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मूवी रिव्यू: PS-1

PS-1 को देखकर बहुत लोगों को सीखना चाहिए कि लार्जर दैन लाइफ कहानी सुनाने के लिए हमेशा चिल्लाने की ज़रूरत नहीं है.

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फिल्म सिर्फ पुरुषों को फुटेज देने में इच्छुक नहीं.

‘पोन्नियिन सेलवन’ अपने यहां का ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ नहीं है. बल्कि ‘गेम ऑफ थ्रोन्स’ इंग्लिश ‘पोन्नियिन सेलवन’ है. मणि रत्नम ने अपने एक इंटरव्यू में ‘पोन्नियिन सेलवन’ के लिए ऐसा कहा था. मैंने फिल्म देखी. और उनकी ये बात क्यों बिल्कुल सही लगती है. 

फिल्म खुलती है और हम मिलते हैं चोल साम्राज्य से. राजा सुंदर चोल के तीन बच्चे हैं. आदित्य करिकालन, कुंदवई और सबसे छोटा बेटा अरुणमोली वर्मन. इनके रोल निभाए हैं चियां विक्रम, तृषा कृष्णन और जयम रवि ने. चोल साम्राज्य प्रगति पर है. विकास हो रहा है. प्रजा खुश है. लेकिन फिर कुछ लोग हैं जो अंदर ही अंदर षड़यंत्र रच रहे हैं. ये कोई बाहरी नहीं. बल्कि चोल वंश के विश्वसनीय लोगों में से हैं. आदित्य को इसकी खबर लग जाती है. ये सच है या नहीं, और इसमें कौन-कौन शामिल हैं. यही पता करने के लिए वो अपने दोस्त वंदीतेवन को एक सफर पर भेजता है. ये रोल निभाया है कार्ति ने.  

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विक्रम का स्क्रीन टाइम कम है. लेकिन इम्पैक्ट उतना ही ज़्यादा है. 

वंदीतेवन के इसी सफर में हम बाकी किरदारों से मिलते हैं. उनकी मंशा, उनकी राजनीति से परिचित होते हैं. फिल्म क्रिटिक भारद्वाज रंगन ने मणि रत्नम पर कुछ लिखा था. कि वो ऐसे फिल्ममेकर हैं जिन्हें कमर्शियल और बाकी फिल्मों के बीच की लाइन पर चलना आता है. मणि रत्नम फालतू के आडंबरों से आपका ध्यान ‘PS-1’ की ओर नहीं खींचना चाहते. धम-धम करता म्यूज़िक नहीं चलता. गैर ज़रूरी रूप से किरदारों को लार्जर दैन लाइफ नहीं बनाया जाता है. राजा, महाराजा और रानियां, ये आम इंसानों में हर समय भले ही नहीं घूमते, फिर भी अपनी ज़िम्मेदारियों, अपने पदों के बोझ के नीचे ये हैं तो इंसान हीं. फिल्म की लिखाई उन्हें मानवीय स्तर पर ब्रेक करती है. 

बहुत सारी बड़े स्केल की फिल्मों से मेरी एक शिकायत रहती है. कि वो म्यूज़िक, ग्रांड विज़ुअल्स की आड़ में अपनी राइटिंग का दोष छुपाने की कोशिश करते हैं. PS-1 ऐसा नहीं करना चाहती. क्योंकि यहां सबसे ज़रूरी एलिमेन्ट ही राइटिंग है. वो फिल्म को उठाती है. और बाकी के फैक्टर बस आगे आकर फिल्म को एक अच्छे एक्स्पीरियेंस में तब्दील करते हैं. इसलिए अगर आप हो-हल्ले की तलाश में फिल्म देखने जाएंगे तो ज़्यादा खुश नहीं होंगे. ‘पोन्नियिन सेलवन’ को दो पार्ट्स में बनाया जाएगा. उस लिहाज़ से ये पार्ट कहानी और किरदारों को सेटअप करने का काम करता है. शुरुआत में कई सारे किरदार और राज्यों के नाम आने से कन्फ्यूजन होता है. लेकिन सेकंड हाफ तक सब क्लियर हो जाता है. 

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कार्ति का कैरेक्टर फिल्म को उसका ह्यूमर देता है.  

राजा यहां भले ही सिंहासन पर बैठे, लेकिन फिल्म उन्हें वहां तक पहुंचाने वाली रानियों को नहीं भूलती. यहां दो किरदार उस लिहाज़ से खास हैं. ऐश्वर्या राय का किरदार नंदिनी और तृषा का किरदार कुंदवई. नंदिनी एक बहुत सुंदर औरत है. बाकी दुनिया उसे ये बात याद दिलाए, उससे पहले वो खुद इससे परिचित है. उसे अपने मतलब के लिए इस्तेमाल भी करती है. इस कदर कि वो चालबाज़ लगती है. फूहड़ नहीं. इतने सारे पुरुष किरदारों के बीच नंदिनी मेरे लिए हाइलाइट थी. इसमें जितना क्रेडिट मणि रत्नम का है, उतना ही ऐश्वर्या राय का. फिल्म जिस नोट पर खत्म होती है, उसके बाद मैं ये जानने के लिए उत्सुक हूं कि नंदिनी आगे क्या करेगी. 

कुंदवई आदित्य और ‘पोन्नियिन सेलवन’ अरुणमोली की बहन है. दो इतने बड़े राजकुमारों के बीच उसकी पहचान दबती या छुपती नहीं. चोल साम्राज्य के खिलाफ षड़यंत्र करने वाले जानते हैं कि उन्हें आदित्य और अरुणमोली से ज़्यादा खतरा कुंदवई से है. कुंदवई अपने हावभाव में वो शालीनता रखती है. लेकिन मूर्ख नहीं कि कोई भी इधर-उधर घुमा दे. तृषा इस किरदार को उसकी ग्रेस और चतुराई दोनों देने में कामयाब होती हैं. राजनीति और रक्तपात के बीच फिल्म को ह्यूमर देने का काम किया कार्ति के कैरेक्टर वंदीतेवन ने. 

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नंदिनी के रोल में ऐश्वर्या राय स्पॉटलाइट ले जाती हैं. 

वंदीतेवन सीरियस रहने वाला योद्धा नहीं. शराब पीता है. लड़कियों से फ्लर्ट करता है. थोड़ा अय्याश टाइप आदमी है. वो जब तलवार नहीं चलाता, तब अपनी ज़बान चलाता है. कुल मिलाकर वंदीतेवन बने कार्ति आपको एंटरटेन करते हैं. अरुणमोली बने जयम रवि से हम सेकंड हाफ में मिलते हैं. इस पार्ट में उनके किरदार को ज़्यादा एक्सप्लोर नहीं किया गया. फिर आते हैं चियां विक्रम. बाकी किरदारों के मुकाबले उनकी स्क्रीन प्रेज़ेंस कम है. लेकिन उनका किरदार उतना ही ज़्यादा इम्पैक्ट पैदा करने वाला है. वो जैसा भी है, फिल्म उसके पीछे की मज़बूत वजह को जगह देती है. ऊपर से महान, समृद्ध दिखने वाले महावीर को अंदर से कुछ खा रहा है. 

जितने भी सीन मिले, उनमें विक्रम अपने किरदार की कुंठा, उसके गुस्से को बाहर ला पाने में कामयाब रहते हैं. कई बार अपने मुंह से. तो कई बार अपनी आंखों से. PS-1 में मणि रत्नम के पुराने साथी रवि वर्मन भी थे. उन्होंने मणि रत्नम की काफी फिल्मों पर बतौर सिनेमैटोग्राफर काम किया है. दोनों ने मिलकर ऐसा फिल्मांकन किया है कि सादगी में भव्यता खोज लाए हों. उन्हें अपनी फिल्म के ग्रांडनेस को दिखाने के लिए हमेशा विशालकाय सेट्स की ज़रूरत नहीं पड़ती. एका लखानी ने फिल्म के लिए कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग का काम किया है. रानियों की सुंदर साड़ियों से लेकर योद्धाओं के कवच तक उनका बढ़िया काम नज़र आएगा. 

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फिल्म के क्लाइमैक्स में कार्ति और जयम रवि. 

फिर आता है ए आर रहमान का म्यूज़िक. अच्छे म्यूज़िक को अपनी मौजूदगी महसूस करवाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. वो बस नेरेटिव को आगे लिए जाता है. यहां रहमान का ऐसा ही काम है. फिल्म की तमाम तारीफ़ों के बीच कुछ खामियां छूट गई. जैसे राइटिंग में कुछ जगह गैप रह जाते हैं. किसी किरदार को कैसे पता चला कि फलां-फलां होने वाला है. फिल्म कुछ पॉइंट्स पर इनका जवाब नहीं देती. लेकिन ये इतने गहरे नहीं कि आपका एक्स्पीरियेंस बिगड़े. बाकी PS-1 अपनी कहानी की गरिमा को बरकरार रखते हुए, बिना शोर मचाए जो दिखाना चाहती है, वो दिखा पाने में कामयाब साबित होती है.      

वीडियो: मूवी रिव्यू - धोखा