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फिल्म रिव्यू- किल

Nikhil Nagesh Bhat की Kill, एक्शन के मामले में इंडिया में बना लैंडमार्क सिनेमा है.

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'किल' लक्ष्य ललवानी के करियर की पहली फिल्म है. इससे पहले वो 'दोस्ताना 2' में काम कर रहे थे. मगर वो पिक्चर बंद हो गई.

फिल्म- किल 
डायरेक्टर- निखिल नागेश भट
एक्टर्स- लक्ष्य, तान्या मानिकतला, राघव जुयाल, आशीष विद्यार्थी 
रेटिंग- 3.5 स्टार्स

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एक लड़का पटना से पुणे जा रहा था. मुंबई जनता एक्सप्रेस पकड़ के. देर रात जब तक ट्रेन को इलाहाबाद पहुंच जाना चाहिए था, तब वो कहीं सुनसान जगह पर खड़ी थी. बड़ी देर हो गई. जब उस लड़के ने अपने आसपास देखा, तो ट्रेन में सेना के कई जवान नज़र आए. माजरा कुछ समझ नहीं आ रहा था. थोड़ी पूछताछ करने पर पता चला कि बगल वाली एसी-2 टीयर बोगी को रात में डकैतों ने लूट लिया है. ट्रेन में इतने जवान इसलिए मौजूद थे क्योंकि तब ट्रेन पटना से सटे दानापुर कैंट के आसपास खड़ी थी. ये घटना उस लड़के दिमाग में अटकी रह गई. इस लड़के नाम है निखिल नागेश भट. 2016 में उन्होंने इसी घटना से प्रेरित होकर एक एक्शन फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी. जिस पर 'किल' नाम की फिल्म बनाई. ये फिल्म दुनियाभर के अलग-अलग फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई गई. लोगों ने बड़ा पसंद किया. बात यहां तक पहुंच गई कि 'किल' को John Wick वाले डायरेक्टर ने हॉलीवुड में रीमेक करने के लिए चुन लिया. इतने सब के बाद ये फिल्म आज इंडिया में रिलीज़ हुई है.

'किल' की कहानी एक प्रेमी जोड़े अमृत और तुलिका के बारे में है. अमृत NSG कमांडो है. वो एक मिशन पर होता है, तभी तुलिका की सगाई किसी दूसरे लड़के से हो जाती है. अब तुलिका अपने परिवार के साथ रांची-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस पकड़कर दिल्ली जा रही है. इसी ट्रेन में 40 लोगों एक गैंग भी चढ़ा है, जो ट्रेन को लूटना चाहता है. इस गैंग का सरगना है फणी. अमृत भी तुलिका से मिलने के लिए अपने दोस्त के साथ इसी ट्रेन में मौजूद है. मगर यहां हो जाती है गड़बड़. मामला डकैती से कहीं आगे बढ़ जाता है. और इसके केंद्र में होते हैं तुलिका, अमृत और फणी.

'किल' प्योर एक्शन फिल्म है. अगर आप इसमें कहानी ढूंढेंगे, डायलॉग्स की उम्मीद लगाएंगे और नाच-गाने का इंतज़ार करेंगे, तो खाली हाथ घर लौटेंगे. इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है. क्योंकि सबकुछ अचानक हो रहा है. लोग मौके पर ही तय कर रहे हैं कि उनके साथ जो हो रहा है, उस पर कैसे रिएक्ट करना है. ज़्यादा सोचने-विचारने का समय भी नहीं है. क्योंकि सवाल सर्वाइवल का है. एक सेकंड की देरी और खेल खत्म. प्लस ये पूरी फिल्म एक ट्रेन की बोगी में घटती है. जहां बमुश्किल ही सबके बैठने की जगह है. जितना कम स्पेस होगा, एक फिल्ममेकर और टेक्निकल टीम की कलई खुलने के चांसेज़ उतने ज़्यादा रहेंगे. क्योंकि वहां कुछ भी छुपाने की जगह नहीं. सबकुछ बारीकी से प्लांड और परफेक्शन के साथ एग्ज़ीक्यूट होना है. यहीं पर 'किल' एक शानदार एक्शन फिल्म साबित होती है. शायद इंडिया में बनी अब तक की बेस्ट एक्शन फिल्म.

अगर ईमानदारी से बताऊं, तो मैं बेदिमाग एक्शन वाली फिल्में देखने पसंद नहीं करता. मगर 'किल' देखते वक्त आपके सारे प्री-कंसीव्ड नोशंस धरे के धरे रह जाते हैं. क्योंकि फिल्म बुलेट की रफ्तार से आगे बढ़ती है. आपको सोचने-समझने का समय दिए बिना. 'किल' में कम से कम 50 लोगों की हत्या होती है. उसी ट्रेन की बोगी में. मगर इस फिल्म की सबसे अच्छी बात ये लगती है कि हर जान की कीमत है. ये नहीं कि मार-काट हुई और कहानी आगे चल दी. बल्कि इन्हीं हत्याओं की वजह से कहानी बढ़ती है. कुछ घंटों की ट्रेन जर्नी में ही आपको कैरेक्टर्स के आर्क देखने को मिलते हैं. सही-गलत का फर्क धुंधला होने लगता है. बात यहां आकर ठहर जाती है कि लोगों की हत्याएं करने के लिए किसकी वजह ज़्यादा वाजिब है.

'किल' में लक्ष्य ललवानी ने अमृत नाम के NSG कमांडो का रोल किया है. इस रोल के लिए कोई ऐसा एक्टर चाहिए था, जो ये सब करने के लिए ट्रेन्ड हो. लक्ष्य इस रोल में फिट हो जाते हैं. तान्या मानिकतला ने तुलिका का रोल किया है. उनका स्क्रीनटाइम लिमिटेड है. मगर वो प्रभावित करती हैं. इस फिल्म की असली खोज हैं राघव जुयाल. उन्होंने फणी का रोल किया है. राघव डांसर हैं. उन्हें हमने आमतौर पर डांस रियलिटी शोज़ में होस्टिंग और कॉमेडी करते देखा है. यहां पर आपको उनका अलग ही रूप देखने को मिलता है. राघव ने 'किल' में जो काम किया है, उसे देखकर आप कल्पना भी नहीं कर पाएंगे कि ये आदमी कॉमेडी करता होगा. प्रॉपर एक्टर मटीरियल. इनके अलावा फिल्म में आशीष विद्यार्थी और हर्ष छाया जैसे एक्टर्स ने भी काम किया है. 'अनदेखी' के बाद हर्ष छाया को इस तरह के फिलर रोल्स में देखकर कोफ्त होती है. मगर आशीष विद्यार्थी फिल्म में वजन लेकर आते हैं. उनके स्क्रीन पर आने के बाद आपको लगता है कि मामला सीरियस हो गया है.

'किल' का जो सेट-अप है, उसकी बात फिल्म की टेक्निकल क्रू की तारीफ के बिना नहीं हो सकती. राफे महमूद की सिनेमैटोग्राफी आपको घुटन सी महसूस करवाती है. आपको आइडिया देती है कि इतनी कम जगह में इतना सारा एक्शन कर पाना कितना मुश्किल है. जो एक्शन हो रहा है, उसे डिज़ाइन किया है परवेज़ शेख और से-यॉन्ग ओह  (Se-Yeong Oh) ने. 'किल' के एक्शन सीक्वेंसेज़ की मज़ेदार बात ये है कि इनमें किसी फैंसी हथियार का इस्तेमाल नहीं हुआ है. चोर-डकैतों के पास जो छुरी, खुखरी और कटार जैसे हथियार होते हैं, वही हैं. जो बचाव पक्ष है, उसके पास तो वो भी नहीं है. अमृत को किसी तरह ट्रेन के चादर, फायर एक्सटिंग्विशर और सीटों के आसपास लगे हैंडल से ही काम चलाना पड़ता है. ऑथेंटिसिटी भी बची रह गई और दुश्मन भी मर गए.

निखिल नागेश भट की 'किल' एक्शन के मामले में इंडिया में बना लैंडमार्क सिनेमा है. आप एक्शन फिल्में देखना पसंद करते हों या नहीं, ये फिल्म आपको देखनी चाहिए. आप इसे देखकर नापसंद कर दीजिए. मगर इस एडवेंचर से खुद को बेताल्लुक़ मत रखिए.  

 

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