पहली बार कॉफी चखी थी तो कैसा लगा था? दिखने में तो बहुत लजीज लग रही थी. पीने से पहले ही दिमाग ने मीठा स्वाद जुबान को दे दिया था. लेकिन जब पहला घूंट लिया तो हलका कड़वा लगा. झटका. उफ, हमने तो मीठी सोची थी, ये कैसी है. फिर भी, मनचाहे स्वाद की चाह में दूसरे और तीसरे घूंट लिए. अगले 8-10 घूंट क्या सोचकर पिए, याद नहीं. लेकिन जब कॉफी आधी हुई तो उसका ओरिजिनल स्वाद ही पसंद आने लगा. खत्म हो गई तो मन किया कि थोड़ी और पी लें. तो एक फिल्म आई है, जो कॉफी से मेरा पहला परिचय याद दिलाती है. नाम है- 'काफिरों की नमाज'. इसमें वह कसैलापन है, जिससे करते-करते आप इश्क करने लगते हैं. देखते हुए आप अंदाजा कुछ लगाएंगे और फिल्म आपको कहीं और ले उड़ेगी. आज बात 'काफिरों की नमाज' की. पहले खबर. खबर ये कि हमारे सेंसर बोर्ड (हमारे बोलते हुए दुख हुआ) ने इस फिल्म को सर्टिफिकेट देने से ही मना कर दिया. जिसके बाद फिल्म बनाने वाले लड़कों ने कलेजा कर्रा करके इसे गुरुवार सुबह यूट्यूब पर ही रिलीज कर दिया. फिल्म बनाई किसने है? राम रमेश शर्मा और भार्गव सैकिया.
सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट क्यों नहीं दिया?
शायद इसलिए कि फिल्म की कहानी गांधी, कश्मीर, सेना, नॉर्थ ईस्ट, बाबरी मस्जिद, राम मंदिर से लेकर पॉर्न फिल्मों जैसे सेंसिटिव मुद्दों को छूते हुए गुजरती है. आपने ट्रेन में कभी यात्रियों की बहसें देखी हैं? कैसे एक टॉपिक से दूसरे पर जंप मारती हैं. कैसे बातों से बातें निकलती हैं. कैसे पॉलिटिक्स से सोसाइटी और सोसाइटी से फैमिली ईशूज डिस्कस किए जाते हैं. फिल्म इसी तरह की बातों-बहसों के आधार पर बुनी गई है. एक आदमी है जिसका मिलिट्री से ताजा कोर्ट मार्शल हुआ है. एक राइटर है जो उसकी कहानी लिखना चाहता है. एक उसका असिस्टेंट है और एक चाय वाला है. ये लोग आपस में चर्चा कर रहे हैं. किस्सेबाजी है और फिर आपस में जूतमपैजार भी है. कई बातें हैं जो कई लोगों को असहज कर देंगी. एक किरदार का यह कहना कि 'कश्मीर में टेररिस्ट नहीं होते, मिलिटेंट्स होते हैं'. शायद ऐसी बातों से ही सेंसर बोर्ड खफा है. हालांकि बहुत सारे लोग फ्रीडम ऑफ स्पीच के हवाले से फिल्म के पक्ष और सेंसर बोर्ड के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं.फिल्म का अंग्रेजी नाम 'The Virgin Arguments' फिल्म पर सटीक बैठता है. 'काफिरों की नमाज' नाम क्यों है, इसका रेफरेंस आप फिल्म में ही देखें तो बेहतर है.बहरहाल शुक्रवार शाम 7 बजे तक यूट्यूब पर फिल्म को 17 हजार से ज्यादा बार देखा जा चुका था. यूट्यूब कमेंट्स में दर्शक आनंद रॉय ने लिखा है, 'मैंने जो अभी देखा वह सिर्फ फिल्म नहीं है, यह पोएट्री है. इससे बढ़िया, इससे गहरी चर्चा मैंने नहीं देखी. मास्टरक्लास फिल्म. गर्व है कि भारत के पास राम रमेश शर्मा जैसे डायरेक्टर और स्टोरीटेलर हैं और भार्गव सैकिया जैसे प्रोड्यूसर हैं. दुख है कि इसे थियेटर में नहीं देख सका. इस फिल्म को थियेटर में देखने के लिए कितना भी पैसा खर्च किया जा सकता है.'
