नब्बे का दौर था. साल 1995. अपने दौड़ते-भागते हिट फिल्म करियर को छोड़कर Amitabh Bachchan ने ABCL लॉन्च की. इसमें उनका ख़ूब पैसा और संसाधन लग चुके थे (1999 में कंपनी दिवालिया हो गई). उन्हें वापस फिल्मों में लौटना था. मुंबई में राम गोपाल वर्मा की आमिर, जैकी श्रॉफ, उर्मिला स्टारर और रहमान के म्यूज़िक वाली 'रंगीला' की म्यूज़िक लॉन्च पार्टी हो रही थी. बच्चन भी पहुंचे हुए थे. पार्टी में उन्हें 'तिरंगा' और 'क्रांतिवीर' वाले डायरेक्टर मेहुल कुमार दिखे. वे उनके पास गए. बोले, 'सर, आपके पास कोई गरमा गरम स्क्रिप्ट है?' मेहुल ने पूछा किसके लिए और बच्चन बोले, 'मेरे लिए'. अगले दिन उनके ऑफिस से मेहुल के यहां फिर फोन गया कि उनकी रिक्वेस्ट का क्या हुआ. इस पर एक मीटिंग रखी गई. मेहुल ने कहानी सुनाई और यूं 'मृत्युदाता' उनकी कमबैक फिल्म बनी. 1997 में आई ये फिल्म फ्लॉप गई, लेकिन इसे बनाने में बच्चन ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इसकी तस्दीक हाल में The Lallantop के साथ बातचीत में गीतकार Sameer Anjaan ने भी की.
"जब अपनी कमबैक को लेकर चिंतित अमिताभ बच्चन ने मुझसे कहा- आप कुछ जादू करो"
Lyricist Sameer Anjaan ने बताया कि Mrityudata की म्यूज़िक सिटिंग में क्या हुआ था, जिसमें Amitabh Bachchan फिक्रमंद बैठे थे और खत्म हो चुके थे Daler Mehndi और Anand-Milind के इनपुट.

उन्होंने बताया कि 'मृत्युदाता' की म्यूजिक सिटिंग में अमिताभ बहुत फिक्रमंद दिखे. उन्होंने समीर से अनुरोध भी किया कि कुछ ऐसा गाना लिखें कि जादू हो जाए. वो गाना था - 'ना ना ना ना ना रे ...' जिसे तब के पॉपुलर सिंगर दलेर मेहंदी से गवाया गया था और फिल्म के फेलियर के इतर वो बेजां हिट हुआ. और आज भी याद किया जाता है. इसमें दलेर और बच्चन साथ में नाचते हुए नज़र आए थे. इस गाने की मेकिंग समीर अंजान ने हमसे साझा की -
"मुत्युदाता, बच्चन साहब की कमबैक फिल्म थी. उस वक्त दलेर मेहंदी की सरगर्मी थी माहौल में. लिहाज़ा उन्हें बुलवाया गया. अमिताभ बच्चन और उनकी टीम भी मौजूद थी. चूंकि बच्चन की ये कमबैक फिल्म थी, तो वो इसे लेकर बड़े फिक्रमंद थे. बच्चन ने कहा - 'दलेर जी, बोलिए गाना क्या बनाएं'. संगीतकार आनंद-मिलिंद थे. वो बोले कि गाना तो समीर जी बनाएंगे. बच्चन ने कहा - 'हां, गाना तो समीर जी बनाएंगे ही, पर पंजाबी हिस्से तो आप बताइए. न समीर जी पंजाबी जानते हैं, न आप. ऐसे में दलेर जी से ही उम्मीदें हैं'. इस पर दलेर बोले कि 'मेरे पास तो कुछ है नहीं'. अब बच्चन मेरी तरफ मुतास्सिर हुए. बोले - 'समीर जी, मैं बस एक बात कहूंगा... आप इसमें कुछ जादू करो'. मैं उनकी बेचैनी समझ रहा था. ये फिल्म उनके लिए महत्वपूर्ण थी."
समीर ने बताया कि जब बच्चन ने उनसे कहा कि कुछ जादू करिए, तब उनके पास भी कोई थॉट नहीं था. वो क्या लिखेंगे उन्हें कोई आइडिया नहीं था. मगर अमिताभ के ज़ोर देने पर उन्होंने कहा कि कुछ करते हैं. आगे का किस्सा समीर ने बताया -
"बच्चन साहब के आग्रह पर आनंद-मिलिंद हारमोनियम पर बैठे. और केवल ये गुनगुनाने लगे 'ना ना ना ना ना रे ना रे ना रे...'. मैंने कहा - ना ना ना ना... तो ठीक है, अब आगे क्या? इस पर मैं भला क्या लिखूं. वो भी पंजाबी में. मुझे तो ये भाषा आती नहीं. तब मुझे याद आया कि हमारी एक पंजाबी दोस्त थी. वो जर्नलिस्ट थीं. वो जब भी हमसे मिलती थीं तो कहती थी - 'साड्डे नाल रहोगे ते ऐश करोगे'. मैंने कहा - यार वो लाइन मैं यहां फिट कर देता दूंगा. और इतने से वो गाना बन गया'.
इस गाने की मेकिंग का किस्सा सुनाकर समीर ने कहा,
"आज भी ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि वो गाना मेरा लिखा हुआ है. लोगों को लगता है वो दलेर जी का ही कोई फोक पर बेस्ड गाना है."
'मृत्युदाता' के बाद समीर ने अमिताभ बच्चन के लिए और भी गाने लिखे. उनकी फिल्म 'बाग़बान' और 'बाबुल' में भी समीर के गाने हैं. 'बाबुल' का बेटी की विदाई वाला गीत 'कहता है बाबुल, ओ मेरी बिटिया...' अमिताभ ने गाया भी है. इसे जगजीत सिंह की आवाज़ में भी रिकॉर्ड किया गया.
वीडियो: गेस्ट इन दी न्यूजरूम: गीतकार समीर ने सुनाई अपने गानों के पीछे की कहानी, अमिताभ और शाहरुख पर क्या बता गए?