Mrs
Director: Arati Kadav
Cast: Sanya Malhotra, Nishant Dahiya, Kanwaljit Singh
Rating: 3.5 Stars
Mrs - मूवी रिव्यू
Sanya Malhotra की Mrs, मलयालम फिल्म The Great Indian Kitchen का रीमेक है. कैसी है ये फिल्म, जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.

साल 2021 में The Great Indian Kitchen नाम की मलयालम फिल्म रिलीज़ हुई थी. इसे Jeo Baby ने डायरेक्ट किया था. फिल्म देखने के बाद लोगों ने इसकी बहुत तारीफ की. साल की बेहतरीन फिल्मों में शुमार किया. वो बात अलग है कि एक पॉइंट पर इस फिल्म को ओटीटी वाले हाथ नहीं लगा रहे थे. खैर अब इस फिल्म का हिंदी रीमेक आया है. नाम है Mrs. इस फिल्म को Arati Kadav ने बनाया है. Sanya Malhotra इस कहानी के केंद्र में हैं. कैसी है ‘मिसेज़’, अब उसी बारे में बात करेंगे.
फिल्म का पहला शॉट एक फोटो स्टूडियो का है. फिर एक मॉनटाज आता है. रसोई में खाना बन रहा है. पार्क में झूला लगा है. उसके सामने एक ग्रुप डांस कर रहा है. ऋचा नाम की लड़की उनकी लीडर है. बैकग्राउंड में ढोल की बीट्स सुनाई पड़ती हैं. ऋचा उसकी बीट्स पर थिरक रही है. सिर्फ ढोल की ही नहीं, वो अपने आसपास सुनाई पड़ने वाली आवाज़ों को संगीत बनाकर झूम रही है. ये फिल्म का पहला सीन है. हर मज़बूत फिल्म अपने पहले सीन में ही बता देती है कि वो किस बारे में होने वाली है, उसकी टोन, उसकी फील क्या होगी. हम आगे देखते हैं कि ऋचा को देखने कोई लड़केवाले आए हैं. अरेंज मैरिज के सेटअप में दोनों की शादी हो जाती है. शुरू में सब सुहाना लगता है. फिर शुरू होते हैं ऋचा के स्ट्रगल. उसे एक आदर्श बहू, आदर्श पत्नी के सांचे में फिट होने की हिदायत दी जाती है. हैरानी की बात है कि जो लोग उसे समझा रहे हैं, उन्होंने खुद ये परिभाषाएं नहीं गढ़ी. वो बस ऐसी व्यवस्था का पालन कर रहे हैं जो चली आ रही है. ऋचा का दम घुटने लगता है. उसकी अपनी आवाज़ के निशान गायब हो जाते हैं. पितृसत्ता की इस जकड़न से लड़कर वो खुद तक कैसे पहुंचती है, यही फिल्म की कहानी है.

आरती कादव की ‘मिसेज़’, ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ की फेथफुल अडैप्टेशन है. ये फिल्म सिर्फ इसलिए नहीं बनाई गई क्योंकि बस ऐसे ही मन कर गया. आरती और उनकी टीम ने ओरिजनल फिल्म के आइडिया को बरकरार रखा है. फिल्म को लोकेशन पर शूट करने का फायदा ये हुआ कि आप बहुत जल्दी उसकी दुनिया में खिंच जाते हैं. आपका ध्यान ऋचा के नाखूनों पर जाता है जिनकी नेल-पोलिश रसोई का काम करते-करते घिसने लगे हैं. किचन के सिंक में फंसे कचरे पर ध्यान जाता है. तेल की बोतल पर जमा तेल और धूल का मिश्रण दिखता है. सब कुछ दुर्भाग्यवश एक रसोई की याद दिलाता है.
फिल्म देखते हुए आपको एहसास होता है कि कैसे महिलाएं घर के Invisible gaps भर रही होती हैं. कैसे फर्ज़ और महानता का चोगा पहनाकर हम सदियों से उनका शोषण ही कर रहे हैं. इस दुनिया में हर चीज़ पॉलिटिकल है. जो इससे मुकरे वो बस denial में रहना बेहतर समझता है. खैर ‘मिसेज़’ की जेंडर पॉलिटिक्स ऐसी नहीं जो आप पर कुछ थोपने की कोशिश करे. सब कुछ बस हो रहा है, जैसा आमतौर पर हमारे घरों में होता आया है. एक पुरुष इसलिए कपड़े नहीं पहन पा रहा क्योंकि पत्नी ने शर्ट निकालकर बेड पर नहीं रखी. या बीवी के खाने पर तंज मार दिया कि ये रेसिपी बिगाड़ना भी आर्ट है, और फिर हंसकर कह दे कि अरे बाबा मैं तो मज़ाक कर रहा हूं. या करवा चौथ पर ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठे पुरुष इस बात पर चर्चा कर रहे हों कि हमारी परंपराएं कितनी ज़रूरी हैं, इनके पीछे साइंस छुपा है.
‘मिसेज़’ के दो सीन बड़े हार्ड हिटिंग थे. पहला जब ऋचा की सास अपनी बेटी के यहां चली गई है. अब घर की पूरी ज़िम्मेदारी उस पर डाल दी गई है. उसे सुबह सबसे पहले उठना है. अपने ससुर की पहली चाय से पहले अजवायन वाली पानी बनाना है. टेबल पर गर्म नाश्ता देना है, और हां रोटी और फुल्के का अंतर समझना है. जब वो किचन में नाश्ता बनाते हुए हड़बड़ाहट से खाना लगा भी रही है, तब आपको एक किस्म की बेचैनी महसूस होने लगती है. और ये सिर्फ सीन की एडिटिंग और म्यूज़िक से ही नहीं हुआ. दूसरा है फिल्म का क्लाइमैक्स. किचन सिंक का पाइप लीक हो रहा है. जुगाड़ के लिए नीचे एक बाल्टी लगा दी गई. रसोई से बाहर जन्मदिन मनाया जा रहा है. मेहमान आए हैं. दूसरी ओर रसोई में टपकते पानी की आवाज़ इस कद्र आती है कि जैसे किसी की हार्टबीट बढ़ती जा रही हो.

ऋचा के रोल में सान्या मल्होत्रा ने बढ़िया काम किया है. उनके किरदार की मनोदशा कैसे बदलती जा रही है, वो आपको उनके चेहरे पर और उनकी बॉडी लैंग्वेज़ में दिखता है. एक पॉइंट पर आते-आते वो ऐसी दिखने लगती हैं मानो पहचान ही ना पाओ कि पहले सीन में बेफिक्र होकर डांस करने वाली लड़की यही थी. ऐसा सिर्फ मेकअप से हासिल नहीं किया गया. बाकी सान्या के किरदार के इम्पैक्ट में निशांत दहिया और कंवलजीत सिंह का भी बहुत बड़ा क्रेडिट है. निशांत ने ऋचा के पति का रोल किया और कंवलजीत उसके ससुर बने हैं. ये दोनों लोग किसी विलेन की तरह नहीं हो जानबूझकर ठान रहे हों कि ऋचा का जीवन दुष्कर बनाना है. ये उस व्यवस्था में रचे-बसे हैं जो अब तक उन्हें फायदा पहुंचाती आई है. और उसी के हिसाब से पेश आ रहे हैं.
‘द इंडियन ग्रेट किचन’ के रीमेक पर बहुत लोगों ने कहा कि इसकी क्या ज़रूरत थी. ओरिजनल फिल्म इतनी मज़बूत तो है. इस पर बस यही कहा जा सकता है कि दुर्भाग्यवश ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ और ‘मिसेज़’ ऐसी कहानियां हैं जो लंबे समय तक रेलेवेंट रहने वाली हैं. ये हमें अपने आसपास और फिर खुद के भीतर देखने पर मजबूर करती हैं. ऐसी कहानी को जितनी भी भाषाओं में कहा जाए उतना ही कम है. बस सही नीयत से बनाई जाए जो कि यहां आरती कादव ने किया है.
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