1.इमरजेंसी के विरोध में ब्लैंक छोड़ा संपादकीय
इंडियन एक्सप्रेस ने इमरजेंसी के विरोध में खाली छोड़ दिया था एडिटोरियल.
गोयनका की जीवनी 'रामनाथ गोयनका-ए लाइफ़ इन ब्लैक एंड वाइट' लिखने वाली अनन्या गोयनका ने बीबीसी को बताया कि किसी भी अखबार को चलाने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी होता है विज्ञापन. 1975 से 1977 तक लगी इमरजेंसी के वक्त इंडियन एक्सप्रेस को दिए जाने वाले सारे विज्ञापन बंद कर दिए गए थे. अखबार छपने के समय वो प्रिटिंग प्रेस की बत्ती काट दिया करते थे. इस वजह से अखबार समय से लोगों के पास नहीं पहुंच पाता था. इसके बाद गोयनका पर अखबार का संपादक बदलने का दबाव बनाया जाने लगा. फिर उन्होंने सेंसरशिप लगवा दी लेकिन गोयनका ने सरकार की बात नहीं मानी. बल्कि सेंसर किए गए एडिटोरियल की जगह को खाली छोड़ दिया. अखबारी दुनिया में पहले कभी इस तरह का विरोध नहीं किया गया था.
इमरजेंसी के बाद जब पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो उसके प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई. उन्होंने एक बार कहा कि हम राजनीतिज्ञों की तुलना में रामनाथ जी की इमरजेंसी की लड़ाई कहीं अधिक नाजुक, निर्णायक और महत्वपूर्ण थी.
2. नेहरू के कहने पर फिरोज को नौकरी दी, फिर निकाला
जवाहरलाल नेहरू से गोयनका के अच्छे संबंध थे.
इस बात की लोगों को जानकारी कम है कि जवाहरलाल नेहरू के इशारे पर रामनाथ गोयनका ने उनके दामाद फिरोज गांधी को अपने अखबार में जनरल मैनेजर की नौकरी दे दी थी. मगर फिर इंदिरा गांधी ने टंगड़ी फंसा दी. दरअसल, इंदिरा और फिरोज के संबंध ठीक नहीं चल रहे थे. जब फिरोज को नौकरी देने की बात इंदिरा तक पहुंची तो एक दिन उन्होंने उस वक्त नेहरू के सचिव मथाई को बोलकर गोयनका को बुलवा लिया. साथ ही इशारों-इशारों में उनसे कह दिया कि फिरोज को नौकरी पर न रखा जाए. हुआ भी यही. उन्होंने फिरोज का नियुक्ति पत्र रद्द कर दिया. कुछ दिन बाद जब गोयनका नेहरू से मिले तो उन्होंने उनसे बात तक नहीं की पर गोयनका इंदिरा वाली बात नेहरू को नहीं बता पाए और नाराज़गी मोल ली.
3. संजय गांधी की मौत पर इंदिरा को लिखी चिट्ठी
जब संजय गांधी की मौत हुई तो उन्होंने इंदिरा गांधी से टकराव की बातें भुलाकर उन्हें एक पत्र लिखा. अपने अखबार के पहले पन्ने पर खुद एक संपादकीय भी लिखा. बाद में उन्होंने इंदिरा गांधी को फ़ोन कर भी अपना शोक प्रकट किया. रेणु शर्मा बताती हैं, 'एक बार इंदिरा गांधी ने उन्हें रात्रि भोज पर बुलाया. मेरे पास ही प्रधानमंत्री निवास से फ़ोन आया. उस समय इनके इंदिरा के साथ बहुत खराब संबंध चल रहे थे. मैंने जाकर कहा कि दादाजी आपकी गर्लफ्रेंड का फ़ोन आया है. आपको खाने पर बुलाया है. वो बोले तूने ग़लत सुना होगा. बात करो दोबारा कहीं डंकन वाले गोयनका को तो नहीं बुलाया. मैंने प्रधानमंत्री निवास फ़ोनकर दोबारा पूछा तो गोयनका को बुलाने की बात कन्फर्म हुई. ये बात सुनते ही गोयनका बहुत खुश हो गए और मज़ाक में बोले लगता है वो दोबारा गर्लफ्रेंड बनने की कोशिश कर रही है. वो इंदिरा गांधी के यहां भोज पर गए. उन्होंने उन्हें खाने की मेज़ पर अपने बगल में बैठाया और वो सब चीज़ें परोसीं जो गोयनका को पसंद थीं.'
संजय गांधी की मौत पर इंडियन एक्सप्रेस की कवरेज.
4. खुद की फोटो छपवाना बिल्कुल नहीं पसंद था
जेपी यानी जयप्रकाश नारायन अमेरिका से गुर्दों का इलाज करवा के लौटे थे. बंबई हवाई अड्डे पर वो उतरे तो रामनाथ गोयनका उन्हें व्हीलचेयर पर बैठाकर लाउंज की तरफ ला रहे थे. प्रेस फोटोग्राफरों ने फोटो खींचनी शुरू कर दी. इंडियन एक्सप्रेस के फोटोग्राफर ने भी गोयनका के साथ ही जेपी के स्वदेश लौटने फोटो खींची. छपी भी यही. अब चर्चा होने लगी कि फोटोग्राफर की खैर नहीं. दरअसल गोयनका को उनकी फोटो अखबार में छपना कतई पसंद नहीं था. हालांकि उन्हें बता दिया गया कि जो छपा, वही सबसे अच्छी फोटो थी. और किसी एंगल से फोटो नहीं ली जा सकती थी. इस पर वो ज्यादा नाराज़ तो नहीं हुए. फिर भी उन्होंने कहा कि उनकी नाराज़गी फोटोग्राफर और संपादक को बता दी जाए.
5. खुद के खिलाफ़ की खबरें को भी फ्रंट पेज पर जगह दी
इमरजेंसी के वक्त गोयनका लोकसभा के सदस्य थे. पीएम इंदिरा गांधी और उनकी सरकार गोयनका को चारों तरफ से घेरने में लगी थी. संसद में उन पर तो बाहर उनके अखबार पर हर तरह का दबाव बनाया जा रहा था. इसके बावजूद वो डटे रहे. चाहते तो अपने अखबार का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकते थे पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. यहां तक कि उस समय एक्सप्रेस के संपादक के जरिए उन्होंने कहलवा रखा था कि उनके खिलाफ संसद में जो भी कहा या किया जाए उसे पहले पेज पर छापा जाए. उनके बचाव या उनकी मदद करने के लिए आई खबरों को अंदर के पन्नों पर छापा जा सकता है. एक्सप्रेस के संपादक उस समय मुलगावकर थे जो हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक होते हुए एक मुकदमे की खबर अपने ही अखबार में पहले पेज पर छाप चुके थे. सो उन्होंने इसका बखूबी पालन किया.
रामनाथ गोयनका प्रेस के अधिकारों की लड़ाई में हमेशा आगे रहे.
6.जितने कंजूस, उतने ही दरियादिल थे गोयनका
गोयनका को फिजूलखर्ची बिल्कुल नहीं पसंद थी. गोयनका पर किताब लिखने वाली अनन्या गोयनका ने बीबीसी को बताया कि, 'एक बार मुंबई के उनके पेंटहाउस में कई मेहमान ठहरे हुए थे. इसलिए मुंबई के दौरे पर गए उनके दोस्त और जनसत्ता के संपादक प्रभाष जोशी ने ठहरने के लिए ओबेरॉय होटल में एक कमरा ले लिया. जैसे ही गोयनका को इसके बारे में पता चला, उन्होंने प्रभाष जोशी से कहा कि वो होटल से तुरंत चेक आउट कर लें. उन्होंने अपने खुद के कमरे में एक फोल्डिंग पलंग डलवाया और उस पर प्रभाष जोशी को सुलवाया.' इसी तरह बहुत ही दरियादिल भी थे. जब एक्सप्रेस की इमारत बन रही थी तो उन्होंने आदेश दिया था कि रोज एक बोरी आलू खरीदा जाए और उसकी पूड़ी सब्जी बनवाकर मजदूरों के बच्चों को खिलाया जाए.'
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