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फिल्म रिव्यू- तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया

'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' उस टाइप की फिल्म है, जिसमें सबकुछ सही है. कहानी और ट्रीटमेंट के अलावा.

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'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' वो पहली फिल्म है, जिसमें शाहिद कपूर और कृति सैनन ने साथ काम किया है.

फिल्म- तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया 
स्टारकास्ट- शाहिद कपूर, कृति सैनन, धर्मेंद्र, डिंपल कपाड़िया, राकेश बेदी
डायरेक्टर- अमित जोशी-अराधना साह 
रेटिंग- 2.5 स्टार 

शाहिद कपूर और कृति सैनन की फिल्म 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' क्रांति का वाहक है. क्योंकि इस फिल्म में मिलेनियल्स की उस समस्या पर बात की गई, जिसके बारे में वो किसी से बात नहीं करना चाहते. शादी. TBMAUJ का बेसिक प्लॉट ही ये है कि लड़के पर घरवालों का इतना प्रेशर है कि वो रोबोट से शादी कर लेता है (इतना तो ट्रेलर में भी बताया, कृप्या कमेंट्स में स्पॉयलर का जाप न करें). मगर ज़रूरी बात ये है कि पहली बार किसी ने एक्नॉलेज किया कि शादी का प्रेशर जेन्यूइन प्रॉब्लम है.
  
हालांकि मेकर्स के मुताबिक 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया', एक इंसान और एक रोबोट के बीच घटने वाली लव स्टोरी है. इससे पहले भी इंडिया में 'एंथीरन' (रोबोट) और 'लव स्टोरी 2050' जैसी फिल्में बनी हैं. जो ये दिखाती हैं कि ये प्रयोग कभी सफल नहीं हुआ. 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' इसमें कुछ भी नया जोड़े बिना यही बात साबित करती है. बस ये उस विषय को उठाकर फैमिली सेट-अप में डाल देती है. जहां घरवालों की मदद से चार लाफ्स निकल आते हैं. और दो-तीन गानों की जगह बन जाती है. रॉम-कॉम और फैमिली ड्रामा में फर्क ही नहीं छोड़ा है इन्होंने.

अगर आपको लगता है कि आपके पास कोई इंट्रेस्टिंग सब्जेक्ट है, जिस पर बढ़िया फिल्म बन सकती है. तो उसकी लिखाई पर ढंग से काम क्यों नहीं होता? 'तेरी बातों में उलझा जिया' के ट्रेलर और गानों से अच्छी वाइब आ रही थी. मगर जितने टिपिकल और रूटीन ढंग से इस फिल्म को बनाया गया है, वो समझ से परे है. इस फीलिंग की शुरुआत फिल्म के ओपनिंग सीक्वेंस से ही आनी शुरू हो जाती है. जो इतना थका हुआ और लेम है कि आप निराश हो जाते हैं. मेकर्स अपने बेसिक प्लॉट को लेकर इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने बाकी किसी चीज़ पर ध्यान ही नहीं दिया. इसकी वजह से ये फिल्म पूरे टाइम अन-कन्विंसिंग बनी रहती है.    

फिल्म का एक सीन है. अपना हीरो आर्यन अग्निहोत्री रोबोटिक्स इंजीनियर है. उसके ऑफिस में एक मीटिंग होनी है, जिसमें पूरी टीम को हिस्सा लेना है. हमेशा की तरह अपना हीरो उधर लेट पहुंचता है. उस कंपनी की मालकिन सिर्फ हीरो का सुझाव लेती हैं. आसपास बैठे दस लोग ताकते रह जाते हैं और मीटिंग बर्खास्त हो जाती है. एक दम एफर्टलेस सीन. राइटर्स की तरफ से ज़ीरो एफर्ट. और किस फैमिली के लोग रोज़ रात को साथ बैठकर दारू पी रहे हैं. हंसी-मज़ाक कर रहे हैं. जब से इंटनेट सस्ता हुआ है, तब से कोई अपनी फैमिली के साथ बैठा ही नहीं है. इस चक्कर में ये पता ही नहीं चल पा रहा है कि आज कल की फैमिलीज़ होती कैसी हैं. मेकर्स के साथ भी यही प्रॉब्लम आ रही है. उनकी फैमिली का जो कॉन्सेप्ट है, वो घिस चुका है. उन्हें थोड़ा रियलिज़्म की ओर बढ़ने की ज़रूरत है.  

'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' उस टाइप की फिल्म है, जिसमें सबकुछ सही है. कहानी और ट्रीटमेंट के अलावा. खराब लगता है शाहिद कपूर के लिए. उनके ही खाते में इस तरह की फिल्में क्यों आती हैं, जिन्हें वो अच्छी एक्टिंग और डांस परफॉरमेंस से भी नहीं बचा पाते हैं. इस बार तो कृति सैनन के लिए भी बुरा लगता है. क्योंकि 'मिमी' के बाद ये शायद उनका सबसे अच्छा काम है.

इस फिल्म को अमित जोशी और अराधना साह ने मिलकर डायरेक्ट किया है. शायद अमित नहीं चाहते थे कि इस फिल्म का ठीकरा अकेले उनके सिर पर फूटे. प्रोड्यूस किया है दिनेश विजन की मैडॉक फिल्म्स ने. मैडॉक ने अपना एक हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स खड़ा किया, जिसकी शुरुआत 'स्त्री' से हुई. मगर ये लोग कंटेम्पररी सिनेमा के बनाने के चक्कर में बुनियादी चीज़ों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. जिसकी वजह से इन फिल्मों का प्रभाव नहीं हो रहा. वन टाइम वॉच बोलकर पब्लिक आगे बढ़ जा रही है. 'स्त्री' और 'भेड़िया' को छोड़कर मैडॉक से शायद ही कोई यादगार सिनेमा आया है. वो दोनों फिल्में भी अमर कौशिक की डायरेक्ट की हुई हैं.

ख़ैर, मैं इस बारे में और रैंट नहीं करना चाहता. 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' को टाइम वेस्ट वाला सिनेमा भी नहीं कह सकते. मगर इस फिल्म से ऐसा कुछ निकलकर नहीं आता, जो आप अपने साथ घर ले जा सकें. अगेन, वन टाइम वॉच. क्योंकि किसी भी फिल्म को एक बार तो देखना ही चाहिए. क्या पता, जो मैं मिस कर गया, वो आपकी नज़र में आ जाए. 

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