Sikandar
Director: A.R. Murugadoss
Cast: Salman Khan, Rashmika Mandanna, Sathyaraj, Kajal Aggarwal
Rating: 1.5 Stars
Sikandar - मूवी रिव्यू
कैसी है Salman Khan और Rashmika Mandanna की फिल्म Sikandar, जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.

‘सिकंदर’ के क्रेडिट्स खुलते हैं. Rashmika Mandanna का वॉयस-ओवर आता है. वो कहती हैं कि सिकंदर वो नहीं जो बड़े साम्राज्य पर राज करता हो. बल्कि सिकंदर वो है जो दिलों पर राज करता है. आगे ढाई घंटे की ये फिल्म आपके दिलों पर राज करने की कोशिश नहीं करती. बल्कि सुनने, देखने और समझने की तमाम क्षमताओं पर हमला करती है. सलमान ने अपने एक हालिया इंटरव्यू में कहा कि फिल्ममेकर्स आजकल ऑडियंस को स्पून-फीड करने लगे हैं. यानी हर एक बात समझाने लगते हैं. सलमान अपने इंटरव्यू में ये बात कहते हैं और फिर उनकी फिल्म लगातार यही करती है. ट्रेलर में दिखाया गया कि ‘सिकंदर’ का मेन विलेन प्रधान नाम का मंत्री है. उसका रोल सत्यराज ने किया. मगर ‘सिकंदर’ की असली विलेन उसकी औसत से भी कमज़ोर राइटिंग है.
फिल्म में दिखाया जाता है कि सलमान का किरदार संजय, राजकोट का महाराज है. कोई उसे सिकंदर कहता है तो कोई संजय साहब कहकर पुकारता है. सिकंदर अपनी पत्नी साइश्री से बहुत प्यार करता है. एक हमले की वजह से सिकंदर की ज़िंदगी बदल जाती है. अब वो खुद से ऊपर उठकर लोगों की मदद करने की कोशिश करता है. लेकिन हीरो की कहानी एक्शन के बिना पूरी नहीं हो सकती. सिकंदर को भी अपने दुश्मनों से लड़ना है. इस सफर में वो लोगों की भलाई करता है, गुंडों को हवा में उछालता है, रोता है, लोगों को रुलाता है. बेसिकली सब कुछ करने की कोशिश करता है.

फिल्म की इसी कोशिश ने उसका सबसे ज़्यादा नुकसान किया है. ऐसा प्रतीत होता है कि मेकर्स ने फिल्म के ज़रिए ऑडियंस के हर तबके को टारगेट करने की कोशिश की है. जब आप सबके लिए फिल्म बनाते हैं, तो वो किसी की भी फिल्म नहीं रह जाती. फिल्म ने ‘अल्फा मैन’ पर कमेंट्री की. भ्रष्टाचार दिखाया. प्रदूषण का नुकसान गिनाया. ऐसा लग रहा था कि मेकर्स अपनी कोई ज़िम्मेदारी पूरी करने की कोशिश कर रहे हैं, कि देखो हम अपने आसपास की दुनिया को लेकर कितने सजग हैं. मगर ये सारी कमेंट्री अपनी जगह है. हर फिल्म की सबसे बड़ी ज़रूरत ये है कि वो फिल्म के पैमाने पर तो खरी उतरे. ‘सिकंदर’ ऐसा करने की दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाती.
फिल्म देखते हुए ऐसा लगता है कि बहुत सारे सीन्स शूट हुए. फिर उन्हें बस आगे पीछे जोड़ दिया गया हो. राइटिंग में कोई फ्लो ही नज़र नहीं आता. सिकंदर पुलिस स्टेशन से अपने घर आता है. अचानक से ‘ज़ोहरा जबीं’ गाना आ जाता है. आपको कुछ खटकता है कि अचानक से सेटिंग कैसे बदल गई. लेकिन फिल्म अपनी इस कोशिश में आपको आगे के लिए तैयार कर रही होती है. कि अब अगले दो-ढाई घंटे यही चलने वाला है. रिलीज़ से पहले मेकर्स ने दावे किए थे कि ये एक इमोशनल फिल्म है. बस दिक्कत ये है कि वो इमोशन आपको कभी भी हिट नहीं करता. सिकंदर अपने सबसे करीबी इंसान को खो देता है, और आप अपने अंदर कुछ भी महसूस नहीं करते.

यहां फिल्म की राइटिंग और एडिटिंग में कॉम्पीटिशन चलने लगता है. कि कौन फिल्म को ज़्यादा नुकसान पहुंचाएगा. बहुत सारी फिल्मों से ये शिकायत होती है कि वो एक धागे से नहीं बंधी होती. कोई एक थीम नहीं होती. ‘सिकंदर’ के केस में वो धागा ही गायब है. यहां मेकर्स ने बस सीन लिखे और उन्हें इस कदर चिपका दिया कि वो बस 30 मार्च तक टिक जाएं. फिल्म में कुछ दमदार ढूंढने पर भी गिने-चुने सीक्वेंस याद आते हैं. उनमें से एक है सलमान खान का एंट्री सीन. यहां मुरुगदोस ने हीरोइज़्म को अच्छे से भुनाया है. ये सीन ‘पठान’ में सलमान खान के कैमियो की याद दिलाता है.
उसके अलावा ‘सिकंदर’ का थीम म्यूज़िक भी कैची है. बस मेकर्स ने उसके इस्तेमाल में बहुत गड़बड़ की है. नतीजतन वो सीन को उठा ही नहीं पाता. बाकी एक्टिंग के स्तर पर किसी ने भी यादगार काम नहीं किया. सत्यराज ने भी भरपूर मात्रा में लाउड एक्टिंग की है. एकदम टिपिकल किस्म का काम हुआ है. ‘सिकंदर’ के अधिकांश हिस्सों को देखते हुए यही महसूस होता है कि ये पहले देखा हुआ है. मेकर्स जो कहना चाह रहे हैं, ना उसमें नयापन है. और वो जिस तरह से कह रहे हैं, उसमें भी कोई अलग छाप नहीं.
फिल्म की शूटिंग के दौरान सलमान की बॉडी उन्हें परेशान कर रही थी. वो आपको दिखता भी है. मगर एक टोन में तमाम डायलॉग बोलने का क्या कारण हो सकता है. अपने किरदार के लिए उन्होंने आवाज़ को भारी किया. ये एक्सपेरिमेंट भी फिल्म की कोई मदद नहीं करता. ‘टाइगर 3’ से लोगों को शिकायत थी कि सलमान मेहनत नहीं कर रहे. एफर्ट नहीं डाल रहे. ‘सिकंदर’ इस शिकायत का मौका नहीं देती क्योंकि इसकी खराब राइटिंग किसी एफर्ट का स्कोप ही नहीं छोड़ती.
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