राज कपूर लंबे समय से एक फिल्म प्लान कर रहे थे. वो चाहते थे कि 1949 में आई 'अंदाज़' की तरह इस फिल्म में उनके साथ नर्गिस और दिलीप कुमार काम करें. ये लेट फिफ्टीज़ की बात है. मगर अब इन तीनों ही एक्टर्स का आपसी इक्वेशन बदल चुका था. नर्गिस अब राज कपूर के साथ नहीं थीं. रिपोर्ट्स के मुताबिक दिलीप कुमार इस फिल्म में काम करने को तैयार तो हो गए. मगर उनकी एक शर्त थी. शर्त ये कि फिल्म के फाइनल कट की एडिटिंग उनके हिसाब से होगी. एडिटिंग फिल्ममेकिंग के लिहाज़ से बड़ा ज़रूर प्रोसेस होता है. फिल्म में क्या और कैसा दिखेगा, ये पूरी तरह एडिटर के हाथ में होता है. ज़ाहिर तौर पर राज कपूर ने दिलीप साहब की ये शर्त नामंजूर कर दी. इसके बाद वो अपनी लव-ट्रायंगल फिल्म के लिए देव आनंद के पास पहुंचे. किसी वजह से देव साहब भी वो फिल्म नहीं कर सके. फाइनली राज कपूर ने बॉक्स ऑफिस पर एक के बाद एक कई धमाके करने वाले एक्टर राजेंद्र कुमार को अपनी फिल्म में कास्ट कर लिया. नर्गिस वाले रोल में वैजयंतिमाला को ले लिया गया. 'संगम' नाम से बनी ये फिल्म 1964 में रिलीज़ हुई और बहुत बड़ी हिट साबित हुई.
इसके बाद राज कपूर ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया. इस फिल्म का नाम था 'मेरा नाम जोकर'. 'संगम' की रिलीज़ के ठीक बाद यानी 1964 में राज कपूर ने इस फिल्म पर काम शुरू कर दिया था. मगर इसे पूरी तरह बनकर रिलीज़ होने में 6 साल का समय लग गया. जब कोई फिल्म लंबे समय तक मेकिंग में रहती है, तो उससे ज़ाहिर तौर पर लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं. उदाहरण के तौर पर 'मुग़ल-ए- आज़म' को ही ले लीजिए, जिससे बनने में 14 साल लग गए थे. खैर, 'मेरा नाम जोकर' राज कपूर की मैग्नम ओपस थी. वो इसे बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते थे. समय के साथ-साथ इस फिल्म पर पैसा भी खूब लगाया गया. कहा जाता है इस फिल्म को बनाने में 1 करोड़ रुपए का खर्च आया था. 18 दिसंबर, 1970 'मेरा नाम जोकर' भारत में रिलीज़ हुई. फिल्म से राज कपूर को ही नहीं जनता को भी बड़ी उम्मीदें थीं. मगर फिल्म टिकट खिड़की पर धराशाई हो गई. जानने वाले कहते हैं कि इस फिल्म के पिटने के बाद राज कपूर ने खुद को शराब में डूबो दिया था. मगर क्या वजह रही इस फिल्म के पिटने की? इस सवाल के जवाब समेत 'मेरा नाम जोकर' की मेकिंग से जुड़ी तमाम बातें हम आगे जानेंगे
1.
जब डाइनिंग टेबल पर बैठे 16 साल के ऋषि कपूर को राज कपूर ने फिल्मों में लॉन्च कर दिया
कपूर खानदान के साथ एक बड़ी दिलचस्प बात जुड़ी हुई है. बात ये है कि इस खानदान का कोई भी शख्स अपनी मर्जी से फिल्म एक्टिंग में नहीं जाना चाहता था. पृथ्वीराज कपूर को फिल्मों में आने का मौका रविंद्रनाथ टैगोर की वजह से मिला. असिस्टेंट रहे राज कपूर को उनके डायरेक्टर ने हीरो बना दिया. और अब बारी थी ऋषि कपूर की. यूं तो ऋषि ने 2 साल की उम्र में ही अपना फिल्म डेब्यू कर लिया था. वो 1955 में आई फिल्म श्री420 के गाने प्यार हुआ इक़रार हुआ में दिखाई दिए थे. जब फिल्म की हीरोइन नर्गिस- 'मैं न रहूंगी, तुम ना रहोगे, फिर भी रहेंगी निशानियां' वाली लाइन गाती हैं, ठीक उसी समय ऋषि अपने दो और भाइयों के साथ पासिंग शॉट में नज़र आते हैं. अपनी बायोग्रफी खुल्लम खुल्ला मे ऋषि कपूर बताते हैं कि नर्गिस ने उन्हें चॉकलेट का लालच देकर ये सीन शूट करवाया था. मगर वो मेरा नाम जोकर को वो पहली फिल्म मानते हैं, जहां उन्हें फिल्ममेकिंग के प्रोसेस से प्यार हो गया.
फिल्म श्री420 के गाने प्यार हुआ इकरार हुआ के पासिंग शॉट में ऋषि कपूर (सबसे छोटे वाले)
अपनी किताब में ऋषि फिल्म मेरा नाम जोकर में अपनी कास्टिंग का किस्सा भी सुनाते हैं. ऋषि बताते हैं कि एक पूरा कपूर खानदान डाइनिंड टेबल पर बैठकर डिनर कर रहा था. इसी समय राज कपूर ने बड़े कैज़ुअल तरीके से ऋषि को फिल्म की स्क्रिप्ट पकड़ा दी. इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी कृष्णा से ऋषि को अपनी अगली फिल्म में कास्ट करने की परमिशन मांगी. कृष्णा मान गईं. मगर उनकी शर्त ये थी कि फिल्म की शूटिंग का असर ऋषि की पढ़ाई या स्कूल के अटेंडेंस पर नहीं पड़नी चाहिए. राज कपूर ने उन्हें आश्वासन दिया कि वो ऋषि कपूर के सीन्स सिर्फ वीकेंड पर शूट करेंगे, ताकि स्कूल का कोई पंगा ना रहे.
फिल्म मेरा नाम जोकर के एक सीन में ऋषि कपूर.
ऋषि अपने करियर के बारे में हो रही डिस्कशन सुनकर एक दम पम्प्ड अप हो गए. वो एक्साइटमेंट के मारे डाइनिंग टेबल से उठे और दौड़कर अपने कमरे में चले गए. हड़बड़-दड़बड़ में ड्रॉवर कॉपी-पेन निकाली और सिग्नेचर करने लगे. लोगों ने पूछा क्या हो रहा है भाई- तो ऋषि ने बताया कि वो अपने ऑटोग्राफ की तैयारी कर रहे हैं. फिल्म मेरा नाम जोकर के पहले सेग्मेंट में ऋषि कपूर ने अपने पिता राज कपूर के बचपन वाला किरदार निभाया था. इस फिल्म में उनके काम के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड से नवाज़ा गया था.
2.
जब राज कुमार ने तैश में आकर राज कपूर की फिल्म ठुकरा दी
राज कपूर की मेरा नाम जोकर में धर्मेंद्र और मनोज कुमार जैसे एक्टर्स गेस्ट रोल में नज़र आए थे. जब राज कपूर ने फिल्म में एक रोल के लिए मनोज कुमार को अप्रोच किया, तब वो मुंबई से बाहर शूटिंग कर रहे थे. राज कपूर ने मनोज कुमार को फोन किया. किसी गड़बड़ी की वजह से मनोज कुमार ने रॉन्ग नंबर बोलकर वो फोन काट दिया. राज कपूर को लगा मनोज उनकी फिल्म में काम नहीं करना चाहते, इसलिए उन्हें अवॉयड करने के लिए ऐसा कर रहे हैं. अगली बार दोनों की मुलाकात कंपोज़र जयकिशन के यहां हुई. बातचीत में राज कपूर ने रॉन्ग नंबर वाले वाकये का ज़िक्र छेड़ दिया. इसके बाद मनोज कुमार ने उन्हें उस दिन का पूरा किस्सा सुनाया और कहा कि वो बेशक उनकी फिल्म में काम करेंगे. राज कपूर ने पहले उनकी बात सुनी और फिर उनकी गोद में सिर रखकर रोने लगे. उन्हें लगा कि उन्होंने मनोज कुमार को गलत समझ लिया था.
एक इवेंट के दौरान राज कपूर और मनोज कुमार.
जब मनोज कुमार ने राइटर के.ए. अब्बास के लिखे डायलॉग्स बोलने से इन्कार कर दिया, तो राज कपूर ने उन्हें अपने डायलॉग्स खुद लिखने की परमिशन दी. जब मनोज कुमार ने अपना लिखा डायलॉग राज कपूर को दिखाया, तो वो इंप्रेस हो गए. और उन्हें वही डायलॉग्स फिल्म में इस्तेमाल करने की इजाज़त दी.
फिल्म में दूसरे कैमियो के लिए राज कपूर ने राज कुमार से बातचीत शुरू की. राज कुमार ने सीधे उस रोल को करने से मना कर दिया. उनका कहना था कि वो धर्मेंद्र और मनोज कुमार की तरह ऐसा-वैसा गेस्ट रोल नहीं करना चाहते. इस चीज़ से राज कपूर चिढ़ गए. दोनों की आपस में तूतू-मैंमैं होने लगी. बात इतनी बढ़ गई कि राज कुमार ने ये कह दिया कि वो उनसे काम मांगने नहीं आए थे. राज कपूर अपनी ज़रूरत के लिए उनके पास आए थे. इससे दोनों के बीच कटुता बढ़ गई. राज कपूर ने इसका बदला लेते हुए अपनी फिल्म के गाने 'कहता है जोकर सारा ज़माना' में राज कुमार के डुप्लिकेट को कास्ट कर लिया. ये एक तरह से राज कुमार को नीचा दिखाने की कवायद थी.
फिल्म के गाने 'कहता है जोकर सारा ज़माना' में राज कुमार का डुप्लिकेट.
3.
क्यों पिट गई राज कपूर की मैग्नम ओपस मेरा नाम जोकर?
मेरा नाम जोकर के पिटने के पीछे की मुख्य वजह उसकी लंबाई बताई जाती रही है. शुरुआत में इस फिल्म की लंबाई पांच घंटे से ज़्यादा थी. काट-छांट करने के बाद इसकी लंबाई 255 मिनट यानी 4 घंटे 15 मिनट पर आकर रुक गई. मगर राज कपूर की पिछली फिल्म संगम की लंबाई भी 3 घंटे 44 मिनट थी और वो बहुत बड़ी हिट साबित हुई थी. उसी फिल्म ने राज साहब को दोबारा इतनी लंबी फिल्म बनाने का बल दिया था. भारतीय सिनेमा इतिहास में दो ही ऐसी फिल्में हैं, जिसमें दो इंटरवल हैं. पहली संगम और दूसरी मेरा नाम जोकर.
फिल्म के एक सीन में जोकर बने राज कपूर.
टिकट खिड़की पर मेरा नाम जोकर के न चल पाने की एक वजह उसकी फिलॉसोफिकल अंडरटोन भी बताई जाती है, जो तब आम जनता की समझ में नहीं आया.
# मेरा नाम जोकर को ये कहकर प्रमोट किया जा रहा था कि ये फिल्म राज कपूर की ज़िंदगी से प्रेरित है. और ये फिल्म प्रेरित थी भी. मगर बड़े अप्रत्यक्ष तरीके से. पब्लिक को वो बात पसंद नहीं आई.
# तीन अधूरी प्रेम कहानियों की मदद से राज कपूर ये समझाने की कोशिश कर रहे थे जोकर किसी एक व्यक्ति का होकर नहीं रह सकता है. वो जनता का है. ये कहीं न कहीं उनकी खुद की लाइफ से जुड़ी हुई फिलॉसोफी थी. मगर उनकी ये बात जनता ही नहीं समझ पाई.
# फिल्म ये कहना चाहती थी चाहे जोकर की लाइफ में तमाम मुश्किलें मगर वो जो कुछ भी करता है दूसरें लोगों के लिए करता है. पब्लिक को ये लगा कि फिल्म का नाम है मेरा नाम जोकर मगर उसे देखकर हंसी नहीं आई. इसीलिए कहा गया है कि मेरा नाम जोकर अपने समय से आगे की फिल्म थी. और वो बात सही भी निकली. अपने दौर में ये फिल्म फ्लॉप रही. मगर बीतते समय के साथ इसकी फॉलोविंग में भारी इज़ाफा हुआ और अब यानी रिलीज़ के 50 साल बाद इसे हिंदी सिनेमा के क्लासिक्स में गिना जाता है.
# वर्ड ऑफ माउथ फिल्म के खिलाफ चली गई. फिल्म देखकर जो भी जनता बाहर निकली, वो इस फिल्म से संतुष्ट नहीं हुई. साथ अपने समय के लिहाज़ से ये काफी बोल्ड फिल्म भी थी. एक स्टूडेंट और उसके टीचर के बीच प्रेम वाला एंगल लोगों को ठीक नहीं लगा. उस दौर में पूरा परिवार एक साथ फिल्म देखने के लिए सिनेमाघरों में जाता था. मगर मेरा नाम जोकर में कई ऐसे सीन्स थे, जिसने फैमिली ऑडियंस को असहज कर दिया. यही सब चीज़ें फिल्म के खिलाफ चली गईं.
ये तो गिनाने वाली वजहें हो गई. असल में कोई भी एक्टर या फिल्ममेकर पुख्ते तौर पर ये नहीं बता सकता है कि उसकी फिल्म क्यों चली? या क्यों नहीं चल पाई?
पब्लिक इस फिल्म को लेकर कंफ्यूज़ हो गई. पहले उन्हें लगा कि ये राज कपूर की लाइफ पर बेस्ड फिल्म है. फिर टाइटल में जोकर देखने के बाद उन्हें लगा कि ये कॉमेडी फिल्म होगी. मगर उनका दोनों में से कोई गेस सही साबित नहीं हुआ.
4.
मेरा नाम जोकर के लिए गिरवी रखे घर और स्टूडियो को राज कपूर ने कैसे बचाया?
मेरा नाम जोकर राज कपूर के करियर की सबसे महंगी और महत्वाकांक्षी फिल्म थी. इसको बनाने के लिए उन्होंने अपने घर से लेकर आ.के स्टूडियो तक गिरवी रख दिया था. मगर फिल्म पिट गई. अब राज कपूर के सामने सबसे बड़ा सवाल ये था कि अपना घर और स्टूडियो कैसे बचाया जाए. राज कपूर चाहते तो उस खस्ताहाल में भी हिंदी फिल्म के किसी भी सुपरस्टार के साथ काम कर सकते थे. मगर इस बदहाली के दौर में उन्होंने एक और बड़ा रिस्क लिया. दो नए लोगों को लॉन्च करने का रिस्क. मेरा नाम जोकर के बाद राज कपूर ने 'बॉबी' नाम की फिल्म प्लान की. इस फिल्म से वो अपने बेटे ऋषि कपूर को लीड हीरो के तौर पर लॉन्च करने जा रहे थे. फिल्म में ऋषि के अपोज़िट कास्ट किए जाने के लिए नीतू सिंह और डिंपल कपाड़िया को शॉर्टलिस्ट किया गया. फाइनली ऋषि और डिंपल को लीड रोल में लेकर 'बॉबी' बनी.
ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया को लीड रोल में लेकर
बनी फिल्म बॉबी का एक सीन.
उस समय इंडिया की सबसे कमाऊ फिल्म थी देव आनंद स्टारर 'जॉनी मेरा नाम'. कहा जाता है कि 'जॉनी मेरा नाम' ने हर टेरिटरी से 50 लाख रुपए कमाए थे. 'बॉबी' रिलीज़ हुई और उसने 'जॉनी मेरा नाम' से दुगनी कमाई की. टीन रोमैंस ' बॉबी' इंडिया में ब्लॉकबस्टर साबित हुई. इस फिल्म ने असल मायनों में राज कपूर की सारी आर्थिक समस्याएं दूर कर दीं. ऋषि और डिंपल रातों-रात स्टार बन गए. लेकिन इस फिल्म के बाद डिंपल एक्टिंग से दूर हो गईं. क्योंकि बॉबी की रिलीज़ से 6 महीने पहले उनकी और राजेश खन्ना की शादी हो चुकी थी. तब डिंपल कुछ 16 की रही होंगी और काका 30-32 के आसपास.