नमस्कार सर. मैं एसडीआई बैंक से स्वाति बात कर रही हूं. सर हमारे बैंक के सालाना लकी ड्रॉ में आपका अकाउंट नंबर, पहले नंबर पर निकला है.फिशिंग के बैकड्रॉप पर बनी वेब सीरीज़ की तरह प्रोजेक्ट की जा रही ‘जामताड़ा’ में फिशिंग के जुड़ी कम ही चीज़ें दिखाई गई हैं. जिसमें से आवाज़ बदलकर अपने विक्टिम्स को कॉल करना भी शामिल है.
जामताड़ा. झारखंड का एक जिला. फिशिंग का हब. मतलब अंजान लोगों को कॉल करके धोखे से उनके अकाउंट की डिटेल्स हासिल करना, फिर उनके अकाउंट से अपने अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर लेना. तो जामताड़ा जिले का सबसे बड़ा कमाई का साधन यही था. 2014 से 2018 तक. वेब सीरीज़ ‘जामताड़ा- सबका नंबर आएगा’, उन्हीं सच्ची घटनाओं को बेस बनाकर एक काल्पनिक कहानी कहती है.
दस एपिसोड की वेब सीरीज़ 10 जनवरी, 2020 को ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई है. हर एपिसोड औसतन 28 मिनट का है.

सनी और रॉकी. ममेरे भाई. जामताड़ा में चल रही फिशिंग के दो बड़े और उभरते चेहरे. रॉकी का सपना पॉलिटिशियन बनना है और सनी का सपना फिशिंग से ही खूब पैसे कमाना. सनी अपने ही कोचिंग इंस्टिट्यूट की एक इंग्लिश टीचर गुड़िया सिंह से शादी कर लेता है. ताकि अंग्रेज़ी का कॉल सेंटर खोलकर और ज़्यादा से ज़्यादा अंजान लोगों को फिशिंग का शिकार बना सके. लेकिन गुड़िया भी कम महत्वाकांक्षी नहीं है. उसे कनाडा जाना है और वो सनी को भी डोमिनेट करके रखती है.# कहानी-
अपने सपनों के चलते दोनों भाई, क्रिमिनल विधायक ब्रजेश भान के चंगुल में फंस जाते हैं. साथ ही दोनों के बीच की दूरी बढ़ते-बढ़ते दुश्मनी के लेवल तक पहुंच जाती है. उधर एक युवा एसपी डॉली साहू की पोस्टिंग जामताड़ा में इसलिए होती है ताकि वो फिशिंग के जाल को उधेड़ सके. इस सब के बीच हैं इंडिया के शहरों से लेकर गांवों तक के वो विक्टिम्स जिनको अपने लूट लिए जाने का फोन कट चुकने तक भान नहीं हो पाता.
वेब सीरीज़ की सबसे ख़ास बात है इसके किरदारों की एक्टिंग. एक छोटे से सीन में मास्टर का किरदार निभाने वाला एक्टर भी आपको अपनी एक्टिंग से प्रभावित कर देता है. फिशिंग करने वाले ज़्यादातर लोग ‘जामताड़ा’ के नवयुवक हैं. जैसे सनी की ही उम्र 17 साल बताई गई है. यूं इन किरदारों को निभाने वाले भी युवा ही हैं. लेकिन ये युवा अपनी एक्टिंग से किसी भी सीज़न्ड एक्टर से उन्नीस साबित नहीं होते.# क्या अच्छा है-

इन सब युवाओं में भी सनी का रोल करने वाले स्पर्श श्रीवास्तव हर फ्रेम में ध्रुव तारे की तरह चमकते हैं. उनके कजन रॉकी बने अंशुमन पुष्कर भी कम कमाल नहीं है. गुड़िया का किरदार निभाने वालीं मोनिका पवार और बाकी बच्चों/नवयुवकों की एक्टिंग भी काफी नेचुरल लगती है. सबने एक्सेंट और बिहार/झारखंड वाला मैनरिज्म भी अच्छा पकड़ा है. अमित सियाल ने जो कमाल एक्टिंग ‘इनसाइड एज’ में की थी उसका ही एक्स्टेंशन ‘जामताड़ा’ में ब्रजेश भान का किरदार है. अपने कैरेक्टर को नेचुरल बनाने में जो उन्होंने मेहनत की है, वो दर्शकों तक पहुंचती दिखती है.
सीरीज़ की दूसरी खूबसूरत चीज़ है, फ्रेम्स का कलर टेंपलेट. जो सीरीज़ को प्रीमियम के साथ-साथ थ्रिलर लुक देने में बहुत सफल रहता है. सीरीज़ की तीसरी अच्छी बात है जामताड़ा जैसे किसी अंडरडेवलप्ड गांव का चित्रण. फिर चाहे वो सेट्स के माध्यम से किया गया हो या सिनेमाटोग्राफी के द्वारा.
इतनी तारीफों के बाद अगर आपको लगता है कि ये सीरीज़ मस्ट वॉच है, तो ज़रा रुकिए. ‘जामताड़ा’ की दो सबसे बड़ी दिक्कतें बाकी सारे किए कराए पर पानी फेर देती हैं.# क्या बुरा है-

# पहली दिक्कत- ‘जामताड़ा’ को हर जगह ऐसे प्रमोट किया जा रहा है कि ये एक विशेष रैकेट और उससे जुड़े हब के बारे कहानी कहता है. लेकिन वेब सीरीज़ ‘जामताड़ा’ का इस चीज़ से जुड़ाव काफी सतही रहता है. पहले कुछ एपिसोड्स में आपको लगता है कि आगे इसमें फिशिंग से जुड़ी बातें गहराई से दिखाई जाएंगी. लेकिन जैसे-जैसे सीरीज़ अपने क्लाइमेक्स की तरफ बढ़ती है आपको पता लग जाता है कि न ही सीरीज़ बनाने वालों ने फिशिंग से जुड़ी आवश्यक रिसर्च की है, न ही उससे जुड़ी कोई नई चीज़ सीरीज़ में दिखाई है. आप अपेक्षा रखते हैं कि सीरीज़ आपको कई सवालों के उत्तर देगी. जैसे फिशिंग का कारोबार शुरू कैसे हुआ? जामताड़ा ही इस फ्रॉड की राजधानी कैसे बना? लोगों को बेवकूफ बनाने से पहले और उसके बाद क्या-क्या किया जाता है? और ऑपरेशनल लेवल पर ये 'क्लॉकवर्क' कैसे काम करता है?
लेकिन अव्वल तो इनके उत्तर नहीं मिलते. और जिन सवालों का उत्तर मिलता भी है वो भी आधा अधूरा. ये ऐसा ही है कि किसी मूवी को दिल्ली बेस्ड कहकर प्रमोट किया जाए, और उसमें सारी घटनाएं एक घर के अंदर घटित हो. बहुत से बहुत उस घर का एड्रेस जीके 2 या लाजपत नगर रख दिया जाए और किरदार कभी-कभी ही बाहर निकलें. पान खाने या दूध के पैकेट लेने.

# दूसरी दिक्कत- अब अगर सीरीज़ गोल पोस्ट बदलकर क्राइम थ्रिलर पर फोकस करने लगती है तो चलिए उस तरीके से भी इसकी समीक्षा कर ली जाए. तो एक सामन्य क्राइम थ्रिलर के हिसाब से भी ‘जामताड़ा’ की स्क्रिप्ट बहुत ही लचर है. डायरेक्टर सोमेंद्रु पाधी की इस बात के लिए तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने अपने निर्देशन से थ्रिल बनाए रखने की पूरी कोशिश की है. लेकिन सच मानिए नेशनल अवार्ड विनर डायरेक्टर का कोई भी एफर्ट इस सीरीज़ को इंट्रेस्टिंग बनाने में सफल नहीं हो पाता. कोई भी ऐसा नया कॉन्सेप्ट, ट्विस्ट, सस्पेंस नहीं है जो स्क्रिप्ट में यूज़ किया गया हो. वही करप्ट राजनेता. वही नया/नई पुलिस ऑफिसर. वही, कुछ करप्ट पुलिस ऑफिसर्स. वही छोटे शहरों की महत्वाकांक्षाएं, जो युवाओं को क्राइम में धकेल देती हैं.
यूं ये सीरीज़ ‘मिर्ज़ापुर’,’गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’,’आर्टिकल 15’ और ‘गंगाजल’ जैसी वेब सीरीज़ और मूवीज़ का कोलाज है. लेकिन ये कोलाज भी फूलों का ताज़ा बुके कम बासी खिचड़ी ज़्यादा लगता है.
इसके अलावा छोटी-छोटी दिक्कतों में शामिल है- असंतुष्ट करता क्लाइमैक्स. विक्टिम्स की पैसा लुट जाने के बाद की प्रतिक्रिया न दिखाना. सीन और स्टोरी का बड़े ग़लत ढंग से जंप करना.
# फाइनल वर्डिक्ट-

'बार्ड ऑफ ब्लड', ‘ड्राइव’, ’हाउस अरेस्ट’, ’घोस्ट स्टोरीज़’. नेटफ्लिक्स इंडिया के पिछले कुछ कंटेट की तरह ही बड़ी इंट्रेस्टिंग तरीके से शुरू हुई वेब सीरीज़ ‘जामताड़ा’ भी पूरी खत्म होने के बाद आपको ठग चुकी होती है. उस फ्रॉड कॉल की तरह जो शुरू में गोवा का ट्रिप प्रॉमिस करती है लेकिन कॉल के खत्म हो चुकने के बाद आपको पता चलता है कि आपके अकाउंट से हज़ारों रुपए उड़ गए.
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