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मूवी रिव्यू - जून

16 महीने फिल्म फेस्टिवल्स में घूमने के बाद Barnali Ray Shukla की फिल्म Joon रिलीज़ हो गई है. कैसी है ये फिल्म, जानने के लिए रिव्यू पढिए.

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बतौर डायरेक्टर ये बर्नाली रे शुक्ला की दूसरी फिल्म है.

अमेज़न प्राइम वीडियो पर एक फिल्म रिलीज़ हुई है. नाम है Joon. बतौर डायरेक्टर ये Barnali Ray Shukla की दूसरी फिल्म है. ये फिल्म करीब 16 महीनों तक दुनियाभर के फिल्म फेस्टिवल्स में घूमी और उसके बाद अब पब्लिक के लिए रिलीज़ हो चुकी है. बर्नाली ने बताया था कि फिल्म के लिए किसी भी स्टार को अप्रोच नहीं किया गया. यही वजह है कि फिल्म में सभी नए चेहरे हैं. 

फिल्म के पहले शॉट में हमारा परिचय सिड से होता है. बेफिकरा सा. घनी दाढ़ी, लंबे बाल. अपने आसपास की दुनिया को दिल में भरा तमाम प्यार देने वाला. सिड बाइक पर रास्ते नापता है और यादें बनाता है. उसके पास जय पहुंचता है. अपनी महंगी गाड़ी में सवार होकर. दोनों में कॉन्ट्रास्ट सिर्फ बाइक और गाड़ी जितना ही नहीं है, दुनिया को देखने, समझने के नज़रिए भी पूरी तरह से जुदा हैं. जय किसी शालिनी को ढूंढ रहा है. सिड से उसका ठिकाना पूछता है. जवाब में सिड कहता है कि वो जिसे जानता था, वो तो कोई और ही थी. 

कट टू: एक साल पहले.

सिड अपनी बाइक गैंग के साथ दोस्त रूपा के भाई की शादी में आया है. जय ही वो भाई है. उसकी शादी जून नाम की लड़की से होने वाली है. जून यानी चेहरे पर चांद जैसा तेज रखने वाली लड़की. उस लड़की के मन में तूफान उमड़ रहा है. ऐसा तूफान जिसकी खबर किसी को नहीं. ऐसा तूफान जिसकी हल्की हवा से समाज के तमाम तय ढांचे ध्वस्त हो सकते हैं. सिड इसी तूफान को थोड़ी हवा दे देता है. उसके बाद उसकी, जून और जय की ज़िंदगी कैसे बदलती है, यही फिल्म की कहानी है. 

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फिल्म की सिनेमैटोग्राफी स्टैंड-आउट करती है.

फिल्मी दुनिया की ठीक-ठाक समझ पाने से पहले दिमाग में एक सवाल दौड़ता था. कि राइटर फिल्म लिखते हैं. सिनेमैटोग्राफर लाइटिंग, फ्रेमिंग और कम्पोज़िशन जैसी बातों का ध्यान रखते हैं. तो ऐसे में डायरेक्टर क्या करते हैं. डायरेक्टर इन सभी में से सबसे मुश्किल काम करते हैं – चुनाव करने का काम. और फिर उन चॉइसेज़ के साथ बने रहने का काम. यहां बर्नाली ने इस काम को बखूबी ढंग से निभाया है. उनके काम का इम्पैक्ट समझने से पहले सिनेमैटोग्राफर पिनाकी सरकार पर बात करते हैं. फिल्म का अधिकांश हिस्सा पहाड़ों में शूट हुआ है. सरकार के कैमरे ने जिस तरह से वहां की वादियों को कैप्चर किया है, वो आपको अपने AC दफ्तर के कमरों से निकालकर वहां पहुंचा देती है. फ्रेम्स बस ऐसे ही नहीं रचे गए. बल्कि हर फ्रेम के पास कहने के लिए कुछ-ना-कुछ था. 

जैसे जब सिड शुरुआत में शादी वाले घर आता है, तब वो अपने सभी दोस्तों के साथ मिलनसार रहता है. लेकिन जून से मिलने के बाद उसके अंदर कुछ बदलने लगता है. अपने किसी अनजाने पहलू से रूबरू होने लगता है. फिर एक शॉट आता ही जहां ये सभी दोस्त किसी ऊंची पहाड़ी पर खड़े हैं. सिड उनके साथ नहीं खड़ा. वो अलग, जुदा-सा अपनी धुन में खड़ा है. वो वहां सिर्फ फ्रेम में अपने दोस्तों से अलग नहीं हुआ. बल्कि वैचारिक रूप से भी उनसे अलग हो चुका है, और शायद अब कभी उन में जाकर नहीं मिल पाएगा. 

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फिल्म के एक सीन में अक्षय शर्मा और नेहा दिनेश आनंद.

इस फिल्म में लाउड होने का बहुत स्कोप था. लेकिन बर्नाली किसी भी तरह के ओवर-ड्रामेटाइज़ेशन से बचती हैं. हर पहलू को सटल रखने की कोशिश की गई. एक सीन में जय, जून को बताता है कि वो ज़बरदस्ती अपनी बहन रूपा की शादी करवाने वाला है. जून इस बात का विरोध करना चाहती है लेकिन नहीं कर पाती. इससे अगला शॉट आता है एक इलेक्ट्रिक केटल का. वो उबल रही है. केटल की यहां कोई ज़रूरत नहीं थी. लेकिन ये बात सिर्फ उस केटल की नहीं थी. उसके बहाने हमें जून पर पड़ रहे दबाव, उस प्रेशर की एक झलक मिलती है. 

चूंकि फिल्म में सभी नए एक्टर्स थे, इसलिए एक्टिंग इसका सबसे मज़बूत पक्ष नहीं है. उसके बावजूद डेब्यू के हिसाब से सभी ने ठीक काम किया है. नेहा दिनेश आनंद ने जून का रोल किया. वो एक खुले विचारों वाली लड़की है, जिसके पंख कुतरे जा रहे हैं. एक पॉइंट पर आकर अपनी आज़ादी के मायने तलाश रही है. सिड उससे पूछता है, ‘आज़ाद मतलब क्या?’ तपाक से हर बात कह देने वाली जून के चेहरे पर जवाब के कोई निशान नहीं. किरदार के मन में जो चल रहा है, उसे नेहा कुछ हद तक अपने एक्सप्रेशन में उतार पाती हैं. सिड के जूतों में अक्षय शर्मा ने कदम रखे. एक हिस्से में वो मौज-पसंद आदमी है, जिसे किसी से कुछ लेना-देना नहीं. लेकिन प्रेम की लत के बाद वो क़ैस है. अक्षय ने इन दोनों रूपों में ठीक काम किया है.

बता दें कि ‘जून’ अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही है. आप इसे वहां से रेंट पर देख सकते हैं.                                          
     
 

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