The Lallantop

फिल्म रिव्यू- द डिप्लोमैट

Uzma Ahmad की असल कहानी से प्रेरित John Abraham की नई फिल्म The Diplomat कैसी है?

post-main-image
'द डिप्लोमैट' 2017 में हुई असल घटना से प्रेरित है.

फिल्म- द डिप्लोमैट 
डायरेक्टर- शिवम नायर
एक्टर्स- जॉन अब्राहम, सादिया खतीब, कुमुद मिश्रा, शारिब हाशमी 
रेटिंग- 3 स्टार

***

2017 में उज़्मा अहमद नाम की भारतीय लड़की अपने प्रेमी ताहिर से मिलने पाकिस्तान जाती है. मगर वहां पहुंचने के बाद उसे पता चलता है कि ताहिर पहले से शादीशुदा है. उसके बच्चे हैं. उसने झूठा वादा करके उज़्मा को पाकिस्तान बुलाया था. ताहिर बंदूक की नोंक पर उज़्मा से शादी करता है. उसे पाकिस्तान के बुनेर में कैद करके रखता है. उसके साथ सेक्शुअल असॉल्ट करता है. टॉर्चर करता है. उज़्मा किसी तरह बहाना बनाकर पाकिस्तान में इंडियन हाई कमिशन के दफ्तर पहुंच जाती है. जिसके बाद ये तफ्तीश शुरू होती है कि उज़्मा जो कहानी बता रही है, वो सही है. या इसके पीछे कोई खेल है. इस केस की ज़िम्मेदारी लेते हैं डिप्टी हाई कमिशनर जे.पी. सिंह. जो उसकी कहानी को वेरिफाई करके उसे अपने मुल्क भारत वापस पहुंचाते हैं. जिसमें सुषमा स्वराज उनकी हरसंभव मदद करती हैं. इस असल घटना पर एक फिल्म बनी है, जिसका नाम है 'द डिप्लोमैट'.  

फिल्म की कहानी असल घटनाओं से प्रेरित है, इसलिए वो कहानी तो सबको पता है. मगर उसे पूरी ईमानदारी और तथ्यात्मक रूप से रीक्रिएट करना एक जटिल काम है. खासकर जब आप एक हिंदी भाषी फिल्म बना रहे हैं. क्योंकि हमारे यहां जितनी भी फिल्में असल घटनाओं से प्रेरित होती हैं, उन्हें अतिरिक्त मिर्च-मसाले के साथ पेश किया जाता है. जिससे उसकी ऑथेंटिसिटी खत्म हो जाती है. और जब मामला भारत और पाकिस्तान से जुड़ा हुआ हो, तो उसमें जबरदस्ती की देशभक्ति और सुपीरियोरिटी कॉम्प्लेक्स ठेल दिया जाता है. हर बात पर पाकिस्तान को याद दिलाया जाता है कि 'बाप' कौन है. एकाध आइटम सॉन्ग और रोमैंटिक एंगल तो आम चीज़ें हैं.

'द डिप्लोमैट' इस टेंप्लेट पर नहीं चलती. ये उज़्मा की असाधारण कहानी को बिल्कुल साधारण तरीके से दिखाती है. क्योंकि मेकर्स को उस कहानी में यकीन है. उन्हें ऐसा नहीं लगता है कि इस फिल्म को एंटरटेनिंग बनाने के लिए इसमें सिनेमैटिक एलीमेंट्स डालने चाहिए. यही वजह है कि 'द डिप्लोमैट' एक अच्छी थ्रिलर फिल्म साबित होती है. ये फिल्म कहीं भी कहानी को भटकाने या दर्शकों को बरगलाने की कोशिश नहीं करती. साफ नीयत से बनी फिल्म. फर्स्ट हाफ में कुछ मौकों पर लगता है कि फिल्म थोड़ी और टाइट हो सकती थी. खासकर पाकिस्तान पहुंचने के बाद उज़्मा का फ्लैशबैक वाला हिस्सा. मगर ये वो चीज़ें हैं, जिन्हें आसानी से जाने दिया जा सकता है. प्लस सेकंड हाफ में फिल्म खुद ब़ खुद टेंस हो जाती है. क्योंकि परिस्थितियों वैसी बन जाती हैं.

इसके लिए जॉन अब्राहम की तारीफ करनी होगी. क्योंकि वो लीड एक्टर होने के साथ-साथ इस फिल्म को प्रोड्यूसर भी हैं. ये बात जॉन को भी पता होगी कि एक एक्टर के तौर पर वो सीमित चीज़ें ही कर सकते हैं. इसलिए वो बतौर प्रोड्यूसर अलग तरह की फिल्में बनाते हैं. उस तरह की फिल्में जो उनकी क्रिएटिव भूख को शांत कर सकें. उन्होंने अब तक अपने करियर में 'विकी डोनर' और 'मद्रास कैफे' जैसी फिल्में प्रोड्यूस की हैं. 'द डिप्लोमैट' उसी कड़ी में उनका अगला कदम है.

एक्टर के तौर पर भी ये उनके करियर की बेस्ट परफॉरमेंस है. क्योंकि वो जो कॉमर्शियल फिल्में करते हैं, उसमें उन्हें अपनी बॉडी पर खेलना पड़ता है. इस फिल्म में उन्हें अपने चेहरे पर आने वाले हाव-भाव से काम चलाना था. जिसमें वो काफी हद तक सफल हुए हैं. जॉन ने फिल्म में जे.पी. सिंह का किरदार निभाया है. वहीं सादिया खतीब ने उज़्मा अहमद का रोल किया है. सादिया को देखते हुए बड़ी तृप्ति डिमरी वाली वाइब आती है. उनके एक्सप्रेशन से लेकर आवाज़ तक में. उज़्मा के किरदार में वो एक वल्नरेबिलिटी लेकर आई हैं, जिसकी फिल्म को ज़रूरत थी. जॉन फिल्म के लीडिंग मैन हैं. मगर परफॉरमेंस के मामले में सादिया उन्हें अपने आसपास भी फटकने नहीं देतीं. सादिया को हमने इससे पहले 'रक्षा बंधन' और 'शिकारा' में देखा है. इसके अलावा शारिब हाशमी, कुमुद मिश्रा और रेवती जैसे एक्टर्स ने भी काम किया है. इस फिल्म में सभी के रोल्स उनकी रियल लाइफ पर्सनैलिटी या छवि के आधार पर दिए गए लगते हैं. क्योंकि सब लोग अपने रोल में एक दम फिट हो जाते हैं.  

'द डिप्लोमैट' देखते हुए कुछ मौकों पर बेन एफ्लेक की 'आर्गो' याद आती है. क्योंकि यहां भी मामला रेस अगेंस्ट द टाइम वाला है. मसलन, ताहिर और उसके साथी कोर्ट जाते हुए उज़्मा और जेपी सिंह की गाड़ी को घेर लेते हैं. उनकी मांग है कि उज़्मा को उसके पति के हवाले किया जाए. ये फिल्म के सबसे भयावह सीन्स में से एक है. इस फिल्म को 'पिंक' और 'एयलिफ्ट' जैसी फिल्मों के राइटर रितेश शाह ने लिखा है. डायरेक्ट किया है शिवम नायर ने. जिन्हें 'आहिस्ता आहिस्ता' और 'नाम शबाना' जैसी फिल्में बनाई हैं. 'द डिप्लोमैट' थ्रिलर जॉनर में उनकी साख को मजबूत करती है.

'द डिप्लोमैट' टिपिकल इंडिया-पाकिस्तान मसलों पर बेस्ड फिल्म नहीं है. इसमें वो संजीदगी है, जो इन दोनों देशों के मैटर पर बनने वाली फिल्मों से अमूमन गायब रहती है. सिनेमा बनाने के नाम पर कहानी की बलि नहीं चढ़ाई गई. हालांकि ये हमारी बदकिस्मती है कि जो चीज़ बेयर मिनिमन होनी चाहिए, उसे हम किसी फिल्म की खासियत में गिन रहे हैं. 
 

वीडियो: मूवी रिव्यू : जानिए कैसी है तुम्बाड वाले सोहम साह की नई फिल्म 'क्रेजी'?