Manoj Muntashir Shukla का लल्लनटॉप के खास प्रोग्राम 'बैठकी' में आना हुआ. यहां उन्होंने 'आदिपुरुष' के संवादों और अपने अन्य विवादित बयानों पर सफाई दी. इन्हीं में से एक है उनकी चंद्रशेखर आज़ाद पर लिखी गई कविता 'जियो तिवारी जनेऊधारी'. इस कविता को लिखने के बाद उन पर आज़ाद के नाम के साथ जबरन तिवारी लगाने का आरोप लगा था. कई लोगों ने उन पर ब्राह्मणवादी होने का भी आरोप लगाया. इन सब आरोपों पर मनोज ने सफाई दी है.
मुझे ऐतराज होता है, जब ब्राह्मणों का नायक विकास दुबे को बना दिया जाता है: मनोज मुंतशिर
ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देने के आरोप पर Manoj Muntashir Shukla ने जवाब दिया है. उन्होंने अपनी चंद्रशेखर आज़ाद पर लिखी अपनी कविता 'जियो तिवारी जनेऊधारी' पर भी सफाई दी है.

उनसे सवाल हुआ कि जैसे आपने अपने नाम में शुक्ला जोड़ने का फैसला लिया, चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने नाम के आगे तिवारी न लगाना चुना. फिर आपने जानबूझकर ऐसा क्यों किया? ऐसा करना कहां से उचित है? इस पर मनोज ने कहा:
अगर आपको ये लग रहा है कि मैंने क्रांतिकारियों को जाति या मजहब में बांटने की कोशिश की, तो ऐसा नहीं है.
आगे जवाब देते हुए मनोज ने कहा:
चंद्रशेखर तिवारी सीताराम तिवारी के पुत्र थे. उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (एचआरए) बनाई थी. एचआरए को आज भी उन्हीं के परिवार वाले चला रहे हैं. उन लोगों ने बाकायदा मुझे मेल करके इस बात का धन्यवाद दिया कि आपने बहुत अच्छा किया, अपनी इस पहचान पर पंडित जी को गर्व था. ये एचआरए की तरफ से मेरे पास मेल पर लिखा हुआ है. मुझे ऐतराज होता है जब आप ब्राह्मणों के नायक के तौर पर खड़ा कर देते हैं, श्री प्रकाश शुक्ला को. आपके लिए ब्राह्मण का मतलब विकास दुबे हो जाता है. ऐसे में मुझे लगता है कि हमारे पास और नायक हैं. हमारी आने वाली जनेरेशन को पता चले, ऐसे लोग भी हमारे कुल में हुए हैं. हमें चंद्रशेखर आज़ाद होना है, विकास दुबे नहीं.
मनोज ने आगे कहा:
मेरी कविता पर जब तमाशा हुआ, उसके तीन दिन बाद का ही मेरा वीडियो होगा. इसमें मैंने बोला था कि ब्राह्मणों, वैश्यों, मुस्लिमों की छवि आप उनके खलनायकों को उठाकर नहीं बना सकते. अगर आप ये छवि बनाएंगे, तो वो अपने हीरो लेकर आएंगे. चंद्रशेखर तिवारी मेरे हीरो हैं.
मनोज मुंतशिर को अपने नाम में 'शुक्ला' लगाने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
कुछ समय पहले उन्होंने जनेऊधारी और तिवारी वाले बयान पर कहा था:
भगतसिंह ने कहा था कि मैं नास्तिक हूं, इसके बावजूद आप उन्हें पगड़ी के साथ स्वीकार करते हैं, तो चंद्रशेखर आजाद को उनकी जनेऊ के साथ क्यों नहीं? उससे आपके कौन से एजेंडा को चोट पहुंच रही है?