1. 2002 में चीन से SARS कोरोनावायरस फैला था. इसने 774 लोगों की जान ली. 2. फिर 2012 में सऊदी अरब से MERS कोरोनावायरस फैला. इसने 850 लोगों की जान ली. 3. अब 2019 में इस फैमिली का सबसे नया सदस्य सामने आया है - 2019-nCov. पूरा नाम - 2019-नोवेल कोरोनावायरस.
31 दिसंबर, 2019 को चीन के वुहान शहर में इस वायरस का पहला केस सामने आया. तभी दुनिया ने पहली बार इस वायरस का नाम सुना. आज जब मैं ये स्टोरी लिख रहा हूं, लगभग एक महीना बीतने को है. अब तक ये कोरोनावायरस(2019-nCov) -
लगभग 6000 लोगों तक पहुंच चुका है. 130 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. 16 से ज़्यादा देशों में फैल चुका है.और अब तक हमारे पास इसकी कोई दवा नहीं है.
कोरोनावायरस का नाम क्राउन से आया है. क्राउन मतलब ताज. ये जो हरा-हरा दिख रहा है, यही ताज. (सोर्स - नेचर)
इस आर्टिकल में वायरस से निबटने के तरीकों की बात करेंगे. वायरस से कैसे लड़ा जाता है? 2019-nCov यानी वुहान वायरस से हमारी लड़ाई किस स्टेज पर पहुंची है? और इस लड़ाई में AIDS/HIV की वैक्सीन का क्या रोल है?
वायरस और बैंक रॉबरी
पिछले आर्टिकलमें हम वायरस की बात कर चुके हैं. लेकिन यहां भी उस जानकारी की ज़रूरत है. इसलिए ब्रीफ में वायरस के बारे में जान लीजिए -
वायरस की ज़िंदगी का एक्कई मकसद है - फैलना. फैलने का मतलब है बच्चे पैदा करना. बच्चे पैदा करने के लिए ऊर्जा चाहिए होती है. और ऊर्जा के लिए खाने-पीने का जुगाड़ होना चाहिए. लेकिन वायरस ठहरे अव्वल दर्जे के मक्कार. इनको खाना बनाना आता ही नहीं.ये वायरस के बारे में बुनियादी जानकारी है. हमें थोड़ी सी और डीटेल चाहिए होगी. कुछ नहीं, बस वायरस की बनावट समझनी होगी. वायरस की बनावट में दो चीज़ें मेन हैं -
एनर्जी के लिए ये हमारे सेल्स यानी कोशिकाओं पर हमला करते हैं. हमारी कोशिकाओं से एनर्जी खींचकर वायरस अपने जैसे और वायरस बनाते हैं. और हमारे शरीर की एनर्जी डाउन करके ये फैलने लगते हैं.
ये SARS कोरोनावायरस की ग्राफिक इमेज है. Severe Acute Respiratory Syndrome. (सोर्स - विकिमीडिया)
1. प्रोटीन की लेयर - कोशिकाओं को खोलने वाली चाबी. 2. न्यूकलिक एसिड (DNA या RNA) - वायरस बनाने की रेसिपी.आप वायरस के अटैक को बैंक रॉबरी जैसा समझिए. इस रॉबरी में एक नोट छापने वाली मशीन तिजोरी के अंदर रखी होती है. अगर इस मशीन तक पहुंच गए, तो जितने चाहे उतने नोट छापे जा सकते हैं. बस इस बैंक रॉबरी के लिए दो चीज़ें चाहिए -
पहली - तिजोरी खोलने वाली चाबी. अपना हर एक सेल तिजोरी है. और वायरस की प्रोटीन लेयर इस तिजोरी को खोलने की चाबी.
रॉबरी के लिए ज़रूरी दूसरी चीज़ है - नोट छापने की डीटेल्स. भईया, मशीन को बताना होगा न कि कैसा नोट छापना है. वायरस के अंदर मौजूद न्यूक्लिक एसिड्स (DNA या RNA) में यही डीटेल्स होती हैं.
बाकी हिस्सों को इग्नोर कीजिए. बाहरी रिंग पर चाबियां लगी हैं. अंदर है वायरस बनाने की रेसिपी. (सोर्स - विकिमीडिया)
असलियत में कोई नोट नहीं छापे जा रहे. हमारे सेल (तिजोरी) के अंदर न्यूक्लिक एसिड (नोट छापने की डीटेल्स) से अगले वायरस का मटेरियल तैयार होता है. ये वायरस उसी या अगले सेल पर अटैक करता है. वायरस पे वायरस बनते जाते हैं, और ये लूटमार का सिलसिला चलता रहता है.
तिजोरी की सिक्योरिटी
इस लूटमार को कैसे रोका जाए? वायरस से लड़ने के दो तरीके पॉपुलर तरीके हैं - एंटीवायरल और वैक्सीन. इन्हें एक-एक करके देखते हैं.1. एंटीवायरल - तिजोरी का ताला जाम
ये दवाई है. शरीर के अंदर वायरस का इन्फेक्शन रोकने वली दवाई. ऐसा समझिए कि ये दवाई उस ताले को जाम कर देती है, जिसे खोलकर वायरस तिजोरी के अंदर दाखिल होते हैं. एंटीवायरल है तो बढ़िया चीज़ लेकिन इसमें कुछेक दिक्कतें हैं.
क्या है कि हमारी तिजोरी (कोशिका/सेल) को खोलने वाले वाले बहुत सारे ताले (रिसेप्टर साइट्स) होते हैं. अलग-अलग वायरस अलग-अलग रिसेप्टर साइट से होकर अंदर घुसते हैं. ऐसे में ये पहचानना बहुत मुश्किल होता है कि किस रिसेप्टर साइट को ब्लॉक किया जाए.
बड़ा वाला गोला है कोशिका(सेल). छोटा वाले गोले हैं वायरस. बाकी चीज़ें छोड़िए. क्रॉस के देखिए. जहां जहां निशान लगा है, HIV की वैक्सीन में वहां वायरस की प्रोसेस रोकी जाती है. इनमें से पहला क्रॉस वहां है जहां वायरस सेल से अटैच हो रहा है.(सोर्स - विकिमीडिया)
दूसरी बात ये है कि एंटीवायरल का सारा खेल वायरस के अंदर घुसने के बाद का है. जब तक हमें पता चलेगा कि हमारे अंदर फलाना वायरस घुसा है, तब तक वायरस काफी नुकसान कर चुका होगा.
तीसरी बात ये है कि ये सहूलियत सिर्फ वायरस से ग्रसित रोगी के लिए होती है. ये कम्युनिटी के काम नहीं आती.
इसलिए एंटीवायरल की जगह दूसरे उपाय को ज़्यादा तरजीह दी जाती है. और दूसरा उपाय है वैक्सीन यानी टीका.
2. वैक्सीन - सेना की तैयारी
हमारे खून में घुसपैठियों से लड़ने वाले सैनिक पहले से ही होते हैं. इन सैनिकों का नाम है - व्हाइट ब्लड सेल्स. ऐसा नहीं है कि जब वायरस हमारे शरीर की तिजोरियां लूट रहे होते हैं, तब ये सैनिक बैठे देखते रहते हैं. ये लड़ते हैं. अपनी पूरी ताकत लगाकर लड़ते हैं. लेकिन लड़ाई जीतने के लिए सिर्फ सेना नहीं, स्ट्रेटेजी भी चाहिए होती है.
लाल वाला हिस्सा है रेड ब्लड सेल्स. रेड ब्लड सेल्स सब जगह ऑक्सीजन सप्लाई करते हैं.(सोर्स - फ्रेंकलिन इंस्टिट्यूट)
हर बार एक ही मैथड से प्रॉब्लम सॉल्व करने पर मेरे मैथ्स टीचर बढ़िया ताना मारते थे -
मच्छर देखा और तलवार लेकर दौड़ पड़े.हर गणित का सवाल एक ही मैथड से हल नहीं किया जाता. और हर लड़ाई एक ही हथियार से नहीं लड़ी जाती. किसी से लड़ने के लिए तलवार चाहिए. किसी से लड़ने के लिए ताली. इसी तरह हर वायरस से लड़ने का तरीका अलग होता है. और हर लड़ाई में अलग तरह के सैनिक चाहिए होते हैं.
अब युद्ध का एक एज-ओल्ड नियम जानिए. जिस चीन से 2019-nCov और SARS जैसे कोरोनावायरस निकले हैं, उसी चीन से लगभग 1500 साल पहले एक किताब निकली थी - दी आर्ट ऑफ वॉर (युद्ध की कला). इस किताब को लिखने वाले सन ज़ू ने 'एलीमेंट ऑफ सरप्राइज़' का ज़िक्र किया है. सन ज़ू लिखते हैं -
खुली चुनौती देने पर तुम्हारी सेना कुचल दी जाएगी. युद्ध जीतने का सबसे अहम हिस्सा है - सरप्राइज़.वायरस से बेहतर सरप्राइज़ शायद ही कोई दे पाता हो. हर वायरस दूसरे से बहुत अलग तरीके से लड़ता है. इसलिए हमारी व्हाइट ब्लड सेल्स की सेना नए वायरसों से सरप्राइज़ हो जाती है. नया वायरस आने पर हमारे सैनिकों का बहुत वक्त इसी चीज़ में जाता है कि इससे लड़ा कैसे जाए? और जब तक ये स्ट्रेटेजी बनती है, तब तक वायरस हद से ज़्यादा फैल चुके होते हैं.
दी आर्ट ऑफ वॉर युद्ध कला पर लिखी गईं सबसे पुरानी किताबों में से एक है. (सोर्स - एमेज़ॉन)
वैक्सीन यानी टीका हमारे अंदर की सेना को सरप्राइज़ के लिए तैयार करता है. दरअसल, किसी भी घुसपैठिए से लड़ने वाली वैक्सीन में उसी घुसपैठिए के सैंपल्स होते हैं. बस ये सैंपल्स कमज़ोर या मरे हुए घुसपैठिए होते हैं. ताकि हमारा शरीर इनकी चपेट में भी न आए और इनकी पहचान भी हो जाए. और पहचान के साथ हो जाती है इनसे निबटने की तैयारी. तैयारी ये कि ऐसे टाइप के वायरस से कट्टा लेकर लड़ना है. या AK47 लेनी है, या फिर इन्हें बम से मारना है.
पोलियो का वायरस एक ज़माने में बड़ी चुनौती हुआ करता था. आज लगभग हर घर में पोलियो की वैक्सीन पहुंचती है. (सोर्स - रॉयटर्स)
वैक्सीन में एंटीवायरल वाली दिक्कतें कम हैं. एक तो ये प्रिवेंशन है, क्योर नहीं. मतलब वैक्सीन आपके शरीर को बीमार होने से पहले ही तैयार कर देती है. वैक्सीन से हमारी इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बेहतर होती ही है. इससे हमारी हर्ड इम्यूनिटी भी बेहतर होती है. हर्ड इम्यूनिटी मतलब हमारे झुंड की रोग प्रतिरोधक क्षमता.
सोचिए, अगर आपके दोस्त के अंदर ही वायरस खत्म हो जाएगा, तो वो आप तक पहुंचेगा ही नहीं. या कम से कम उसके फैलने के चांस कम हो जाएंगे. वैक्सीन हमेशा एक बड़ी टार्गेट पॉपुलेशन को दी जाती है. इसमें इस बात का इतना लोड नहीं रहता कि सामने वाले को वो बीमारी है या नहीं.
HIV की वैक्सीन से 2019-nCov का इलाज?
अब उस सवाल पर आते हैं, जिसके लिए ये स्टोरी लिखी गई है - 2019 nCov नाम के कोरोनावायरस की वैक्सीन कहां है?10 जनवरी, 2020 को चाइनीज़ साइंटिस्ट्स ने इस वायरस की जानकारी सार्वजनिक की. वायरस की जानकारी मतलब इसका जेनेटिक कोड. न्यूयॉर्क टाइम्स
के मुताबिक अगली सुबह अमेरिका के कुछ साइंटिस्ट्स ने लैब में काम शुरू किया. और कुछ ही घंटों में जेनेटिक कोड के हिस्से की पहचान कर ली गई, जिससे वैक्सीन बनाई जा सकती है.
ये इन्फलूएंज़ा की वैक्सीन है. कोरोनावायरस के लिए इस वैक्सीन के साथ भी एक्सपेरीमेंट किए जा रहे हैं. (सोर्स - विकिमीडिया)
बहुत सारी सरकारी और प्राइवेट एजेंसियां इस कोरोनावायरस की वैक्सीन बनाने में जुटी हुई हैं. और कुछ हद तक ये इस प्रोसेस में सफल भी हुई हैं. लेकिन वैक्सीन बना लेना और उसे पब्लिक के लिए मार्केट में उतारना दो बहुत अलग बातें हैं.
लोगों तक वैक्सीन पहुंचने में कई महीने लग सकते हैं. क्योंकि हर वैक्सीन को पहले जानवरों और फिर इंसानों पर टेस्ट करना होता है. वैक्सीन को टेस्ट करना इस प्रोसेस का एक ज़रूरी पड़ाव है. साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट
से बात करते हुए हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी के डॉक्टर युएन ने कहा -
हम वैक्सीन बना चुके हैं. लेकिन इसे जानवरों पर टेस्ट करने में बहुत समय लगेगा.2002 में चीन से निकले SARS कोरोनावायरस की वैक्सीन निकालने में रीसर्चर्स को 20 महीने लग गए थे.
रेड रिवन ऐड्स के खिलाफ लड़ाई का सिंबल है. (सोर्स - वूमेन्स हैल्थ)
कुछ रीसर्चर्स ने HIV की वैक्सीन को मॉडीफाई करके कोरोनावायरस की वैक्सीन बनाई है. HIV यानी Human Immunodeficiency Virus. वही वायरस जिनसे AIDS होता है. 24 जनवरी को दी लैंसेट
में छपी रिपोर्ट के मुताबिक ये वैक्सीन लोपिनाविर और रितोनाविर के कॉम्बिनेशन से बनी है. जिन यितेन हॉस्पिटल - जहां शुरुआती मरीज़ों को रखा गया था - वहां इस वैक्सीन का कंट्रोल्ड ट्रायल शुरू हो चुका है. 2004 की एक स्टडी
से ये सामने आया था कि ये कॉम्बिनेशन SARS कोरोनावायरस से पीड़ित मरीज़ों के लिए मददगार साबित हुई थी.
ये शुरुआती और जुगाड़ू तरीके हैं. लेकिन 2019-nCov की एक मुकम्मल वैक्सीन लॉन्च होने में अभी वक्त है.
वीडियो - जानिए कोरोनावायरस के बारे में सबकुछ, जो चीन के बाद भारत में भी आ सकता है