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The Mehta Boys - फिल्म रिव्यू

कैसी है Boman Irani की डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म The Mehta Boys, जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.

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'द मेहता बॉयज़' अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई है.

The Mehta Boys
Director: Boman Irani 
Cast: Boman Irani, Avinash Tiwari, Shreya Chaudhary, Puja Sarup
Rating: 4 Stars (****) 

फिल्म खुलती है. सीलन का निशान लिए छत का शॉट. बेड पर लेटा अमय उसे एकटक देख रहा है. उसकी आंखों का गहरापन बता रहा है कि उनमें मतलब का कोई भाव नहीं. छत की मरम्मत जैसी बातें उसके ज़हन में नहीं हैं. वो बस मन के एक खालीपन के साथ उसे देख रहा है. अमय का खालीपन सतही नहीं. वो अपनी आवाज़ तक नहीं पहुंच पा रहा है. अमय एक आर्किटेक्ट है. अमय के अलावा सभी को भरोसा है कि जो जैसा काम कर रहा है, उससे कई गुना बेहतर काम करने का माद्दा रखता है. ऑफिस की मीटिंग के दौरान अमय के पास एक नोट पहुंचता है. उसे पूरा पढ़ने से पहले ही उसके चेहरे का सारा रंग हवा हो चुका होता है. वो फौरन अपने होमटाउन पहुंचता है. हम अब तक खुद से सवाल पूछ रहे हैं कि उस नोट में क्या था. अमय घर का दरवाज़ा खोलता है. उसकी बहन अनु की आंखों में आंसू है. अमय उसे गले लगाते हुए कहता है,  

बाहर से देख रहा था तो एक सेकंड के लिए लगा कि मम्मी खड़ी है.       

इस एक लाइन से हम समझ जाते हैं कि अमय और अनु की मां नहीं रहीं. फिर अमय अपने पिता शिव से मिलता है. ये दोनों पुरुष अपने ढंग से इस क्षति से डील कर रहे हैं. पहली नज़र में ये साफ हो जाता है कि इन दोनों का रिश्ता ऐसा नहीं कि इस घड़ी में एक दूसरे को गले लगा सकें. दोनों हाथ मिलाने में भी सहज नहीं हैं. अनु चाहती है कि पिता को हमेशा के लिए अपने साथ अमेरिका ले जाए. लेकिन फ्लाइट में दो दिन का टाइम होता है और इस दौरान शिव और अमय को एक-दूसरे के साथ समय बिताना पड़ता है. इन दो दिनों में दोनों में क्या खींचतान, पुरानी चोटों पर से कैसे बैंड-ऐड उखड़ती है, यही इस प्यारी-सी फिल्म की कहानी है.

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‘द मेहता बॉयज़’ के एक सीन में बोमन ईरानी और अविनाश तिवारी.

‘द मेहता बॉयज़’ बोमन ईरानी का डायरेक्टोरियल डेब्यू है. उन्होंने Alexandar Dinelaris के साथ मिलकर फिल्म को लिखा है. डायरेक्शन के स्तर पर बोमन ईरानी ने कुछ कूल चॉइसेज़ ली हैं. जैसे एक जगह गाड़ी के शीशे पर होली का रंग आकर गिरता है, और अगले शॉट में किसी दूसरी लोकेशन पर गाड़ी का दरवाज़ा खुलता है. रंग के शीशे पर गिरने की आवाज़ को इस सीन में ट्रांज़िशन की तरह इस्तेमाल किया गया है. ये कोई ऐसा पॉइंट नहीं जो मिस हो जाने पर फिल्म का अर्थ बदल जाएगा, मगर देखने में अच्छा लगता है जब डायरेक्टर्स अपनी ऑडियंस के विवेक का, उनकी समझ का, उनके समय का सम्मान करते हैं. बाकी इस फिल्म में सबसे बड़ी स्टार राइटिंग है. फिल्म आपको चम्मच भरकर कुछ खिलाने की कोशिश नहीं करती. बल्कि आपसे लगातार सवाल पूछती है. वो आपको इंटरप्रेट करने का मौका देती है.

जैसे एक सीन में अमय के कमरे की छत गिर जाती है. वो और शिव एक बिस्तर पर लेटे खुले आसमान को देख रहे हैं. अगली सुबह उस छत के टूटे हुए हिस्से को लाल तिरपाल से ढका हुआ है. अमय और शिव छत पर खड़े हैं, तभी हवा के तेज़ झोंके से वो लाल तिरपाल आसमान छूने लगता है. एक फ्रेम में शिव और अमय साथ खड़े हैं और उन पर वो तिरपाल लहरा रहा है. ये सीन देखने के बाद दिमाग में सवाल आया कि लाल रंग के क्या मायने था. कहानी आगे बढ़ती है और शिव अपनी पत्नी शिवानी के बारे में बात करता है. आंखों में एक चमक लिए बताता है कि कैसे लाल साड़ी की दुकान में वो दिखी थी. फिर आपका दिमाग डॉट कनेक्ट करता है कि तिरपाल वाले सीन में लाल रंग, शिवानी के लिए प्रतीकात्मक था. कैसे उसने शिव और अमय के कसे हुए रिश्ते को बांध रखा था, कैसे वो उनकी ऐंकर थी.

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अमय घर में घुसते ही लाइट के स्विच चालू करता है, और दूसरी ओर शिव उन्हें झट से बंद कर देता है.     

शिव और अमय के बीच के कुछ सीन ऐसे हैं कि आपको वो टेंशन महसूस होने लगती है. फिल्म में ये कभी नहीं दिखाया गया कि दोनों की आपस में बनती क्यों नहीं है. लेकिन आपको वो कॉन्ट्रास्ट, वो खिंचाव महसूस होता रहता है. शिव जब भी अमय की गाड़ी में बैठता है तो उसका हाथ हैंडब्रेक पर रहता है. एक जगह अमय इस पर बिगड़कर कहता है कि ये मेरी गाड़ी है. शिव पलटकर जवाब देता है कि तुम इसे गाड़ी कहते हो. यहां डायलॉग में सबटेक्स्ट का इस्तेमाल किया गया. यानी किरदार कह कुछ रहा है और उसके मायने कुछ और है. यहां शिव, अमय की गाड़ी की बात नहीं कह रहा होता है. बल्कि वो अमय की लाइफ पर कॉमेंट करता है, कि तुम इस तरह से रह रहे हो. इसी तरह अमय एक पिछले सीन में शिव के टाइपराइटर के लिए कहता है कि इनका ज़माना गुज़र चुका है. शिव उस बात को इस तरह से रीड करता है जैसे उसका बेटा कह रहा हो कि आपका वक्त जा चुका है. अमय का ये मतलब था या नहीं, फिल्म आपको इसका जवाब नहीं देती. ये आप अपनी समझ से तय कीजिए.

बोमन ईरानी ने शिव का रोल किया है. करीब 70 साल का ये आदमी है. उसमें उम्र के साथ आने वाला वो अक्खड़पन, वो ज़िद्दीपन है लेकिन दिल के कोने में छिपा एक किस्म का बचपना भी है. बोमन ईरानी इन दोनों पहलुओं को पूरी ईमानदारी से स्क्रीन पर उतारते हैं. उनका हर किरदार दूसरे से जुदा रहा है. यहां भी उन्होंने अपने किरदार को कुछ मैनरीज़म दिए हैं. जैसे बात करते हुए बीच-बीच में उसकी एक आंख मींचती रहती है. ये मेहता बॉयज़ की कहानी थी. शिव की कहानी का आर्क अमय के बिना पूरा नहीं हो सकता था. अमय के रोल में अविनाश तिवारी ने उम्दा काम किया है. अमय बहुत हद तक अपनी मां पर आश्रित था. इसलिए उसका जाना अमय के जीवन में कैसा खालीपन छोड़कर जाता है, इसे अविनाश अपने एक्स्प्रेशन से निकालकर लाते हैं. आप एक ऐसे लड़के को देख रहे हैं जो मां की मौत से डील कर रहा है, खुद पर यकीन डगमगाया हुआ है, अविनाश इन सभी हिस्सों के बीच का बैलेंस सही से साध पाते हैं.

इन दोनों के अलावा अनु बनीं पूजा सरूप और ज़ारा बनीं श्रेया चौधरी ने भी अच्छा काम किया है. शिव और अमय की तुलना में उन दोनों का स्क्रीन प्रेज़ेंस भले ही कम था, लेकिन वो जितने भी सीन में रहीं उनमें अपनी तरफ से कुछ जोड़ा ही. बाकी कागज़ पर ‘द मेहता बॉयज़’ को एक पिता और बेटे के रिश्ते की कहानी कहा जा सकता है. लेकिन इसे सिर्फ इतना कहना गलत होगा. ये दुख की कहानी है, एक शहर की कहानी है, सारी सीमाओं के परे प्रेम कैसे जीवंत रहता है, ये उसकी कहानी है. ‘द मेहता बॉयज़’ आपसे आपका समय लेती है लेकिन उसके बदले में बहुत कुछ देकर जाती है.             
 

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