Paresh Rawal को Mahesh Bhatt की फिल्म Sir के लिए National Award से सम्मानित किया गया था. लेकिन उन्होंने बताया कि उस साल उन्हें Sardaar के लिए भी नैशनल अवॉर्ड मिलने वाला था. लेकिन लॉबी की वजह से उन्हें अवॉर्ड नहीं दिया गया. दी लल्लनटॉप के शो ‘गेस्ट इन द न्यूज़रूम’ में परेश ने ये किस्सा साझा किया. परेश ने बताया,
नैशनल अवॉर्ड में गंदगी होती है, खेल खेला जाता है - परेश रावल
Paresh Rawal ने बताया कि एक बार उन्हें दो फिल्मों के लिए National Award मिलने वाले थे. लेकिन फिर कुछ ऐसा खेल हुआ कि एक अवॉर्ड गायब हो गया.

मैं मॉरीशस में शूट कर रहा था. 1993 या 94 की बात है. सुबह 07:30 बजे एक फोन आता है. मुकेश भट्ट का. 'परेश, मुकेश भट्ट बात कर रहा हूं. क्या कर रहा है?' मैंने बोला कि सो रहा हूं, मुकेश भाई. वो बोले कि उठ जा. उठ जा, तुझे 'सर' फिल्म के लिए नैशनल अवॉर्ड मिल रहा है. मुकेश भट्ट इतना कंजूस है कि मिस कॉल भी न दे, और ये मॉरीशस कॉल कर रहा है. 10 मिनट बाद मुझे कल्पना लाजमी जी का फोन आता है. वो कहती हैं कि परेश, तुम्हें 'सरदार' के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिलने वाला है. मेरे कान में 'सर' और 'सरदार' घूमने लगा. मैंने पूछा कि कल्पना जी, केतन मेहता वाली 'सरदार' के लिए मिल रहा है क्या. उन्होंने कहा, 'हां उसी फिल्म के लिए'.
बाद में जब मैं मुंबई आया तो सिर्फ एक ही अवॉर्ड था. 'सरदार' वाला अवॉर्ड गायब हो चुका था. दिल्ली आए और हम लोग अशोका होटल में रुके. वहां मैं, केतन मेहता, अरुण खोपकर, खालिद मोहम्मद, श्याम बाबू (श्याम बेनेगल) और टी.वी. सुब्बारामी रेड्डी थे. मैंने केतन भाई से पूछा कि ये लोग कह रहे थे कि 'सर' और 'सरदार' के लिए अवॉर्ड मिलने वाला है. फिर क्या हुआ. इतने में सुब्बारामी रेड्डी बोलते हैं, 'तुम लोगों ने लॉबी नहीं की न. हम लोगों ने लॉबी की. हमने अग्रेसिव लॉबी की'. मामूटी साहब भी नॉमिनेट हुए थे. फिर सुब्बारामी ने मुझे कुछ टेक्निकल बात समझाई. कि वोट का कुछ हिसाब था. उस वजह से मामूटी साहब को अवॉर्ड मिल गया.
परेश ने आगे कहा कि उनके दिल में सिर्फ दो अवॉर्ड की इज़्ज़त है. पहला था दीनानाथ मंगेशकर अवॉर्ड जो उन्होंने लता मंगेशकर के हाथों लिया. परेश बताते हैं कि इस अवॉर्ड के लिए वो सिंगापुर से फ्लाइट पकड़कर आए थे. दूसरा अवॉर्ड था P.L. देशपांडे अवॉर्ड. वो कहते हैं कि इन दोनों अवॉर्ड के अलावा कोई तीसरा अवॉर्ड उनके लिए मायने नहीं रखता. परेश आगे कहते हैं कि वो नैशनल अवॉर्ड की भी कद्र करते हैं. आगे कहा,
नैशनल अवॉर्ड में भी कुछ टेक्निकल चीज़ें होती हैं. जैसे मनीषा कोइराला जी की एक फिल्म थी जिसे भेजा ही नहीं गया. वो गंदगी होती है. खेल खेला जाता है. लॉबी तो दबाकर होती है. लॉबी तो ऑस्कर में होती है, ऐसे में ये तो क्या है.
परेश अपनी बात को पूरा करते हुए अवॉर्ड की परिभाषा बताते हैं. वो कहते हैं कि जब नसीरुद्दीन शाह ने 'मुंबई मेरी जान' देखने के बाद उन्हें रात के 11 बजे फोन किया, और कहा कि परेश तुमने क्या उम्दा काम किया है. वही उनके लिए सबसे बड़ा अवॉर्ड है.
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