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जब शाहरुख ने वसीम बरेलवी को फोन किया और कहा, "साहब, मैं शाहरुख खान बोल रहा हूं"

Shahrukh Khan, Jawaan में Waseem Barelvi का शेर बदलकर इस्तेमाल करना चाहते थे. मगर वसीम बरेलवी नहीं माने, तब शाहरुख ने उन्हें खुद फोन किया. अब Waseem Barelvi ने वो पूरा वाकया सुनाया है.

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वसीम बरेलवी की ग़ज़लें लता मंगेशकर और जगजीत सिंह भी गा चुके हैं.

"उसूलों पर जहां आंच आए, तो टकराना ज़रूरी है
बंदा ज़िंदा हो, तो ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है..."

Shahrukh Khan की फिल्म Jawaan के हिट गाने Zinda Banda... की शुरुआत इसी शेर से होती है. ये शेर लिखा है मशहूर शायर Waseem Barelvi ने. एक ऐसे शायर जिन्होंने धीमी तरन्नुम में ग़ज़लें पढ़ने की शुरुआत की. फिल्म के मेकर्स इस शेर में कुछ तब्दीली करना चाहते थे. एक दो मर्तबा तो बात बनी नहीं. फिर बरेलवी साहब के फोन की घंटी बजी और आवाज़ आई -  “हैलो, आदाब! मैं शाहरुख खान बोल रहा हूं.” शाहरुख़ ने वसीम बरेलवी को खुद फोन कर इस शेर में बदलाव की गुज़ारिश की.  

दरअसल वो शेर यूं है,

"उसूलों पर जहां आंच आए, टकराना ज़रूरी है, 
जो ज़िंदा हो, ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है..."

फिल्म की कहानी के खांके में ढालने के लिए मेकर्स ने इस शेर में कुछ बदलाव की दरख्वास्त की. The Lallantop के ख़ास कार्यक्रम Guest in the Newsroom में इस बार जब वसीम बरेलवी रूबरू आए, तो उन्होंने ये पूरा किस्सा सुनाया. बताया कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो खुद शाहरुख खान को उनसे शेर में तब्दीलियों की गुज़ारिश करना पड़ी. वसीम बरेलवी बताते हैं,

"हुआ यूं कि स्क्रिप्ट राइटर ने दो मर्तबा मुझसे बात की. मैंने कहा मियां! शेर जो है वो बदला नहीं जाता है. अगर वो फिल्म के लिए लिखावाया है, तो बात दूसरी होती है. मगर वो तो शेर है. उसके बाद उनके डायरेक्टर का फोन आया. मैंने कहा शेर में एक लफ्ज़ भी इधर-उधर कर देते हैं, तो वो ऐसा है जैसे आप अपनी औलाद के हाथ पांव काट देते हैं. ये सुन वो भी खामोश हो गए."

जब बात नहीं बनी तो मेकर्स ने वसीम बरेलवी की बात शाहरुख खान से कराई. इस बारे में वसीम बरेलवी ने कहा,

"कुछ दिन बाद फिर फोन आया. उनके स्क्रिप्ट राइटर ने कहा कि लीजिए शाहरुख खान साहब बात करेंगे. तो बड़े अदब से, निहायत ही अख़लाक़ के साथ, मुहज्जब तरीके से मोहब्बत और इज्जत के साथ उन्होंने कहा कि साहब शेर तो ये आपका ऐसे ही पहुंचेगा जैसा ये है. मगर फिल्म के गाने की मजबूरी है. मैंने कहा ये बात अगर वो पहले दिन कह देते तो मैं पहले दिन हां कह देता. उन्होंने पूरा शेर भी पढ़ा. बाद में लोगों ने तरह-तरह से इस बात को लिखा. जितनी बातें अखबारों और चैनलों पर चलीं, वो कहना भी मुझे अच्छा नहीं लगता."

वसीम बरेलवी 63 बरस से लगातार लिख रहे हैं. देश-दुनिया के मौज़ूं मुशायरों में शिरक़त कर चुके हैं. मुशायरों में कोट पहनने वाले पहले शायर हुए वसीम बरेलवी. लता मंगेशकर, जगजीत सिंह और कविता सेठ भी उनकी ग़ज़लों को गा चुके हैं. 

वीडियो: शाहरुख़ खान ने फोन पर वसीम बरेलवी से 'जवान' फिल्म के गाने को लेकर क्या कह दिया?