Now I am become Death, destroyer of worlds
फिल्म रिव्यू- ओपनहाइमर
'ओपनहाइमर' एक असाधारण फिल्म है. ऐसा कुछ शायद आपने पहले नहीं देखा होगा. इसे सिनेमाघरों में देखने मात्र का अनुभव हासिल करने के लिए देखा जाना चाहिए.
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“कालोअस्मि लोक क्षयकृत्प्रवृद्धो"
मैं काल बन गया हूं. संसारों का नाश करने वाला.
फिज़िसिस्ट Julius Robert Oppenheimer ने दुनिया का पहला न्यूक्लीयर बम बनाने के बाद भगवद गीता की ये लाइन कही थी. जो बच्चा सिर्फ क्वॉन्टम फिज़िक्स, फ्यूज़न-फिज़न और आग के उठते गोलों के सपने देखा करता था. वो अपने इस सपने को पूरा करने के बाद जीवनभर के लिए अपराधबोध से भर जाता है. गीता का ये श्लोक उसे अपनी गलती का अहसास दिलाती है. दुनियाभर को खतरे में डाल देने वाली गलती, जिसे सही नहीं किया जा सकता. Christopher Nolan ने इन्हीं फिज़िसिस्ट की बायोग्राफिकल फिल्म बनाई है, जिसका नाम है Oppenheimer. ये फिल्म 2005 में आई पुलित्ज़र प्राइज़ विजेता किताब American Prometheus पर आधारित है. जो काई बर्ड और मार्टिन जे. शेरविन ने लिखी थी.
सिनेमाई भाषा में 'ओपनहाइमर' को बायोपिक बुलाया जा सकता है. क्योंकि ये एक आदमी की कहानी है. जिस तरह से फिल्म में एटम टूट रहे हैं. टकरा रहे हैं. ऊर्जा पैदा कर रहे हैं. जिनकी धमक आप तक पहुंच रही है. ये कहानी भी कमोबेश उसी तरह से घटती है. इस फिल्म की कहानी तीन कालखंडों में बंटी हुई है. पहली टाइमलाइन में एटमिक बम बनाने के जुनून पर बात होती है. जिसमें नायक बिना कुछ सोचे-समझे फुल लगन से दुनिया को बर्बाद करने वाला हथियार बनाने में लगा है. दूसरी टाइमलाइन उस हथियार के बनने के बाद घटती है. जिसमें पात्र अपने किए का नतीजा देखकर गिल्ट से भरा हुआ है. और तीसरी टाइमलाइन उस राजनीति के बारे में है, जिससे ओपनहाइमर को दो-चार होना पड़ता है. जहां पूरी फिल्म कलर है, उसमें पॉलिटिकल वाला हिस्सा ब्लैक एंड वाइट रखा गया है. इन तीनों कालखंडों में जो कुछ भी घटित हो रहा है, वो सब एक-दूसरे से टकराता है, जो इस कहानी को मूर्त रूप देता है.
'ओपनहाइमर' की कहानी 1920 से शुरू होती है. जहां एक स्टूडेंट क्वॉन्टम मेकैनिक्स की दुनिया में क्रांति लाना चाहता है. उसके बाद ये कहानी उसके प्रौढ़ावस्था में पहुंचती है, जब वो बर्कली में पढ़ाना शुरू करता है. दुनियाभर के दिग्गज वैज्ञानिकों की सोहबत पाता है. उसके सामने एक नई दुनिया खुलती है. यहां वो कम्युनिज़्म से रूबरू होता है, जो आगे चलकर उसकी जर्नी का अहम हिस्सा बनती है. ये सब चल ही रहा था कि दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो जाता है. नाज़ियों ने दुनिया का सबसे शक्तिशाली बम बनाने का नुस्खा ढूंढ लिया है. अगर उन्होंने ये बम पहले बना लिया, तो दुनिया को बर्बाद होने में वक्त नहीं लगेगा. अमेरिका चाहता है कि वो नाज़ी जर्मनी से पहले उस बम को विकसित कर ले. ऐसे में मैनहैटन प्रोजेक्ट शुरू किया जाता है. जिसकी कमान सौंपी जाती है लेफ्टीनेंट जनरल लेज़्ली ग्रोव्स को. इस प्रोजेक्ट को हेड करने के लिए ग्रोव्स, रॉबर्ट जे. ओपनहाइमर को चुनते हैं. उनके ही नेतृत्व में दुनियाभर के वैज्ञानिकों की टीम मिलकर एटम बनाती है. तीन साल की मेहनत के बाद दुनिया का पहला एटमिक बम बनकर तैयार हो जाता है. अमेरिका उस बम का इस्तेमाल जापान के दो शहरों, हिरोशिमा और नागासाकी पर करता है. ताकि दूसरे विश्व युद्ध को खत्म किया जा सके. जिसमें 2 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो जाती है.

यहीं से कहानी में नया मोड़ आता है. ओपनहाइमर को लगता है कि जापान तो पहले ही घुटने टेकने वाला था. ऐसे में उन पर बम गिराने की क्या ज़रूरत थी. उसे अपनी गलती का अहसास होता है. उसे लगने लगता है कि उसके हाथ उन लोगों के खून में सने हैं. ओपनहाइमर आर्म्स रेस के खिलाफ खड़े होते हैं. यहां से उनके जीवन का तृतीय अध्याय शुरू होता है. जहां सरकार उनकी पुरानी फाइलें खोल देती हैं. उन्हें डिस्क्रेडिट करने की कोशिश की जाती है. जब ये सब चल रहा होता है, तो 'ओपनहाइमर' की पत्नी किटी उनसे पूछती हैं-
What did you think, if you let them tar and feather yourself, world would forgive you? No it wont.
'ओपनहाइमर' स्क्रीन से ज़्यादा नायक के दिमाग में घटती है. वो मानसिक रूप से बेहाल है. पहले वो एक परफेक्ट बम बनाने के लिए परेशान था. अब उस बम को बनाने की वजह से परेशान है. वो प्रायश्चित करना चाहता है. मगर कैसे, उसे नहीं पता. इसमें फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर उसकी मदद करते हैं. फिल्म में एक सीक्वेंस है, जहां ओपनहाइमर एक जनसमूह को संबोधित करने जा रहे हैं. वहां उन्हें एटम बम बनाने के लिए शाबाशी दी जानी है. स्टेज तक पहुंचने में उस आदमी के पांव कांपते हैं. जब वो वहां पहुंचते हैं, तो उन्हें वहां खड़ी आवाम की शक्लें उधड़ती हुई नज़र आती हैं. रोते-बिलखते लोग नज़र आने लगते हैं. उन्हें ऐसा लगता है कि उनका पांव उस मलबे में फंसा है, जो उनके बनाए बम की देन है.
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ऐसा एक और सीन है, जब सरकारी कमिटी ओपनहाइमर पर सोवियत संघ का जासूस होने की बात कहती है. उन पर इस तरह के आरोप इसलिए लगते हैं क्योंकि ओपनहाइमर की पूर्व प्रेमिका जीन टैटलॉक कट्टर कम्युनिस्ट थीं. जब ओपनहाइमर से पूछा जाता है कि वो जीन से आखिरी दफे कब मिले थे, तब वो बताते हैं कि ये पुरानी बात है. वो ये भी बताते हैं जीन से उनकी आखिरी बातचीत किस बारे में थी. इस सीन में ज्यूरी/कमिटी के सामने ओपनहाइमर का किरदार नग्न बैठा नज़र आता है. ठीक वैसे ही, जैसे वो सालों पहले जीन से बात करते वक्त बैठा था. ये चीज़ें आपके फिल्म देखने के एक्सपीरियंस को समृद्ध बनाती हैं.
'ओपनहाइमर' का साउंड डिज़ाइन कमाल का है. कहानी बाहरी दुनिया में घटते-घटते कब किरदारों के जेहन में चली जाती है, ये आपको फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर की मदद से पता चलता है. दुनियावी और दिमागी सीन्स के बीच का फर्क सुनाई आने वाली आवाज़ों से मालूम पड़ता है.
'ओपनहाइमर' की रिलीज़ से पहले कहा जा रहा था कि जब न्यूक्लीयर बम की टेस्टिंग वाला सीक्वेंस आएगा, तो थिएटर की आवाज़ बाहर गूंज जाएगी. मगर ऐसा नहीं होता. वो सीन सिर्फ आपको विज़ुअल तौर पर दिखाया जाता है. उसकी आवाज़ बाद में आती है. ये छोटी-छोटी चीज़ें हैं, जो तकनीकी तौर पर 'ओपनहाइमर' को आला दर्जे की फिल्म बनाती हैं. इंट्रेस्टिंग बात ये कि फिल्म में नोलन ने एक भी CGI या VFX सीन का इस्तेमाल नहीं किया है. सबकुछ असल में शूट किया गया है.
जब एटम बम के बनने के बारे में कोई फिल्म बनती है, तो ज़ाहिर तौर पर फिल्म की पॉलिटिक्स पर बात होगी. मगर 'ओपनहाइमर' की राजनीति फिल्म की कहानी में गूंथी हुई है. जिस आदमी ने बम बनाया, वो खुद अपराधबोध से भरा हुआ है. वो नहीं चाहता कि आगे ऐसा कोई बम बने, जो दुनिया को किसी खतरे में डाले.
दुनिया के सबसे शक्तिशाली बम को बनाने की कहानी में नोलन के हथियार किलियन मर्फी हैं. उन्होंने रॉबर्ट ओपनहाइमर का रोल किया है. किलियन की आंखें चुभती हैं. वो परेशान हैं. उनमें आकुलता, द्वंद, खीझ, निराशा, गिल्ट भरा हुआ है. किलियन और ओपनहाइमर की शक्लों में समानता हो सकती है. मगर जिस तरह की देहभाषा उन्होंने पकड़ी है, उसे शायद ही कोई और एक्टर साकार कर पाता. मैट डैमन ने फिल्म में लेज़्ली ग्रोव्स का रोल किया है. उनके किसी काम में आप शायद ही कोई चूक ढूंढ पाए. मगर किलियन के बाद इस फिल्म में जिस एक्टर ने कमाल का काम किया है, वो हैं रॉबर्ट डाउनी जूनियर. रॉबर्ट ने लेविस स्ट्रॉस (Lewis Strauss) का रोल किया है. स्ट्रॉस पहले AEC यानी एटोमिक एनर्जी कमिशन के अध्यक्ष थे. इसी डिपार्टमेंट की देखरेख में प्रोजेक्ट मैनहैटन चल रहा था. मगर स्ट्रॉस, ओपनहाइमर से चिढ़ जाते हैं. और वही उन्हें डिस्क्रेडिट करने के लिए एक कमिटी का गठन करते हैं. इस किरदार में रॉबर्ट डाउनी जूनियर पहचान में नहीं आते. इस फिल्म में उनका काम इतना शानदार है कि अभी से ऑस्कर की रेस में उनका नाम शामिल किया जाने लगा है.
फ्लोरेंस प्यू ने ओपनहाइमर की पूर्व प्रेमिका जीन टैटलॉक का रोल किया है. वहीं ओपनहाइमर की पत्नी कैथरीन उर्फ कैटी का रोल किया है एमिली ब्लंट ने. एमिली को फिल्म में थोड़ा सा स्क्रीनटाइम मिला है. उनके खाते में सिर्फ एक ऐसा सीन है, जिसे याद रखा जा सकता है. इन लोगों के अलावा इस फिल्म में गैरी ओल्डमैन, रामी मलेक, केनेथ ब्राना, बेनी सैफडी और टॉम कॉन्टी जैसे एक्टर्स ने काम किया है.
'ओपनहाइमर' देखते हुए कई मौकों पर ऐसा लगता है कि आप फिज़िक्स की क्लास में बैठे हैं. हालांकि हमें ये बात बात माननी पड़ेगी कि क्रिस्टोफर नोलन की फिल्में सबके लिए नहीं होती. उनकी फिल्मों की एक टार्गेट ऑडियंस होती है. एंटरटेनमेंट के लेवल पर आप इस फिल्म को थोड़ा कम आंक सकते हैं. मगर ये एक मजबूत फिल्म है. जिसे शायद नोलन के सबसे जबरदस्त कामों में गिना जाएगा. 'ओपनहाइमर' एक असाधारण फिल्म है. ऐसा कुछ शायद आपने पहले नहीं देखा होगा. इसे सिनेमाघरों में देखने मात्र का अनुभव हासिल करने के लिए देखा जाना चाहिए.
वीडियो: तारीख: परमाणु बम बनाने वाले वैज्ञनिक के गीता के श्लोक क्यों बोला?