174 बच्चे रोज़ लापता होते हैं हमारे देश में. हर 8 मिनट में एक बच्चा गायब. 35-40 नौजवान रोज़ मुंबई में लापता हो रहे हैं और लगभग 500-600 कोलकाता में. कहीं अगला नंबर आपका तो नहीं?
'लॉस्ट': मूवी रिव्यू
यामी गौतम ने बहुत ही अच्छा काम किया है. क्राइम रिपोर्टर विधि के किरदार में उनके चेहरे पर प्रैक्टिकैलिटी और ज़मीर के बीच की लड़ाई साफ़ देखी जा सकती है.
आप सोच रहे होंगे आज लल्लनटॉप कैसी क्राइम रिपोर्टरों वाली भाषा बोल रहा है! लेकिन यह सवाल हम नहीं कर रहे, बल्कि यामी गौतम की फिल्म Lost में उठाया गया है. फिल्म की कहानी लिखी है श्यामल सेनगुप्ता और रितेश शाह ने. इसे डायरेक्ट किया है अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने. लिरिक्स लिखें हैं स्वानंद किरकिरे ने और म्यूजिक दिया है शांतनु मोइत्रा ने.
इन डिटेल्स के बाद फिल्म की कहानी के बारे में जान लेते हैं.
वो समझ गया था कि politicians हो या rebel, हर पार्टी, हर आउटफिट सिर्फ अपने मतलब के लिए काम करते हैं. उन्हें आम आदमी की ज़िंदगी की कोई परवाह नहीं.
यह एक लाइन lost की कहानी का एक छोटा-सा हिस्सा है.
इस कहानी में एक एक्टिविस्ट लड़का है, जो गायब हो चुका है. एक माओवादी लीडर है, जो यह दावा करता है कि वो हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों के लिए लड़ रहा है, एक अमीर नेता है, जिसे अपने पैसे और पॉवर पर कुछ ज्यादा ही विश्वास है, एक क्राइम रिपोर्टर है, जिसने उस गायब हुए लड़के को ढूंढना ही अपनी ज़िंदगी का मकसद समझ लिया है और इसके अलावा है कलकत्ते की गलियां. अब इतनी जानकारी से यह अंदाज़ा तो आपने लगा ही लिया होगा कि फिल्म में मीडिया, पॉलिटिक्स, सरकार टाइप की चीज़ें हैं. जहां सरकार के विरोधी हैं, जो लोकतंत्र में विरोध करना अपना हक़ समझ बैठे हैं और दूसरी तरफ सरकार है, जो लोकतंत्र में भरोसा रखती है लेकिन विरोध और विरोधियों में नहीं. और इन दोनों के बीच में आते हैं मीडिया वाले. जिनके लिए दोनों ही एक अवसर है.
फिल्म कहीं-कहीं बेहद प्रेडिक्टेबल दिखाई देती है. यह जानना आसान हो जाता है कि आगे क्या होने वाला है. लेकिन फिर भी यह सवाल कि वो लड़का जो लापता है वो आखिर गायब कैसे हुआ? क्या वो ज़िंदा भी है या नहीं? आपको कहानी के साथ बांधे रखने के लिए काफी है.
फिल्म में यामी गौतम ने बहुत ही अच्छा काम किया है. क्राइम रिपोर्टर विधि के किरदार में उनके चेहरे पर प्रैक्टिकैलिटी और ज़मीर के बीच की लड़ाई साफ़ देखी जा सकती है. एक तरफ विधि के चेहरे के एक्सप्रेशंस उन्हें एक निडर क्राइम रिपोर्टर के रूप में स्थापित करते हैं, वहीं उनकी पर्सनल लाइफ में चल रहे उतार-चढ़ाव यह भी दिखाते हैं कि विधि एक आम लड़की ही है जिसके ऊपर मां-बाप का दबाव और रिलेशनशिप को बचाए रखने का प्रेशर है. यामी का भावनात्मक ट्रांसफॉर्मेशन बार-बार फिल्म में देखने को मिलेगा. जो कमाल का है. इसके साथ ही एक क्राइम रिपोर्टर के सामने आने वाली मुश्किलों को भी दिखाने की अच्छी कोशिश की गई है. क्राइम रिपोर्टर विधि की पड़ताल सिर्फ सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों की ही नहीं बल्कि वो लोग जो सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए नफरत और हिंसा का सहारा लेते हैं, उन पर भी सवाल उठाती है.
यामी गौतम के नाना का किरदार निभाया है पंकज कपूर ने जो पहले प्रोफेसर रह चुके हैं. इनकी एक्टिंग कितनी कमाल है ये सबने ही देखा है. फिर वो चाहे दूरदर्शन पर आने वाली प्रेमचंद की कहानियां हो या मकबूल का जहांगीर खान. यहां ‘लॉस्ट’ में पंकज कपूर का किरदार एक तरफ विधि को उनकी मनचाही ज़िंदगी जीने के लिए मोटिवेट करता है. दूसरी तरफ वो विधि की सुरक्षा के लिए चिंतित भी दिखाई देते हैं. उनके किरदार के द्वारा विधि को दी गई कुछ सलाहें सुनने में बहुत ही क्लीशे लगेंगी. जैसे, खुदी को कर बुलंद इतना... और कर्म किये जा फल की चिंता मत कर. ये उनकी शानदार डायलॉग डिलीवरी के कारण बहुत ही इफेक्टिव नज़र आते हैं.
रंजन वर्मन के किरदार में राहुल खन्ना ने अच्छा काम किया है. रंजन वर्मन एक अमीर राजनेता है, जो सरकार में एक मंत्री है. पैसे और ताकत के दम पर लोगों को अपने कण्ट्रोल में रखने की तसल्ली उनके चेहरे पर साफ़ देखी जा सकती है. एक बहुत ही खतरनाक इंसान, जो बाहर से दिखने में बहुत ही शांत दिखाई देता है.
इशान भारती, जिसके इर्द-गिर्द पूरी कहानी घूमती रहती है. यह किरदार निभाया है तुषार पाण्डेय ने. तुषार पाण्डेय इससे पहले ‘पिंक’, ‘फैंटम’, ‘छिछोरे’ जैसी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं. इस कहानी में वो एक एक्टिविस्ट नौजवान के रूप में दिखाई दे रहे हैं. शोषित और पिछड़े लोगों की आवाज़ उठाने के लिए ईशान नुक्कड़ नाटकों में भी हिस्सा लेता है. वो समाज में बढती असमानता को लेकर चिंतित रहता है और यही कारण है कि वो सत्ता पक्ष की आंखों में खटक रहा है और रेबेल्स उसे अपने मकसद के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं. यह कह सकते हैं कि ‘लॉस्ट’ की कहानी ईशान की ही कहानी है. ईशान लॉस्ट हो चुके हैं और उन्हें ढूंढा जा रहा है इसलिए उनका स्क्रीन स्पेस काफी कम है. इसके बावजूद उन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. अब ईशान मिल पाता है या नहीं? वो जिंदा है या बच गया? यह जानने के लिए आपको ‘लॉस्ट’ देखनी पड़ेगी.
इसके लावा फिल्म के बाकी किरदार, जैसे, ईशान का परिवार, विधी के माता-पिता, ईशान की गर्लफ्रेंड, पुलिस अफसर और कांस्टेबल सबने अपने-अपने किरदार और स्क्रीन स्पेस के हिसाब से ठीक-ठाक अभिनय किया है.
फिल्म की कहानी के अलावा जो एक चीज़ बांधकर रखने में मदद करती है, वो है कलकत्ता की सडकें और संकरी गलियां. नवीन केंकरे के प्रॉडक्शन डिज़ाइन का इसमें बड़ा योगदान है. ओवरआल हमें फिल्म देखने लायक लगी है. जिन्होंने अब तक नहीं देखी वो देख सकते हैं.
वीडियो: कार्तिक आर्यन की 'शहज़ादा’ का ‘Ant man-3’ के सामने ये हाल हुआ