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पंकज त्रिपाठी ने वॉट्सऐप ग्रुप की बकवास से बचने के लिए क्या टेक्नीक लगाई?

पंकज त्रिपाठी के इंटरव्यू के दिलचस्प अंश पढ़िए. जब उन्होंने कहा, "मैं रील वाला नहीं, फील वाला एक्टर हूं".

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'दी लल्लनटॉप' के संपादक सौरभ द्विवेदी के सवालों का जवाब देते पंकज त्रिपाठी

‘शेरदिल - द पीलीभीत सागा’ को लेकर पंकज त्रिपाठी की ‘दी लल्लनटॉप’ से खास बातचीत हुई. उनसे हुई इस बातचीत के कुछ अंश आप यहां पढ़ सकते हैं. जहां आप जानेंगे कि आगे आने वाले दिनों में पंकज त्रिपाठी की कौन-कौन सी फिल्में हमें देखने को मिल सकती हैं? साथ ही उन्होंने बताया कि वेस्ट बंगाल से उनका क्या रिश्ता है? और उनके व्हाट्सऐप इस्तेमाल ना करने के पीछे की असल वजह क्या है?

पंकज त्रिपाठी के साथ ‘दी लल्लनटॉप’ के संपादक सौरभ द्विवेदी 

 सवाल :- एक ही दिन में आप इतने सारे मीडिया हाउस में जाकर इंटरव्यू देते हैं. इसमें आपके लिए ज्यादा मुश्किल क्या है? ऐक्टिंग करना या एक ही शहर में जाकर सुबह से रात तक एक तरह के सवालों का जवाब देना?

पंकज त्रिपाठी:- सुबह से रात तक एक ही तरह के सवालों का जवाब देना, ये ज्यादा मुश्किल है. सवाल अक्सर एक जैसे ही होते हैं और जवाब में भी ज्यादा कोई बदलाव नहीं होता है. हर मीडिया हाउस कोई मज़ेदार घटना पूछता है. तो ऐसा लगता है कि वो अपने दर्शकों को हंसाना चाहता है. मैं जानता हूं कि अलग-अलग मीडिया हाउस के अपने अलग-अलग दर्शक हैं. मैं उतने ही धीरज से उनको जवाब देता हूं. एक बोरियत सी होने लगती है. पर क्या करें, ये भी अपने काम का हिस्सा ही है.

सवाल :- ‘शेरदिल’ के लिए जब मेकर्स आपके पास आए तो आपको क्या बताया था?

जवाब :- वो लोग जब मेरे पास आए तो मुझे एक न्यूज की कटिंग सुनाई थी कि ये पीलीभीत की एक घटना थी. जहां कुछ लोग बाघ का शिकार होने चले गए थे. ताकि सरकार से मुआवज़ा मिले. एक स्कीम है कि फॉरेस्ट के रिजर्व एरिया में अगर बाघ ने किसी को मारा, तो 5 लाख रुपये से लेकर 10 लाख रुपये मिलेंगे. बाद में पुलिस की जांच में पता चला, वो तो सब ऐसे ही अपने मन से गए थे. उनको किसी ने भेजा नहीं था. इसी घटना से प्रेरित होकर ‘सृजित मुखर्जी’ ने एक काल्पनिक कहानी बनायी है. जहां जंगल, गांव सब काल्पनिक है और एक किरदार है, जो अपने गांव-समाज के लिए बलिदान देता है. किरदार थोड़ा मासूम है, थोड़ा जुनूनी भी है. और इस किरदार को बनाने में हमें बहुत से लॉजिक खोजने पड़ते हैं, वरना लोग भरोसा नहीं करेंगे कि ऐसे कोई कैसे मरने चला जाएगा!

फिल्म ‘शेरदिल - द पीलीभीत सागा’ से कोर्टरूम का सीन 

सवाल :- बंगाल में आपको क्या अपने दूसरे घर जैसा फ़ील आता है? क्योंकि आपकी पत्नी भी वहीं से हैं.

पंकज त्रिपाठी :- हाँ ! बिल्कुल मैं कल ‘कोलकाता’ में था. तो आधे अखबारों और मीडिया ने जमाई बाबू लिखा था. लोग मैसेज भेज रहें है कि जमाई बाबू यहां आए हुए हैं. मुझे बंगाली अच्छे से आती है. समझ भी सकता हूं और बोल भी सकता हूं.

सवाल :- ‘मिर्जापुर’ को लेकर क्या अपडेट है? क्या उसकी शूटिंग शुरू हो गई है? हमारी अमेज़न के कुछ लोगों से बात हुई, उनका कहना था कि इस बार मिर्ज़ापुर को बहुत बड़े स्केल पर रिलीज़ करने की तैयारी हैं.

पंकज त्रिपाठी :- अभी इसकी शूटिंग शुरू नहीं हुई है, पर जल्द ही शुरू होने वाली है. अभी कुछ काम खत्म करके, मैं ‘मिर्जापुर’ की टीम से मिलूंगा. बड़े स्केल पर रिलीज़ करने की जो बात है, इसका मुझे अनुमान नहीं है. लेकिन वो पहले से काफी बड़ा शो है. मैं कोई रिपोर्ट पढ़ रहा था. जहां लिखा था कि वो सबसे ज्यादा देखे जाने वाले शो में से एक है. मुझे ठीक से पता नहीं पर शायद उसके व्यूज़ 29 मिलियन्स के आस-पास हैं.

सवाल :- क्या आपको पता है? ‘मिर्जापुर’ के जो रील्स बनते हैं, उनके व्यूज़ मिलियन्स में जाते हैं. और ऐसी सैकड़ों रील्स बनी हुई है.    

पंकज त्रिपाठी:- नहीं! ये मुझे नहीं पता था. कल मेरा भी पहली बार रील बना है. आज तक मैंने रील्स कभी नहीं बनाया था. एक मेरा असिस्टेंट है, वो बनाता था. मुझे मालूम नहीं था कि वो मेरे रील्स बनाकर अपने सोशल मीडिया पर डालता है. कल उसने दिखाया सर! देखिए मैंने आपका रील बनाया है. मैंने पूछा, "तो अब इसका क्या करेगा?" वो बोला, "अपने सोशल मीडिया पर डालूंगा." मैंने बोला, "तो मेरे पर भी डाल दे. एक दो रील मेरे पर भी आ जाए." तब कल जाकर मेरे इंस्टाग्राम पर एक रील पड़ा. अब थोड़ा सोशल मीडिया पर टीम ऐक्टिव हो गई है. मैं तो बोलता हूं, "मैं रील वाला नहीं, फ़ील वाला ऐक्टर हूं."

फिल्म ‘शेरदिल - द पीलीभीत सागा’ से सरकारी ऑफिस का सीन 

सवाल :- ‘फुकरे’ एक फ्रेंचाइज़ी है और ‘क्रिमिनल जस्टिस’ सीरीज़. ये लोगों में बहुत पॉपुलर हैं. उनमें क्या हो रहा है? 

पंकज त्रिपाठी :- अभी ‘फुकरे’ की शूटिंग चल रही है. मार्च से हमने शूट करना शुरू किया था. कोई बहुत छोटा सा पार्ट रह गया है, बस एक-दो दिनों के भीतर शूटिंग खत्म हो जाएगी. ‘क्रिमिनल जस्टिस’ का शूट खत्म हो गया है. तो अब लगता है कि आने का माहौल बन रहा है. मैं प्लेटफॉर्म से बहुत संपर्क में नहीं रहता, इसलिए मुझे मालूम नहीं होता कि क्या चल रहा है? जैसे, मुझे 15 तारीख को पता चला कि ‘लाली’ 17 को आने वाली है. मैं काम करता हूं और भूल जाता हूं. मैं ये याद नहीं रखता हूं ना अनुमान लगता हूं कि मेरा कौन सा काम कब आएगा, या किस तरह से आएगा.

सवाल :- पंकज त्रिपाठी व्हाट्सऐप क्यों नहीं चलाते? फिर काम को कैसे मैनेज करते हैं?

पंकज त्रिपाठी :- बिना व्हाट्सऐप के ही मैनेज हो जाता है. बिना व्हाट्सऐप के भी जीवन चल सकता है और मैं इस बात का प्रमाण हूं. खैर मेरे टीम में जो एक दो लोग हैं. वो इस्तेमाल करते हैं और वो आकर मुझे बता देते हैं, पर मैं इस्तेमाल नहीं करता. और ऐसा इसलिए क्योंकि 2013 में मुझे कुछ ग्रुप में लोगों ने शामिल किया. तो मैंने पत्नी से बोला, "यार! यहां बहुत बकवास चल रहा है, क्या करूं?" वो बोली, "लेफ्ट कर दो या ब्लॉक कर दो." और मैं किसी को लेफ्ट या ब्लॉक नहीं कर सकता, इसलिए मैंने ही खुद को व्हाट्सऐप से लेफ्ट कर लिया कि ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी.

इस पूरे इंटरव्यू को आप ‘दी लल्लनटॉप’ के यूट्यूब चैनल पर देख सकते हैं. इसे देखने के लिए क्लिक करें.

मूवी रिव्यू: शेरदिल - द पीलीभीत सागा