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ऑस्कर जीतने वाली गुनीत मोंगा की कहानी, पाई-पाई जोड़कर फिल्म बना दी थी!

अपनी फिल्म की स्क्रिप्ट डाल दी सोशल मीडिया पर!

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इंडिपेंडेंट फ़िल्मों को बाहरी ऑडियंस और डिस्ट्रीब्यूटर्स तक पहुंचाने में इनका बड़ा क्रेडिट है.

दिल्ली की आईपी यूनिवर्सिटी से मीडिया की पढ़ाई की. फिर चली गईं मुंबई. फ़िल्म की दुनिया में क़दम रखा. छोटे-मोटे प्रोजेक्ट्स में काम किया. इतने भी छोटे नहीं; 'रंग रसिया' और 'दसविदानिया' जैसे प्रोजेक्ट्स. नाम फिर भी नामालूम. अनुराग कश्यप से मुलाक़ात हुई. फिर ख़ुद का प्रोडक्शन शुरु किया. कट टू 14 साल बाद.. अब स्थितियां बदल गई हैं. इस औरत का नाम आज पूरी दुनिया ले रही है. इस औरत की प्रोड्यूस की हुई डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म को 13 मार्च 2023 की सुबह ऑस्कर मिला है. फ़िल्म का नाम है 'द एलीफेंट विस्पररर्स'.

इस औरत का नाम है गुनीत मोंगा. हम इस स्टोरी में उनकी कहानी जानेंगे.

Kartiki Gonsalves ने ये डाक्यूमेंट्री डायरेक्ट की है और प्रोड्यूस किया है गुनीत मोंगा की सिख्या एंटरटेनमेंट ने. ऑस्कर जीतने के बाद गुनीत ने एक वीडियो बनाया और उसे अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर डाला.

"आज का दिन ऐतिहासिक है. ये किसी भी इंडियन प्रोडक्शन का पहला ऑस्कर है. और, दो महिलाओं ने इसे जीता है.

140 करोड़ हिंदुस्तानियो! ये आपके लिए है. ये सपना हम सबने साथ देखा था.

मैं हर महिला से ये कहना चाहती हूं, भविष्य साहसी है. भविष्य हमारा है. भविष्य आ चुका है."

कौन हैं गुनीत मोंगा?

दिल्ली में पली-बढ़ीं. यहीं के ब्लूबेल्स स्कूल इंटरनेशनल में पढ़ाई की और 2004 में गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन ऐंड इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की पढ़ाई की.

अपने कॉलेज के दिनों से ही फ़िल्मों में काम शुरू कर दिया था. डिग्री मिलने से पहले ही गुनीत ने दिल्ली में एक प्रोडक्शन कोऑर्डिनेटर के तौर पर इंटर्नशिप की. डिग्री मिली और 2006 में मुंबई चली गईं. क्रिकेट पर बनी फ़िल्म 'से सलाम इंडिया' (2007) से काम शुरू किया. इसके बाद उन्होंने 'रंग रसिया' (2008) और 'दस्विदानियां' (2008) जैसे प्रोजेक्ट्स में काम किया. 2009 में 'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' (2010) की शूटिंग के दौरान मिल गईं राइटर-डायरेक्टर अनुराग कश्यप से और 2009 के आख़ि अंत तक वो अनुराग कश्यप फ़िल्म्स में शामिल हो गईं.

गुनीत की पहली बड़ी अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म थी, 'कवि'. 2009 में आई और उसी साल फ़िल्म को अकादमी अवॉर्ड्स के बेस्ट लाइव ऐक्शन शॉर्ट फ़िल्म कैटगरी के लिए नॉमिनेट किया गया था. फ़िल्म भारत में बंधुआ मजदूरी के बारे में थी. इसे डायरेक्ट किया था ग्रेग हेल्वे ने और इस फ़िल्म ने 2009 में स्टूडेंट अकादमी अवॉर्ड (नैरेटिव) जीता था.

इस बीच 2008 में गुनीत ने अपनी ख़ुद की प्रोडक्शन कंपनी: सिख्या एंटरटेनमेंट शुरू की और एक लाइन प्रोडक्शन कंपनी भी शुरू की. अनुराग कश्यप के साथ उन्होंने 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के दोनों पार्ट्स, 'दैट गर्ल इन येलो बूट्स' (2011), तृष्णा (2011), शैतान (2011), माइकल (2011) जैसी फ़िल्मों में काम किया; कुछ को को-प्रोड्यूस किया.

अनुराग कश्यप के प्रोजेक्ट्स के लिए प्रोड्यूसर जुटाने और संभालने के अलावा, गुनीत अनुराग कश्यप प्रोडक्शंस को विदेशी ख़रीदारों और डिस्ट्रीब्यूटर्स से जोड़ने का काम करती थीं. इसके लिए करना क्या होता है? फिल्म फ़ेस्टिवल्स में जाना, सेल्स एजेंटों और डिस्ट्रीब्यूटर्स से मिलना, अपने प्रोजेक्ट्स को पिच करना और को-प्रोडक्शन  के लिए पैसा जुटाना. गुनीत ने ख़ुद कहती हैं, 

कुल तीन सवाल होते हैं: कितना पैसा है? कितना शेयर है? कितना कमाएगी?

गुनीत को इंडिपेंडेंट सिनेमा को दुनिया तक पहुंचाने का बड़ा क्रेडिट है (फोटो - सोशल मीडिया)

'मॉनसून शूटआउट' को उन्होंने भारत, नीदरलैंड और ब्रिटेन की प्रोडक्शन कंपनियों के साथ मिलकर प्रोड्यूस किया. उन्होंने एक और बहुत ही सुंदर फ़िल्म बनाई -- 'द लंचबॉक्स'. इसका भी प्रोडक्शन भारत, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका की प्रोडक्शन कंपनियों के साथ किया. मई 2013 में जब 'द लंचबॉक्स' और 'मानसून शूटआउट', दोनों को इंटरनेशनल क्रिटिक्स वीक के लिए चुना गया और 2013 के कान फ़िल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग की गई, तो न्यूज़ संगठन हॉलीवुड रिपोर्टर ने गुनीत को 'नई लहर के सिनेमा का सबसे विपुल प्रोड्यूसर' कहा.

गुनीत ने पेडलर्स के लिए फ़ेसबुक से पैसा जुटाया था. 2 करोड़ का बजट था, जिसमें से 1 करोड़ रुपये उनके पास थे और 1 करोड़ उन्होंने फ़ेसबुक से जुटाए. क्या किया? फ़िल्म की स्क्रिप्ट फ़ेसबुक पर डाल दी. और, लोगों ने स्क्रिप्ट के दम पर उन्हें पैसा दिया.

गुनीत के प्रोडक्शन सिख्या एंटरटेनमेंट के नाम एक से एक फ़िल्में हैं. मसलन: 'गैंग्स ऑफ़ वसेपुर', 'पेडलर्स', 'द लंचबॉक्स', 'मसान', 'ज़ुबान' और 'पगलैट'. कुछ प्रोड्यूस तो कुछ को-प्रोड्यूस.

2012 में मिंट को दिए एक इंटरव्यू में गुनीत ने कहा था,

"कितनी सारी कहानियां हैं, कितना कम वक़्त है. मैंने अपने कम्प्यूटर से शादी कर ली है. मेरी कोई ज़िंदगी नहीं है."

किस बारे में है 'द एलिफ़ेंट विस्परर्स'?

गुनीत कौन हैं, ये आप जान गए. अब संक्षेप में ये जान लीजिए कि एलिफ़ेंट विस्परर्स है किस बारे में.

कहानी तमिलनाडु में सेट है. मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व में हाथियों को पाला-पोसा जाता है. ख़ासतौर पर उन हाथी के बच्चों को, जिनका जीवन बहुत सुरक्षित नहीं बीता है. रिज़र्व में दो लोग हैं: बोम्मिन और बेली. जो एक हाथी को पालते हैं. हाथी का नाम है रघु. कहानी इसी हाथी और इन्हीं दो लोगों के इर्द-गिर्द भटकती है. हमारे साथी यमन ने इस डॉक्यूमेंट्री का रिव्यू किया है. बकौल यमन,

"The Elephant Whisperers एक प्योर फिल्म है. बिना लाग-लपेट के बताई कहानी. इस फिल्म की नींव में वो बातें हैं, जिनके आधार पर ये दुनिया अब तक टिकी हुई है. प्रेम और भरोसा. बोम्मिन और बेली को ख़ुद पर और एक-दूसरे पर भरोसा है कि वो रघु को पाल सकते हैं. जिस प्यार और ममता का हक़दार एक बच्चा होता है, वो उनके दिलों में मौजूद है. एक बड़े हाथी ने एक बार अपना दांत बोम्मिन के शरीर में घोंप दिया था. बस इस बात का इतना ही ज़िक्र मिलता है. कभी ये नहीं दिखता कि एक हाथी ने मेरे साथ ऐसा किया, फिर मैं हाथियों को कैसे प्यार कर सकता हूं? खुद को सभ्य कहने वाले हम इंसानों के लिए ये एक सीख है."

डॉक्यूमेंट्री नेटफ़्लिक्स पर है. तुरंत देख डालिए.

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