The Lallantop

'फुले' विवाद पर बोले फिल्म के एक्टर प्रतीक गांधी ने- "ये थी हमारी सबसे बड़ी ग़लती"

Phule वाले एक्टर Pratik Gandhi और डायरेक्टर Anant Mahadevan ने भगवान राम और भगवान कृष्ण के किस्से सुनाते हुए Social Hypocrisy पर बात की.

post-main-image
'फुले' में सेंसर बोर्ड ने करवाए थे 12 बदलाव. इसके चलते फिल्म 11 के बजाय 25 अप्रैल को रिलीज़ हुई.

समाज सुधारक Jyotiba Phule और उनकी पत्नी Savitribai Phule के जीवन पर बनी फिल्म Phule आज सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है. मगर फिल्म की रिलीज़ से पहले फिल्म को सेंसर बोर्ड से कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. जिसको लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया. Anurag Kashyap ने भी सेंसर बोर्ड के फैसलों पर सवाल उठाए. हाल ही में फिल्म के लीड एक्टर Pratik Gandhi और डायरेक्टर Anant Mahadevan, The Lallantop के ख़ास कार्यक्रम Cinema Adda में आए. यहां उन्होंने फिल्म पर तो बात की ही, साथ ही समाज के उन ज्वलंत सवालों की तरफ़ भी इशारा किया, जो सालों से अनुत्तरित हैं. 

इस बातचीत में प्रतीक ने बताया कि आखिर ऐसी क्या ग़लती हुई उनसे, जो जाति से जुड़ा ये सारा प्रपंच हुआ. उन्होंने कहा,  

“हमारी सबसे बड़ी ग़लती ये है कि हमने अपने बड़े-बूढ़ों से सवाल नहीं पूछे. हमारे घर पर भी थे बड़े-बूढ़े, जो बताते थे कि ये करना है, ये नहीं करना है. मैंने सवाल पूछा कि ऐसा क्यों है? जवाब मिला ऐसा ही है. हमने कभी हमारे बड़े-बूढों को सवाल नहीं पूछे. अगर आप सवाल पूछ रहे हो, तो आप बेअदबी कर रहे हो. घर के बड़े कहते थे स्वच्छता के लिए भी हम सोचते हैं ऐसा. घर के बड़े कहते कि इन लोगों का काम ऐसा है कि उन्हें ऐसी जगहों पर काम करना पड़ता है. अगर वो डायरेक्ट वहां से आते हों, तो आप दूरी बना कर रखो. इस चीज़ को बहुत बेचा गया है सालों से. इस हद तक कि ये चीज़ें नॉर्मल हो चुकी थीं. बच्चों को एक ही बात बार-बार बोलो, तो वो उसे ही सही मान लेते हैं. बचपन से जो बच्चे अपने पैरेंट्स को देख रहे हैं कि चॉकलेट खाई और रैपर ऐसे ही फेंक दिया, तो बड़े होकर एक दिन अचानक आप उनसे कहेंगे कि कचरा, कचरापेटी में फेंक दो, तो उनको लगता है ऐसा क्या ग़लत कर रहे हैं हम. हमने सालों से यही देखा है. ये लॉजिक बदलना बहुत कठिन है.”

कास्ट सिस्टम के बारे में अपनी बात खत्म करते हुए प्रतीक ने कहा,

"जितनी बार समानता का नाम लेकर कहा जाता है कि समानता है, उतनी बार मुझे पता चलता है कि समानता नहीं है."

डायरेक्टर अनंत महादेवन ने बताया कि फुले में उन्होंने इस जातिभेद की बात मज़बूती और मारकता के साथ की है. उन्होंने कहा,

"फिल्म में एक जगह ज्योतिबा अपने पिता से पूछ रहे हैं कि धर्म क्या है? पिता कहते हैं कि ये हमारे शास्त्रों में लिखा है. ज्योतिबा ने कहा- नहीं. शास्त्रों में ऐसा लिखा नहीं है. हमने ऐसा पढ़ा है. पढ़ाया है सबको. फिल्म में हमने ये बात बहुत मज़बूती से कही है."

शास्त्रों में भी कुछ लिखा गया है मगर यदि आज वो प्रासंगिक नहीं है, तो क्या उसे बदला जाना चाहिए? जवाब में महादेवन ने कहा,

"फिर तो कृष्ण सुदामा की बात भी मत मानो आप. कृष्ण ने सुदामा से दोस्ती की है. वो दूसरी जाति के थे. इस पर क्या कहोगे?"

इसी सवाल के जवाब में अनंत महादेवन की बात के आए कृष्ण प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए प्रतीक ने भगवान राम की मिसाल दी. उन्होंने कहा,

"जब हम इसमें रामायण का उदाहरण लेते हैं ना, कि भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे. वो बेर खाकर उन्होंने सबको ये चीज़ बता दी थी कि जातिभेद जैसा कुछ नहीं है. तो इस बात का जवाब ये आता है कि कि वो भगवान थे. वो कर सकते हैं. वहीं आप कहते हैं कि वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे. मनुष्य रूप था वो उनका. वो भगवान नहीं थे. तो विरोधाभास तो कई हैं. मतलब की चीजें निकाल लीं और अपने हिसाब से परोस दीं."

25 अप्रैल को रिलीज़ से पहले 'फुले' कई विवादों में आई. दरअसल ये 11 अप्रैल को रिलीज़ होने वाली थी मगर सेंसर बोर्ड के मुताबिक इसमें कई संवाद और शब्द ऐसे थे जो जिनसे सेंसर बोर्ड को दिक्कत थी. लिहाज़ा बोर्ड ने इन्हें हटाने को कहा. कुल 12 कट लगवाए गए. तब जाकर फिल्म रिलीज़ हो सकी. इसके डायरेक्टर अनंत नारायण महादेवन हैं, जो मशहूर एक्टर भी हैं. मगर मराठी फिल्म 'मी सिंधुताई सपकाळ' के लिए उन्हें बेस्ट स्क्रीनप्ले का नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है.

वीडियो: ज्योतिबा फुले पर बनी मूवी 'फुले' पर सेंसर बोर्ड ने कैंची चलाई तो अनुराग कश्यप ने जातिवाद पर क्या कह दिया?