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सेंसर बोर्ड जिस ऐक्ट के तहत फिल्मों को सर्टिफिकेट देता है, उसमें क्या बदलाव होने वाले हैं?

इस बिल के ज़रिए सरकार की एक बहुत बड़ी पावर खत्म कर दी गई है.

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ये देश संविधान से चलता है. और देश चलाती है संसद. उसके पास संविधान के तहत चीज़ों को रेगुलेट करने की ताक़त है. इसके लिए वो तमाम बिल पारित करती है. फिर वो ऐक्ट बनते हैं. हालांकि अभी उस टेक्निकैलिटी में नहीं फंसते हैं. असली मुद्दे पर आते हैं. इतना तो जानते हैं, कोई भी फिल्म रिलीज होती है, तो उसके लिए सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट चाहिए होता है. ये सेंसर बोर्ड जिसकी वजह से बना और आजतक काम कर रहा है, वो है सिनेमैटोग्राफ ऐक्ट 1952. इसमें समय-समय पर संशोधन होते रहते हैं. ऐसे ही कुछ संशोधनों के लिए Cinematograph (Amendment) Bill, 2023 लाया गया. ये राज्य सभा के बाद 31 जुलाई को लोकसभा में भी पास हो गया. इसमें पाइरेसी से लेकर मूवी सर्टिफिकेशन तक के लिए कुछ-कुछ प्रस्ताव थे. आइए विस्तार से जानते हैं.

इस बिल के ज़रिए 1952 वाले ऐक्ट में 5 प्रमुख चीज़ें जोड़ी गई हैं

संशोधन की ज़रुरत क्यों बताई गई?

संशोधन के कई कारण बताए गए. इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी है. इसमें सरकार का हवाला देते हुए कुछ कारण बताए गए हैं. पहला तो ये कि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के और दूसरे कई कार्यकारी आदेश भी थे. इसके अलावा कॉपीराइट और आईटी ऐक्ट के साथ भी सिनेमैटोग्राफ ऐक्ट 1952 को लय करना था. साथ ही फिल्मों की लाइसेंसिंग को और बेहतर बनाने के लिए संशोधन होने थे. सबसे ज़रूरी कारण था गैरकानूनी पाइरेसी. इसमें में होता क्या था कि जैसे ही फिल्म रिलीज हुई, थिएटर में उसे रिकॉर्ड किया गया और ऑनलाइन रिलीज कर दिया गया. इससे फिल्मों को काफी नुकसान होता था. साउथ में ये बहुत बड़ी समस्या है. इस पर तमिल रॉकर्स नाम से एक वेब सीरीज भी आ चुकी है. 

बिल में संशोधन क्या-क्या हैं?

1. U/A सर्टिफिकेट की तीन सब कैटगरी

सबसे पहला संशोधन है सर्टिफिकेशन में कुछ नई एज कैटगरी जोड़ना. अभी फिल्म को चार सर्टिफिकेट दिए जाते हैं. यूनिवर्सल (U), यूनिवर्सल/ एडल्ट (U/A), एडल्ट (A), स्पेशल (S). यूनिवर्सल कैटगरी में सभी फिल्म देख सकते हैं. A सर्टिफिकेट में सिर्फ 18 साल से ऊपर के एडल्ट ही फिल्म देख सकते हैं. S सर्टिफिकेट में वो फ़िल्में आती हैं, जिन्हें समाज के किसी खास तबके के लिए बनाया गया हो. U/A कैटगरी वाली फिल्मों को कोई भी देख सकता है. लेकिन 12 साल या उससे छोटी उम्र के बच्चों को माता-पिता की निगरानी में फिल्म देखनी होगी. अब U/A कैटगरी की तीन सब कैटगरी इंट्रोड्यूज की गई हैं: 

1. U/A 7+ : 7 साल से ऊपर के ही बच्चे इस सर्टिफिकेट की फ़िल्मों को देखें, वो भी माता-पिता की निगरानी में. 
2. U/A 13+ : 13 साल से ऊपर के ही बच्चे इस सर्टिफिकेट की फ़िल्मों को देखें, वो भी माता-पिता की निगरानी में.
3. U/A 16+ : 16 साल से ऊपर के ही बच्चे इस सर्टिफिकेट की फ़िल्मों को देखें, वो भी माता-पिता की निगरानी में.

2. टीवी और ओटीटी के लिए अलग-अलग सर्टिफिकेट

जिन फिल्मों को A या S कैटगरी के सर्टिफिकेट दिए गए हैं, उन्हें टीवी या फिर सरकार द्वारा निर्धारित किसी दूसरे मीडिया प्लेटफॉर्म्स(ओटीटी) पर अपनी फिल्म दिखाने के लिए एक अलग सर्टिफिकेट लेना होगा. सेंसर बोर्ड अलग सर्टिफिकेट देते समय फिल्म में बदलाव या फिर कुछ भी हटाने का निर्देश दे सकता है.

ये प्रमुख संशोधन सिनेमैटोग्राफ संशोधन बिल 202३ में हैं

३. हमेशा वैलिड रहेगा एक ही सर्टिफिकेट

अब तक CBFC द्वारा दिए जाने वाला सर्टिफिकेट सिर्फ़ 10 साल के लिए वैलिड होता था. लेकिन इस नए बिल के लागू होने के बाद फ़िल्म का सिर्फ एक बार ही सर्टिफिकेशन होगा और वो आजीवन वैलिड रहेगा.

4. सरकार के पास नहीं होगा किसी भी फिल्म पर कार्रवाई का अधिकार

2021 में एक बिल आया. इसमें कहा गया कि केंद्र सरकार सेंसर द्वारा दिए गए सर्टिफिकेट को रिवाइज करने का आदेश दे सकेगी. इसका मतलब था कि सरकार किसी फ़िल्म का सर्टिफिकेशन रद्द करने या बदलाव करने का आदेश भी दे सकती. 2021 वाले बिल के तहत सरकार को उन फिल्मों के संबंध में जांच करने और आदेश देने का अधिकार था, जिनको सर्टिफिकेट मिल चुका है या दिया जाना है. अब 2023 संशोधन बिल के बाद केंद्र सरकार के पास ये अधिकार नहीं रह जाएगा. 2021 में सरकार के इस अधिकार पर बहुत बवाल हुआ था. इस पर आप विस्तार से यहां पढ़ सकते हैं.

5. पाइरेसी पर तीन साल की सजा और प्रोडक्शन बजट का 5 प्रतिशत जुर्माना

इस बिल के तहत फिल्म की पाइरेसी करने वालों को तीन महीने से लेकर तीन साल की जेल हो सकती है. साथ ही मूवी की प्रोडक्शन कॉस्ट का 5 प्रतिशत जुर्माना भी भरना होगा. फिल्म को गैरकानूनी तरीके से दिखाना या फिर इसकी गैर कानूनी रिकॉर्डिंग भी अपराध की श्रेणी में आएगी. इस पर राज्यसभा में सूचना और प्रसारण मंत्री बोल भी चुके हैं कि पाइरेसी के चलते फिल्म इंडस्ट्री को 20 हज़ार करोड़ का नुकसान हो रहा है. निजी इस्तेमाल, करेंट अफेयर्स, रिपोर्टिंग और फिल्म क्रिटिसिज्म के लिए कॉपीराइट कंटेंट इस्तेमाल किया जा सकेगा.

पिछले कुछ सालों में सरकार सिनेमैटोग्राफ ऐक्ट 1952 में संशोधन के लिए तीन बिल ला चुकी है. पहला आया 2019 में. इमसें फिल्म पाइरेसी से जुड़े कुछ प्रावधान थे. फिर ये बिल इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी पर बनी स्टैंडिंग कमेटी के पास गया. उसने मार्च 2020 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. इसके रिकमंडेशन के आधार पर एज बेस्ड नई कैटगरी लाई गई. 2021 में बिल रिवाइज हुआ. लेकिन इसमें एक प्रावधान था, जिसके तहत केंद्र सरकार किसी भी फिल्म पर कार्रवाई कर सकती थी. उसके पास रिवीजनल पावर्स होंगे. वो किसी भी फिल्म का सर्टिफिकेट रद्द करने का सेंसर बोर्ड को आदेश दे सकती थी. जैसा कि हमें ऊपर भी बताया; इस पर जब बवाल हुआ, तो 2022 में फ़िल्म इंडस्ट्री के स्टेकहोल्डर्स से सरकार की बातचीत हुई. 2023 में आए नए संशोधन बिल में इसे हटा दिया गया.

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