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सुपरस्टार विजयकांत उर्फ 'कैप्टन', तमिल सिनेमा का वो सितारा जो कभी कमल हासन या रजनीकांत नहीं बन पाया

अपना पूरा फ़िल्मी करियर कमल हासन-रजनीकांत के बीच सैंडविच बनकर निकाल देने वाले विजयकांत की कहानी न सिर्फ रोचक है, बल्कि इसमें अलग-अलग तरह के रंग हैं. जो राजनीति में उतरे, तो दिग्गजों के होश उड़ा दिए. जिन्हें छोटे प्रोड्यूसर्स का मसीहा कहा जाता था.

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तमिल सुपरस्टार विजयकांत के एक किरदार के नाम पर तमिलनाडु में सैंकड़ो बच्चों के नाम रखे गए थे.

साल 1991. एक तमिल फिल्म रिलीज़ होती है, 'कैप्टन प्रभाकरन'. लीड रोल कर रहे एक्टर की 100वीं फिल्म. फिल्म का टाइटल LTTE लीडर प्रभाकरन को ट्रिब्यूट था और कहानी चंदन तस्कर वीरप्पन पर बेस्ड थी. तमिल सिनेमा इंडस्ट्री में उस वक्त ये मान्यता थी कि किसी लीड एक्टर की 100वीं फिल्म चलती नहीं है. फ्लॉप होती ही होती है. रजनीकांत और कमल हासन जैसे दिग्गज एक्टर इस बात का सबूत बन चुके थे. रजनीकांत की 100वीं फिल्म 'श्री राघवेंदर' क्रिटिक्स से तारीफें वसूलने के बाद भी डिज़ास्टर साबित हुई थी और कमल हासन की 100वीं फिल्म 'राजा पारवई' का भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ था. कुल मिलाकर बहुत कठिन थी डगर पनघट की. लेकिन इस एक्टर ने इस जिंक्स को तोड़ा. फिल्म ने तूफानी बिज़नेस किया. इतनी पॉपुलर हुई कि उस दौर में पैदा हुए कई तमिल बच्चों का नाम प्रभाकरन रखा गया. ऐसे एक प्रभाकरन को इन पक्तियों का लेखक व्यक्तिगत रूप से जानता है.

'कैप्टन प्रभाकरन' न सिर्फ एक ब्लॉकबस्टर फिल्म साबित हुई, बल्कि इसने अपने लीड एक्टर को नया नाम भी दिया. कैप्टन. यही लकब आगे जीवनभर उनके साथ रहा. इस नाम से उन्होंने आगे एक टीवी चैनल भी खोला. उन एक्टर का नाम था विजयकांत. अपना पूरा फ़िल्मी करियर कमल-रजनी के बीच सैंडविच बनकर निकाल देने वाले विजयकांत की कहानी न सिर्फ रोचक है, बल्कि इसमें अलग-अलग तरह के रंग हैं. फिल्म समुदाय में 'अछूत' बनकर रहने का रंग, एक सुपरस्टार का रंग, प्रोड्यूसर्स की मदद करने वाले मसीहा का रंग, राजनीति में दिग्गजों के होश उड़ाने का रंग, दुस्साहसी राजनीतिक भाषणों का रंग. ऐसा इन्द्रधनुषी जीवन जीने वाले विजयकांत की 28 दिसंबर 2023 को डेथ हो गई. उन्हें निमोनिया डायग्नोज़ हुआ था और वो वेंटिलेटर सपोर्ट पर थे. आज हम इन्हीं विजयकांत की जीवनयात्रा का लेखाजोखा नापने की कोशिश करेंगे.  

# रजनीकांत से इंस्पायर होकर नाम में कांत लगाया!

25 अगस्त 1952 को तमिलनाडु के मदुरै में पैदा हुए विजयकांत का असली नाम था, विजयराज अलगरस्वामी. विजयकांत तो वो फिल्मों में आने के बाद बने. कहते हैं कि ऐसा उन्होंने उस वक्त पॉपुलर हो रहे रजनीकांत के नाम से इंस्पायर होकर किया. रजनीकांत की छाया आगे भी उनके सिनेमाई और राजनीतिक करियर पर छाई रही. विजयकांत उन रेयर साउथ एक्टर्स में से थे, जिन्होंने सिर्फ एक ही भाषा में काम किया. सिर्फ तमिल में. बावजूद इतने लंबे चौड़े करियर के. उनकी फ़िल्में तेलुगु और हिंदी में डब ज़रूर हुई, लेकिन वो सिर्फ तमिल में ही काम करते रहे. अपने लगभग साढ़े तीन दशक लंबे फ़िल्मी करियर में उन्होंने डेढ़ सौ से ज़्यादा तमिल फ़िल्में की.

विलेन वाले रोल से शुरुआत करके विजयकांत तमिल सिनेमा के बहुत बड़े हीरो बने. 

हीरो के रूप में खूब शोहरत कमाने वाले विजयकांत का सिनेमाई सफर बतौर विलेन शुरू हुआ था. 1979 में आई फिल्म 'इनिक्कुम इलामई' से. फिल्म फेल रही. अगली फिल्म में लीड रोल मिला, लेकिन वो भी पिट गई. यही नहीं, उसके बाद आई दो फ़िल्में भी दर्शकों द्वारा नकार दी गईं. पांचवीं फिल्म 'दूरादु इडी मुलक्कम' से सीन थोड़ा बदला. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कोई ख़ास कमाल तो नहीं दिखाया, लेकिन फिल्म फेस्टिवल्स में सराही गईं. फिर आई छठी फिल्म 'सट्टम ओरु इरुट्टरई', जिसने विजयकांत की किस्मत बदल दी. फिल्म बहुत चली. लगातार 100 दिनों से ज़्यादा थिएटर्स में लगी रही. साउथ की तीनों भाषाओं के साथ हिंदी में भी इसका रीमेक बना. हिंदी में बने रीमेक से आप सब लोग परिचित होंगे. देखी न भी हो, तो भी नाम ज़रूर सुना होगा. अमिताभ बच्चन और रजनीकांत की 'अंधा कानून', जिसने हिंदी में भी भरपूर बिज़नेस किया था.

# बड़े फिल्ममेकर आए नहीं, छोटे प्रोड्यूसर्स को धोखा दिया नहीं

'कैप्टन' निक नेम पाने से पहले विजयकांत को तमिल फिल्म इंडस्ट्री में 'पुराची कलिंगार' बुलाया जाता था. इस नाम का मतलब है क्रांतिकारी आर्टिस्ट. उनकी क्रांति का स्वरुप तो कहीं ठीक से डॉक्यूमेंटेड नहीं हुआ है, लेकिन उन्होंने इस क्रांति की कीमत ज़रूर चुकाई. शुरूआती दौर में तो बहुत ज़्यादा. कहते हैं कि बहुत से रसूखदार फिल्म मेकर्स उनसे न्यारे-न्यारे ही रहे. कई बड़े एक्टर्स ने उनके साथ काम करने से इंकार किया. कई बड़े प्रोड्यूसर्स उनके पास कभी कोई अच्छा प्रोजेक्ट लेकर नहीं गए. उनकी फिल्मोग्राफी में ज़्यादातर लो बजेट फ़िल्में ही रही.

विजयकांत तीन शिफ्ट में काम किया करते थे और इस बात का ख़ास ख़याल रखते थे कि उनकी वजह से प्रोड्यूसर्स का कोई नुकसान न हो जाए. ऐसा कई बार हुआ कि प्रोड्यूसर ने उन्हें पैसे बहुत देरी से दिए, या किश्तों में दिए. कई बार तो उन्होंने खराब माली हालत वाले प्रोड्यूसर्स से पैसे लिए ही नहीं. एक ख़ास बात ये भी कि विजयकांत ने ऐसी तमाम चैरिटी को कभी अपना नाम चमकाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया. वो खामोशी से अपने हिस्से की नेकियां करते रहे.

# भरोसेमंद एक्शन हीरो, जिनकी बॉक्स ऑफिस अपील कमाल रही

विजयकांत ने अपने करियर में ढेरों एक्शन फ़िल्में की. उनकी बॉक्स ऑफिस अपील उम्दा थी. 20 से ज़्यादा फिल्मों में उन्होंने पुलिसवाले का किरदार निभाया. ज़्यादातर फिल्मों में उन्होंने गांव के सीधे-सादे आदमी को पोट्रे किया, जो अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है. इस सार्वभौमिक सेंटिमेंट को तमिल प्रोड्यूसर्स ने विजयकांत के सहारे खूब कैश किया. उन्होंने देशभक्ति वाले रोल भी बहुत किए. इतने कि अगर कोई हिंदी फिल्म आलोचक उनकी उस वक्त की जर्नी ट्रैक करता, तो अपने आर्टिकल्स में उन्हें साउथ का मनोज कुमार ज़रूर लिखता. विजयकांत के बारे में एक और दिलचस्प बात ये कही जाती है कि उनके पास एक्शन सीन्स में भी एक्टिंग करने का हुनर था.

विजयकांत ने 20 से ज़्यादा फिल्मों में पुलिसवाले का किरदार निभाया. इमेज सोर्स: GULTE 

उन्होंने कुछेक थ्रिलर फ़िल्में भी की. 1984 में आई 'नूरावदु नाल' ऐसी ही एक फिल्म थी, जिसका हिंदी रीमेक '100 डेज़' नाम से आया था. 1984 ही वो साल था, जब वो एक साल में सबसे ज़्यादा फ़िल्में देने वाले तमिल एक्टर बने. इस साल उनकी 18 फ़िल्में रिलीज़ हुईं. तीन शिफ्ट में काम करने का कमाल. तमिल में पहली थ्रीडी फिल्म बनी, तो वो विजयकांत को लेकर ही. नाम था 'अन्नई भूमि'. 1986 में आई 'मानकनक्कू' ऐसी फिल्म थी, जिसमें विजयकांत और कमल हासन ने साथ काम किया. इन दोनों की साथ में ये पहली और आखिरी फिल्म रही. रजनीकांत के साथ उन्होंने कभी काम नहीं किया. हालांकि 1987 की एक फिल्म के गाने में इन दोनों दिग्गजों का कैमियो ज़रूर था. ये वो दौर था, जब उन्हें रजनीकांत और कमल हासन का कम्पिटीटर माना जाने लगा था. वो थे भी, सिर्फ उनको बड़े बैनर नहीं मिले.  

अस्सी और नब्बे के दशक में विजयकांत ने दर्जनों हिट फ़िल्में दी. 'चिन्ना गाउंडर', 'सथरियां', 'सेतुपति आईपीएस', 'पेरियन्ना' जैसी फ़िल्में. उनकी कई सारी फिल्मों के नाम हम यहां बता सकते हैं, लेकिन मोह टाल रहे हैं.

# जब महज़ अपने दम पर आर्टिस्टों का मरता संगठन बचाया

नई सदी आते-आते विजयकांत का रुझान राजनीति की तरफ होने लग गया था. उनमें ज़िम्मेदारी संभालने का माद्दा था, ये बात तो सन 2000 में ही साफ हो गई थी. 2000 में वो 'नडीगर संगम' के प्रेसिडेंट बने. 'नडीगर संगम' यानी साउथ इंडियन आर्टिस्ट असोसिएशन. इसकी स्थापना तमिल फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गजों ने की थी. एमजीआर, शिवाजी गणेशन और एमआर राधा ने. जब विजयकांत इसके प्रेसिडेंट बने, तब ये असोसिएशन खराब माली हालत से जूझ रहा था. 4-5 करोड़ का कर्ज़ा था. विजयकांत ने इस संगठन को संकट से निकाला. उन्होंने सिंगापुर और मलेशिया में फंड रेजिंग इवेंट्स आयोजित किए. तमिल इंडस्ट्री के टॉप एक्टर्स ने इनमें परफॉर्म किया. कमल हासन, रजनीकांत ने भी. एक किस्सा तो बहुत प्रचलित है. रजनीकांत को न्यौता देने जब विजयकांत उनके घर गए थे, तो उनके सामने ज़मीन पर बैठ गए थे. रजनीकांत गुस्सा भी हुए लेकिन विजयकांत ने कहा कि वो उनके प्रति सम्मानवश ऐसा कर रहे हैं.

'नडीगर संगम' को बचाने के लिए हुए इन इवेंट्स में कमाल दिखाया. संगठन ने सारे कर्ज़े चुका दिए. जब 2006 में विजयकांत ने प्रेसिडेंट की कुर्सी छोड़ी, तब संगठन के अकाउंट में एक करोड़ से ज़्यादा रकम जमा थी.

# राजनीति में आए, जयललिता और करूणानिधि के प्रतिद्वंदी कहलाए

2005 में उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. DMDK यानी देसिया मुरपोक्कु द्रविड़ कलगम. उन्हें जयललिता और करूणानिधि का प्रतिद्वंदी कहा गया. ये बात कुछ हद तक सही भी साबित हुई. अगले साल हुए विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने भले ही सिर्फ एक सीट जीती, लेकिन वोट परसेंट में अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज करवाई. उनकी पार्टी को 8.38% वोट मिले. 2011 के चुनावों में उन्होंने करूणानिधि की पार्टी DMK को हराने के एकमात्र उद्देश्य से जयललिता की पार्टी AIADMK के साथ गठबंधन किया. उनकी पार्टी ने कंटेस्ट की हुई 41 सीटों में से 29 पर जीत हासिल की. DMK से ज़्यादा. जो उन्होंने कहा था, वो कर दिखाया था. विजयकांत सदन में विपक्ष के नेता बने. ये उपलब्धि पाने वाले वो पहले एक्टर थे.

विजयकांत की राजनीतिक पारी का आगाज़ बेहद धुआंधार हुआ था, लेकिन आगे चलकर उनका करिश्मा धुंधला पड़ता गया. इमेज सोर्स: इंडिया टुडे 

हालांकि जयललिता के साथ उनकी गठबंधन पारी ज़्यादा चली नहीं. विजयकांत और जयललिता के बीच सदन में कई बार बहसबाज़ी हुई. DMDK के कई विधायकों ने जब सदन में जनता के मुद्दे उठाने चाहे, तो AIADMK के विधायकों ने उन्हें परेशान किया. फरवरी 2016 में DMDK के 8 विधायकों ने इस्तीफा दिया और विजयकांत ने भी विपक्ष के नेता का पद छोड़ दिया.

इससे पहले 2014 में उनकी पार्टी ने NDA गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और अलॉट हुई तमाम 14 सीटों पर हार गई थी. अगले लोकसभा चुनाव भी विजयकांत की पार्टी पर भारी गुज़रे और उन्हें एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई. 2019 के लोकसभा चुनावों में भी ऐसा ही कुछ हुआ और DMDK सभी सीटों पर हार गई. 2021 के विधानसभा चुनावों में स्थिति और खराब हुई. पार्टी न सिर्फ तमाम 60 सीटों पर हार गई, बल्कि उसका वोट परसेंट भी बहुत नीचे गिर गया. उन्हें महज़ 0.43% वोट मिले.

# तमिल फिल्मों के बड़े कॉमेडियन वडिवेलु के साथ पंगा

विजयकांत का नाम कई विवादों में पैबस्त रहा. तमिल एक्टर और कॉमेडियन वडिवेलु के साथ उनकी तनातनी को मीडिया में भरपूर कवरेज मिली. वडिवेलु उनके साथ कई फिल्मों के काम कर चुके थे. 2005 में वडिवेलु 'इम्साई अरसन' नाम की फिल्म में लीड रोल कर रहे थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक शूटिंग के दौरान वडिवेलु का ड्रेस डिज़ाइनर से झगड़ा हुआ और उन्होंने शूटिंग पर जाना बंद कर दिया. मामला 'नडीगर संगम' के प्रेसिडेंट विजयकांत के पास पहुंचा. कहा जाता है कि जब विनती करने के बाद भी वडिवेलु शूट पर नहीं पहुंचे, तो उन्हें जबरन जीप में डालकर 'नडीगर संगम' के ऑफिस ले जाया गया. वहां उन्हें काफी धमकाया गया, जिसके बाद उन्होंने शूटिंग की हामी भर दी. विजयकांत-वडिवेलु संघर्ष की नींव यहीं से पड़ी बताते हैं.

2008 में वडिवेलु के घर पर कुछ असामाजिक तत्वों ने पत्थरबाज़ी की. खिड़कियों के शीशे चकनाचूर कर दिए और फर्नीचर तोड़ डाला. वडिवेलु ने बेझिझक कहा कि ये विजयकांत के भेजे आदमियों का काम है. उन्होंने विजयकांत के खिलाफ अटेम्प्ट टू मर्डर का केस भी फाइल किया. विजयकांत से अपनी दुश्मनी को वडिवेलु चुनाव प्रचार तक भी ले गए. 2011 के चुनावों में वडिवेलु ने DMK की तरफ से प्रचार किया और अपनीं हर सभा में विजयकांत को भरपूर कोसा. तिरुवरुर की एक रैली में वडिवेलु ने मंच से कहा था, "मेरा इकलौता मकसद विजयकांत और उनकी टीम का खात्मा है". हालांकि उन चुनावों में विजयकांत की पार्टी पर इसका कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने बढ़िया प्रदर्शन किया. खात्मे की तरफ उनकी पार्टी बाद में आगे बढ़ी.

विजयकांत और वडिवेलु ने बहुत फ़िल्में साथ की, लेकिन असली ज़िंदगी में उनकी तगड़ी दुश्मनी रही. 

विजयकांत के मंचीय भाषण भी कई बार विवादों में रहे. एक बार उन्होंने मंच से रजनीकांत की आलोचना कर दी थी, जिसके बाद रजनी फैन्स उन पर भड़क गए थे. उनकी इस बात के लिए भी कई बार आलोचना हुई कि वो मंच से अक्सर भद्दे इशारे किया करते थे. ख़ास तौर से पत्रकारों के लिए. विजयकांत ने 2010 में 'कैप्टन टीवी' नाम से एक टीवी चैनल खोला था. दो साल बाद उन्होंने 'कैप्टन न्यूज़' नाम का एक न्यूज़ चैनल भी शुरू किया था.

तो ये थी तमिल सुपरस्टार विजयकांत की जीवनगाथा. सक्सेस और फेलियर को अलग रखकर देखा जाए, तो उनका जीवन रोचक घटनाओं का एक कोलाज सा रहा. तभी तो उनके जाने पर इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबार ने अपनी हेडिंग में उनका ज़िक्र कुछ यूं किया, 'ऑलमोस्ट रजनीकांत इन फिल्म्स, ऑलमोस्ट एमजीआर इन पॉलिटिक्स'.

 

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