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शॉर्ट फ़िल्म रिव्यू: मनोरंजन

'मनोरंजन' अपने नाम को पूरी तरह जस्टिफाई करती है.

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दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं. एक वो जो हर वीकेंड फैमिली और दोस्तों के साथ पिक्चर देखने जाते हैं. पूरा खर्चा करके थिएटर्स में फिल्म देखते हैं. दूसरे वो, जो घर पर ही फुल-टू माहौल बनाकर किसी सीरीज़ को बिंज वॉच करते हैं. फिर आते हैं तीसरे तरह के लोग. जो कुछ नहीं करते. बस दिन-भर पैर पसारे मोबाइल की स्क्रीन ताड़ते रहते हैं. यू-ट्यूब पर उंगलियां स्वाइप करके अपने मतलब की चीज़ों पर नज़र गड़ाए रहते हैं. जहां कुछ बढ़िया दिखा तो पट से क्लिक कर देते हैं. ऐसे ही स्वाइप करते-करते हमने यू-ट्यूब पर एक शॉर्ट फिल्म देख डाली. नाम था मनोरंजन. गुल पनाग लीड एक्ट्रेस हैं. मात्र 24 मिनट की ये फिल्म आपका मनोरंजन करेगी या नहीं, इसी बारे में आज चर्चा करेंगे. #कैसी पहेली ये कहानी तो कहानी है ललिता की. टिपिकल इंडियन हाउस वाइफ. पति का नाम है सत्यनारायण. रेलवे में नौकरी करते हैं. दिन-रात सरकार की ड्यूटी बजाते हैं. ललिता, कई दिनों से अपने पति के साथ वेकेशन पर जाना चाहती है. कहां? डलहौज़ी. हिमाचल प्रदेश में एक छोटी सी जगह है खज्जियार. जिसे मिनी स्विट्जरलैंड कहा जाता है. ललिता उस जगह एक बार ज़रूर घूमना चाहती है. पूरी प्लानिंग करती है. सूटकेस पैक करती है. सबकुछ बिल्कुल रेडी हो जाता है. मगर ऐन वक्त पर उसके घर मेहमान आ जाता है. अनवॉन्टेड मेहमान, चिराग चौधरी.

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ये अतिथि एक-दो दिन नहीं बल्कि पूरे तीन महीने के लिए आता है. जिसके आने से ललिता का बना बनाया प्लान चौपट हो जाता है. मेहमान नवाज़ी के चक्कर में उसे अपनी वेकेशन वाली एक्साइटमेंट को दबाना पड़ता है. ललिता के लिए वो वेकेशन क्यों मायने रखता है? क्या वो अभी भी उस वेकेशन पर जा पाएगी? उस बिन बुलाए मेहमान से उसे कैसे छुटकारा मिलेगा? इसी के आस-पास की कहानी को 24 मिनट में समेटा गया है. #राइटिंग और दमदार एक्टिंग मनोरंजन की कहानी लिखी है गुल पनाग ने और बहुत स्मार्टली लिखी है. सस्पेंस को मेंटेन रखने का पूरा ज़िम्मा उनकी राइटिंग स्किल को भी जाता है. गुल पनाग ही ललिता का किरदार भी निभा रही हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि वो बेहतरीन एक्ट्रेस हैं. मगर इस फिल्म में उनकी एफर्टलेस एक्टिंग कई जगहों पर आपको कंफ्यूज़ कर देगी. #आऊ...लॉलिता ललिता का किरदार पहली नज़र में आपको कन्फ्यूज्ड लगेगा. पहले ही सीन से आप उस कैरेक्टर को लेकर कोई राय नहीं बना पाएंगे. एक सीन में ललिता, चिराग से कहती है कि वो रोज़ पापड़ बेलती है और उन्हें बेचती है. ताकि घर के खर्चों में मदद हो सके. कट टू अगले ही सीन में वो सभी बेले हुए पापड़ों को कुएं में फेंक देती है. किचेन वाले एक सीन में ललिता, चिराग को अपनी सास की मौत के बारे में बताती है. उसके एक्सप्रेशन देखकर तो आप खुद तय नहीं कर पाते कि उसकी सास मर गई या अभी भी ज़िंदा है? इसी सीन में वो कहती है,
किसी अपने को खोने से कभी-कभी लोगों के दिमाग पर अजीब सा असर हो जाता है.
ये अजीब सा असर आपके दिमाग में भी लगातार बना रहता है. आपके दिमाग के भीतर ही ये जद्दोजहद चलती रहती है कि भाईसाहब अब आगे क्या होने वाला है. मगर फिल्म के खत्म होते-होते ये बात समझ आ जाती है कि एक औरत चाहे तो कुछ भी कर सकती है. ये किरदार बताता है कि जब तक इंसान के हिसाब से चीज़ें चलती हैं, तब तक सब परफेक्ट होता है. लेकिन जहां परिस्थितियां डगमगाई तो लोगों के अंदर से तरह-तरह के शेड्स बाहर आने लगते हैं.

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ललिता के पति का किरदार निभाया है सत्यजीत शर्मा ने. जो बालिका वधू, बाल-गोपाल कृष्ण जैसे कई सीरीयल्स में नज़र आ चुके हैं. सत्यजीत का रोल बिल्कुल छोटा सा है. मगर उस छोटे से रोल में भी वो अपने हिस्से का काम कर जाते हैं. अब बात चिराग का रोल निभाने वाले मिहिर आहूजा की. जो इससे पहले नेटफ्लिक्स की फील्स लाइक ईश्क की एक स्टोरी में दिख चुके हैं. स्पॉटीफाई, फाइव स्टार और कैडबेरी जैसे कई टीवी ऐड्स में भी आ चुके हैं. तो चिराग चौधरी स्क्रीन पर खुद को सेल्फ सेंटर्ड दिखाने में कामयाब हो जाते हैं. खुद को सबसे तेज़ समझने वाला लड़का. जिसके अंदर ओवरकॉन्फिडेंस ठूंस-ठूंस कर भरा है. उनकी एक्टिंग भी काफी अच्छी है. #डायरेक्शन भी ज़ोरदार ऊपर हमने एक्टिंग की बात की. मगर इसके डायरेक्शन की भी बात करना ज़रूरी है. मनोरंजन का डायरेक्शन किया है सुहैल ततारी ने. जो इससे पहले केके मेनन वाली अंकुर अरोड़ा मर्डर केस बना चुके हैं. उन्होंने छोटी-छोटी चीज़ों पर बारीकी से ध्यान दिया है. जैसे पानी में डूबे रखे नकली दांत, कमरे के अंदर रखी फेड हो चुकी चप्पलें या बाथरूम के अंदर सफेद से पीला पड़ चुका टूथब्रश. फिल्ममेकिंग में सबसे टफ पार्ट होता है किसी भी चीज़ का सस्पेंस क्रिएट किए रखना. आजकल की जनता इतनी स्मार्ट है कि उसे पहले से ही पता चल जाता है कि आगे क्या होने वाला है. मगर मनोरंजन में आप किसी रिज़ल्ट पर नहीं पहुंच सकते. तभी तो लास्ट के 20 सेकेंड इस फिल्म का सबसे ज़रूरी पार्ट हैं.

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#देखें या नहीं हमारे यहां शॉर्ट फिल्म्स को ऐसे देखा जाता है जैसे कोई अजूबा. ऐसे, जैसे जींस-शर्ट पहने जजमानों से भरे हॉल में कोई खद्दर का कुर्ता पहन आया हो. जैसे केएफसी में पहुंचे किसी शख्स ने अपने लिए वेज बर्गर ऑडर्र कर दिया हो. माने शॉर्ट फिल्म्स को हमेशा अलग-थलग रखा जाता है. और इसी चक्कर में मनोरंजन जैसी फिल्में कहीं पीछे छूट जाती है. मनोरंजन अपने नाम को पूरी तरह जस्टिफाई करती है. कम समय में आपका भरपूर मनोरंजन करती है. इसलिए ये फिल्म ज़रूरी देखनी चाहिए.