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वो कौन-सी 'रामायण' मूवी है, जिसे आदिपुरुष से बेस्ट बताया जा रहा है?

इस फिल्म का ज़िक्र नरेंद्र मोदी भी 'मन की बात' में कर चुके हैं.

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उस फ़िल्म का रावण जिसे आदिपुरुष से बेहतर बताया जा रहा और आदिपुरुष का रावण (बाएं से दाएं)

प्रभास की 'आदिपुरुष' से लोगों को बहुत उम्मीद थी. पर सरयू के किनारे 'आदिपुरुष' का टीज़र लॉन्च हुआ और सोशल मीडिया पर बवाल कट गया. इसलिए नहीं कि टीज़र बहुत तगड़ा है. लोग प्रशंसा कर रहे हैं. बल्कि ठीक इसका उल्टा हो रहा है. फ़िल्म को कार्टून टाइप के VFX बताए जा रहे हैं. लोग रावण और हनुमान के लुक को लेकर मीम शेयर कर रहे हैं. कह रहे हैं रावण में लाख बुराइयां थीं, पर कार्टून टाइप विजुअल नहीं बनाए. 

रावण और राम क रोल में सैफ और प्रभास

इसके अलग-अलग सीक्वेंसेज को कॉपीड बताया जा रहा है. टेंपल रन से लेकर गेम ऑफ थ्रोन्स तक लोगों ने इसकी तुलना कर डाली. सबसे ज़्यादा जिस बात से जनता निराश है, वो है इसके विजुअल इफ़ेक्ट्स. लोग कह रहे हैं, 'आदिपुरुष' के टीज़र से कई गुना अच्छी तो 'रामायण: द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ थी. जबकि वो 1993 में आई थी. उसे बीट कर पाना मुश्किल है. भारत और जापान ने मिलकर इस फिल्म को बनाया था. ‘आदिपुरुष’ के टीज़र आने के बाद इस फिल्म को भी लगातार याद किया जा रहा है. लोग कह रहे हैं कि इतने साल पहले आई फिल्म की एनिमेशन क्वालिटी अच्छी थी. और अब कुछ भी बन रहा है.

 'रामायण: द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ फ़िल्म का एक दृश्य जिसमें राम सेतु पार कर रहे हैं

"जापानी डायरेक्टर युगो साको (Yugo Sako) को रामायण के बारे में 1983 में पता चला. उनको इसकी कहानी भा गई. इसके बाद युगो ने भयंकर रिसर्च करनी शुरू की. जापानी भाषा में उपलब्ध रामायण के कम से कम 10 वर्जन पढ़ डाले. फिर उन्होंने इसको एनिमेट करने की ठानी. इसमें उनकी भारतीय एनिमेटर्स ने भी मदद की. उन्होंने युगो को भारतीय परंपराओं और संस्कृति से परिचित कराया. जो कि फ़िल्म में दिखता भी है."

ये शब्द थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के. जो उन्होंने ‘मन की बात’ में कहे थे. दरअसल इस बरस जापान और भारत कूटनीतिक संबंधों के 70 साल मना रहे हैं. इसी सिलसिले में पीएम मोदी जापान में टेम प्रोडक्शन कंपनी के दो प्रोड्यूसर्स से मिले थे. जो 1993 में आई एनिमे फ़िल्म 'रामायण: द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ से जुड़ी हुई थी. 'रामायण: द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’ को 4k में इस बरस दोबारा भारतीय थिएटर्स में रिलीज किया गया. ये पहली बार थिएटर में भारत में रिलीज़ हो रही है. 1992-93 के आसपास इसे अमेरिका और जापान में रिलीज़ किया था. पर उस समय भारत में रामजन्मभूमि वाला मसला चल रहा था. जिस कारण विश्व हिन्दू परिषद जैसे और कई संगठनों ने इसका कार्टून वर्जन रिलीज करने पर आपत्ति जताई थी. हालांकि बाद में कार्टून नेटवर्क ऑफ इंडिया ने इसके राइट्स खरीदकर इसे टीवी पर रिलीज़ किया. जिसे खूब सराहा गया.

फ़िल्म में भगवान राम और माता सीता 
क्या है 'रामायण: द लीजेंड ऑफ प्रिंस राम’

युगो साको पहली बार 1970 में भारत आए. उसके बाद से उन्होंने भारत से जुड़ी कई डॉक्यूमेंट्रीज़ बनाईं. फिर 1983 में वो डॉक्यूमेंट्री 'The Ramayan Relics' बनाने भारत आए. जो कि इलाहाबाद के पास हो रही पुरातत्व संबंधी खुदाई से जुड़ी हुई थी. उसी दौरान उनका परिचय राम से हुआ. महाकाव्य रामायण से हुआ. वो राम की कहानी, बुराई की अच्छाई पर विजय से बहुत प्रभावित हुए. जैसे-जैसे उनका शोध आगे बढ़ता गया, उन्हें ये एक मिथक से कहीं ज़्यादा लगने लगी. उन्हें इसमें जीवन दर्शन और ऐतिहासिक तत्व दिखे. इसके बाद उन्होंने वाल्मीकि रामायण के 10 वर्जन पढ़े. हालांकि उनका बैकग्राउन्ड एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर का था. फिर भी उन्होंने भारत के कोलैबोरेशन से एक एनिमेशन फ़िल्म बनाने की ठानी. उनका मानना था, राम एक भगवान हैं. ऐसे में मुझे लगता है कि कोई ऐक्टर उनका रोल करे, इससे बेहतर है इसे एनिमेट किया जाए. 

फ़िल्म में लक्ष्मण की जान बचाने के लिए पूरा पर्वत उठाकर ले जाते हनुमान

साको ने इसके बाद महीनों इसके नरेटिव पर काम किया. किरदारों के कपड़ों पर रिसर्च की. रामकालीन आर्किटेक्चर पर काम किया. इसके लिए वो कई पुरातत्वविदों, शिक्षाशास्त्रियों और इतिहासकारों से मिले. वो विदेशी होने के नाते इस मामले में और अधिक सतर्क रहना चाहते थे कि ये बढ़िया बने. भारतीयों की धार्मिक भावनाओं को किसी तरह से आहत ना करे.  इसकी एनिमेशन टेक्निक में भारत और जापान का मेल है. जापानी स्कूल ऑफ एनिमेशन Manga और भारतीय क्लासिकल पेंटिंग को मिलाकर इसके किरदारों को गढ़ा गया था. इसमें साको की मदद भारतीय एनिमेटर राम मोहन ने की थी.

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