साल 2003. Okkadu नाम की एक तेलुगु फिल्म रिलीज़ होती है. ये बीते ज़माने के स्टार कृष्णा के बेटे Mahesh की फिल्म थी. इस फिल्म के बाद वो Mahesh Babu बनने वाले थे. साल 1999 में बतौर लीड डेब्यू करने के बाद महेश बाबू को उस किस्म की कामयाबी नहीं मिल रही थी. उन्होंने लव स्टोरी की, फैमिली फिल्म की, काउबॉय ड्रामा किया, लेकिन कोई भी फिल्म उनके नाम के आगे सुपरस्टार नहीं जोड़ सकी. ‘ओक्काड़ू’ में महेश ने अजय नाम के लड़के का रोल किया था. वो कबड्डी खेलता है. पुलिस ऑफिसर बनना चाहता है. कबड्डी मैच के सिलसिले में कुरनूल जाता है.
कहानी 'पाताल भैरवी' की, वो तेलुगु फिल्म जिसकी नकल कर के महेश बाबू, राजामौली स्टार हो गए!
70 साल पहले आई Pathala Bhairavi की छाप Baahubali और Pushpa जैसी फिल्मों पर भी दिखती है.

वहां उसका सामना ओबुल रेड्डी से होता है. प्रकाश राज ने इस राक्षसनुमा विलेन का रोल किया था. ओबुल एक लड़की पर हमला कर रहा होता है और अजय उसे बचा लेता है. वो ओबुल से दुश्मनी मोल लेता है. एक पॉइंट पर अजय उसे इतना ज़ोर से मारता है कि वो सीधा ट्रांसफॉर्मर में जाकर भिड़ता है. ये सीन बीच-बीच में इंटरनेट पर उठता भी रहता है. अजय से बदला लेने के लिए ओबुल फिल्म की हीरोइन स्वप्ना को किडनैप कर लेता है. दूसरी ओर अजय को जेल में डाल दिया जाता है. अजय जेल में व्याकुल हो रहा है. उसे स्वप्ना के बारे में कुछ नहीं पता. यहां कहानी में मोड़ आता है. स्वप्ना, ओबुल को चुनौती देती है:
अगर तुम वाकई मुझसे शादी करना चाहते हो तो अजय से एक मर्द की तरह लड़ो. फिर मुझसे शादी करना.
स्वप्ना की ये बात ओबुल को चुभ जाती है. अहंकार में चूर वो अजय को जेल से निकालता है. ठानता है कि अजय को शादी के मंडप तक लेकर जाएगा, और स्वप्ना की आंखों के सामने उसे मारेगा. लेकिन बीच में प्लान बदल देता है. शादी के वेन्यू पर मारने की जगह अजय को किसी तीसरी जगह पर ले जाता है. यहां अजय उससे एक सवाल पूछता है,
क्या तुमने ‘पाताल भैरवी’ देखी है?
ओबुल जवाब में कहता है, ’10 बार’. यहां से कहानी के हीरो सब कुछ बदल देता है. विलेन को मारकर अपनी हीरोइन को ढूंढ लेता है. ‘ओक्काड़ू’ भयंकर हिट साबित हुई. कुरनूल के कई सिनेमाघरों में महीनों तक दौड़ती रही. हिन्दी और तमिल में इसे रीमेक भी किया गया. ‘ओक्काड़ू’ उस फॉर्मूले पर बनी थी जिसका ईजाद साल 1951 में आई ‘पाताल भैरवी’ ने किया था. लेकिन ये इकलौती फिल्म नहीं थी जो ‘पाताल भैरवी’ से प्रेरित हुई हो. कुछ साल आगे चलते हैं. एसएस राजामौली की मैग्नम ओपस फिल्म सीरीज़ ‘बाहुबली’ आती है.
मलयालम सिनेमा के मज़बूत डायरेक्टर अदूर गोपालाकृष्णन कहते हैं कि ‘बाहुबली’, ‘पाताल भैरवी’ की पैरडी है. तेलुगु सिनेमा पर केंद्रित किताब The Age of Heroes के राइटर मुकेश मंजुनाथ ने भी दोनों फिल्मों में समानता पाई. ‘बाहुबली’ के एक सीक्वेंस में प्रभास का किरदार शिवुडू महल में घुसने की कोशिश करता है. वो जिस चतुराई से महल में घुसता है, कैसे सैनिकों को चकमा देता है, ये पूरी सेटिंग ‘पाताल भैरवी’ से बहुत हद तक मिलती-जुलती है. फिल्म में शिवुडू की मां शिव से अपने बेटे के लिए प्रार्थना करती है. मनोकामना पूर्ण होने पर उसका नाम भगवान के नाम पर रख दिया है. ऐसा ही कुछ ‘पाताल भैरवी’ में भी था जहां मुख्य किरदार रामुडू की मां राम से प्रार्थना करती है.
‘बाहुबली’ में अलग-अलग जगह पर ‘पाताल भैरवी’ की छाप दिखती है. उसका इंफ्लूएंस दिखता है. मगर सवाल ये है कि 70 साल पहले आई फिल्म आज भी कैसे रेलेवेंट है. हिट खोजने के लिए फिल्ममेकर्स आज भी ‘पाताल भैरवी’ की तरफ क्यों मुड़ रहे हैं. फिल्म की कहानी, उसका इम्पैक्ट, सब कुछ समझते हैं.
# तोटा रामुडू की कहानी
ये कहा जाता है कि ‘पाताल भैरवी’ पहली ब्लॉकबस्टर तेलुगु फिल्म है. साथ ही इसे पहली तेलुगु फोक फिल्म होने का भी दर्जा दिया जाता है. कहानी उज्जयनि में घटती है. हम एक मज़बूत कंधे वाले लड़के रामुडू से मिलते हैं. वो राजा के महल में बगीचे संभालने का काम करता है. इसलिए कुछ लोग उसे ‘तोटा रामुडू’ कहकर भी पुकारते हैं. बगीचे का तेलुगु शब्द तोटा होता है. रामुडू की नज़रें राजकुमारी इंदुमति से मिलती हैं. उसे प्यार हो जाता है. धीरे-धीरे इंदुमति को भी रामुडू से प्यार होने लगता है. इस दौरान रामुडू तमाम हीरो वाले काम करता है. इंदुमति को ज़हरीले सांप से बचाता है. इंदुमति के धूर्त मामा सुरसेना को ज़लील कर देता है. यहां तक हीरो-हीरोइन की लाइफ में सब अच्छा है.
लेकिन फिर एंट्री होती है नेपाल मंत्रीकुडु नाम के जादूगर की. उसकी विचित्र-सी दिखने वाली दाढ़ी में कई शक्तियां समाई हैं. मंत्रीकुडु, पाताल भैरवी की देवी को प्रसन्न करना चाहता है. ऐसा करने के सिर्फ दो रास्ते हैं – या तो अपने जैसे जादूगर की बलि दे, या फिर किसी हिम्मतवाले नौजवान की. अब वो उस नौजवान की खोज में निकल पड़ता है. इसी खोज में उसकी नज़र रामुडू पर पड़ती है. रामुडू चुपचाप राजा के महल में घुसने की कोशिश कर रहा होता है. मंत्रीकुडु को लगता है कि ऐसा साहसभरा काम करना हर किसी के बस की बात नहीं है. उधर रामुडू राजकुमारी के महल में पहुंच जाता है. पकड़ा भी जाता है. लेकिन राजा उसे सज़ा नहीं देता. बल्कि ‘गोलमाल 3’ के प्रेम चोपड़ा टाइप हरकत करता है. अटैची नहीं खुलती मगर रामुडू से कहता है कि इतना धन अर्जित करो ताकि मेरी बिटिया आराम से अपना जीवन बिता सके.

रामुडू का नया मिशन शुरू हो जाता है. धन कमाने के चक्कर में वो मंत्रीकुडु के जाल में फंस जाता है. वो एक ऐसी दुनिया में पहुंच जाता है जहां चट्टानें हवा की गति से उड़ रही हैं, खौलता कोयला ज़मीन पर बह रहा है. मगर रामुडू भी अपना हीरो है. हार नहीं मानता. बल्कि मंत्रीकुडु की बलि चढ़ा देता है. देवी प्रसन्न हो जाती हैं. मनचाहा वरदान मांगने को कहती है. वो धन मांगता है. उसे महल, संपत्ति सब कुछ मिलता है. मगर कहानी यहां खत्म नहीं होती.
‘रेड क्वीन’ बनकर इंदुमति का मामा मंत्रीकुडु को ज़िंदा कर देता है. मंत्रीकुडु राज्य में पहुंचकर इंदुमति को अगवा कर लेता है. उसे पाताल में छुपा देता है. रामुडू उसे ढूंढने की अनेक कोशिश करता है पर इंदुमति का कुछ पता नहीं लगता. तब झल्लाई हुई इंदुमति, मंत्रीकुडु को चुनौती देती है. कहती है एक मर्द की तरह रामुडू से लड़ो, फिर मुझसे विवाह करना. मंत्रीकुडु भले ही जादूगर रहा हो मगर था तो आदमी ही. अंदर की मेल ईगो कुलबुलाई. अब रामुडू और उसका सामना होता है. अपने दोस्त की मदद से रामुडू उसे हमेशा के लिए खत्म कर देता है. रामुडू और इंदुमति अपने राज्य में वापस लौट आते हैं. देवी उनसे एक और वरदान मांगने को कहती हैं. वो कहते हैं कि सिर्फ उज्जयनि के लोग ही नहीं, बल्कि इस कहानी को सुनने, पढ़ने और देखने वाले समस्त लोग सदा खुश रहें. इतना कहकर ‘जय पाताल भैरवी’ का नारा गूंजता है और पिक्चर समाप्त. परदे पर नारे रुके नहीं थे कि सिनेमाघरों की ऑडियंस भी उसमें जुड़ गई. कुछ ऐसा ही 25 साल बाद ‘जय संतोषी मां’ के केस में भी होने वाला था.
खैर के.वी. रेड्डी के निर्देशन में बनी ‘पाताल भैरवी’ बहुत बड़ी ब्लॉकबस्टर साबित हुई. 200 दिनों तक सिनेमाघरों के आगे हाउसफुल के बोर्ड टंगे रहे. रामुडू बने N.T. रामा राव को जनता के घरों तक ले गई. एक टिपिकल हीरो कैसा होना चाहिए, इस किरदार ने उसकी अमिट परिभाषा सेट कर दी थी. साथ ही कई ऐसे ट्रोप को जन्म दिया जो सालों-साल सिनेमा में चलने वाले थे. जैसे गरीब लड़का और अमीर लड़की की प्रेम कहानी. ‘पाताल भैरवी’ का क्रेज़ ऐसा था कि रिलीज़ के 34 साल बाद हिन्दी में इसका रीमेक बना. ‘पाताल भैरवी’ नाम की इस फिल्म में जितेंद्र, डिम्पल कपाड़िया और जयाप्रदा जैसे एक्टर्स थे. लेकिन ये फिल्म बिल्कुल भी नहीं चली.
# ये फिल्म रेलेवेंट क्यों हैं?
मुकेश मंजुनाथ अपनी किताब में ‘पाताल भैरवी’ के चलने का सबसे बड़ा कारण बताते हैं. वो लिखते हैं कि इससे पहले तेलुगु सिनेमा में धार्मिक फिल्मों का ट्रेंड था. आम जनता खुद को सिनेमा में नहीं खोज पा रही थी. फिर आता है रामुडू – एक ऐसा लड़का जो उनकी भाषा बोलता था, जो खुली बांह से सत्ता को ललकारने की हिम्मत रखता था. रामुडू ने दर्शाया कि भले ही आप किसी का बगीचा संभालने के लिए पैदा हुए हों मगर आप उस अवस्था में मरेंगे नहीं. आप खुद से ऊपर उठ सकते हैं. खुले घुंघराले बाल और सॉफ्ट इमेज वाला लड़का भी कहानी का नायक हो सकता है. ये ‘पाताल भैरवी’ की ही देन है जो आप तेलुगु हीरो को हैरान कर देने वाले काम करते देखते हैं. फिर चाहे वो एक मुक्के से दुश्मन को हवा में उड़ा देना हो, या अकेले पूरी फौज से लड़ना हो.

‘पाताल भैरवी’ ने तेलुगु सिनेमा को बहुत कुछ दिया लेकिन इनमें से सब कुछ अच्छा नहीं था. साल 2021 में अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा’ आई थी. बीते साल उसका सीक्वल आया जो सबसे कमाऊ फिल्मों में शुमार हुआ. पुष्पाराज के सामने उसका दुश्मन था राजस्थान से आया भंवर सिंह शेखावत. यहां भी मेकर्स ने हम और वो वाली लाइन ड्रॉ करने की कोशिश की. ये दिखाया कि भंवर सिंह खतरनाक विलेन हो सकता है. मगर सीक्वल में उसकी हरकतों के ज़रिए उसे नॉन-सीरियस बना दिया. कुछ ऐसा ही ‘पाताल भैरवी’ में भी हुआ. उस कहानी का विलन नेपाल मंत्रीकुडु था. वो नेपाल से आया जादूगर था. कई कलाओं में पारंगत था. लेकिन सही से तेलुगु नहीं बोल सकता था. अपनी ज़बान के बीच में हिन्दी-उर्दू के शब्द घुसा देता.
मुकेश मंजुनाथ इस सिलसिले में लिखते हैं,
ये ऐसा था जैसे डायरेक्टर के.वी. रेड्डी और राइटर पिंगाली नागेन्द्र राव सोच रहे हों, ‘इन आउटसाइडर लोगों के पास ताकत है जो हमारे पास नहीं, लेकिन क्या होगा अगर ये लोग वो शब्द नहीं बोल सकें जिन्हें पांच साल का बच्चा भी आसानी से बोल लेता है.
इस फिल्म में आउटसाइडर और इनसाइडर वाली बाइनरी खींची गई. अभी तक तेलुगु सिनेमा उसे भुनाने की कोशिश करता रहता है. इस पहलू के बावजूद ‘पाताल भैरवी’ इंडियन सिनेमा के लिए एक अहम फिल्म है. इसी फिल्म की बदौलत NTR द स्टार का जन्म हुआ, तकनीक और स्टोरीटेलिंग के स्तर पर सिनेमा ने दो कदम आगे बढ़ाए. इस फिल्म को आप अमेज़न प्राइम वीडियो पर देख सकते हैं.
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