मराठी सिनेमा को समर्पित इस सीरीज़ 'चला चित्रपट बघूया' (चलो फ़िल्में देखें) में हम आपका परिचय कुछ बेहतरीन मराठी फिल्मों से कराएंगे. वर्ल्ड सिनेमा के प्रशंसकों को अंग्रेज़ी से थोड़ा ध्यान हटाकर इस सीरीज में आने वाली मराठी फ़िल्में खोज-खोजकर देखनी चाहिए...

आज की फिल्म है नटरंग.
तमाशा. महाराष्ट्र की लोककला. महाराष्ट्र की मिट्टी का उत्सव. मराठी कला जगत की शायद सबसे ज़्यादा प्रभावशाली पेशकश. जिसके हिस्से तारीफ़ और तिरस्कार समान मात्रा में आया. एक तरफ इसके कला पक्ष पर मुग्ध लोगों की पूरी जमात मौजूद रही. वहीं दूसरी तरफ इसपर अश्लीलता के आरोप भी लगे.
कोई ज़माना था, जब महाराष्ट्र की गृहिणियां तमाशा को अपने घर-संसार में आग लगाने वाली चीज़ समझती थीं. इसे कोसने वालों की ठीक-ठाक संख्या रही. वहीं इससे जुनून की हद तक इश्क करने वाले भी बेशुमार रहें. 'नटरंग' ऐसे ही एक दीवाने की कहानी है, जिसने तमाशा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया. अपना परिवार, अपनी गृहस्थी, अपना सम्मान. यहां तक कि अपने पौरुष का अभिमान भी सरेंडर कर दिया.

'नटरंग' कहानी है महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में रहने वाले गुणा कागलकर की. गुणा को अगर किसी एक चीज़ से दीवानगी की हद तक प्यार है, तो वो है तमाशा. ढोलकी की थाप सुनने भर से उसकी रगों का ख़ून दुगनी रफ़्तार से दौड़ने लगता है. फिर खांसता हुआ बाप और बेटे की स्कूल की ज़रूरतें नज़रअंदाज़ हो जाती हैं. दिमाग में घूमता है तो बस तमाशा.
दीवानगी का आलम जब हद से गुज़रने लगता है तो गुणा, दर्शक की भूमिका छोड़कर आर्टिस्ट की भूमिका में आने की ठान लेता है. लगान के भुवन ने जैसे अंग्रेज़ों के खिलाफ अपने गांव की टीम खड़ी की थी, कुछ-कुछ उसी तर्ज पर गुणा भी अपने यार-दोस्तों की टीम खड़ी कर लेता है. जद्दोजहद करके साज़ोसामान लायक पैसे जुगाड़ लिए जाते हैं. तमाशा के मैनेजर का ज़िम्मा पांडोबा को दिया जाता है. जो कि तमाशा की दुनिया में बरसों से घुसा हुआ है.

पांडोबा के साथ गुणा.
अगला टास्क है तमाशा के लिए एक बाई खोजना. बाई मतलब लीड डांसर. अपने दायरे में हर एक संभावित महिला से पूछने और उनसे गालियां, मार खाने के बावजूद बाई का कोई इंतज़ाम नहीं हो पाया. आखिरकार पांडोबा के ही कनेक्शंस काम आते हैं. उसकी एक पुरानी परिचित है यमुनाबाई. यमुना की बेटी नैना कुछ शर्तों के साथ हामी भर देती है.
नैना तो तैयार हो गई लेकिन दिल्ली अभी दूर है. तमाशा का एक और ज़रूरी हिस्सा मिसिंग है. इस मंडली को एक नाच्या की तलाश है.
नाच्या मतलब वो आदमी जो औरतों की तरह हावभाव करके दर्शकों का मनोरंजन करता है. जो होता तो पुरुष है, लेकिन जिसकी देहबोली के एक-एक ज़र्रे से औरत झलकती है. बहुत तलाशने के बावजूद ऐसा कोई कलाकार नहीं मिलता. नैना की शर्त है कि नाच्या नहीं तो तमाशा नहीं.

नैना.
अपने सपने को यूं अंतिम स्टेज पर आकर बिखरते देखना गुणा को मंज़ूर नहीं है. जब कुछ नहीं हो पाता तो गुणा एक क्रांतिकारी फैसला ले लेता है. खुद नाच्या बनने का. हट्टे-कट्टे पहलवान गुणा के सामने ये एक बड़ी चुनौती है. न सिर्फ शारीरिक तौर पर ये चैलेंज है, बल्कि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी दांव पर है.
लोग नाच्या को सम्मान की नज़रों से नहीं देखते. किन्नर, नपुंसक, हिजड़ा जैसे शब्दों से नवाज़ते हैं. गुणा के आगे अपमान के इस दरिया को पार कर जाने की चुनौती है. उसे न सिर्फ ये ज़हर पीना है बल्कि एक मुकाम भी हासिल करना है. गुणा इसमें किस हद तक कामयाब होता है और इस सफ़र में उसे क्या-क्या खोना पड़ता है इसी की कहानी है 'नटरंग'.

नाच्या.
नाच्या के जीवन से लिपटी वेदना का आपको एहसास हो इसलिए थोड़ा सा डायवर्ट करके कुछ और सुनाता हूं. कुछ दिन पहले मैं यूं ही, तमाशा पर कुछ पढ़ने के इरादे से इंटरनेट पर भटक रहा था. इस भटकन में मेरे हाथ एक इंटरव्यू लगा. मशहूर मराठी अभिनेता गणपत पाटील का इंटरव्यू. गणपत पाटील वो अभिनेता थे जिन्होंने दर्जनों मराठी फिल्मों में नाच्या का रोल किया. जब तक वो एक्टिंग करते रहे, इस रोल के लिए उनके अलावा किसी और के बारे में शायद कभी सोचा ही नहीं गया. इतने परफेक्शन से वो ये रोल निभाते थे. तो उस इंटरव्यू में गणपत पाटील अपने जीवन का एक किस्सा सुना रहे थे. और सुनाते वक़्त फूट-फूटकर रो रहे थे.
उनकी बेटी के लिए रिश्ता आया था. जैसे ही रिश्तेवालों को पता चला कि ये गणपत पाटील की बेटी है उनके सुर बदल गए. उन्होंने कहा,
"ऐसे आदमी की कोई औलाद हो भी कैसे सकती है? ये जनाना सा आदमी कोई संतान पैदा कर ही नहीं सकता. ज़रूर इसकी बीवी ने कहीं मुंह काला किया होगा. इनकी तो कोई इज्ज़त नहीं है लेकिन हमारी तो है. हमारा काम इनके जैसा तालियां पीटने का नहीं है."गणपत पाटील बता रहे थे कि हर ताने के साथ उनकी पत्नी टूटती-बिखरती जा रही थी. उनके अभिनय की कीमत उनके बीवी-बच्चों ने चुकाई. उनका हमेशा मज़ाक बनता रहा. इतना कहकर गणपत पाटील फिर से रोने लगे थे. बड़ा ही दिल दुखाने वाला इंटरव्यू था वो.

गणपत पाटिल.
बहरहाल, फिल्म पर लौटते हैं. 2005 में, एक अवॉर्ड सेरेमनी में गणपत पाटील को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया गया. उसी से प्रेरणा लेकर डायरेक्टर रवि जाधव ने ये फिल्म बनाई. फिल्म मराठी लेखक आनंद यादव के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है.
एक्टिंग की बात की जाए तो अतुल कुलकर्णी इस फिल्म में कोहिनूर की तरह चमकते हैं. एक पहाड़ जैसे पहलवान से एक जनाना किरदार तक का उनका सफ़र एफर्टलेस लगता है. ये फ्रेम दर फ्रेम नज़र आता है कि अतुल कुलकर्णी ने इस रोल के लिए बहुत मेहनत की है. इसी का नतीजा है कि उनकी एक्टिंग आंखें चौंधियां देती है.

अतुल कुलकर्णी.
तमाशा की लीड डांसर के तौर पर सोनाली कुलकर्णी परफेक्ट हैं. किशोर कदम के बारे में तो कहना ही क्या! इस आदमी को कोई भी रोल दे दो, उसका सोना कर डालता है. उनका निभाया पांडोबा अद्भुत है. गुणा की बीवी के रोल में विभावरी देशपांडे जब-जब भी स्क्रीन पर आती हैं, प्रभावित कर जाती हैं.
बाकी के कलाकार भी अपने रोल में फिट हैं. डायरेक्टर रवि जाधव तमाशा कलाकारों की ज़िंदगियों में उतरने में कामयाब रहे हैं. सिनेमा के परदे पर तमाशा मंडली का ऐसा सच्चा और भरोसे लायक चित्रण बहुत कम देखने को मिलता है.
इस फिल्म के संगीत का ज़िक्र किए बगैर गुज़र जाना अन्याय होगा. 'मला जाऊ द्या ना घरी' लावणी तो अद्भुत बन पड़ी है. इसे सुनते वक़्त लगता है आप किसी तमाशा के फड़ में ही बैठे हो. यही बात 'अप्सरा आली' गीत के लिए भी कही जा सकती है.

अप्सरा आली....
'खेळ मांडला' इस अल्बम का सबसे शानदार गीत है. गुरु ठाकुर के अप्रतिम शब्दों को अजय-अतुल ने बेहद असरदार धुन में बांधा है. रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
'नटरंग' फिल्म नहीं करिश्मा है. थर्ड जेंडर के प्रति हमारे समाज की क्रूरता का आईना है. कहानी है उस शख्स की जिसने कला के लिए कदम-कदम पर ज़लील होना बर्दाश्त कर लिया. अपमान का घूंट पिया. लेकिन अपना हौसला न टूटने दिया. कला का परचम ऐसे ही लोगों की वजह से बुलंद है. मिस न करिएगा इस फिल्म को.
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