मराठी सिनेमा को समर्पित इस सीरीज़ 'चला चित्रपट बघूया' (चलो फ़िल्में देखें) में हम आपका परिचय कुछ बेहतरीन मराठी फिल्मों से कराएंगे. वर्ल्ड सिनेमा के प्रशंसकों को अंग्रेज़ी से थोड़ा ध्यान हटाकर इस सीरीज में आने वाली मराठी फ़िल्में खोज-खोजकर देखनी चाहिए...

आज हम उस फिल्म की बात करेंगे जिसे न सिर्फ महाराष्ट्र से बल्कि पूरे भारतभर से जी भरके प्यार मिला. वो पहली मराठी फिल्म, जिसका कलेक्शन 100 करोड़ का जादुई आंकड़ा पार कर गया. जो इतनी बड़ी सक्सेस रही कि हिंदी के एक बहुत बड़े डायरेक्टर ने उसका हिंदी रीमेक बनाने की सोच ली. जी हां, हम बात कर रहे हैं 'सैराट' की. 'फैंड्री' जैसी अप्रतिम फिल्म देने के बाद डायरेक्टर नागराज मंजुळे की दूसरी शानदार पेशकश.
2016 में जब 'सैराट' रिलीज़ हुई थी, इसने तहलका मचा दिया था. न सिर्फ मराठी जाननेवाले बल्कि गैर-मराठी लोग भी इसके प्यार में पड़ गए थे. खुद हमारे ऑफिस में, ऐसे बहुत से लोग हैं जो मराठी का एक अक्षर नहीं जानते, लेकिन सैराट को लेकर भावुक हो जाते हैं.

'सैराट' कहानी है आर्ची और परश्या के प्रेम की. आर्ची यानी अर्चना पाटिल. परश्या यानी प्रशांत काळे.
ये चलन सिर्फ महाराष्ट्र में ही दिखाई देता है कि आपको आपके असल नाम से नहीं, बल्कि उसके अपभ्रंश से पुकारा जाता है. इसीलिए अर्चना आर्ची है, प्रशांत परश्या है तो सलीम सल्या. जैसा कि आर्ची के सरनेम से ही ज़ाहिर है वो गांव के पाटिल की लड़की है. सो कॉल्ड अपर कास्ट. समृद्ध, संपन्न परिवार की कन्या. वहीं परश्या एक मछुआरे का बेटा है. कथित तौर पर लोअर कास्ट. ज़ाहिर सी बात है ये मेल, मुश्किल ही है.
बावजूद इसके प्रेम पनपता है. पूरी शिद्दत से. न सिर्फ पनपता है बल्कि इस नामुराद सिस्टम से पंगा भी लेता है. इसका अंजाम क्या होता है ये फिल्म देखकर जानिएगा.
यूं देखा जाए तो 'सैराट' एक आम प्रेमकथा है. जो सिनेमा के परदे पर हज़ारों बार देखी-दिखाई जा चुकी है. गरीब लड़का, अमीर लड़की, लड़की के घरवाले विलेन, भाग कर शादी वगैरह-वगैरह. लेकिन 'सैराट' को ख़ास बनाता है कहानी को दिया गया ट्रीटमेंट. और इसके वो रेफरेन्सेस जो हमारी सोसाइटी पर तीखी कमेंट्री करते नज़र आते हैं. 'सैराट' सिर्फ प्रेम कहानी नहीं है. ये हमारे सोशियो-इकनोमिक सिस्टम को बड़ी खूबसूरती से निर्वस्त्र करती है.

ये कहीं न कहीं ये भी बताती चलती है कि समर्थ लोगों के लिए ये दुनिया जन्नत है, और कमज़ोरों के लिए कदम दर कदम अपमान का कड़वा घूंट. स्कूल मास्टर लोखंडे के अपमान का सीन ऐसा ही एक उदाहरण है.
पाटिल के लड़के प्रिंस ने भरी क्लास में मास्टर जी को थप्पड़ मार दिया. ग़लती प्रिंस की होने के बावजूद उसके पिता के दरबार में अपराधी की तरह प्रिंस नहीं, मास्टर जी खड़े हैं. उन्हें सिर्फ इतना आश्वासन मिलता है कि तात्या पाटिल लड़के से बात कर लेंगे. वहीं प्रिंसिपल को ये सलाह दी जाती है कि वो नए टीचर को लड़के की हैसियत के बारे में समझाए. ताकि आगे उनसे - टीचर से - ग़लती न हो. ये एक सीन ही काफी है ये बताने के लिए कि कैसे समर्थों को सब माफ़ है. ऊपर से विडंबना ये कि उन्हीं टीचर्स को उसी उद्दंड, बदतमीज़, गुंडे प्रिंस की बड्डे पार्टी के लिए चंदा भी जमा करना है.

टीचर को थप्पड़ मारता प्रिंस.
ऐसे ही एक सीन में परश्या के पिता पूरी बिरादरी के आगे खुद को लगातार थप्पड़ मारते हैं. उनकी सिर्फ एक ही विनती है कि उनके बेटे की गलती की सजा उन्हें और उनके परिवार को न दी जाए. उनकी बेटी का कहीं रिश्ता नहीं हो रहा.
'सैराट' से नागराज मंजुळे ने बता दिया कि 'फैंड्री' की सफलता तुक्का नहीं थी. जहां 'फैंड्री' में एक तरफ़ा प्रेम की व्यथा है, वहीं सैराट में प्यार दो तरफ़ा है. बावजूद इसके सब कुछ ठीक ठाक नहीं है.
'सैराट' की अभूतपूर्व सफलता इसके छोटे-छोटे दृश्यों में छिपी है. गुज़रती ट्रेन की आवाज़ पर नाचना हो या आर्ची का पीटी करते वक़्त डांस करना. या फिर शुरुआत में ही दिखाए गए क्रिकेट टूर्नामेंट की मज़ेदार कमेंट्री. ये सब हमने देखा-भाला है, कभी न कभी किया है इसलिए एक इंस्टेंट कनेक्शन महसूस होता है. फिर फिल्म, फिल्म नहीं रहती.

आर्ची का डांस.
फिल्म की एक और ख़ासियत इसके बेहतरीन डायलॉग्स भी हैं. परश्या को खेत दिखाती आर्ची 'जब होल वावर इज आवर' कहती है, तो डायलॉग राइटर को दाद देने का मन करता है. हालांकि इसे एन्जॉय करने के लिए आपको मराठी भाषा आनी चाहिए.
'सैराट' जितनी नागराज मंजुळे की फिल्म है, उतनी ही रिंकू राजगुरु और आकाश ठोसर की भी. भले ही ये लाइन कितनी ही क्लीशे लगे लेकिन इन दोनों ने आर्ची और परश्या के किरदार में वाकई जान डाल दी है. पूरी फिल्म इन्हीं दोनों के कंधों पर है, जिन्होंने अपने जीवन में पहली बार कैमरा फेस किया है.
दोनों ने इतना अप्रतिम अभिनय किया है कि लगता ही नहीं वो एक्टिंग कर रहे हैं. खास तौर से रिंकू राजगुरु. उन्हें एक लंबी रेंज को कवर करना पड़ा है. लाड-प्यार में शहज़ादी की तरह पली एक लड़की से लेकर एक ज़िम्मेदार गृहिणी तक. और ये उन्होंने बड़ी ही सहजता से कर दिखाया है. कितने ही शेड्स हैं उनकी एक्टिंग के. बुलेट पर कॉलेज में जाती आर्ची बेफिक्री का इश्तेहार है. ट्रैक्टर पर सवार होकर परश्या को न्यौता देने पहुंची आर्ची सेल्फ-कॉन्फिडेंस का जीता जागता नमूना है. वहीं एक कारखाने में मज़दूरी करती, परश्या के बर्ताव से आहत होकर सड़कों पर भटकती आर्ची असहायता का दस्तावेज है.

बुलेट की सवारी.
ये सब रंग रिंकू राजगुरु ने बेहद कामयाबी से परदे पर उतारे हैं. उनकी निभाई आर्ची ने कई स्टीरियोटाइप भी तोड़े हैं. जैसे हीरो पिटता है और हीरोइन उसे बचाती है.
आकाश ठोसर भी कम नहीं हैं. उन्होंने भी प्रेम में गले-गले तक डूबे एक युवा की भूमिका पूरी ईमानदारी से निभाई है. जो कभी लापरवाह है तो कभी बेहद ज़िम्मेदार. एक सीन में आर्ची के चले जाने के बाद परश्या गले में फंदा लटकाकर मरने की कोशिश करता है. साथ ही फूट-फूटकर रोता है. उस सीन में आकाश ठोसर बेहद कन्वींसींग लगते हैं. बाकी के सारे कलाकार भी उम्दा है. ख़ास तौर से परश्या के दोस्त सलीम और प्रदीप. तानाजी गलगुंडे और अरबाज़ शेख ने डूबकर काम किया है. छाया कदम, सूरज पवार, सुरेश विश्वकर्मा, धनंजय ननावरे सबने अपने हिस्से का काम बाखूबी किया है.

अरबाज़ शेख और तानाजी गलगुंडे.
सुधाकर यक्कंटी रेड्डी का कैमरा वर्क लाजवाब है. एक खूबसूरत पेंटिंग बनाई है उन्होंने. ऐसे-ऐसे सीन कैप्चर किए हैं कि सांस थम जाती है.
संगीत के बारे में तो कहना ही क्या. फिल्म के चारों गाने इस बात का सबूत हैं कि अजय-अतुल को मिल रहा बेशुमार सम्मान, बेवजह नहीं है. चाहे 'याड लागलं' हो या 'सैराट झालं जी', अजय-अतुल का संगीत सीधे रूह में उतरता है. 'झिंगाट' तो इतना ज़्यादा हिट रहा कि उसके बगैर किसी डांस पार्टी की कल्पना करना मुश्किल है. कुछ दिन पहले मैंने फेसबुक पर लिखा भी था कि लोगों को नशे की तलब लगती है तो वो दारु पी लेते हैं, सिगरेट फूंक लेते हैं, गांजे वांजे का इंतज़ाम करते हैं. मैं सैराट के गाने चला लेता हूँ. यकीनन ऐसे ही हैं सैराट के गाने.

सैराट झालं जी...
फिल्म का क्लाइमैक्स आपको हिलाकर रख देगा. अगर 'फैन्ड्री' के क्लाइमैक्स में जब्या का पत्थर दर्शकों के माथे पर लगता है, तो 'सैराट' का क्लाइमैक्स आपके संवेदनाओं को सुन्न करके रख देता है. इससे ज़्यादा उसके बारे में बताना ठीक नही होगा. फिल्म में ही देख लीजिएगा.
'सैराट' ने पूरे भारत की जनता से प्यार पाया. हिंदी के दर्शकों के लिए 'सैराट' को 'धड़क' के रूप में देखने का मौक़ा है. हम तो यही कहेंगे कि भले ही आप 'धड़क' देखें लेकिन एक बार ओरिजिनल भी ज़रूर देखिएगा. आर्ची और परश्या की इनोसंस को मिस करना पाप होगा.
चला चित्रपट बघूया' सीरीज़ में कुछ अन्य फिल्मों पर तबसरा यहां पढ़िए:
न्यूड: पेंटिंग के लिए कपड़े उतारकर पोज़ करने वाली मॉडल की कहानी
सेक्स एजुकेशन पर इससे सहज, सुंदर फिल्म भारत में शायद ही कोई और हो!
क्या दलित महिला के साथ हमबिस्तर होते वक़्त छुआछूत छुट्टी पर चला जाता है?
जोगवा: वो मराठी फिल्म जो विचलित भी करती है और हिम्मत भी देती है
वीडियो: