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कांति शाह: बी ग्रेड सिनेमा का बादशाह, जिसने धर्मेन्द्र को मामू बना दिया था

कान्ति शाह, जिन्होंने 'गुंडा' और 'लोहा' जैसी फिल्में बनाई. वो 'गुंडा', जो आज एक कल्ट फिल्म बन चुकी है. पढिए उसकी मेकिंग और कान्ति शाह की लाइफ से जुड़े किस्से.

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कान्ति शाह मानते हैं कि उनकी फिल्में बी या सी ग्रेड कैटेगरी की नहीं. उनकी फिल्में, 'लोहा' और 'गुंडा' से स्क्रीनशॉट.

साल 1998. मुंबई शहर. एक कॉलेज की कुछ लड़कियों ने अपनी क्लास बंक की. सोचा कि चलकर कोई पिच्चर देखी जाए. दोस्तों की टोली पहुंच गई एक सिनेमाघर में. फिल्म शुरू हुई. जिसे देखकर सबका माथा भन्ना गया. फिल्म के आपत्तिजनक डायलॉग्स ने उनका जी घिना दिया. बीच फिल्म ही सिनेमाघर से बाहर आ गए सब. इस सवाल के साथ कि ऐसी बेहूदी फिल्म आखिर रिलीज़ कैसे हुई. अपना यही सवाल उन्होंने एक लंबी चौड़ी चिट्ठी में लिखा और भेज दिया सेंसर बोर्ड को. 

सेंसर बोर्ड ने संज्ञान लिया, रिलीज़ हुई वो फिल्म देखी और फौरन उसे सिनेमाघरों से हटाने का आदेश दिया. ये फिल्म थी ‘गुंडा’. जिसे बनाया था कांति शाह ने. सेंसर बोर्ड ने उनके खिलाफ कार्रवाई करने का फैसला किया. उसकी वजह थी कांति शाह की होशियारी. दरअसल, हर फिल्म की रिलीज़ से पहले उसे सर्टीफिकेशन बोर्ड के पास भेजा जाता है. ताकि बोर्ड फिल्म देखकर बता दे कि उसे एडल्ट कैटेगरी में रखना है या यूनिवर्सल जैसी कैटेगरी में. बोर्ड को अगर किसी हिस्से या डायलॉग पर आपत्ति हो, तो वो फिल्ममेकर से उन्हें हटाने या बदलाव करने के लिए भी कह सकता है. खैर, प्रोसेस को फॉलो करते हुए कांति शाह ने भी ‘गुंडा’ की एक कॉपी बोर्ड के पास भेजी. बोर्ड ने फिल्म देखकर उसमें 40 कट्स करने को कहा. कहा कि ये कट्स हो जाएंगे, उसके बाद ही वो फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट देंगे. 

Gunda Movie
‘गुंडा’ फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती का एक स्टिल. 

कांति मान गए. मामला निपट गया. लेकिन कांड होना बाकी था. उन्होंने फिल्म के कट्स वाली कॉपी की जगह ओरिजिनल कॉपी ही रिलीज़ कर डाली. वो ओरिजिनल कॉपी जिसके ‘कफनचोर नेता’ और ‘हसीना का पसीना’ जैसे शब्द, और बच्चे को हवा में उछालने वाले सीन पर बोर्ड ने ऐतराज़ जताया था. ऐसे हैं कांति शाह. फास्ट फूड सिनेमा के दिग्गज डायरेक्टर. जिनकी फिल्म ‘गुंडा’ डिजिटल एज में आकर कल्ट बनी. लेकिन कांति शाह की कहानी सिर्फ ‘गुंडा’ तक सीमित नहीं. उसके पहले और बाद में भी बहुत कुछ घटा. 

अक्सर किसी फिल्ममेकर या एक्टर के जन्मदिन पर हम ‘बॉलीवुड किस्से’ के एपिसोड में उनकी बात करते हैं. लेकिन कांति शाह का जन्मदिन हाल-फिलहाल में नहीं, या शायद हो. क्योंकि वो अपना जन्मदिन और अपनी उम्र कभी मीडिया में नहीं बताते. हमारा मन किया, इसलिए आज के बॉलीवुड किस्से में जानेंगे कांति शाह की लाइफ से जुड़े कुछ सुने-अनसुने और कमसुने किस्से. 


# मार-धाड़ वाली फिल्मों से ‘मार धाड़’ तक पहुंचे 

सेवंटीज़ का दौर. वो समय जब हिंदुस्तानियों के लिए सिनेमा धर्म की तरह था. कोई भी उससे बिना प्रभावित हुए नहीं रह सका. उस दौर में बड़े हो रहे कांति को भी फिल्मों का चस्का था. वो खासतौर पर दो ही तरह की फिल्में देखते, हॉलीवुड की मार धाड़ वाली फिल्में और साउथ से आई एरोटिक फिल्में. कांति उन दिनों जुहू में अपने परिवार के साथ रहते. माता-पिता और अपने भाई-बहन के साथ. उनके भाई कृष्णा शाह भी आगे चलकर डायरेक्टर बने. उन्होंने 1978 में आई धर्मेन्द्र और ज़ीनत अमान स्टारर ‘शालीमार’ बनाई थी. खैर, बचपन से ही कांति को पढ़ाई से अरुचि थी. घरवाले फोर्स करते, फिर भी पढ़ने का मन नहीं करता. किसी तरह फर्स्ट ईयर जूनियर कॉलेज यानी FYCJ तक पहुंचे, और पढ़ाई से हाथ जोड़ लिए. महाराष्ट्र में FYCJ दूसरे राज्यों की कक्षा ग्यारहवीं के बराबर है. 

पढ़ाई छोड़कर आए कांति को घर पर मेडल तो नहीं मिलने वाला था. घरवाले जमकर बरसे. कहा था कि पढ़ाई बस की नहीं है तो कम से कम कुछ काम-धाम कर लो. कांति ने बात मान ली. रेडिफ़ की सोनील डेढ़िया को दिए इंटरव्यू में कांति बताते हैं कि काम की तलाश में वो एक गैराज पहुंच गए, और वहां बतौर मैकेनिक काम करने लगे. ये सिलसिला चला, लेकिन सिर्फ अगले छह महीनों तक. उसके बाद कांति ने उल्हासनगर के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. वहां से रुमाल, तकियों के कवर जैसी चीज़ें इकट्ठी खरीदते. फिर ट्रैवल करते सांता क्रूज़ तक. जहां ले जाकर ये सब चीज़ें बेचा करते. इस काम में डेली की भाग दौड़ थी, और थकना मना. फिर भी उन्होंने ये काम कंटिन्यू रखा, करीब एक साल तक. उसके बाद ‘और नहीं बस और नहीं’ कहकर विदा ले लिया. 

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कांति शाह को अपने करियर में सिर्फ एक अवॉर्ड मिला, ‘गोल्डन केला अवॉर्ड ’.  

कुछ समय तक काम तलाशने की कोशिश की, पर बात नहीं बनी. फिर एक दिन उनकी मुलाकात हुई अपने एक दोस्त से. जिनका नाम था रघुनाथ सिंह, और ये भाईसाहब फिल्मों में काम करते थे. मतलब एक्टर नहीं थे, प्रॉडक्शन का काम संभालते थे. उन्होंने कांति को प्रॉडक्शन असिसटेंट की पोस्ट पर रख लिया. कांति बताते हैं कि उस दिन के बाद उन्हें फिर कभी पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी. उन्होंने बी आर चोपड़ा की कई फिल्मों पर बतौर प्रॉडक्शन असिस्टेंट काम किया. कई सारे प्रोजेक्ट्स पर काम करने के दौरान वो फिल्म का बिज़नेस समझने लगे. एक फिल्म कैसे बनती है, कितना पैसा लगता है, कौन कितना पैसा कमाता है जैसी तमाम बातें. 

जब लगा कि लर्निंग सॉलिड हो गई है तो अपनी फिल्म बनाने की सोची. मंदाकिनी, हेमंत बिरजे और सदाशिव अमरापुरकर जैसे एक्टर्स को लेकर. ये फिल्म थी 1988 में आई ‘मार धाड़’. कांति शाह इस फिल्म के प्रड्यूसर थे. फिल्म के लिए म्यूज़िक दिया था राजेश रोशन ने. फिल्म की शुरुआत होती है एक रेप सीन से. उसके पीछे भी एक वजह है. उस दौर की तकरीबन हर दूसरी हिंदी फिल्म में ऐसे सीन होते थे. कांति बताते हैं कि एक बार वो कलकत्ता के एक थिएटर में पहुंचे हुए थे. उन्होंने देखा कि थिएटर के आसपास मौजूद रिक्शा चलाने वाले, और दुकान वाले अपना काम-धंधा छोड़कर थिएटर पहुंच गए. वजह थी कि उन्हें सामने चल रही फिल्म का रेप सीन देखना था. सिर्फ वही एक सीन. जिसके बाद वो सब अपने काम पर लौट गए. कांति को अब अपनी ऑडियंस मिल गई थी. उन्होंने ऐसे ही सीन अपनी फिल्म में यूज़ करने का फैसला लिया. 


# फास्ट फूड फिल्मों की शुरुआत 

‘मार धाड़’ कोई बहुत बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म नहीं थी. फिर भी उसने कांति शाह को अच्छा पैसा बनाकर दे दिया. कांति ने आगे अपनी पूरी फिल्मोग्राफी छोटे शहरों और गांव जैसे क्षेत्रों में रहने वाली ऑडियंस को डेडिकेट कर दी. वो समझ चुके थे कि जैसी फिल्में वो बनाने वाले हैं, उन्हें शहरी ऑडियंस पसंद नहीं करेगी. उनकी अगली फिल्म थी ‘गंगा जमुना की ललकार’. जिसे कांति शाह ने खुद ही डायरेक्ट किया. रामसे ब्रदर्स की तरह कांति शाह भी प्रॉफ़िट ओनली मॉडल पर चलते. यानी 25 से 50 लाख की लागत में फिल्म बनाते, जो अच्छा बिज़नेस करती. 

कांति स्क्रिप्ट पर ज्यादा मेहनत नहीं करते. एक्टर्स को वन लाइन ब्रीफ़ देते, और उनकी अधिकतर फिल्मों पर डायलॉग राइटर रहे बशीर बब्बर सेट पर ही फटाफट डायलॉग लिखते. कांति की इसी अप्रोच ने उनकी फिल्मों को फास्ट फूड का लेबल दे दिया. बनाने में ज्यादा टाइम नहीं लगता, और जिसे जनता झट से कंज़्यूम कर ले. जिस दौर में कांति शाह ने फिल्में बनाना शुरू की, उस समय हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक और बड़ी घटना घटी. मिथुन चक्रवर्ती यूनिवर्स का उदय हुआ. बताया जाता है कि लेट एटीज़ में मिथुन ने मुंबई छोड़ दिया. अपना सारा सामान लेकर ऊटी शिफ्ट हो गए. उनके शिफ्ट होने के पीछे की अलग-अलग कहानियां पढ़ने को मिलती है. कोई कहता है कि उन्हें अंडरवर्ल्ड से फिरौती के लिए धमकियां मिल रही थी, तो कोई मिथुन दा के ऐसा करने के पीछे पर्सनल वजह बताता है. 

खैर, मिथुन ने ऊटी जाकर एक होटल खरीद लिया. नाम था होटल मानार्क. फिल्ममेकर्स यहां शूट करने आते. जिनके साथ मिथुन एक कॉन्ट्रैक्ट करते. जिसके मुताबिक फिल्म का पूरा क्रू होटल में रहेगा, और शूट के लिए उन्हें एक लाख रुपए पर डे की फीस देनी होगी. कॉस्ट कटिंग के लिए फिल्ममेकर्स ऊटी आकर शूट करने लगे. कांति ने भी यही फॉर्मूला अपनाया. ‘वीर’, ‘रंगबाज़’, ‘लोहा’ और ‘गुंडा’ जैसी फिल्मों की शूटिंग इसी मॉडल पर की.   


# जब सनी देओल ने ऑफिस बुलाकर पीटा 

कांति शाह का नाम बहुत सारे लोगों ने नहीं सुना. भले ही उनकी फिल्में देखी हों. फिर भी उनसे जुड़ा एक किस्सा है, जिसका कोई न कोई वर्ज़न सब तक पहुंचा ही है. हुआ यूं कि कांति शाह ने धर्मेन्द्र को एक सीन शूट करने के लिए बुलाया. कहा कि एक दिन का शूट है, पैसा भी अच्छा मिलेगा. आपके किरदार को हार्ट अटैक आता है, बस वही एक्ट आउट करना है. धर्मेन्द्र मान गए. अपना सीन शूट किया और इस बात को भूल गए. 

इस घटना के कुछ हफ्तों बाद ये फिल्म रिलीज़ हुई. वो भी सबसे पहले पंजाब में, जहां धर्मेन्द्र एक लॉयल फैनबेस इन्जॉय करते हैं. उनके फैन्स ने फिल्म देखी, और दंग रह गए. फिल्म के एक सीन में धर्मेन्द्र बेड पर लेटे ऑर्गैज़म ले रहे थे. उनके साथ एक लड़की के विज़ुअल इम्पोज़ कर दिए गए. मिड डे के एंटरटेनमेंट हेड मयंक शेखर कांति शाह और गुंडा पर लिखे अपने एक कॉलम में इस घटना का एक और वर्ज़न बताते हैं. उनके मुताबिक ये भी सुना जाता है कि कांति शाह ने उस सीन में धर्मेन्द्र को घुड़सवारी की नकल करने को कहा था. जिसके बाद उनके विज़ुअल एक लड़की के साथ सुपर इम्पोज़ कर दिए. 

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कांति शाह की फिल्म ‘लोहा’ में धर्मेन्द्र. 

वर्ज़न कोई भी हो, पर ये कोई नहीं नकारता कि ऐसा हुआ नहीं. साथ ही वो जो इसके बाद घटा. किसी डायरेक्टर ने धर्मेन्द्र के साथ फ्रॉड कर ऐसा सीन शूट किया है, ये बात सनी देओल तक पहुंच गई. उन्होंने कांति शाह को अपने ऑफिस बुलाया, स्क्रिप्ट नैरेशन के बहाने से. मयंक लिखते हैं कि उसके बाद सनी ने उनकी जमकर धुलाई की. जिसके बाद वो सीन निश्चित तौर पर फिल्म से गायब हो गया. 


# जब ऑफिस के बाहर वो लड़की मिली 

अगर आप कांति शाह की फिल्मोग्राफी एक्सप्लोर करेंगे या कर चुके हैं, तो उसमें एक चेहरा स्टैंड आउट किया होगा. एक लड़की का चेहरा. जिसका नाम था सपना. कांति शाह ने सपना के साथ 60 से ज्यादा फिल्मों में काम किया. ‘डाकू रामकली’ और ‘जंगल की शेरनी’ जैसी फिल्मों को लीड किया. सपना ने कांति शाह की मील का पत्थर ‘गुंडा’ से अपना डेब्यू किया था. फिल्म में उन्होंने मिथुन के किरदार शंकर की बहन वाला रोल निभाया था. इसके बाद उन्होंने 2012 तक कांति शाह की अलग-अलग फिल्मों में काम किया.  

अगर उन दोनों की जर्नी की शुरुआत को पिन पॉइंट करना हो, तो वो होगा साल 1997. जब नाशिक में रहने वाली सपना अपने बारहवीं बोर्ड के एग्ज़ैम लिख चुकी थी. एग्ज़ैम हो जाने के बाद घूमने मुंबई आ गई. उधर उस दौरान कांति ने अपनी फिल्म ‘लोहा’ की शूटिंग पूरी की थी. वो अपनी एक मीटिंग के लिए मुंबई के आदर्श नगर में स्थित किसी ऑफिस आए हुए थे. मीटिंग पूरी कर के बाहर निकले, और उनकी नज़र पड़ी सपना पर. तुरंत उन्हें अप्रोच किया. मिलने का न्योता दे दिया. 

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सपना ने कांति शाह की फिल्मों को प्रड्यूस भी किया. 

दोनों मिले. कांति ने अपनी फिल्मों में काम करने का ऑफर दिया. जिसे सपना ने बिना ज्यादा सवाल-जवाब एक्सेप्ट कर लिया. सपना अपने एक इंटरव्यू में बताती हैं कि उन दोनों को पहली मुलाकात में एक अट्रैक्शन महसूस हुआ. सपना और कांति ने मिलकर पहले चार सालों में 30 फिल्में बना डाली. कांति शाह की फिल्मों में एक्टिंग करने के अलावा सपना ने उनकी फिल्मों को प्रड्यूस भी किया.    


# ‘मल्टीप्लेक्स में मेरी फिल्में नहीं चलेंगी’

कांति शाह ने अपनी फिल्में सिर्फ छोटे शहरों और वर्किंग क्लास को टारगेट कर के बनाई. वो ऑडियंस जो सिंगल स्क्रीन पर 10-15 रुपये की टिकट लेकर उनकी फिल्में देखती. जब से सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों पर सूरज ढला, कांति शाह जैसे फिल्ममेकर्स के लिए फिल्म बना पाना भी उतना ही मुश्किल हो गया. कांति जानते हैं कि कोई भी 200 या 300 रुपए खर्च कर के उनकी फिल्म को मल्टीप्लेक्स पर नहीं देखेगा. 

इसी वजह से वो लंबे समय से फिल्में नहीं बना पा रहे हैं. हालांकि, वो बीच-बीच में फिल्में अनाउंस ज़रूर करते हैं. जैसे ‘मैं सनी लियोनी बनना चाहती हूं’, जहां वो सनी की लाइफ स्टोरी दिखाने का दावा कर रहे थे. या फिर शीना बोरा मर्डर केस पर फिल्म. ये प्रोजेक्ट अब तक बस्ते से बाहर नहीं आ पाए हैं.