27 अप्रैल को फिल्मफेयर अवॉर्ड अनाउंस हुए हैं. 'गंगूबाई काठियावाड़ी' के लिए आलिया को बेस्ट ऐक्ट्रेस और राजकुमार राव को 'बधाई दो' के लिए बेस्ट ऐक्टर का अवॉर्ड मिला. 'गंगूबाई काठियावाड़ी' बेस्ट फिल्म बनी. ऐसे ही तमाम अवॉर्ड मिले. किसे क्या मिला आप फिल्मफेयर की वेबसाइट पर जाकर पढ़ सकते हैं. पर एक अवॉर्ड जिसकी काफ़ी चर्चा है, वो है बेस्ट डेब्यू ऐक्टर अवॉर्ड. इसके विनर हैं अमिताभ बच्चन की फिल्म 'झुंड' में डॉन नाम का किरदार निभाने वाले अंकुश गेडाम. इनके लिए सही मायनों में डायरेक्टर नागराज मंजुले कह सकते हैं: ‘तेरे को सड़क से उठाकर स्टार बना दिया."
कहानी 'झुंड' के अंकुश गेडाम की: वो लड़का, जो सड़क से उठकर सीधे अमिताभ की पिक्चर में हीरो बन गया
अंकुश गेडाम ने बेस्ट डेब्यू ऐक्टर का फिल्मफेयर जीता है.


दरअसल अंकुश का कुछ समय पहले तक फिल्म और ऐक्टिंग से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था. नागराज मंजुले के भाई भूषण मंजुले ने उन्हें रोड पर डांस करते देखा. नागराज तक वीडियो शूट करके पहुंचाया. नागराज ने अंकुश को 'डॉन' बना दिया. बीबीसी मराठी से बात करते हुए अंकुश कहते हैं:
मुझे रोड पर से सिलेक्ट किया गया था. मैं गणपति विसर्जन में नाच रहा था. तब नागराज मंजुले सर के भाई भूषण मंजुले ने मेरे फोटो खींच लिए. वीडियो बनाया. मैंने उनसे पूछा कि मेरे फोटो क्यों खींच रहे हो? तो उन्होंने कहा कि हम एक शॉर्ट फिल्म बना रहे हैं. ऑडिशन के लिए आ जाओ.
ये पूरा वाकया भूषण मंजुले ने भी बयान किया है. वो कहते हैं:
फ़िल्म की कास्ट के बाकी सारे लड़के मिल गए थे, लेकिन डॉन नहीं मिल रहा था. तो उस वक्त मेरे दिमाग मे एक चित्र था, पर वैसा लड़का मिल नहीं रहा था. नागराज को नागपुर निकलना था, तो उन्होंने ये भी कहा कि जाने दो अगली बार देखेंगे.

भूषण आगे कहते हैं:
जाने से पहले मैं गाड़ी में घूम रहा था. गणपति विसर्जन का दिन था. गड्डी गोदाम (मुम्बई) के इलाके में एक विसर्जन रैली जा रही थी. उसमें एक लड़का नाच रहा था. उसको देखकर मैं वहीं रुक गया. उसके झबराले बाल विग जैसे लग रहे थे. उसने जर्सी और बरमूडा पहन रखा था. वो ऐसे नाच रहा था, जैसे पैरों में स्प्रिंग लगी हो. उसके पूरे बदन में एक तरह की लय थी. उसे देखते ही पता चल गया कि मुझे डॉन मिल गया.
अंकुश गेडाम उस वक़्त पुलिस भर्ती की तैयारी कर रहे थे. उन्होंने बीबीसी मराठी से बात करते हुए बताया:
मैं पुलिस भर्ती की तैयारी कर रहा था. तो जो और जैसा फिल्म में दिखाया है, वैसा बिल्कुल नहीं है. मैंने कभी कोई नशा नहीं किया, ना ही मुझे एक्टिंग आती थी. ऑडिशन में मुझे एक सीन दिया और बोला कि तुम क्रिमिनल हो. मैंने कहा: मैं ऐसा कुछ नहीं हूं. तब उन्होंने समझाया, तुम्हें समझना है कि तुम क्रिमिनल हो और एक वॉचमैन अंदर नहीं जाने दे रहा है. मैंने एक्टिंग करके दिखाई. शायद उन्होंने मेरा वीडियो भेजा. दो-तीन दिन बाद मुझे नागराज सर ने बुला लिया. पुणे में उन्होंने स्क्रिप्ट पढ़कर सुनाई. तब मुझे नहीं पता था कि मैं डॉन का रोल करने वाला हूं, लेकिन जब फाइनली पता चला, तो कितनी खुशी हुई मैं बता नहीं सकता.
अंकुश आगे कहते हैं कि फिल्म रिलीज होने के बाद लोगों का जो प्यार मिल रहा है, वो बहुत खुश कर देता है. फ़िल्म के प्रीमियर पर मैं नागपुर गया था, तो मेरे दोस्तों ने भी वहां मेरा भव्य स्वागत किया. इसके बाद ज़िन्दगी में फ़िल्मी ट्विस्ट पाने वाले अंकुश कहते हैं:
पहले मैं लोगों के बीच खड़ा रहता था, अब लोग मेरे लिए खड़े हो रहे हैं. देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है.
'झुंड' झुग्गी में रहने वाले बच्चों के उत्कर्ष की कहानी है. शायद इसका कोई सीक्वल बने तो वो अंकुश पर भी बन सकता है. उनकी कहानी भी किसी फिल्म से कम नहीं. जीवन में जादू कभी भी हो सकता है. अंकुश इसका उदाहरण हैं. हो सकता है आपका भी कोई जादू इंतज़ार कर रहा हो. क्योंकि ये तब होता है, जब आपको इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं होती.
वीडियो: अमिताभ बच्चन के लीड रोल वाली फिल्म ‘झुंड’ का रिव्यू