क्या आप जानते हैं कि Kuch Kuch Hota Hai मूवी का अंत Shah Rukh Khan को अच्छा नहीं लगा था, क्योंकि वहां रोना धोना बहुत ज्यादा था?
शाहरुख़ की वो सुपरहिट फिल्म जिसके नाम को अश्लील बोलकर जावेद अख़्तर ने छोड़ा था
Lyricist Sameer ने सुनाया कि कैसे जावेद अख़्तर ने करण जौहर से फ़िल्म का टाइटल बदलने की शर्त रखी थी. फिर इस Shahrukh स्टारर के गीत लिखने के लिए समीर को लाया गया और कई कीर्तिमान बने.

इसके 'कोई मिल गया' गाने की लाइन ‘मैं तो हिल गया’ डायरेक्टर Karan Johar को खराब और डाउनमार्केट लगी थी?
इसमें Salman Khan वाला रोल पहले Saif Ali Khan को ऑफर हुआ था और उन्होंने मना कर दिया था?
और, क्या आप जानते हैं कि इसके टाइटल सॉन्ग के ये बोल आपने कभी क्यों नहीं सुने हैं? -
"ज़ुल्फों के साये
रुख पे गिराए
शैदाई मेरे दिल को बनाए
शबनम के मोती
पल-पल पिरोता है
क्या करूं हाय
कुछ कुछ होता है..."
इस आखिरी प्रश्न की पहेली को हम हल किए देते हैं.
दरअसल 1998 में आई करण जौहर की इस फिल्म के गीत Sameer Anjaan ने लिखे थे. वही समीर जिन्होंने इससे पहले ‘आशिक़ी’ (1990), ‘दिल है कि मानता नहीं’ (1991), ‘साजन’ (1991), ‘दीवाना’ (1992), ‘राजा हिंदुस्तानी’ (1996) जैसी रोमैंटिक फ़िल्मों के लिए झंकृत कर देने वाले भयंकर सुपरहिट गाने लिखे थे. ये और बात है कि वे करण की पहली पसंद न थे.
The Lallantop से बातचीत में समीर ने बताया कि उनसे पहले ये फिल्म जावेद अख़्तर कर रहे थे. लेकिन उन्होंने फिल्म छोड़ दी क्योंकि उन्हें इसका नाम ‘कुछ कुछ होता है’ पसंद नहीं आया. उन्हें ये वल्गर लगा. उन्होंने कहा था - "कुछ कुछ होता है... भी कोई टाइटल है?" दरअसल, जावेद ने फिल्म का पहला गाना लिख लिया था. लेकिन फिर करण ने टाइटल तय किया. इसे सुनकर जावेद को अजीब लगा. उन्होंने करण से कहा कि टाइटल बदलेंगे तो ही वे इसके गाने लिखेंगे. लेकिन करण इसे बदलना नहीं चाहते थे. जावेद ने बाद में कुबूला कि उनका फैसला गलत था और उन्हें पछतावा है.
ख़ैर, करण जावेद के जाने के बाद अटक गए. तब यश चोपड़ा ने उन्हें दो सुझाव दिए. आनंद बक्शी और समीर अंजान. करण ने समीर को चुना क्योंकि वो चाहते थे कि उनके गाने यंगस्टर्स को पसंद आए. समीर ने लिखना शुरू किया. ये एक बड़ी फिल्म थी तो समीर टाइटल सॉन्ग में पूरी रचनात्मकता, गरिष्ठता लगाकर, उसे लिखकर करण के पास लेकर गए. समीर ने दी लल्लनटॉप को किस्सा सुनाया -
“ज़ुल्फों के साये रुख़ पे गिराए, शैदाई मेरे दिल को बनाए, शबनम के मोती पल-पल पिरोता है, क्या करूं हाय कुछ कुछ होता है... ये अंतरा किसी ने नहीं सुना होगा. क्योंकि ये गाने में रखा ही नहीं गया. करण को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया. उन्होंने इसे सुनते ही खारिज कर दिया. जब मैंने इसे लिखा तो मैं बड़ा खुश हुआ था. मैं उनके घर ये सोचकर गया था कि आज तो करण जौहर बहुत खुश हो जाएगा मुझसे. बड़ा इम्प्रेस हो जाएगा. मगर रिएक्शन बिल्कुल उलट आया. वो तो नाराज़ हो गए. बोले - यार मैंने आपको इसलिए बुलाया कि मुझे आपकी सिम्पल स्टाइल चाहिए. जैसा आप लिखते हैं. वो चाहिए मुझे. ये कॉलेज स्टूडेंट्स की कहानी है. इसमें भारी-भरकम शायरी चाहिए ही नहीं.”
फिर क्या हुआ, समीर ने बताया -
"गाने का पहला ड्राफ्ट जो बड़ी मेहनत से बनाया था, वो तो करण ने रिजेक्ट कर दिया. अब मैंने उनकी पसंद के मुताबिक आसान भाषा में गाना लिखना शुरू किया. मैं एक बार फिर उनके पास गया. इस बार मैंने लिखा, 'तुम पास आए, यूं मुस्कराए, तुमने न जाने क्या, सपने दिखाए... '. इसे पढ़ते हुए करण मुस्करा रहे थे. मगर मेरे अंदर कुलबुलाहट थी. मैंने कहा, करण ये गाना बहुत सिंपल लग रहा है. कहीं ऐसा न हो जाए कि लोग कहें, ये क्या लिख दिया समीर ने! करण ने कहा कि मुझे जो चाहिए था, वो मुझे मिल गया. अब इसको गुड, बेटर, बेस्ट करने के चक्कर में ख़राब मत करिए."
बताने की जरूरत नहीं ही कि जब जतिन-ललित के म्यूज़िक वाला ये गाना और फिल्म का पूरा एल्बम रिलीज़ हुआ, तो अगले कई बरसों तक भारत की गलियों, टैंपो, ट्रकों, हेयर सलून और आटा चक्कियों पर इसके गाने बजते चले गए.
वीडियो: गेस्ट इन दी न्यूजरूम: गीतकार समीर ने सुनाई अपने गानों के पीछे की कहानी, अमिताभ और शाहरुख पर क्या बता गए?