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दीपिका के भगवा कपड़ों पर आहत हुए लोग नहीं जानते कि रंग किसी एक धर्म का नहीं होता

पिक्चर, गाने या फिर किसी भी आर्ट फॉर्म को जमकर लताड़िए, पर उसके लिए तर्क लेकर आइए. क्या विवेकानंद का देश इतना तर्कविहीन हो गया है?

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भगवा रंग ने बवाल काट रखा है

एक और बॉलीवुड फ़िल्म का बॉयकॉट शुरू हो गया है. एक और इसलिए क्योंकि इससे पहले हमने बॉयकॉट की झड़ी लगते देखी है. ‘ब्रह्मास्त्र’, ‘लाल सिंह चड्ढा’, ‘लाइगर’ और भी कई फ़िल्में. बॉलीवुड और बॉयकॉट का आजकल चोली दामन का साथ है. कोई बड़ी हिंदी फ़िल्म आ रही हो और किसी न किसी वजह से कॉन्ट्रोवर्सी न हो, ऐसा नहीं हो सकता. इस बार ये सौभाग्य प्राप्त हुआ है शाहरुख खान की अपकमिंग फ़िल्म ‘पठान’ को. इसके बॉयकॉट के कई मनगढ़ंत कारण हैं. इनमें से ‘बेशरम रंग’ अभी-अभी टपका है. 'बेशरम रंग' को नकारने के भी कई कारण हैं. गाना अच्छा नहीं है. गाने की धुन चोरी की है. गाना फूहड़ है. इस पर हमारे साथी श्वेतांक ने कई क़ायदे की स्टोरीज़ की हैं, आप पढ़ सकते हैं. मैं अपनी बात रखने से पहले ये साफ कर दूं: मुझे ना 'बेशरम रंग' गाना पसंद आया और ना ही इसका फ़िल्मांकन. पर इसके कारण क्रिएटिव है ना कि क्रिएटेड. अब आते हैं असली मुद्दे पर.

लोग कह रहे हैं कि दीपिका ने गाने में भगवा रंग के कपड़े पहने हैं और गाने का नाम रखा गया है 'बेशरम रंग'. एकतरफ शाहरुख खान वैष्णो देवी जा रहे हैं, दूसरी तरफ भगवा को बेशर्म रंग बताकर अश्लील दृश्य फिल्मा रहे हैं.

भाजपा नेता अरुण यादव ने शाहरुख को ऐड्रेस करते हुए ट्वीट किया:

पठान फ़िल्म में हक्ले ने हीरोइन को भगवा रंग की पोशाक पहनाई और गाने का नाम बेशरम रंग रख दिया #BoycottPathaan

हालांकि ये वही अरुण यादव हैं, जिन्होंने 21 जुलाई 2017 को लिखा था: 

'मुझे तो पेग में पैगंबर नजर आता है' 

इस पुराने ट्वीट पर बवाल होने के बाद बीजेपी ने उन्हें हरियाणा के आईटी सेल इंचार्ज पद से हटा दिया था.

अरुण यादव के 'बेशरम रंग' पर किए ट्वीट को विश्व हिन्दू परिषद की लीडर साध्वी प्राची ने रीट्वीट करते हुए लिखा: 

इस मूवी को बैन कर देना चाहिए.

साध्वी प्राची ने एक और ट्वीट को आरटी किया, जिसमें लिखा था: 

फ़िल्म का नाम है पठान, अभिनेत्री है JNU के टुकड़े टुकड़े गैंग की सदस्य दीपिका पादुकोण. अभिनेता है शाहरुख ख़ान, अब आता हूं मुद्देपर. दीपिका के नाम मात्र के कपड़ों का रंग है भगवा और जिस गाने का ये सीन है उस गाने का नाम है 'बेशर्म रंग'. अब आप ही बताएँ इनको जूते पड़ने चाहिए या नहीं.

हालांकि ये वही साध्वी प्राची हैं, जिन्होंने 2015 में शाहरुख को पाकिस्तानी एजेंट बताकर पाक जाने की सलाह दी थी. वो इससे पहले एक कैडबरी ऐड पर भी सवाल उठा चुकी हैं. इसमें उन्हें दिये वाले का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिता दामोदर पर रखे जाने पर आपत्ति थी.

अब दीपिका के भगवा रंग के कपड़े पहनने वाली बहस में तमाम बड़े और छोटे नाम शामिल हो गए हैं. ज़रा ठहरकर ये भी देख लेते हैं कि इससे पहले भी ऐसा तमाम गानों के साथ हुआ है. जिनमें नायिका ने भगवा रंग के कपड़े पहने हैं. इसमें एक गाना तो अक्षय कुमार का ही है. कटरीना कैफ के साथ उनका 'दे दनादन' का गाना 'गले लग जा'. इसमें कटरीना ने भगवा रंग के कपड़े पहने हैं. 

'रंगीला' के 'तन्हा-तन्हा यहां पे जीना' गाने में भी उर्मिला ने भगवा रंग की ड्रेस पहनी हुई है. 

'मैंने प्यार क्यूँ किया' के गाने 'लगा-लगा रे' में सलमान खान के साथ सुष्मिता सेन ने भगवा रंग की साड़ी पहन रखी है. 

कहने का मतलब ये है कि ये सब पहले से होता रहा है. इसलिए विरोध करने का कोई सेंस बनता नहीं है. भगवा रंग पहनकर भड़काऊ भाषण दिए जा सकते हैं, भगवा रंग के नाम पर क़त्ल किए जा सकते हैं तो भगवा रंग पहनकर डांस क्यों नहीं किया जा सकता? भगवा रंग पहनकर हवा में तलवारें हिलाने से बेहतर है, भगवा रंग पहनकर कमर हिलाना. रंग को धर्म से जोड़कर देखना और उसे बिना बात के उछालना कैसे सही हो सकता है? रंग को सिर्फ़ रंग रहने ना दिया जाए, उसे धर्म क्यों बनाया जाए? भगवा के इस्तेमाल का कहीं टेक्स्ट दिया है क्या? शास्त्रों में या संविधान में कहा गया है क्या कि भगवा पहनकर नृत्य नहीं किया जा सकता. 

रही बात दीपिका के भगवा रंग के छोटे कपड़े पहनने की, तो ये उनकी आज़ादी है. वो चाहे जैसे कपड़े पहनें. यदि आपको वो अश्लील लग रहा है, तो उनके कपड़ों में नहीं, आपकी नज़र में खोट है. फिर उन्होंने खुद से ये कपड़े पहने भी नहीं होंगे. उनसे गाने के मेकर्स ने पहनने को कहा होगा, उन्होंने पहन लिये. खुद भी पहने होते, तब भी क्या ही बुराई है. गाने की आलोचना होनी चाहिए. कहिए कि मुझे गाने के लिरिक्स अच्छे नहीं लगे, कोरियोग्राफी ठीक नहीं, कैमरा ऐंगल्स अच्छे नहीं लगे. ये कहना कि गाने का रंग अच्छा नहीं लगा, ये तो बड़ी बेढंगी से बात लगती है. ऐसे बिलावजह के भगवा मूवमेंट चलाने से भगवा और सनातन धर्म की वैल्यू ही घटेगी ही, बढ़ेगी तो नहीं. क्या हिन्दू धर्म की सहिष्णुता और स्वीकार्यता वाली बात को ऐसे बेसलेस तर्क ठेस नहीं पहुंचा रहे?

मेरा तो सीधा मानना है, पिक्चर, गाने या फिर किसी भी आर्ट फॉर्म को जमकर लताड़िए, पर उसके लिए तर्क लेकर आइए. क्या विवेकानंद का देश इतना तर्कविहीन हो गया है कि उसे किसी के भगवे रंग के छोटे कपड़े पहनकर डांस करने से आपत्ति हो? गांधी का देश लॉजिक पर चलना चाहिए, ना कि बेसलेस इमोशंस पर. 

पठान के गाने बेशरम रंग में दीपिका ट्रोल हो रही थीं, कोरियोग्राफर वैभवी ने इसकी कहानी बताई