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उस लड़के के दिमाग में बसती थीं 12 हजार किताबें, फिल्म बनी तो सारे ऑस्कर लूट लिए!

तीन साल की उम्र तक किम ने अपने परिवार की आठ वॉल्यूम की इनसाइक्लोपीडिया सेट पढ़ के निपटा दी थी. अब सोचिए, तीन साल का बच्चा जो अभी ठीक से बोलना भी नहीं सीखा, वो इनसाइक्लोपीडिया पढ़ रहा है!

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किम को संगीत से भी प्यार था. वो शेक्सपियर के हर नाटक की लाइन याद कर सकता था. वो क्लासिकल म्यूजिक सुनता और हर नोट याद रखता. बाद में उसने पियानो बजाना भी शुरू किया, वो भी बिना किसी ट्रेनिंग के. (फोटो- सोशल मीडिया)

फर्ज कीजिए, एक इंसान है. जो 12,000 किताबें पढ़ चुका है. हर किताब का हर पेज, हर लाइन, हर शब्द उसे याद है! वो दो पेज एक साथ पढ़ सकता है. बायां पेज बाईं आंख से, दायां पेज दाईं आंख से. आप उसे कोई तारीख बताएं, वो बता दे कि वो उस साल का कौन सा दिन था. आप शहर का नाम लें, वो उसका जिप कोड, सड़कें, और वहां की तारीखी घटनाएं तक सुना दे. अब सोचिए, ये इंसान कोई सुपरह्यूमन वैज्ञानिक नहीं, बल्कि वो शख्स है जिसे बचपन में डॉक्टर्स ने “बेकार” समझकर इंस्टीट्यूशन में डालने की सलाह दी थी. और हां, इतना ही नहीं ये वही इंसान है जिसके दिमाग को समझने के लिए NASA तक ने अपने हाई-टेक स्कैनर्स निकाल लिए थे. ये कहानी किम पीक की है. एक मेगा सेवांट (Megasavant), जिसने दुनिया को दिखाया कि इंसानी दिमाग की कोई सीमा नहीं होती (The incredible life of Kim Peek).

किम पीक का जन्म 11 नवंबर 1951 को साल्ट लेक सिटी, यूटा में हुआ. लेकिन ये जन्म कोई आम जन्म नहीं था. किम का सिर सामान्य बच्चों से बड़ा था. इसे डॉक्टर्स ने मैक्रोसेफली (macrocephaly) का नाम दिया. नौ महीने की उम्र में डॉक्टर्स ने उनके माता-पिता फ्रैन और जीन को एक दिल कुरेदने वाली बात कही. बताया कि किम ना तो चल पाएगा, ना बोल पाएगा. उन्हें सलाह दी गई कि उसे किसी इंस्टीट्यूशन में डाल दो, क्योंकि वो “रिटार्डेड” है. लेकिन फ्रैन और जीन ने अपने बेटे को दुनिया की नजरों से छुपाने की बजाय उसे प्यार और हौसले से पाला. और यही वो फैसला था जिसने किम को “किम्प्यूटर” (Kimputer) बनाया. इतना खास कि NASA तक ने उसका दिमाग स्कैन करने की ठानी.

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किम पीक (AP).
बचपन: जब किताबें बन गईं किम की दुनिया

कहते हैं, हर बच्चे में कुछ ना कुछ खास होता है. किम में वो खासियत 16-20 महीने की उम्र में दिखने लगी. जब बाकी बच्चे खिलौनों से खेलते थे, किम किताबों में डूब जाता था. लेकिन ये कोई आम पढ़ाई नहीं थी. किम किताब पढ़ता और उसे याद कर लेता. हर शब्द, हर वाक्य. किताब खत्म करने के बाद वो उसे उल्टा रख देता, ताकि पता चले कि वो “फिनिश” हो चुकी है. ये उसकी जिंदगी भर की आदत रही.

तीन साल की उम्र तक किम ने अपने परिवार की आठ वॉल्यूम की इनसाइक्लोपीडिया सेट पढ़ के निपटा दी थी. अब सोचिए, तीन साल का बच्चा जो अभी ठीक से बोलना भी नहीं सीखा, वो इनसाइक्लोपीडिया पढ़ रहा है! किम को नंबर, तारीखें, और फैक्ट्स याद रखने का गजब का शौक था. अगर कोई पूछता कि 14 जुलाई 1789 को क्या हुआ, तो वो तुरंत बता देता, फ्रेंच रिवॉल्यूशन शुरू हुआ और वो दिन शुक्रवार था!

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किम के दिमाग में कॉर्पस कैलोसम (वो नर्व्स का बंडल जो दिमाग के दो हिस्सों को जोड़ता है), वो गायब था.

लेकिन जिंदगी इतनी आसान नहीं थी. किम का दिमाग भले ही सुपर पावर से लैस था, लेकिन उसका शरीर उसका साथ नहीं देता था. उसे चलने में दिक्कत थी. चार साल की उम्र तक वो नहीं चला, और जब चला तो चाल अजीब थी. बटन लगाना, कपड़े पहनना, ये छोटी-छोटी चीजें उसके लिए पहाड़ जैसी थीं. डॉक्टर्स ने उसकी हालत को पहले ऑटिज्म समझा, लेकिन बाद में पता चला कि किम को ‘FG सिंड्रोम’ नाम की एक दुर्लभ जेनेटिक कंडीशन थी. और सबसे हैरानी की बात! उसके दिमाग में कॉर्पस कैलोसम (वो नर्व्स का बंडल जो दिमाग के दो हिस्सों को जोड़ता है), वो गायब था. वैज्ञानिकों का मानना है कि शायद यही वजह थी कि किम का दिमाग सामान्य से अलग तरह से “वायर्ड” था, जिसने उसे ऐसी सुपर पावर दी.

किम का ‘किम्प्यूटर’ बनना

किम की जिंदगी में टर्निंग पॉइंट तब आया जब वो 14 साल का था. All That's Interesting से जुड़ी कलीना फ्रैगा की रिपोर्ट के मुताबिक किम ने हाई स्कूल का पूरा करिकुलम घर पर ही पूरा कर लिया. लेकिन स्कूल सिस्टम को क्या कहें, उन्होंने उसे डिग्री देने से मना कर दिया. क्योंकि वो फॉर्मल स्कूल में नहीं गया था. फिर भी किम ने हार नहीं मानी. वो सॉल्ट लेक सिटी की पब्लिक लाइब्रेरी में घंटों बिताने लगा. वहां वो इतिहास, भूगोल, साहित्य, खेल, संगीत, हर सब्जेक्ट में मास्टर बन गया. वो फोन बुक और कॉल एड्रेस डायरेक्ट्री को भी कंठस्थ कर लेता था. किसी शहर का जिप कोड पूछो, वो तुरंत बता देता. कोई तारीख पूछो, वो बता देता कि वो हफ्ते का कौन सा दिन था.

किम की याददाश्त का एक किस्सा सुनिए. वो एक बार में दो पेज पढ़ सकता था. बायां पेज बाईं आंख से, दायां पेज दाईं आंख से. वैज्ञानिकों ने टेस्ट किया और पाया कि वो जो पढ़ता था, उसका 98% उसे याद रहता था. यानी, आप उसे कोई किताब दीजिए वो उसे आधे घंटे में पढ़कर उसका हर शब्द सुना सकता था.

18 साल की उम्र में किम को “किम्प्यूटर” का निकनेम तब मिला जब उसे एक कंपनी में पेरोल का काम मिला. उसे 160 कर्मचारियों की सैलरी कैलकुलेट करनी थी, बिना कैलकुलेटर, बिना कंप्यूटर के इस्तेमाल के. किम कुछ ही घंटों में सारा हिसाब कर देता था. एक बार कंपनी ने उसे निकालकर कंप्यूटर लगाने की सोची. लेकिन दो फुल-टाइम अकाउंटेंट्स और एक कंप्यूटर को भी किम की स्पीड से काम करने में पसीने छूट गए.

रेन मैन: जब किम की कहानी पहुंची हॉलीवुड

किम की जिंदगी का सबसे बड़ा मोड़ 1984 में आया. टेक्सास में एक कॉन्फ्रेंस में उनकी मुलाकात हुई स्क्रीनराइटर बैरी मोरो से. बैरी डेवलपमेंटल डिसएबिलिटीज पर काम कर रहे थे. जब उन्होंने किम से बात की, तो वो हैरान रह गए. किम ने बैरी की जन्म तारीख के आधार पर बता दिया कि वो कौन से दिन पैदा हुए थे और उस दिन की अखबारों की हेडलाइंस क्या थीं. बैरी ने यहीं से ठान लिया कि किम की कहानी को दुनिया तक पहुंचाना है.

यहीं से शुरू हुई फिल्म ‘रेन मैन’ की कहानी. 1988 में रिलीज हुई इस फिल्म में डस्टिन हॉफमैन ने रेमंड बैबिट का किरदार निभाया. एक सेवांट, जिसकी प्रेरणा किम पीक थे. हालांकि, फिल्म में रेमंड को ऑटिस्टिक दिखाया गया जो किम की असल जिंदगी से थोड़ा अलग था. लेकिन इस फिल्म ने किम को रातोंरात मशहूर कर दिया. डस्टिन हॉफमैन ने किम से मिलकर उनके हाव-भाव और बोलने का तरीका सीखा. एक बार हॉफमैन ने कहा, “मैं भले ही स्टार हूं, लेकिन तुम आसमान हो.”

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 "रेन मैन" में डस्टिन हॉफमैन और टॉम क्रूज़.

रेन मैन ने चार ऑस्कर जीते. जिसमें डस्टिन हॉफमैन को बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला. बैरी मोरो ने अपना ऑस्कर स्टैच्यू किम को दे दिया, ताकि वो इसे लोगों को दिखा सके. ये ऑस्कर इतने लोगों ने छुआ कि इसे “मोस्ट लव्ड ऑस्कर” का खिताब मिला. इस फिल्म में टॉम क्रूज ने चार्ली बैबिट का किरदार निभाया था.

Kim And Fran Peek
किम पीक अपने पिता फ्रैन के साथ कार में रेन मैन फिल्म के लिए ऑस्कर पुरस्कार लिए हुए.
NASA का किम से ‘कनेक्शन’

साल 2004. इस साल NASA ने किम पीक के दिमाग को स्कैन करने का फैसला किया. वही NASA, जो मंगल पर रोवर भेजता है, चांद पर इंसान को ले गया, उसने किम के दिमाग को समझने की ठानी. Deseret News की एक स्टोरी के मुताबिक, नवंबर 2004 में NASA के साइंटिस्ट्स ने किम के दिमाग को स्कैन किया, वो भी उस टेक्नोलॉजी से जो स्पेस ट्रैवल के असर को स्टडी करने के लिए इस्तेमाल होती है. उनका मकसद था ये समझना कि किम की गजब की मानसिक काबिलियत और उसकी कुछ सीमाओं का राज क्या है?

किम को “मेगा सेवांट” कहा जाता था. क्योंकि वो 15 अलग-अलग फील्ड्स—इतिहास, साहित्य, भूगोल, नंबर, खेल, संगीत, तारीखें में जीनियस था. लेकिन दूसरी तरफ, वो छोटी-छोटी चीजें नहीं कर पाता था. जैसे, उसे नहीं पता होता था कि किचन में चम्मच-कांटा कहां रखा है. वो अपनी शर्ट का बटन नहीं बांध सकता था. लाइट स्विच ऑन करना भी उसके लिए मुश्किल था. उसके पिता फ्रैन कहते थे,

“किम की कुछ खास काबिलियतें उम्र के साथ और तेज होती जा रही हैं.”

और यही वजह थी कि NASA के साइंटिस्ट्स उनके दिमाग की स्टडी के लिए इतने उत्सुक थे.

ये सब तब शुरू हुआ जब किम अपने पिता फ्रैन के साथ मॉन्टेरे बे में एक रोटरी क्लब में स्पीच देने गए. वहां सैलिनास वैली मेडिकल सेंटर के एक डॉक्टर ने NASA के AMES रिसर्च सेंटर को सुझाव दिया कि किम के दिमाग को स्कैन करना चाहिए. NASA के सेंटर फॉर बायोइंफॉर्मेटिक्स स्पेस लाइफ साइंसेज में रिसर्चर्स ने किम को बुलाया. वहां उन्होंने किम के दिमाग को कई तरह की स्कैनिंग टेक्निक्स से स्टडी किया. मसलन, कंप्यूटराइज्ड टोमोग्राफी (CT) और मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (MRI) की गईं. इन स्कैन्स को मिलाकर वो किम के दिमाग की थ्री-डायमेंशनल तस्वीर बनाना चाहते थे.

NASA के डायरेक्टर रिचर्ड डी बॉयल ने कहा,

“किम का दिमाग और उसकी काबिलियतें यूनिक हैं. लेकिन सबसे हैरानी की बात ये है कि वो उम्र के साथ अपनी खास फील्ड्स में और स्मार्ट होता जा रहा है, जो बिल्कुल अनएक्सपेक्टेड है.”

रिसर्चर्स ये भी देखना चाहते थे कि 1988 में यूनिवर्सिटी ऑफ यूटा के न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट डॉक्टर डैन क्रिस्टेनसन ने जो MRI इमेज लिए थे, उनके मुकाबले किम के दिमाग में क्या बदलाव आए. फ्रैन का मानना था कि किम का दिमाग और उसकी पर्सनैलिटी, दोनों में काफी बदलाव आया था. पहले वो शर्मीला था, सोशल स्किल्स में कमजोर था. लेकिन अब वो भीड़ में ज्यादा कंफर्टेबल था.

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किम के दिमाग में एक खास बात और थी. जब वो पैदा हुआ, तो उसके दिमाग के दाहिने हिस्से पर एक पानी का छाला था, जो हाइड्रोसिफेलस जैसा था. 

NASA के इस प्रोजेक्ट का मकसद सिर्फ किम को समझना नहीं था. वो ये जानना चाहते थे कि इंसानी दिमाग कैसे काम करता है, उसकी शुरुआत कहां से होती है. फ्रैन ने कहा,

“हमें सब कुछ समझ नहीं आता कि रिसर्चर्स क्या ढूंढ रहे हैं, लेकिन ये कुछ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसा है. वो देखना चाहते हैं कि किम का दिमाग उस वक्त कैसे रिएक्ट करता है जब वो कुछ सोचता है या कुछ बोलता है.”

किम के दिमाग में एक खास बात और थी. जब वो पैदा हुआ, तो उसके दिमाग के दाहिने हिस्से पर एक पानी का छाला था, जो हाइड्रोसिफेलस जैसा था. बाद में टेस्ट्स से पता चला कि उसके दिमाग के दो हिस्से अलग नहीं थे, बल्कि एक बड़ा “डेटा स्टोरेज” एरिया बनाते थे. वैज्ञानिकों का मानना था कि शायद यही वजह थी कि किम 12000 से ज्यादा किताबें याद कर सकता था.

दुनिया की सैर: किम का मिशन

रेन मैन की सक्सेस के बाद किम की जिंदगी बदल गई. पहले वो अपनी छोटी सी दुनिया में रहता था. लाइब्रेरी, घर, और कुछ दोस्त. लेकिन अब लोग उसे देखना चाहते थे. किम और फ्रैन ने मिलकर दुनिया घूमना शुरू किया. वो स्कूलों, कॉलेजों, और कॉन्फ्रेंस में जाने लगे. किम अपनी काबिलियत दिखाता. लोगों की जन्मतारीख बताकर उनके पैदा होने का दिन, उस दिन की खबरें, और उस साल की बड़ी घटनाएं सुनाता.

किम का मकसद सिर्फ अपनी काबिलियत दिखाना नहीं था. वो और फ्रैन डिसएबिलिटी के बारे में जागरूकता फैलाना चाहते थे. किम कहता था,

“हर इंसान अलग है, और अलग होना कोई कमजोरी नहीं.”

किम ने 6 करोड़ से ज्यादा लोगों से मुलाकात की, और कभी एक पैसे की फीस नहीं ली. NASA के स्कैन्स ने भी उसकी इस मुहिम को और बल दिया. क्योंकि अब वो दुनिया को बता सकता था कि उसका दिमाग ना सिर्फ यूनिक है, बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी एक पहेली है.

एक बार ऑक्सफोर्ड यूनियन में किसी ने पूछा, “जर्मन यू-बोट ने लुसिटानिया को कब डुबोया?” किम ने तुरंत जवाब दिया, “7 मई 1915, और वो शुक्रवार था.” हॉल में सन्नाटा छा गया, फिर तालियों की गड़गड़ाहट..

किम की कमजोरियां: सुपरह्यूमन, लेकिन इंसान

किम भले ही सुपरपावर वाला इंसान था, लेकिन वो इंसान ही था. उसे सोशल स्किल्स में दिक्कत थी. वो लोगों की आंखों में देखकर बात नहीं कर पाता था. छोटी-छोटी चीजें, जैसे शर्ट का बटन लगाना, जूते बांधना ये सब उसके लिए मुश्किल थीं. उसका IQ 87 था, जो औसत से कम है. लेकिन उसकी याददाश्त और कैलकुलेशन स्किल्स ने उसे दुनिया का सबसे खास इंसान बनाया. NASA के स्कैन्स ने भी यही दिखाया कि उसका दिमाग कुछ खास फील्ड्स में गजब का था, लेकिन दूसरी चीजों में वो पीछे था.

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किम को संगीत से भी प्यार था.

किम को संगीत से भी प्यार था. वो शेक्सपियर के हर नाटक की लाइन याद कर सकता था. वो क्लासिकल म्यूजिक सुनता और हर नोट याद रखता. बाद में उसने पियानो बजाना भी शुरू किया, वो भी बिना किसी ट्रेनिंग के. सिर्फ अपनी याददाश्त के दम पर. लेकिन अगर कोई एक्टर शेक्सपियर की लाइन भूल जाता या कोई म्यूजिशियन गलत नोट बजाता, तो किम तुरंत खड़ा होकर उसे करेक्ट कर देता.

एक सितारा जो हमेशा चमकेगा

किम की जिंदगी का अंत 19 दिसंबर 2009 को आया. 58 साल की उम्र में, सॉल्ट लेक सिटी में उन्हें दिल का दौरा पड़ा. लेकिन किम की मौत सिर्फ एक इंसान की नहीं थी, वो एक युग का अंत था. वो इंसान जिसने 12,000 किताबें याद कीं. जिसके दिमाग को NASA ने स्कैन किया, और जिसने दुनिया को दिखाया कि दिमाग की ताकत क्या होती है.

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किम की कहानी हमें सिखाती है कि हर इंसान में कुछ खास होता है. फ्रैन ने अपने बेटे को दुनिया से कभी नहीं छुपाया.

किम की कहानी हमें सिखाती है कि हर इंसान में कुछ खास होता है. फ्रैन ने अपने बेटे को दुनिया से कभी नहीं छुपाया. उन्होंने किम को वो मौका दिया जो शायद कोई और नहीं देता. और बदले में, किम ने दुनिया को वो दिखाया जो कोई और नहीं दिखा सकता था. एक ऐसा दिमाग, जो ना सिर्फ सुपरकंप्यूटर था बल्कि जिसने NASA जैसे दिग्गजों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया.

तो अगली बार जब आप किसी को कमजोर समझें, किसी को “डिफरेंट” समझकर हंसे, तो किम पीक को याद कर लीजिए. वो इंसान जिसने 12,000 किताबें याद कीं, लेकिन अपनी शर्ट का बटन नहीं बांध सका. वो इंसान जिसने दुनिया को सिखाया कि “हर कोई अलग है, और यही खूबसूरती है.”

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