किचन घर का वो हिस्सा जिसके इर्द-गिर्द हमारा पूरा घर घूमता है. जहां दिन भर में एकाध बार सभी का आना जाना होता है. मैं भी कुछ अलग नहीं हूं, मेरा भी अपने घर की किचन में आना-जाना होता ही रहता है. अभी एक रोज़ मैं किचन में गैस का लाईटर खोज रहा है और इस चक्कर में खो गया अपने बचपन की यादों में, जब किचन डिजाइनर नहीं बल्कि घर का एक पूजनीय हिस्सा हुआ करता था. जहां बिना नहाए जाने पर पाबंदी थी. बासी खाना लुत्फ़ लेकर नाश्ते में “पीढ़े” पर बैठकर खाया जाता था, डाईनिंग टेबल का नाम भी किसी ने नहीं सुना था. डबलरोटी (ब्रेड) विलासिता थी, जिससे सेहत खराब होती थी, खाते वक्त बोलना असभ्यता की निशानी थी और मां खाना बनाते न तो कभी थकती थी और न ही कभी यह कहती थी, आज खाना बाहर से मंगवा लिया जाए. कहने को हम लखनऊ जैसे शहर में रहते थे पर वो शहर आज के शहर जैसा नहीं था, गैस के चूल्हे आने शुरू ही हुए थे पर अंगीठी और चूल्हे से जुडी हुई चीजें अभी भी इस्तेमाल में थीं. जिनके इर्द-गिर्द हमारा बचपन बीता. फिर धीरे–धीरे वो सब चीजें हमारे जैसी पीढी की यादों का हिस्सा बनती चली गईं जैसे किचन में एक दुछत्ती का होना अब किचन में वार्डरोब होता है. वो ज्वाईंट फैमली का जमाना था, जब खाना बनाने में पूरे घर की महिलाएं लगती थीं और बच्चों के लिए यह दौर किसी उत्सव से कम न होता था. अब तो लोग शायद उन्हें पहचान भी न पाएं तो मैंने भी अपने बचपन के यादों के पिटारे के बहाने हमारे किचन से गायब हुई उन चीजों की लिस्ट बनाने की कोशिश की है जिनके बहाने ही सही उस पुराने दौर को एक बार फिर जी लिया जाए जो अब हमारे जीवन में दोबारा नहीं आने वाला है.
दादी के जमाने के दस बर्तन जो अब किचन में कम दिखते हैं
उस जमाने के बर्तन जब इमाम दस्ते की आवाज से पता चल जाता था, घर में मसलहा बन रहा है.
मुकुल श्रीवास्तव, दी लल्लनटॉप के रीडर हैं और लखनऊ यूनिवर्सिटी में मास कॉम डिपार्टमेंट के एचओडी हैं. जर्नलिस्ट तैयार करते हैं समझ लीजे. किचन में घुसे तो अपने बचपने के ये बर्तन-भांड़े उन्हें याद हो आए. वो तमाम चीजें जो उन्होंने अपने घर के किचन में हमेशा से इस्तेमाल होते देखी हैं. आपके लिए तस्वीरें जुटाई और भेज दिया हमें. आप भी पढ़िए, याद कीजिए, नोस्टैल्जिक हो जाइए. और कुछ सूझे तो भेज दीजिए lallantopmail@gmail.com पर.
किचन घर का वो हिस्सा जिसके इर्द-गिर्द हमारा पूरा घर घूमता है. जहां दिन भर में एकाध बार सभी का आना जाना होता है. मैं भी कुछ अलग नहीं हूं, मेरा भी अपने घर की किचन में आना-जाना होता ही रहता है. अभी एक रोज़ मैं किचन में गैस का लाईटर खोज रहा है और इस चक्कर में खो गया अपने बचपन की यादों में, जब किचन डिजाइनर नहीं बल्कि घर का एक पूजनीय हिस्सा हुआ करता था. जहां बिना नहाए जाने पर पाबंदी थी. बासी खाना लुत्फ़ लेकर नाश्ते में “पीढ़े” पर बैठकर खाया जाता था, डाईनिंग टेबल का नाम भी किसी ने नहीं सुना था. डबलरोटी (ब्रेड) विलासिता थी, जिससे सेहत खराब होती थी, खाते वक्त बोलना असभ्यता की निशानी थी और मां खाना बनाते न तो कभी थकती थी और न ही कभी यह कहती थी, आज खाना बाहर से मंगवा लिया जाए. कहने को हम लखनऊ जैसे शहर में रहते थे पर वो शहर आज के शहर जैसा नहीं था, गैस के चूल्हे आने शुरू ही हुए थे पर अंगीठी और चूल्हे से जुडी हुई चीजें अभी भी इस्तेमाल में थीं. जिनके इर्द-गिर्द हमारा बचपन बीता. फिर धीरे–धीरे वो सब चीजें हमारे जैसी पीढी की यादों का हिस्सा बनती चली गईं जैसे किचन में एक दुछत्ती का होना अब किचन में वार्डरोब होता है. वो ज्वाईंट फैमली का जमाना था, जब खाना बनाने में पूरे घर की महिलाएं लगती थीं और बच्चों के लिए यह दौर किसी उत्सव से कम न होता था. अब तो लोग शायद उन्हें पहचान भी न पाएं तो मैंने भी अपने बचपन के यादों के पिटारे के बहाने हमारे किचन से गायब हुई उन चीजों की लिस्ट बनाने की कोशिश की है जिनके बहाने ही सही उस पुराने दौर को एक बार फिर जी लिया जाए जो अब हमारे जीवन में दोबारा नहीं आने वाला है.
किचन घर का वो हिस्सा जिसके इर्द-गिर्द हमारा पूरा घर घूमता है. जहां दिन भर में एकाध बार सभी का आना जाना होता है. मैं भी कुछ अलग नहीं हूं, मेरा भी अपने घर की किचन में आना-जाना होता ही रहता है. अभी एक रोज़ मैं किचन में गैस का लाईटर खोज रहा है और इस चक्कर में खो गया अपने बचपन की यादों में, जब किचन डिजाइनर नहीं बल्कि घर का एक पूजनीय हिस्सा हुआ करता था. जहां बिना नहाए जाने पर पाबंदी थी. बासी खाना लुत्फ़ लेकर नाश्ते में “पीढ़े” पर बैठकर खाया जाता था, डाईनिंग टेबल का नाम भी किसी ने नहीं सुना था. डबलरोटी (ब्रेड) विलासिता थी, जिससे सेहत खराब होती थी, खाते वक्त बोलना असभ्यता की निशानी थी और मां खाना बनाते न तो कभी थकती थी और न ही कभी यह कहती थी, आज खाना बाहर से मंगवा लिया जाए. कहने को हम लखनऊ जैसे शहर में रहते थे पर वो शहर आज के शहर जैसा नहीं था, गैस के चूल्हे आने शुरू ही हुए थे पर अंगीठी और चूल्हे से जुडी हुई चीजें अभी भी इस्तेमाल में थीं. जिनके इर्द-गिर्द हमारा बचपन बीता. फिर धीरे–धीरे वो सब चीजें हमारे जैसी पीढी की यादों का हिस्सा बनती चली गईं जैसे किचन में एक दुछत्ती का होना अब किचन में वार्डरोब होता है. वो ज्वाईंट फैमली का जमाना था, जब खाना बनाने में पूरे घर की महिलाएं लगती थीं और बच्चों के लिए यह दौर किसी उत्सव से कम न होता था. अब तो लोग शायद उन्हें पहचान भी न पाएं तो मैंने भी अपने बचपन के यादों के पिटारे के बहाने हमारे किचन से गायब हुई उन चीजों की लिस्ट बनाने की कोशिश की है जिनके बहाने ही सही उस पुराने दौर को एक बार फिर जी लिया जाए जो अब हमारे जीवन में दोबारा नहीं आने वाला है.