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'विक्रमारकुडू' के विलन ने बताया साउथ की फ़िल्में इतनी धांसू क्यों होती हैं

विनीत कुमार ने 'दी लल्लनटॉप' को दिए इंटरव्यू में कई कमाल बातें बताई.

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2012 में रिलीज़ हुई 'राउडी राठौर' 'विक्रमारकुडू' की ही रीमेक थी.

कुछ दिनों पहले लल्लनटॉप के खास शो ‘बरगद’ में एडिटर सौरभ द्विवेदी के साथ ‘अक्स’, ‘शूल’ और ‘लापतागंज’ जैसी फिल्मों और टीवी शोज़ से फेम हासिल कर चुके एक्टर विनीत कुमार ने बैठक जमाई. जहां विनीत कुमार ने अपने बचपन से लेकर जवानी, राजनीति से लेकर अभिनय और हिंदी सिनेमा से लेकर तमिल सिनेमा तक सब पर खूब तफसील से बात की. बातों के दौरान उन्होंने कई रोचक किस्से साझा किए. उन्हीं किस्सों में एक आपके साथ साझा कर रहे हैं. 




विनीत जी ने साउथ की सिनेमा इंडस्ट्री पर बात की. कहा,
“बेसिकली वो(साउथ फ़िल्म इंडस्ट्री) अनुशासित हैं. दूसरा मेरा ऐसा विचार है कि हमारे देश में हिंदी नहीं बोली जाती है. हमारे यहां क्षेत्रीय भाषा में हिंदी बोली जाती है, तो हिंदी की अपनी कोई ज़मीन नहीं है. अब जब हिंदी की अपनी कोई ज़मीन नहीं है तो हिंदी सिनेमा की अपनी ज़मीन कैसे हो सकती है? इसीलिए चरित्र जो हैं, फेयरिटेल जैसे लगते हैं.
यही फर्क है साउथ में और हिंदी में. वो अपनी ज़मीन के लिए फ़िल्म बनाते हैं. हिंदी की समस्या ये ही है कि उसकी कोई ज़मीन नहीं है. सब फेयरिटेल हो जाता है. जैसे मैंने विशाल भारद्वाज जी की फ़िल्म देखी ‘ओमकारा’'. उसमें यूपी का बैकड्राप है. मेरठ के आसपास का. मेरठ में कौन बोलता होगा ऐसे. आप प्योर चरित्र दिखा रहे हो लेकिन वो चरित्र नहीं है, वो फेयरिटेल है.
आप ‘संघर्ष’ (1968) देखिए पुरानी. उसमें वो चरित्र दिखते हैं. क्यूंकि सामाजिक रूप से एक आधार पर लिखे गये हैं उसके चरित्र. पहले उतना कॉम्प्लिकेशन भी नहीं था. अब समाज में इतने कॉम्प्लिकेशन्स‌ आ गए हैं, तो चरित्र में भी आ गए हैं. वो कॉम्प्लिकेशन्स‌ हम दिखा नहीं पाते हैं क्यूंकि सेंसर है. सेंसर कहता है भई ये किसी को हर्ट कर देगा. तो कहीं ना कहीं हम अपने से ही लाचार हैं. और हर जगह मोरैलिटी के नाम पर रसीदें फाड़े जाते हैं”
#खूब किया है साउथ का सिनेमा 'विक्रमारकुडू' में विनीत
'विक्रमारकुडू' में विनीत


विनीत ने एक लंबे अरसे तक हिंदी फिल्मों से दूरी बना सिर्फ साउथ की फिल्मों में काम किया. इन्होने साउथ में अपने करियर की शुरुआत 2006 में राजामौली की ब्लॉकबस्टर ‘विक्रमारकुडू’ से की. ये फ़िल्म मिलने का किस्सा भी उतना ही रोचक है जितनी की फ़िल्म. एक्टर नरेंद्र झा (रईस,हैदर) राजामौली की फ़िल्म ‘छत्रपथी’ में काम कर रहे थे. एक दिन वो विनीत के पास आए और बोले कि डायरेक्टर आपको अपनी अगली फ़िल्म में लेने की बात कर रहे थे. विनीत को लगा कि नरेंद्र सिर्फ मस्ती के लिए ऐसा बोल रहे हैं. बात आई-गई हो गई. कुछ महीनों बाद विनीत को राजामौली के ऑफिस से कॉल आया और मिलने हैदराबाद बुलाया गया. वहां पहुंचे मीटिंग हुई और बाउजी के किरदार के लिए विनीत फाइनल हो गए. ‘विक्रमारकुडू’ के अलावा ‘सरदार गब्बर सिंह’,’सुप्रीम’,’नायक’,’ऑपरेशन 2019’ जैसी कई साउथ की फिल्मों में विनीत ने शानदार काम किया है.


ये स्टोरी दी लल्लनटॉप में इंटर्नशिप कर रहे शुभम ने लिखी है.




विडियो: विक्रमारकुडू के विलन ने बताई साउथ की फिल्मों की ताकत