Karan Johar के साथ Salman Khan की अपकमिंग फिल्म The Bull को लेकर खबरों का बाज़ार काफी गर्म है. कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि Vishnuvardhan डायरेक्टेड फिल्म को सलमान खान ने छोड़ दिया है. लेकिन ये खबर झूठ निकली. ताज़ा अपडेट ये है कि सलमान ने फिल्म को ना नहीं किया है. बल्कि वो तो द बुल की तैयारियों में जुटे हुए हैं. सबकुछ सही रहा तो इस साल दिसंबर से इसका शूट शुरू हो सकता है.
सलमान खान की 'द बुल' छोड़ने वाली खबरों में कितनी सच्चाई है, जान लीजिए
Salman Khan के Karan Johar की फिल्म The Bull को छोड़ने की खबर आई, फिर करण की टीम सी तरफ से इसका खंडन भी कर दिया गया.
बॉक्स ऑफिस वर्ल्डवाइड की रिपोर्ट के मुताबिक 'द बुल' से सलमान खान के हटने की खबरें अफवाह हैं. फिल्म बन रही है और इसे सलमान खान के साथ ही बनाया जाएगा. ए.आर. मुरुगादास वाली फिल्म के बाद सलमान खान, 'द बुल' पर काम शुरू करेंगे. टाइम्स नाउ ने भी करण जौहर की टीम से इस बारे में बात की. उन्होंने भी इस खबर को गलत बताया है. साथ ही कहा कि फिल्म फिल्म पर काम चालू है.
पिछले दिनों बताया गया था कि डेट्स तय ना होने की वजह से सलमान ने ‘द बुल’ से अपने हाथ खींच लिए हैं. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में सोर्स के हवाले से लिखा गया था-
"तारीखों पर बहुत आगे-पीछे होने के बाद, करण और विष्णु अभी भी शूटिंग की सटीक समय सीमा तय नहीं कर पाए थे. तभी सलमान ने इस प्रोजेक्ट से पीछे हटने का फैसला लिया."
हालांकि ये सारी खबरें झूठी निकलीं. 'द बुल' में सलमान, ब्रिगेडियर फारूख बुलसारा के कैरेक्टर में नज़र आएंगे. जिन्होंने नवंबर 1988 में मालदीव में हुए 'ऑपरेशन कैक्टस' को लीड किया था. फिल्म में सलमान खान पैरामिलिट्री ऑफिसर के रोल में दिखेंगे. इसके लिए सलमान तगड़ी फिज़िकल ट्रेनिंग से गुज़र रहे हैं, जिससे वो कैरेक्टर को परफेक्शन के साथ निभा सकें. सलमान खान हर दिन करीब साढ़े तीन घंटे ट्रेनिंग कर रहे हैं.
इस फिल्म को ‘शेरशाह’ फेम विष्णुवर्धन बनाने वाले हैं. 1988 में मालदीव के बिज़नेसमैन अब्दुल्ला लुतूफी ने अब्दुल गयूम सरकार के तख्ता पलट की साजिश रची गई थी. इसमें श्रीलंका के अलगाववादी संगठन पीपल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) ने अबदुल्ला लुतूफी की मदद की थी. नवंबर 1988 में हथियारों से लैस कुछ लड़ाके पानी के रास्ते मालदीव की राजधानी माले पहुंचे. कुछ ही समय में उन्होंने वहा की सरकारी बिल्डिंग, एयरपोर्ट और कम्युनिकेशन सेंटर्स पर कब्जा कर लिया.
इस मुश्किल वक्त में मालदीव सरकार ने इंडिया, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों से मदद मांगी थी. लेकिन कोई आगे नहीं आया. आखिरकार, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इंडियन मिलिट्री को वहां सिचुएशन हैंडल करने के लिए भेजा. ब्रिगेडियर फारूख बुलसारा की लीडरशिप में 50वीं पैराशूट बिग्रेड के जवानों को माले भेजा गया गया था. इस ऑपरेशन में इंडियन मिलिट्री के जवानों ने तख्ता पलट की कोशिश करने वाले लड़ाकों को हरा दिया. और फिर से अब्दुल गयूम की सरकार बन गई.
वीडियो: सलमान खान की 'द बुल' इंडियन आर्मी के 'ऑपरेशन कैक्टस' पर बेस्ड है, कारण जौहर करेंगे प्रोड्यूस