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फिल्म रिव्यू- तेजस

कंगना रनौत हिंदी सिनेमा में जेंडर इक्वॉलिटी की पैरोकार बनकर आई थीं, खुद हिंदी 'फिल्म हीरो' बनकर रह गईं.

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'तेजस' के एक सीन में कंगना रनौत.

कंगना रनौत की नई फिल्म आई है 'तेजस'. कंगना ने इंडस्ट्री में जगह पक्की करने के बाद से तमाम विषयों पर अपनी राय रखी. जो गलत था, उसके खिलाफ झंडा बुलंद किया. मसलन, जेंडर इक्वॉलिटी. मगर अब वो खुद अपनी फिल्मों की हीरो होती हैं. हर वो चीज़ करना चाहती हैं, जो हिंदी फिल्मों के हीरो करते हैं. इसमें एक्शन और डायलॉगबाज़ी के साथ 'लेक्चर' देना भी शामिल है. उन्होंने बतौर एक्टर/परफॉर्मर कुछ नया या अलग करने की बजाय ऐसे किरदार चुनने शुरू कर दिए हैं, जो बस कहानी के नायक हों. बतौर एक्टर, कंगना का कैलिबर सबको पता है. मगर इस तरह की फिल्में और रोल्स उनके क्राफ्ट को प्रभावित कर रहे हैं.  

'तेजस' में कंगना ने तेजस गिल नाम की फाइटर पायलट का रोल किया है. जो कि इंडियन एयरफोर्स का हिस्सा है. अगर इसे कंगना की सबसे अटपटी परफॉरमेंस वाली फिल्म माना जाए, तो इस बात से शिकायत नहीं होनी चाहिए. ये बेसिकली एक एरियल एक्शन फिल्म है. मगर असल में टिक बॉक्स वाली फिल्म बनकर रह जाती है. जितना कुछ समाज और सोशल मीडिया पर चल रहा है, हर वो टॉपिक कवर हो जाए. 26/11 अटैक से लेकर पाकिस्तान, हिंदू-मुस्लिम, फेमिनिज़्म और हाइपर-नेशनलिज़्म. साथ में अयोध्या के राम मंदिर का कैमियो. इनमें से किसी विषय को लेकर फिल्म सीरियस नहीं है. ये सब एक वीडियो गेम की तरह लगता है. एक दुश्मन से निपट लिए. अब दूसरे की बारी. बस यहां लेवल अप नहीं होता है. वीडियो गेम से फिल्म का एक सीन याद आया, जिसे VFX की मदद से तैयार किया गया है.

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इस सीन में आप कंगना की आंखों में शूटिंग के दौरान लगी लाइट्स का रिफ्लेक्शन देख सकते हैं.

फिल्म के एक सीक्वेंस में जिसमें जेम्स बॉन्ड फिल्मों की तर्ज पर ऑप्टिकल इल्यूजन क्रिएट करने की कोशिश की गई है. पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर घटने वाले इस सीन को देखकर ऐसा लगता है कि जिस ग्लिच के साथ ये सीन पहली बार बना, उसे वैसे ही फिल्म में रख लिया गया. उसका VFX रिफाइन या फाइन-ट्यून करने की कोई कोशिश नहीं की गई. फिल्म में जितने भी हवाई जहाज वाले सीन्स हैं, वो भी भरोसे लायक नहीं लगते. कुछ एक सीन्स में कंगना रनौत के आंखों में शूटिंग के दौरान सामने लगी लाइट रिफ्लेक्ट होती है. जबकि इस सीन में वो आसमान में फाइटर पायलट उड़ा रही हैं. अभी पिछले दिनों हमने 'गणपत' देखी थी. 'तेजस' और 'गणपत' में कॉम्पटीशन हो सकता है कि किसका VFX ज़्यादा खराब है. इंडिया ने एक बार फिर पाकिस्तान को उसकी ज़मीन पर जाकर हरा दिया. पाकिस्तान, हिंदी सिनेमा में भोंदू किरदार होकर हो गया है. मुझे पर्सनली नहीं लगता कि पाकिस्तानी लोग इतने भी बेवकूफ होते होंगे, जितना वो हिंदी सिनेमा में होते हैं.  

'तेजस' से पहले कमोबेश इसी मसले पर एक फिल्म आई 'गुंजन सक्सेना- द कारगिल गर्ल'. तुलना तो होगी. मगर इस कंपैरिज़न में 'तेजस', 'गुंजन सक्सेना' के आसपास भी नहीं पहुंच पाती. क्योंकि 'गुंजन सक्सेना' के मेकर्स को पता था कि वो फिल्म के साथ क्या करना चाहते हैं. 'तेजस' के मेकर्स ने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया. या शायद वो यही खिचड़ी बनाना चाहते थे. 'तेजस' को सरवेश मेवाड़ा ने डायरेक्ट किया है. ये उनकी पहली फिल्म है. मगर वो इस फिल्म को बनाते वक्त पूरे कंट्रोल में नहीं लगते. एक क्लाइमैक्स खत्म होता है, तब तक दूसरा शुरू हो जाता है. इसके लिए मुझे फिल्म कभी कन्विंस ही नहीं कर पाती. फिल्म दर्शकों के भीतर इमोशन पैदा करने के लिए सबसे दर्दनाक चीज़ का सहारा लेती है. बावजूद इसके आप कोई भाव महसूस नहीं कर पाते. क्योंकि आपको लगता है कि ये आपकी शक्तियों का गलत इस्तेमाल है.    

'तेजस' में इकलौती पॉज़िटिव चीज़ मुझे लगीं अंशुल चौहान. उन्होंने कंगना की जूनियर और साथी फाइटर पायलट आफिया का रोल किया है. यानी फिल्म में माइनॉरिटी रिप्रेज़ेंटेशन भी है. मगर ये आफिया फिल्म की कॉमिक रिलीफ है. एक सीन में आफिया का किरदार अपने सुपर-सीनियर से बात करते हुए चिल्ला-चिल्लाकर 'ये नया इंडिया है सर', 'वी विल किल इट सर' टाइप की बातें करती है. जो कि देखते वक्त बहुत वीयर्ड लगता है. और थोड़ा फनी भी. अंशुल को मैंने पहली बार 'शुभ मंगल सावधान' में देखा था. इस फिल्म में उनका एक डायलॉग मुझे आज भी याद है. 'खुद की शक्ल चूजे वरगी और लड़की चाहिए कटरीना कैफ'. 'तेजस' में आप उनका काम इसलिए भी एंजॉय कर पाते हैं, क्योंकि वो बहुत ह्यूमन कैरेक्टर है. उसमें गॉड कॉम्पलेक्स नहीं है. प्लस उसे ये भी पता है कि वो इस फिल्म की सपोर्टिंग कैरेक्टर है.    

'धाकड़' के बाद 'तेजस' कंगना रनौत की एक और निराशाजनक फिल्म साबित होती है. कम से कम 'धाकड़' में कंगना का काम अच्छा था. मगर यहां तो आपको वो भी नसीब नहीं होता. 'तेजस' कुछ भी नया ऑफर नहीं करती. आपने पिछली चार फिल्मों में जो चीज़ें देखीं, बस ये फिल्म उसे समेटकर एक जगह ले आती है. इसमें थोड़ा सा कंगना रनौत मिला लीजिए. साथ में ढेर सारा ज्ञान और VFX की मदद से बने फर्ज़ी लगने वाले एरियल एक्शन सीक्वेंस. बन गई 'तेजस'. मगर 'तेजस' कभी अपने होने को जस्टिफाई नहीं कर पाती. 

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