मैं जानना चाहती हूं कि दीपिका पादुकोण की पॉलिटिक्स क्या है और उनका राजनीतिक जुड़ाव किससे है. ये हमारे लिए कोई आश्चर्य करने वाली बात नहीं थी कि वो (दीपिका) ऐसे लोगों के साथ खड़ी होंगी, जो भारत का विनाश चाहते हैं. उन्होंने, उन लोगों का पक्ष लिया, जिन्होंने लड़कियों के प्राइवेट पार्ट्स पर लाठियां बरसाईं. मैं उनके इस अधिकार को नकार नहीं सकती. (कि वो किसका पक्ष लें, किसका नहीं.)सवाल ये है कि स्मृति ईरानी जब ’लड़कियों के प्राइवेट पार्ट्स पर लाठियां बरसाने’ वाली बात कर रही थीं, तो उनका मतलब क्या था. इसके लिए पिछले दिनों हुए घटनाक्रम को समझना होगा.
दीपिका ने 2011 में ही अपने राजनीतिक जुड़ाव से सबको परिचित करवा दिया था कि वह कांग्रेस पार्टी का समर्थन करती हैं.स्मृति ईरानी दरअसल दीपिका के उस कमेंट की बात कर रहीं थीं, जो उन्होंने 2010 में किया था. उस दौरान दीपिका ने राहुल गांधी की तारीफ़ करते हुए कहा था-
मैं राजनीति के बारे में ज्यादा कुछ जानती नहीं हूं. पर जो भी थोड़ा-बहुत देखती हूं टीवी पर, (उसके आधार पर कह सकती हूं कि) राहुल गांधी जो कर रहे हैं हमारे देश के लिए, मेरे हिसाब से वो एक बेहतर उदाहरण (प्रस्तुत कर रहे) हैं. वो हमारे देश के लिए बहुत कुछ कर रहे हैं. उम्मीद है एक दिन वो खुद प्रधानमंत्री बन जाएंगे.स्मृति ईरानी और प्रभु चावला के बीच की बातचीत से जुड़ी विस्तृत क्लिप (जो कि पूरे सेशन की नहीं है) आप नीचे देख सकते हैं-
# पहला जो कहता है हिंसा में एबीवीपी का हाथ था. # दूसरा जो कहता है हिंसा में जेएनयू की स्टूडेंट यूनियन का हाथ था. # तीसरा कहता है कि जो हिंसा चर्चा में आई, उसमें बेशक एबीवीपी का हाथ था, लेकिन शुरुआत बहुत पहले लेफ्ट कर चुका था.हमारी राय ये है कि अगर एक बार को कंगना की बात से कन्विंस हो भी लिया जाए कि-
कॉलेजों में गैंगवार होना आम बात है.तो भी दिक्कत उस मशीनरी से है, जिसने कथित तौर पर हिंसा को फेसिलटेट करने का काम किया. अगर नहीं किया, तो दिक्कत उस मशीनरी से भी है, जो अब तक मामले के पूरे सच को देश के सामने नहीं रख पाई. पीएम की भतीजी का पर्स छिनने पर प्रोफेशनलिज़्म के कीर्तिमान स्थापित करने वाली दिल्ली पुलिस कैसे अब तक उन नकाबपोशों को नहीं पकड़ पाई? और दिक्कत देश की राजधानी की ताक पर रखी गई सुरक्षा से भी है. उधर दीपिका के जेएनयू जाने को लेकर भी दो धड़े बने हैं. पहला, जो दीपिका की तारीफ़ कर रहे हैं. दूसरा, जो कह रहे हैं कि उन्होंने ‘छपाक’ की रिलीज़ के प्रमोशन के वास्ते ऐसा किया. हमारा मानना है कि जिस तरह हम जेएनयू वाले पूरे कांड को ‘तटस्थ’ होकर उसकी फेस वैल्यू पर ले रहे हैं, वैसे ही दीपिका का जेएनयू जाना भी फेस वैल्यू पर लिया जाना चाहिए. कि वो वहां गईं, हिंसा के विरोध का समर्थन करने के लिए. शॉर्ट एंड सिंपल.
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क्या अपने ट्रेलर की तरह ही ग्रैंड है अजय देवगन और काजोल की ये मूवी?-