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लस्ट स्टोरीज 2 : मूवी रिव्यू

कोंकणा सेन शर्मा वाला पार्ट ही बेस्ट है, आज इसे दोबारा देखा जाएगा.

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इन सबमें कुमुद मिश्रा ने सबसे धांसू काम किया है.

नेटफ्लिक्स पर 'लस्ट स्टोरीज' का दूसरा पार्ट आ गया है. ये चार कहानियों की एक एंथोलॉजी फिल्म है. इसे आर. बाल्की, कोंकणा सेन शर्मा, सुजॉय घोष और अमित रवीन्द्रनाथ शर्मा ने बनाया है. हर कहानी का डायरेक्टर अलग है, इसलिए हमने सोचा रिव्यू भी अलग-अलग होना चाहिए. चूंकि कहानी को कोई नाम नहीं दिया गया है, इसलिए हम इसे डायरेक्टर के नाम से सम्बोधित करेंगे.

1) आर. बाल्की

पहली कहानी है, आर.बाल्की वाली. दो लोग शादी करने की कगार पर हैं. तारीख भी तय हो चुकी है. पर उनकी दादी का कहना है कि पहले ये देखो दोनों की सेक्स लाइफ अच्छी होगी या नहीं. जैसे गाड़ी खरीदने से पहले टेस्ट ड्राइव ली जाती है, वैसा कुछ. हालांकि वो ये नहीं चाहती कि जिसके साथ सेक्स अच्छा हो, उसी से शादी की जाए. लेकिन जिससे शादी की जाए, उसके साथ सेक्स अच्छा ज़रूर होना चाहिए. आर. बाल्की ने इस कहानी को संजीदगी से ट्रीट किया है. इसके एक अश्लील टॉपिक बनने की सम्भावना काफ़ी ज़्यादा थी. पर बाल्की ऐसा होने से इसको बचा ले गए हैं. सीधी बात नो बकवास वाला फंडा उन्होंने अपनाया है. हालांकि मुझे निजी तौर पर लगा कि शादी करने जा रहे वेदा और अर्जुन को थोड़ा और स्पेस देना चाहिए था. उनके निजी पलों की बातचीत को और दिखाया जाता, तो हम उनकी मानसिक और यौनिक अवस्था को बतौर दर्शक ज़्यादा समझ पाते.

नीना गुप्ता हर एक नए किरदार में कुछ नया करती हैं.

अर्जुन के किरदार में अंगद बेदी ने नपातुला काम किया है. दूसरी ओर मृणाल ठाकुर कई जगहों पर आर्टिफिशियल लगीं हैं. खासकर दादी बनी नीना गुप्ता की बातों पर हंसती हुई मृणाल कई जगहों पर ठीकठाक फेक लगी हैं. नीना गुप्ता ऐक्टिंग में दिन प्रतिदिन नए प्रतिमान स्थापित कर रही हैं. वो अगर कोई चीज़ उठाने के लिए झुकती भी हैं, तो इस झुकाव में ही उनका बुढ़ापा झलकता है. कोई ऐसा नहीं है कि उन्होंने कुछ ज़बरदस्ती घुसेड़ा हो. स्क्रीन पर उनसे सबकुछ बहुत सहज फूटता है. वेदा के मां-बाप की सेक्स लाइफ पर आर. बाल्की को थोड़ा और बात करनी चाहिए थी. इससे वो अधेड़ पति-पत्नी की काम इच्छाओं को ज़्यादा एड्रेस कर सकते थे. हालांकि इसमें ये रिस्क भी था कि वो मूल मुद्दे से भटक जाते. मुझे बाल्की का एक फ्रेम काफी अच्छा लगा. एक ओर नीना गुप्ता खड़ी हैं और दूसरी ओर वेदा के पैरेंट्स. दोनों के बीच में एक दरवाजा है. ये उनकी सोच में दो-फाड़ का रूपक है. कोई अनुपम प्रयोग नहीं है. पर मुझे बढ़िया लगा.

2) कोंकणा सेन शर्मा

दूसरी कहानी है कोंकणा सेन शर्मा वाली. ये मेरे लिए चारों में से बेस्ट पार्ट रहा. कोंकणा को डायरेक्शन की फ्रीक्वेंसी बढ़ानी चाहिए. बहुत कमाल का डायरेक्शन है. सोचिए शुरू के कुछ मिनट बिना डायलॉग के कहानी आगे बढ़ती है, और क्या कमाल बढ़ती है! इनविजिबल कट्स का बहुत सही इस्तेमाल हुआ है. कैमरा पैन होता जाता है, और आपको कट्स का पता नहीं चलता. एक शॉट है, जो मुझे काफी पसंद आया. इसे आप सेमी डॉली ज़ूम शॉट कह सकते हैं. इसलिए क्योंकि इस शॉट में सिर्फ ज़ूम नहीं हो रहा होता, बहुत हल्का-सा डॉली मूवमेंट भी है. इशिता के किरदार में तिलोत्तमा सोम सिर्फ शून्य में खोई हुई हैं. कैमरा उनके चेहरे के क्लोजअप से शुरू होकर आखों के स्ट्रीम क्लोजअप पर खत्म होता है. फिर इसी प्रक्रिया को रिवर्स किया जाता है. किसी किरदार की मनोदशा को दिखाने का ये बहुत अच्छा तरीका है.

तिलोत्तमा ने जैसा काम किया है, ऐसी ऐक्टिंग बार-बार देखने को नहीं मिलती.  

खैर, दो महिलाएं हैं, दोनों की आर्थिक स्थिति बिलकुल अलग है. एक किसी कम्पनी में जॉब करती है, दूसरी उसके यहां मेड है. लेकिन वो एक जगह पर आकर मिलती हैं, वो जगह है उनकी सेक्शुअल फीलिंग्स. मैं इस पर बहुत बात करना चाहता हूं लेकिन सब स्पॉइलर हो जाएगा. बहरहाल, तिलोत्तमा और अमृता सुभाष ने जो काम किया है ना भाईसाहब, बड़े-बड़े ऐक्टर खड़े होकर ताली बजाएं. एक सीन जहां दोनों आपस में लड़ती हैं, उस झगड़ने में भी संकोच है. ऐसे ही क्लाइमैक्स में जब दोनों मिलती हैं, उस मिलने में भी संकोच है. सब बहुत अद्भुत है. अमृता और तिलोत्तमा का ऐसा काम है कि ऐक्टिंग फ्रंट पर सुई भर न दाएं भागा जा सकता है, न ही बाएं. इस वाले पार्ट पर बहुत बातें कहनी हैं. किसी रोज़ अलग से विस्तार में बात करेंगे.

3) सुजॉय घोष

तीसरा पार्ट है सुजॉय घोष का. ये इस एंथोलॉजी का सबसे कमजोर पार्ट है. विजय वर्मा हैं, तो ऐक्टिंग अच्छी ही होगी. तमन्ना ने भी अच्छी ऐक्टिंग की है. यहां मामला ऐक्टिंग का नहीं है. डायरेक्शन भी ठीक है. पर स्क्रिप्ट में ख़ास दम नहीं है. ये पूरी कहानी डायलॉग के सहारे आगे बढ़ती है. पर एक वक़्त के बाद ये बोझिल लगने लगती है. काफी समय तो आप यही समझने में निकाल देते हैं कि आखिर कहानी में हो क्या रहा है? इसमें सेक्स के साथ थ्रिलर को मिक्स करने की कोशिश हुई है. पर इसमें सुजॉय घोष के हाथ नाकामयाबी ही लगी है. ये वाला पार्ट निर्मल वर्मा की किसी कहानी की तरह एक ही कमरे में घटने की कोशिश करता है, पर सफल नहीं हो पाता. एक ओपन एंडिंग और सरप्राइजिंग क्लाइमैक्स के ज़रिए सारी कमियों की भरपाई करने का प्रयास हुआ है. पर वो भी कुछ ऐसा नहीं है, जो हमने इससे पहले कभी देखा न हो. इसलिए इस कहानी ने मुझे निराश किया. इसमें बस लस्ट थी, एक मुकम्मल स्टोरी गायब थी.

विजय वर्मा और तमन्ना बतौर जोड़ी अच्छे लगे हैं.

4) अमित रवीन्द्रनाथ शर्मा

अमित शर्मा वाले पार्ट को अगर चारों कहानियों में से रैंकिंग देनी हो, तो मैं इसे दूसरे या फिर तीसरे पर रखूंगा. पहला और चौथा नंबर तो अब तक आप जान ही गए हैं. इस वाले पार्ट में कुमुद मिश्रा ने ऐक्टिंग का सातवां आसमान छू लिया है. आप उनके किरदार से नफ़रत करने लगते हैं. उनके आंखों की हवस आपको स्क्रीन पर असली में दिखने लगती है. काज़ोल को जब वो डांटते हैं, स्क्रीन के इस पार आप कांप उठते हैं. काजोल का काम भी अच्छा है. उनको एक स्टार से ऐक्टर में तब्दील होते देखकर अच्छा लग रहा है. अनुष्का कौशिक का छोटा-सा रोल है. पर मुझे नहीं पता था कि वो इतनी अच्छी ऐक्ट्रेस हैं. कहानी के तौर पर ये सबसे मज़बूत पार्ट है. इसकी एंडिंग सबसे ज़्यादा हार्ड हिटिंग है. जैसे असम्भावना में कुछ सम्भव हो गया हो. इस पार्ट को मज़बूत कहानी और कमाल कुमुद मिश्रा के लिए देखा जा सकता है.

कुमुद मिश्रा ने किरदार को ऐसे निभाया है, जैसे जिया हो.

फिर भी मेरे लिए कोंकणा सेन शर्मा वाला पार्ट ही बेस्ट रहेगा. मैं आज इसे दोबारा देखूंगा. आप पहली बार ही देख लीजिए. बेहद शुक्रिया. 

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