फिल्म- मुंज्या
डायरेक्टर- आदित्य सरपोतदार
एक्टर- अभय वर्मा, शरवरी वाघ, सुहास जोशी, सत्यराज, मोना सिंह
रेटिंग- 2.5 स्टार
फिल्म रिव्यू- मुंज्या
Munjya पर सारा लोड इस बात का है कि वो हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स की फिल्म है. वो फ्रैंचाइज़ जिसे कॉमेडी और डरावने सीन्स के अलावा विमर्श वर्दी बातों के लिए जाना जाता है. अगर 'मुंज्या' के सिर से ये बोझ हटा दिया जाए, तो ये एक फन फिल्म है.
स्पाय यूनिवर्स और कॉप यूनिवर्स के साथ-साथ हिंदी सिनेमा में एक और यूनिवर्स चल रहा है. दिनेश विजन का हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स. श्रद्धा कपूर की 'स्त्री' से इस यूनिवर्स की शुरुआत हुई थी. देसी फ्रैंचाइज़ की शायद पहली फिल्म जिसे उसकी नायिका के नाम से जाना जाता है. यही इस फिल्म का मक़सद और आग्रह, दोनों था. इसी फ्रैंचाइज़ की नई फिल्म 'मुंज्या' आई है. ये एक मराठी/कोंकणी लोक कथा पर आधारित कहानी है. उस लोक कथा के मुताबिक अगर कोई शख्स अपने मुंडन या उपनयन संस्कार के 10 दिन के भीतर गुज़र जाता है, तो वो ब्रह्मराक्षस बन जाता है. मराठी में उपनयन संस्कार की प्रथा को 'मुंज' कहते हैं. फिल्म का जो टाइटल कैरेक्टर है उसका नाम है 'मुंजा'. मगर घर में लोग उसे मुंज्या नाम से बुलाते हैं. इसलिए फिल्म का नाम 'मुंज्या' है.
तो फिल्म की बेसिक कहानी ये है कि मुंजा नाम का एक बच्चा है. उसे मुन्नी नाम की लड़की से एकतरफा प्यार है. जो कि उससे उम्र में 7 साल बड़ी है. घरवाले उसे मना करते हैं और उसका मुंडन करवा देते हैं. मगर मुंजा हार मानने की बजाय, अपने प्यार को पूरा करने के लिए काला जादू का सहारा लेता है. इसी प्रक्रिया में उसकी मौत हो जाती है. मुंडन के 10 दिन पूरे होने से पहले ही उसकी मौत होती है, इसलिए वो ब्रह्मराक्षस बन जाता है. अब भी उसका एक ही मक़सद है 'मुन्नी से लगिन'. 70 साल बाद अपने इस सपने को पूरा करने के लिए मुंजा अपने ही खानदान के लड़के बिट्टू से चिपट जाता है. और उसे डरा-धमकाकर मुन्नी को ढूंढने के लिए कहता है. मुन्नी मिलती है या नहीं, मुंजा का का क्या होता है? बिट्टू उससे कैसे बचता है, इन सारे सवालों के जवाब आपको फिल्म में मिलेंगे.
मुंजा एक ब्रह्मराक्षस है. उसे किसी एक्टर ने प्ले नहीं किया है. बल्कि उसे CGI की मदद से बनाया गया है. ये कैरेक्टर 'लॉर्ड ऑफ द रिंग्स' ट्रिलजी के किरदार गोलम जैसा दिखता है. मेकर्स ने ये किरदार लोगों को डराने के लिए गढ़ा है. हालांकि वो दिखने में फनी लगता है. क्योंकि VFX का काम बहुत नीट नहीं है. मगर उसकी हरकतें डरावनी हैं. वो मुन्नी से शादी करने के लिए बिट्टू से चिपट गया. बिट्टू को देखकर हैरी पॉटर सी वाइब आती है. हैरी की ही तरह बिट्टू को भी अपनी शक्तियों को पहचानना है, ताकि वो अपनी और दूसरों की मदद कर सके.
जितना ट्रेलर में दिखाया गया था, 'मुंज्या' फिल्म में भी आपको उससे ज़्यादा कुछ नहीं मिलता. इस फिल्म पर सारा लोड इस बात का है कि वो हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स का हिस्सा है. वो फ्रैंचाइज़ जिसे कॉमेडी और डरावने सीन्स के अलावा विमर्श वर्दी बातों के लिए जाना जाता है. अगर 'मुंज्या' के सिर से ये बोझ हटा दिया जाए, तो ये एक फन फिल्म है. दोस्तों के साथ जाकर देखने लायक. फिल्म कुछ सीरियस चीज़ें करने की कोशिश करती है, जो सही से लैंड नहीं हो पातीं. मसलन, 'मुंज्या' कोशिश करती है कि वो काला जादू जैसे कॉन्सेप्ट को खारिज कर दे. मगर वो मजबूती से अपनी बात रख नहीं पाती. मैंने पहली बार देखा कि एक फिल्म का बैकग्राउंड म्यूज़िक उसके मैसेज को खा गया. एक सीन है, जिसमें मुंजा बिट्टू को परेशान कर रहा है कि वो उसे मुन्नी से मिलवाए. क्योंकि वो मुन्नी से प्यार करता. उससे शादी करता है. इसके जवाब में बिट्टू उससे कहता है,
"तूने मुन्नी से पूछा कि उसे क्या चाहिए, वो तुझसे शादी करना चाहती है या नहीं?"
ये लाइन फिल्म की सबसे ज़रूरी बातों में से एक है. मगर नेपथ्य में इतनी जोर का म्यूज़िक चल रहा होता है कि ये लाइन पूरी तरह से सुनाई ही नहीं आती. ये बात खटकती है. तमाम मौकों फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बहुत लाउड है, जिससे फिल्म को नुकसान पहुंचता है. खूबसूरत सिनेमैटोग्रफी से इसकी भरपाई करने की कोशिश की जाती है, जो कि नाकाफी साबित होती है. इस फिल्म के कुछ फ्रेम्स आपको 'तुम्बाड' की याद दिलाएंगे. क्योंकि कमोबश ये दोनों फिल्में एक ही तरह की दुनिया में घटती हैं.
फिल्म में बिट्टू का रोल किया है अभय वर्मा ने. ये उनकी पहली फिल्म है. फिल्म में एक सीन है, जिसमें अभय को उसके चाचा कुछ बता रहे होते हैं. जिससे झुंझलाकर वो भाग जाता है. इस सीन में आपको अभय के काम में अनुभव की कमी लगेगी. क्योंकि वो बड़ा अटपटे तरीके से परफॉर्म किया हुआ सीन है. ये बात नोटिस में आती है, इसलिए यहां बताई जा रही है. इसके अलावा वो फिल्म में अच्छे लगते हैं. उनकी शक्ल थोड़ी-थोड़ी 'मर्द को दर्द नहीं होता' वाले अभिमन्यु दसानी से मिलती है. शरवरी वाघ, फिल्म में बेला के किरदार में नज़र आती हैं. जिससे बिट्टू एकतरफा प्रेम करता है. अगर आप देखें, तो फिल्म बिट्टू और मुंजा को एक दूसरे के पैरलेल खड़ा करती है. मगर दोनों की कहानियां अलग-अलग तरीके से खत्म होती हैं. मेरे लिए यही फिल्म का सबसे बड़ा हासिल था. ख़ैर, बेला के किरदार में शरवरी फबती हैं. 'बाहुबली' के कटप्पा उर्फ सत्यराज और मोना सिंह भी फिल्म में कुछ ज़रूरी रोल्स में दिखते हैं. मगर वो रोल्स आपको ज़्यादा समय तक याद नहीं रह पाते.
कुल जमा बात ये है कि 'मुंज्या' आपको अपने हॉरर-कॉमेडी वाले कॉन्सेप्ट के अलावा कुछ नया ऑफर नहीं करती. अब तक मैडॉक फिल्म्स की हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स में 4 फिल्में बनी हैं. 'स्त्री', भेड़िया', 'रूही' और 'मुंज्या'. स्त्री और भेड़िया अपने हॉरर और मॉनस्टर फिल्म होने से एक कदम आगे जाते हैं. एक सोशल कॉज़ पर बात करते हैं. 'स्त्री', वुमन एंपावरमेंट जैसे विषय को उठाती है और उसे अच्छे से डील करती है. 'भेड़िया' पर्यावरण को बचाने की बात कहती है. ऐसे में 'मुंज्या' की उपलब्धि सिर्फ ये है कि 'रूही' अभी भी कॉमेडी-हॉरर यूनिवर्स की सबसे कमज़ोर और कमतर फिल्म बनी रहती है.
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