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Mere Husband Ki Biwi - मूवी रिव्यू

कैसी है Arjun Kapoor, Bhumi Pednekar और Rakul Preet Singh की फिल्म Mere Husband Ki Biwi, जानने के लिए रिव्यू पढ़िए.

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इस फिल्म को मुदस्सर अज़ीज़ ने डायरेक्ट किया है.

Mere Husband Ki Biwi 
Director: Mudassar Aziz
Cast: Arjun Kapoor, Bhumi Pednekar, Rakul Preet Singh
Rating: 2 Stars (**)

अंकुर चड्ढा और प्रभलीन ढिल्लों कॉलेज में मिले. दोनों को प्यार हुआ. अंकुर ने फुल ‘मोहब्बतें’ के शाहरुख वाली स्टाइल में प्रभलीन को प्रपोज़ तक कर दिया. दोनों की शादी हो जाती है. फिर समझ में आने लगता है कि ये दोनों भले ही सही लोग हों लेकिन एक दूसरे के लिए सही नहीं थे. शादी भयावह याद बनने लगती है. तलाक ले लेते हैं. अंकुर आगे बढ़ता है. जीवन में अंतरा खन्ना आती है. फिर से प्यार होता है. बात आगे बढ़ने ही वाली होती है कि अंकुर को अचानक से बुरी खबर मिलती है. प्रभलीन का एक्सीडेंट हो गया है. वो बीते पांच सालों की याददाश्त गवां चुकी है. उसके दिमाग में वो और अंकुर अभी भी साथ हैं. अब इस वजह से अंकुर और अंतरा की लव लाइफ का बैलेंस कैसे बिगड़ता है, यही फिल्म की कहानी है. 

कुछ दिन पहले सुधीर मिश्रा हमारे न्यूज़रूम में आए थे. तब उन्होंने महान साहित्यकार Gabriel Garcia Marquez से हुई मुलाकात का किस्सा सुनाया था. तब मार्केज़ से महिलाओं पर सवाल किया गया. उन्होंने बड़े पते की बात की. मार्केज़ ने कहा,

किसी महिला को समझने का सबसे अच्छा तरीका ये जानने में है कि वो भी छल करने में उतनी ही सक्षम है, जितने कि आप हैं. 

मार्केज़ कहना चाह रहे थे कि महिलाएं की भावनाएं भी किसी दूसरे इंसान जैसी ही हैं. ये बात हमारे कांटेक्स्ट में इसलिए खरी उतरती है क्योंकि पितृसत्ता के चलते महिलाओं को सिर्फ दो ही रंगों में देखा जाता है. या तो वो महान है या फिर नीची नज़र से देखे जाने वाली कोई वस्तु. Mere Husband Ki Biwi जैसी टिपिकल कमर्शियल फिल्म के लिए इस बात को इस्तेमाल करने का एक कारण है. जब प्रभलीन की याददाश्त चली जाती है, उसके बाद मानो दोनों महिलाएं में कोई रस्सा-कशी का खेल शुरू हो जाता है. प्रभलीन पहले इसलिए अंकुर के साथ रहना चाहती है क्योंकि उसे सुकून मिलता है. लेकिन धीरे-धीरे उसे जीतना जैसे किसी खेल में तब्दील हो जाता है. यहां फिल्म किसी भी महिला को टिपिकल वैम्प नहीं बनाती. ये दो आम इंसान हैं जो अपनी भावनाओं के हिसाब से रिएक्ट करती हैं. उन्हें इंसान बने रहने देती है. 

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हर्ष गुजराल ने टिपिकल हीरो के दोस्त का रोल किया है.

ये पहला मौका नहीं था जब फिल्म ब्लैक और व्हाइट से परे देखने की कोशिश करती है. फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि जब अंकुर और प्रभलीन के बीच इतना प्यार था, तो वो निभा क्यों नहीं सके. एक छोटे सीक्वेंस में काफी कुछ कवर करने की कोशिश की गई. जैसे अंकुर के परिवार की प्रभलीन से कुछ उम्मीदें जुड़ गईं, उसके लिए ज़िम्मेदारी का भाव ज़्यादा बड़ा हो गया. ऊपर से नौकरी का स्ट्रेस भी उसे रोज़ाना खाए जा रहा है. अंकुर ने प्यार से फूल भेजे, और प्रभलीन ऑफिस के असाइनमेंट के चलते उसका जवाब नहीं दे सकी. अपने आप में देखें तो ये बहुत आम-सी घटना है. लेकिन जब दो लोग ऐसी ही आम-सी बातों पर कम्यूनिकेट नहीं करते, तो वो दरार में तब्दील होने लगती है. ये हिस्सा फिल्म के सबसे दमदार पहलुओं में से एक था. यहां वो किसी के माथे पर सही या गलत का ठप्पा नहीं लगाती. बस फिल्म के साथ दिक्कत ये होती है कि वो ऐसे मोमेंट्स को हल्का कर देती है. उनमें और ज़्यादा गहराई से उतरने की गुंजाइश थी. 

mere husband ki biwi
फिल्म अपने सब्जेक्ट को बहुत हल्का कर देती है. 

दूसरी ओर फिल्म की कॉमेडी भी इसके लिए काम नहीं करती. एक-आध मौकों के अलावा वो रिएक्शन नहीं आता जिसे निकलवाने के लिए मेकर्स पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. बात सिर्फ इतने पर ही नहीं बिगड़ती. क्लाइमैक्स को एकदम दौड़ाया गया है. एक सीन आता है जहां अंकुर, अंतरा से नाराज़ है. वो आकर माफी मांगती है लेकिन वो कमरे से चला जाता है. अचानक से स्क्रीन ब्लैक आउट कर जाती है.  आप समझ नहीं पाते कि इस सीन से पहले ऐसा क्या हुआ. ऐसा कुछ और पॉइंट्स पर होता है. ये साफ होने लगता है कि एडिट टेबल पर फिल्म को ज़रूरत से ज़्यादा काटा गया है. इतना काटा कि फिल्म को ही भुगतना पड़ रहा है. 

बाकी एक्टिंग की बात करें तो अर्जुन कपूर ने अंकुर का रोल किया. वहीं भूमि पेडणेकर और रकुल प्रीत सिंह ने प्रभलीन और अंतरा के रोल किए हैं. फिल्म में एक्टर्स ने ठीक काम किया है. कागज़ पर जितना लिखा था, वो उतना कर देते हैं. उसके अलावा कुछ नहीं जोड़ पाते. Mere Husband Ki Biwi को देखकर लगता है कि वो सही बात कहने के लिए निकली थी, लेकिन उस सफर में ये इतने सारे सांचों फिट होने की कोशिश करती चली गई कि मामला बिगड़ गया.                            
 

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