिल्म होने के बावजूद 'कल्कि 2898 AD' औसत से थोड़ी बेहतर फिल्म बनकर रह जाती है.