फिल्म- केसरी 2
डायरेक्टर- करण सिंह त्यागी
एक्टर्स- अक्षय कुमार, आर. माधवन, अनन्या पांडे, अमित सियाल
रेटिंग- 2 स्टार (**)
फिल्म रिव्यू- केसरी 2
Akshay Kumar की नई फिल्म Kesari 2 कैसी है, जानने के लिए पढ़ें ये रिव्यू.

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पिछले हफ्ते सिनेमाघरों में सनी देओल की 'जाट' लगी थी. उस पूरी फिल्म में सनी देओल की सिर्फ एक ही मांग थी- 'सॉरी बोल'. इस हफ्ते अक्षय कुमार की 'केसरी 2' आई है. इस फिल्म का कहना है कि ब्रिटिश हुकूमत ने जालियांवाला बाग नरसंहार के लिए आज तक माफी नहीं मांगी. जबकि ये बात साबित हो चुकी है कि जिन लोगों पर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवाईं, वो आतंकवादी नहीं, निहत्थे लोग थे.
ख़ैर, 'केसरी 2' 2019 में आई 'केसरी' का सीक्वल है. दोनों फिल्मों की कहानी में कोई समानता नहीं है. मगर उन्हें बनाए जाने के पीछे का आइडिया सेम है. एक देशभक्ति से लबरेज फिल्म, जो आपको एक ऐतिहासिक घटना से रूबरू करवाती है. टिपिकल अक्षय कुमार स्टाइल में. क्योंकि किरदार जो भी हो, अक्षय अक्षय ही रहते हैं. इस फिल्म में ये बात ज़्यादा खुलकर सामने आती है क्योंकि सी संकरन नायर केरल से थे. अक्षय इस किरदार को आत्मसात करने की रत्तीभर भी कोशिश नहीं करते. जब ये फिल्म बन रही थी, तो इसे संकरन नायर की बायोपिक बताया जा रहा था. मगर ये फिल्म उनके जीवन की सिर्फ एक घटना के बारे में बात करती है. जब वो जालियांवाला बाग नरसंहार के बाद अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ कोर्ट जाते हैं. फिल्म की शुरुआत में ही ये लिखकर आता कि वैसे तो ये फिल्म असल घटनाओं से प्रेरित है, मगर पूरी तरह से वर्क ऑफ फिक्शन है.
'केसरी 2' की कहानी 13 अप्रैल, 1919 में शुरू होती है. बैसाखी का दिन है. लोगों का हुजूम रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांति प्रदर्शन करने के लिए एक जगह जमा होते हैं. तभी वहां जनरल डायर आता है और बेगुनाह निहत्थे लोगों पर 1650 राउंड गोलियां चलवा देता है. इसमें हज़ारों लोगों की मौत हो जाती है. दूसरी तरफ उसी दिन सी. संकरन नायर नाम के बैरिस्टर को ब्रिटिश सरकार नाइटहुड से सम्मानित करती है. वो ब्रिटिश वायसराय काउंसिल के सदस्य हैं. और ब्रितानी हुकूमत के हिमायती हैं. उनका रिकॉर्ड है कि वो आज तक एक भी केस नहीं हारे. मगर जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उनका हृदय परिवर्तन होता है और वो अंग्रेज़ों के खिलाफ खड़े हो जाते हैं. वो कोर्ट में ये साबित करते हैं कि जिन निहत्थे लोगों पर जनरल डायर ने गोलियां चलवाईं, वो आतंकवादी नहीं थे.
इस फिल्म का आधे से ज़्यादा हिस्सा कोर्ट रूम में घटता है. जहां भारी-भरकम डायलॉगबाज़ी और ड्रामा चल रहा है. ये एक प्रॉपर कॉमर्शियल फिल्म है, जिसे अक्षय कुमार की छवि का ध्यान रखते हुए गढ़ा गया है. इसलिए इसे इतिहास के पन्ने की तरह देखने की बजाय सिर्फ मनोरंजन के लिए देखा जाना चाहिए.
जैसा कि मेकर्स ने शुरुआत में ही बता दिया कि ये फिल्म असल घटनाओं से प्रेरित है. मगर पूरी तरह से तथ्य आधारित नहीं है. इसमें कुछ क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है. मसलन, फिल्म का एक सीन है, जिसमें संकरन नायर का किरदार जालियांवाला बाग नरसंहार के पीछे की वजह बताता है. वो कहता है कि जनरल डायर ने इस हत्याकांड की प्लानिंग पहले से कर रखी थी. क्योंकि इस हत्याकांड से कुछ ही दिन पहले राम नवमी का त्यौहार था, जिसे हिंदुओं और मुसलमानों ने मिलकर मनाया था. इससे ब्रिटिश हुकूमत की फूट डालो और राज वाली नीति फेल हो रही थी. इस बात से वो लोग इतने असुरक्षित हो गए कि निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसा दीं. इस समेत कुछ मौकों पर ऐसा लगता है कि फिल्म आपको मैनिपुलेट करने की कोशिश करती है. हालांकि ये नज़रिए का फर्क भी हो सकता है. शायद आपको ये फिल्म देखते हुए ऐसा महसूस न हो, जैसा मुझे हुआ.
'केसरी 2' में अक्षय अपना बेस्ट करने की कोशिश करते हैं. मगर ये परफॉर्मेंस उनकी पिछली फिल्मों से कुछ खास अलग नहीं है. प्लस एक पंजाबी होकर वो मलयाली व्यक्ति के रोल में कन्विंसिंग नहीं लगते. न भाषा से, न देहभाषा से. आर. माधवन ने ब्रिटिश सरकार के वकील नेविल मैकिन्ले का रोल किया है. जो संकरन नायर के खिलाफ लड़ता है. माधवन की परफॉरमेंस इस फिल्म की सबसे प्रभावी चीज़ है. क्योंकि उनके ऊपर फिल्म चलाने का प्रेशर नहीं है. इसलिए वो एक्ट करने के साथ-साथ उसे एंजॉय भी करते लगते हैं. जो जेन्यूइन लगता है. अनन्या पांडे ने दिलरीत गिल नाम की लॉयर का रोल किया है, जो संकरन नायर को ये केस लड़ने के लिए प्रेरित करती है. कोर्टरूम में अनन्या के हिस्से सिर्फ एक सीन आता है, जिसमें वो एक महिला से सच निकलवाती हैं. जिसमें वो जंचती हैं. बाकी एक्टर्स बस फिलर के तौर पर काम आते हैं.
'केसरी 2' एक ठीक फिल्म है. जो शायद इससे बेहतर नहीं हो सकती थी. क्योंकि वो यही होना चाहती थी. मैं फिर से वही बात दोहराऊंगा कि इस फिल्म को सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए देखा जाना चाहिए. 'केसरी 2' देखने के बाद मैं ये कह रहा हूं कि अभी भी शूजीत सरकार की 'सरदार उधम', जालियांवाला बाग नरसंहार पर बनी सबसे बेहतरीन फिल्म है.
नोट- 'केसरी 2', रघु पलट और पुष्पा पलट की किताब 'द केस दैट शुक द एम्पायर' पर आधारित है.
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