Shahrukh Khan की Jawan सिनेमाघरों में धुआं उठा रही है. पब्लिक ने फिल्म को तकरीबन स्वीकार्यता दे दी है. रविवार तक फिल्म की कमाई की क्या रहती है, उससे ये चीज़ बेहतर साफ हो पाएगी. मगर ओवरऑल इसे ठीक-ठाक एंटरटेनर फिल्म बताया जा रहा है. फिल्म का लल्लनटॉप रिव्यू आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं. मगर क्या 'जवान' वैसी खामीप्रूफ फिल्म है, जैसी बताई जा रही है. इस सवाल का जवाब है- नहीं. हम आपको बता रहे हैं वो 4 वजहें, जिनकी वजह से 'जवान' आपको निराश कर सकती है.
शाहरुख खान की 'जवान' नहीं देखने की 4 मुख्य वजहें
'जवान' आपको सालों पुराने घिसे-पीटे फ़ॉर्मूले से इतर कुछ नया नहीं देती. खासकर विचार के स्तर पर.
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**Spoilers Ahead**
1) सालों पुराना घिसा-पिटा, रूटीन सिनेमा
'जवान' एक एंटरटेनिंग फिल्म है. हालांकि अगर आप ये पूछेंगे कि इस फिल्म में क्या नया देखने को मिला, तो उसका जवाब गड्डमड्ड मिलेगा. कोई कहेगा शाहरुख खान को ऐसे कभी नहीं देखा. इस तरह का एक्शन नहीं देखा होगा. मगर वैचारिक स्तर पर ये फिल्म कुछ भी ऐसा नहीं देती, जो आपको सोचने पर मजबूर करे. एक हीरो है, जो अपने बाप के सिर से देशद्रोह का दाग धोना चाहता है. इस स्टोरीलाइन पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. ऐसे में 'जवान' उसे हल्का सा ट्वीक कर देती है. कुछ लोग ये भी कहेंगे कि फिल्म देश की राजनीतिक स्थिति पर टिप्पणी करती है. सामाजिक मसलों पर बात करती है. इसका जवाब आप नीचे पाएंगे.
2) सामाजिक मसलों को बेचने की कोशिश
'जवान' के बारे में कहा जा रहा है कि ये शाहरुख खान के करियर की सबसे मजबूत पॉलिटिकल फिल्मों में से एक है. क्योंकि ये फिल्म देश की राजनीतिक व्यवस्था पर कमेंट करती है. साथ ही किसानों के कर्जे़ और उस वजह से किए जाने वाली आत्महत्याओं के बारे में बात करती है. भ्रष्टाचार पर कटाक्ष करती है. चुनावों के साथ होने वाले छेड़छाड़ के मुद्दे को उठाती है. बिल्कुल ठीक बात है. मगर फिल्म इन्हें सिर्फ सिनेमैटिक टूल्स की तरह इस्तेमाल करती है. दर्शकों को बहलाकर अपने पक्ष में खड़ा करने के लिए. इस फिल्म का मक़सद कमाई है. इसके लिए उसे जो करना पड़े, वो सबकुछ करने को तैयार रहती है.
3) महिला किरदारों का सतही ट्रीटमेंट
शाहरुख खान 'जवान' को महिला केंद्रित फिल्म कहकर प्रमोट कर रहे थे. मगर फिल्म में फीमेल कैरेक्टर्स को ढंग से एक डायलॉग तक बोलने का मौका नहीं दिया गया है. नयनतारा को छोड़कर. नयनतारा को थोड़ा स्क्रीन स्पेस मिला है. वो इसलिए क्योंकि वो फिल्म की हीरोइन हैं. प्लस साउथ में उन्हें लेडी सुपरस्टार के तौर पर जाना जाता है. उनके नाम से पिक्चरें चलती हैं. बाकी जितनी भी महिला किरदार हैं, उनकी बैकस्टोरी का इस्तेमाल फिल्म के लिए सब-प्लॉट्स तैयार करने में किया गया है. मगर रियल टाइम में उन्हें बमुश्किल ही एक प्रॉपर डायलॉग बोलने का मौका दिया गया है. और ये बात मैं अतिशयोक्ति अलंकार के बिना कह रहा हूं. 'जवान' में प्रियमणि, सान्या मल्होत्रा, लहर खान, गिरिजा ओक, आलिया कुरैशी और रिधि डोगरा जैसी एक्टर्स ने काम किया है.
4) विजय सेतुपति- फिल्म का कमज़ोर विलन
भारतीय सिनेमा के बारे में कहा जाता है कि हमारी फिल्मों के विलन मजबूत होते हैं. इसीलिए हीरो निखरकर और शक्तिशाली किरदार के तौर पर सामने आता है. 'जवान' के पास काली जैसा विलन था, जिसे विजय सेतुपति जैसे तगड़े एक्टर ने प्ले किया है. मगर फिल्म में विजय के किरदार को बस इसलिए रखा गया क्योंकि फिल्म में विलन होने चाहिए. ताकि वो हीरो के हाथों मार खा सके. हार सके. विजय सेतुपति को फिल्म में फिलर की तरह इस्तेमाल किया गया है. उन्हें खुलकर परफॉर्म करने का बिल्कुल स्कोप नहीं दिया गया है. विजय सेतुपति देश के सबसे क्रिटिकली अक्लेम्ड एक्टर्स में गिने जाते हैं. अगर उन्हें 'जवान' में थोड़ा और खुलने दिया जाता, तो शायद फिल्म अलग लेवल पर जा सकती थी. मगर दो-दो शाहरुख खान के बीच विजय सेतुपति क्या, किसी एक्टर के लिए फिल्म में कोई जगह ही नहीं बचती.
ये हमारी राय है. आप इससे सहमत-असहमत हो सकते हैं. आप क्या सोचते हैं, वो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं. बाकी 'जवान' टिकट खिड़की पर डंका बजा रही है. पैसा कमा रही है. हम जब तक ऐसी फिल्मों को ये कहकर डिफेंड करना बंद नहीं करेंगे कि ये तो सुपरस्टार्स की फिल्में हैं, मासी सिनेमा है, तक हमें इसी तरह की फिल्में देखने को मिलती रहेंगी. जो हमें विचारशून्य बनाए रखेंगी. इसी तरह की फिल्में देखने का आदि बनाए रखेंगी.
वीडियो: शाहरुख खान स्टारर जवान, एडवांस बुकिंग और स्क्रीन काउन्ट के मुताबिक इतने पैसे कमा सकती है