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सीरीज़ रिव्यू: 'ट्रायल बाई फायर'

कैसी है दिल्ली के उपहार सिनेमा अग्नि कांड पर आधारित सीरीज़ 'ट्रायल बाई फायर', जिसमें अभय देओल ने लीड रोल किया है?

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प्रशांत नायर और केविन लुपेर्शियो का लेखन अंत तक बांधकर रखने वाला है.

उन्नति और उज्ज्वल, दोनों दिल्ली के रहने वाले हैं और भाई-बहन हैं. इनके मम्मी-पापा का नाम है नीलम और शेखर कृष्णामूर्ति. इनका एक पड़ोस में रहने वाला दोस्त भी है जिसका नाम है अर्जुन. छुट्टी के दिन बच्चों ने मूवी देखने का प्लान बनाया. तारीख थी 13 जून, 1997, फिल्म का नाम था बॉर्डर और जगह थी उपहार सिनेमा.

उपहार सिनेमा का नाम सुनकर वो सारी हेडलाइंस, न्यूज़ और अखबारों की खबरें आपको ध्यान आने लगी होंगी जो आप पहले भी पढ़ते या सुनते रहे हैं. 13 जून, 1997 के दिन हाउसफुल उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी. अब इसी उपहार सिनेमा ट्रेजेडी पर एक सीरीज़ आई है 'Trial By Fire' जिसे डायरेक्ट किया है प्रशांत नायर ने.

यह सीरीज नीलम और शेखर कृष्णामूर्ति की लिखी किताब 'Trial By Fire' से इंस्पायर्ड है. इनके दोनों बच्चे उस दिन उपहार सिनेमा में मौजूद थे, जब एक ट्रांसफार्मर में आग लगने से धुंआ हॉल में फ़ैल गया और दम घुटने से या जलने से लोगों की मौत हो गई.

7 एपिसोड की यह सीरीज सिर्फ पीड़ितों के संघर्ष की कहानी नहीं है बल्कि हमारे समाज में अमीर-गरीब, शक्तिशाली और कमज़ोर लोगों के बीच बनी खाई को बहुत ही संवेदनशील ढंग से दर्शाने की एक अच्छी कोशिश की गई है.

जहाँ नीलम और शेखर सिनेमा हॉल के मालिक सुशील और गोपाल अंसल यानी अंसल ब्रदर्स को सज़ा दिलाने के लिए पुलिस से लेकर वकील और बड़े अफसरों तक के चक्कर लगाते  नज़र आते हैं वहीँ एक बुज़ुर्ग भी हैं जिसके घर के सभी 7 सदस्यों की मौत हो चुकी है और उसके पास अंतिम संस्कार करने तक के पैसे नहीं है. उसके लिए उस वक़्त न्याय ज़रूरी होगा या अंतिम संस्कार? ऐसे कई ज़रूरी सवाल सीरीज देखते वक़्त आपके मन में आएँगे. लेकिन जब एक होकर कुछ पीड़ित परिवार लड़ने का फैसला करते हैं तो कहानी आगे बढती है. इस लड़ाई में उन्हें किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है? क्या पीड़ितों को न्याय मिल पाता है? यह सब जानने के लिए आप सबको सीरीज ज़रूर देखनी चाहिए.

नीलम कृष्णामूर्ति के किरदार में राजश्री देशपांडे ने कमाल का अभिनय किया है. वो एक ऐसी माँ का किरदार निभा रही है जो अपनी सारी उम्र न्याय के लिए संघर्ष करने में बिता देती है. जब सब उम्मीद हारे हुए नज़र आते हैं वो उस वक़्त भी पीछे हटने को तैयार नहीं होती और उपहार सिनेमा पर चढ़ी परतों को एक -एक कर उतारने में लगी रहती हैं. उनके चेहरे पर दुःख, हिम्मत, इंतज़ार, उम्मीद और निराशा साफ़ देखें जा सकते हैं.

नीलम के पति शेखर कृष्णामूर्ति के रूप में अभय देओल एक मिडिल क्लास पिता और पति के गेट-अप में बिलकुल फिट बैठते हैं. बच्चों के जाने का दुःख, उस दुःख को पीछे छोड़कर जीवन में आगे बढ़ने की उनकी इच्छा और न्याय के लिए संघर्ष को अभय ने बेहतरीन तरीके से दर्शाया है. अभय ने राजश्री का बेहतरीन साथ निभाया है.  

आशीष विद्यार्थी ने भी अच्छा काम किया है. उनके किरदार का नाम है नीरज सूरी जिसे विक्टिम्स के परिवारों को डराकर या लालच देकर उनका मुंह बंद करवाने का काम सोंपा गया है जिससे वे अंसल ब्रदर्स के खिलाफ लड़ने से पीछे हट जाएं. वो जब भी स्क्रीन पर आते हैं उन्हें देखकर आपको गुस्सा ज़रूर आएगा लेकिन साथ ही साथ उनके अंदर का एक मजबूर इंसान भी उनके एक्सप्रेशंस के ज़रिये देखने को मिलेगा

राजेश तैलंग भी सीरीज के 2 एपिसोड्स में नज़र आएँगे. विद्युत् विभाग के कर्मचारी वीर सिंह के रूप में राजेश के एक्सप्रेशंस और उनकी बॉडी लैंग्वेज ही उनके किरदार का डर और दर्द दिखाने के लिए काफी हैं. वीर सिंह की कहानी थोड़ी सी लम्बी और खिंची हुई ज़रूर महसूस होगी लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढती है, आपको उसका इम्पैक्ट समझ आने लगता है.

इनके अलावा 1965 के युद्ध में हिस्सा ले चुके हरदीप सिंह बेदी के किरदार में अनुपम खेर और उनकी पत्नी के किरदार में रत्ना पाठक शाह भी आपको दिखाए देंगे. इनकी एक्टिंग के बारे में हम सब जानते ही हैं.

सीरीज में छोटे-बड़े सभी किरदारों ने बहुत अच्छा अभिनय किया है. फिर चाहे वो पीड़ितों के परिवार की आँखों में दिख रही नाउम्मीदी हो, या कोर्ट रूम में चल रही बहस.

लेखक प्रशांत नायर और केविन लुपेर्शियो का लेखन अंत तक बांधकर रखने वाला तो है ही, इसके साथ बहुत ही भावुक कर देने वाला भी है. इसमें बहुत बड़ा हाथ सिनेमेटोग्राफी का भी है.

कुल मिलाकर Trial By Fire सबको ज़रूर देखनी चाहिए. अंत में यह आपको स्पीचलेस कर जाती है और छोड़ जाती है कई सारे सवालों के साथ.

आपके लिए ये रिव्यू किया है हमारे साथी दीपक कौशिक ने. 

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